अयोध्याकांड/ Ayodhya Kand

अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। संतान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया जिसे कि ऋंगी ऋषि ने सम्पन्न किया। भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (खीर, पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

बालकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग है

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सुंदरकांड/ Sundarakand

 सुंदर कांडा (सुंदर कांड), शाब्दिक रूप से “सुंदर एपिसोड / पुस्तक”, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस का पांचवां अध्याय है। इसमें हनुमान के कारनामों को दर्शाया गया है। मूल सुंदर कांड संस्कृत में है और इसकी रचना वाल्मीकि ने की थी, जिन्होंने सबसे पहले रामायण को लिपिबद्ध किया था। सुंदर कांड रामायण का एकमात्र अध्याय है जिसमें नायक राम नहीं, बल्कि हनुमान हैं। पाठ में हनुमान की निस्वार्थता, शक्ति और राम के प्रति समर्पण पर जोर दिया गया है। हनुमान को उनकी मां अंजनी ने प्यार से सुंदर कहा था और ऋषि वाल्मीकि ने इस नाम को दूसरों के ऊपर चुना क्योंकि यह कांड मुख्य रूप से हनुमान की लंका की यात्रा से संबंधित है।

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गीतावाली/ Geetavali

तुलसीदास एक हिन्दू कवि-संत, सुधारक और दार्शनिक थे जो भगवान श्री राम के प्रति समर्पण के कारण प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपना अधिकतर जीवन वाराणसी शहर में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी के किनारे तुलसी घाट का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। तुलसीदास ने वाराणसी में हनुमान को समर्पित संकटमोचन मन्दिर की स्थापना की, और माना जाता है कि यह उस स्थान पर स्थित है जहाँ उन्हें हनुमान के दर्शन हुए थे। उन्होंने रामलीला को भी आरंभ किया, जो कि रामायण की नाट्य प्रस्तुति है।

वे कई लोकप्रिय रचनाओं के रचयिता थे, पर उन्हें मुख्यतः महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक के तौर पर जाना जाता है, जो श्री राम के जीवन पर आधारित संस्कृत रामायण का स्थानीय अवधी भाषा में पुनः लेखन है। उन्हें हिंदी, भारतीय और विश्व साहित्य में महानतम कवियों में से एक के रूप में सराहा गया। भारत की कला, संस्कृति और समाज पर तुलसीदास और उनके कार्यों का प्रभाव व्यापक है और स्थानीय भाषा, रामलीला प्रस्तुतियों, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, लोकप्रिय संगीत, और टीवी श्रृंखलाओं पर भी अब तक इस प्रभाव को देखा जाता है।

रामचरितमानस, “भगवान राम के पराक्रम के साथ उफनती हुई मनासा झील”, रामायण कथा का एक अवधी भाषांतर है। यह तुलसीदास की सबसे लंबी और आरंभिक कृति है, और वाल्मीकि की रामायण, अध्यात्म रामायण, प्रसन्ना राघव, और हनुमान नाटक सहित विभिन्न स्रोतों से प्रेरित है।

गीतों का संग्रह, गीतावली, गानों के रूप में रामायण का ब्रज में भाषांतर है। सभी छंदों को हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रागों के ऊपर सेट किया गया है और गायन के लिए उपयुक्त हैं। इसमें 328 गीत शामिल हैं जिन्हें सात कांडों या पुस्तकों में विभाजित किया गया है।

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सत्य एवं प्रेरक घटनाएँ/ Satya yebam Prerak Ghatnayen

प्रेरक साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में गीता प्रेस एक जाना-पहचाना नाम है। यूं तो इसकी अनेक पुस्तकें पठनीय हैं परंतु ‘सत्य एवं प्रेरक घटनाएं’ नामक पुस्तक सभी को एक बार जरूर पढ़नी चाहिए। पुस्तक के हर अध्याय में शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर किया गया है और कीमत भी इतनी कि हर पुस्तक-प्रेमी आसानी से खरीद सके।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें उन घटनाओं का उल्लेख किया गया है जो सत्य हैं, साथ ही प्रेरक भी। लेखक रामशरणदास पिलखुवा ने वर्षों पूर्व सत्य घटनाएं लिखी थीं, जिन्हें बाद में ‘कल्याण’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया। उन्हीं घटनाओं को संगृहीत कर यह पुस्तक तैयार की गई है।
पुस्तक के कुछ अध्यायों के नाम इस प्रकार हैं — अशुद्ध आहार का प्रभाव, दो विचित्र स्वप्न, गांव की बेटी अपनी बेटी, कैलास-मानसरोवर में सिद्ध योगी महात्माओं के दर्शन, पूर्वजन्म का अनूठा संतसेवी बालक, सिद्ध संतों की चमत्कारी घटनाएं, भगवान् श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर-हिंदू भक्तजन, श्रीरोनाल्ड निक्सन बने श्रीकृष्णप्रेम भिखारी, कृष्णभक्त बहन रेहाना तैय्यबजी, अंग्रेज मेजर जिन्हें रामायण की चौपाइयां कंठस्थ थीं, मुझे अशर्फियों के थाल नहीं, मुट्ठीभर आटा चाहिए … आदि अध्याय अत्यंत प्रेरक हैं। पुस्तक का विषय और आसान भाषाशैली का संयोग ऐसा है कि एक बार पढ़ने बैठेंगे तो पूरी पढ़ना चाहेंगे।

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भक्तराज हनुमान/ Bhaktraj Hanuman

प्रस्तुत पुस्तक में भक्त-श्रेष्ठ हनुमान जी की विभिन्न लीलाओं का वाल्मीकीय रामायण, अध्यात्म रामायण, ब्रह्माण्ड पुराण तथा पद्म पुराण के आधार पर बड़ा ही सुन्दर और सरस चित्रण किया गया है। पं. श्री शान्तनुविहारीजी द्विवेदी ने कृपापूर्वक इस काम को स्वीकार कर लिया और उसी के फलस्वरूप यह ‘आदर्श चरितमाला’ का प्रथम पुष्प ‘भक्तराज हनुमान‘ आपके हाथों में है।

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श्री रामचरित मानस -मूल गुटका/ Shri Ramcharit Manas- Mool Gutka

श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत श्रीरामचरितमानस हिन्दी साहित्य की सर्वोत्कृष्ट रचना है। आदर्श राजधर्म, आदर्श गृहस्थ-जीवन, आदर्श पारिवारिक जीवन आदि मानव-धर्म के सर्वोत्कृष्ट आदर्शों का यह अनुपम आगार है। सर्वोच्य भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा भगवान की आदर्श मानव-लीला तथा गुण, प्रभाव को व्यक्त करनेवाला ऐसा ग्रंथरत्न संसार की किसी भाषा में मिलना असम्भव है। आशिर्वादात्माक ग्रन्थ होने के कारण सभी लोग मंत्रवत् आदर करते हैं। इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से एवं इसके उपदेशों के अनुरूप आचरण करने से मानवमात्र के कल्याण के साथ भगवत्प्रेम की सहज ही प्राप्ति सम्भव है। श्रीरामचरितमानस के सभी संस्करणों में पाठ-विधि के साथ नवान्ह और मासपरायण के विश्रामस्थान, गोस्वामी जी की संक्षिप्त जीवनी, श्रीरामशलाका प्रश्नावली तथा अंत में रामायण जी की आरती दी गयी है।

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भगवत्पथ-दर्शन/ Bhagwatpath- Darshan

परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका भगवान्में इतना प्रेम हुआ कि भगवान्ने उनके सामने प्रत्यक्ष प्रकट होकर साकाररूपसे दर्शन दिये । इसलिये वे जो बातें कहते हैं उनसे हमें कितना अधिक आध्यात्मिक लाभ हो सकता है, यह हम स्वयं विचार करें । श्रद्धेय श्रीगोयन्दकाजीका एकमात्र उद्देश्य हमलोगोंका जन्म मरणसे उद्धार करनेका था तथा जो आनन्द उन्हें मिला, वह हमें भी मिल जाय ।

सभी सदग्रन्थ इस बातपर प्रकाश डालते हैं और विशेषतासे प्रतिपादन करते हैं कि मनुष्य जीवनका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है । उपनिषद्, गीता, रामायण सभीमें यह बात विशेषतासे कही गयी है । इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि । यदि इस मनुष्य जीवनमें परमात्मतत्त्वको जान लिया तो ठीक है नहीं तो महान् हानि है ।

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सत्संग की मार्मिक बातें/ Satsang ki Marmik Baten

सभी सदग्रन्थ इस बातपर प्रकाश डालते हैं और विशेषतासे प्रतिपादन करते हैं कि मनुष्य जीवनका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है । उपनिषद्, गीता, रामायण सभीमें यह बात विशेषतासे कही गयी है । इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि । यदि इस मनुष्य जीवनमें परमात्मतत्त्वको जान लिया तो ठीक है नहीं तो महान् हानि है । जो यह बात उपनिषद आदिमें कही गयी है, इसी बातको जीवमुक्त महापुरुष कहते हैं तो उस बातमें एक विशेष महत्त्व हो जाता है । वे जो कुछ कहते हैं, स्वयं अनुभव करके कहते हैं और जिस साधनसे उन्होंने अनुभव किया है, उसीपर चलनेके लिये हमें प्रेरणा देते हैं ।

परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका भगवान्में इतना प्रेम हुआ कि भगवान्ने उनके सामने प्रत्यक्ष प्रकट होकर साकाररूपसे दर्शन दिये । इसलिये वे जो बातें कहते हैं उनसे हमें कितना अधिक आध्यात्मिक लाभ हो सकता है, यह हम स्वयं विचार करें । श्रद्धेय श्रीगोयन्दकाजीका एकमात्र उद्देश्य हमलोगोंका जन्म मरणसे उद्धार करनेका था तथा जो आनन्द उन्हें मिला, वह हमें भी मिल जाय । अत उन्हें सत्संग बहुत प्रिय था और इसका आयोजन वे स्वर्गाश्रममें गंगाजीके पावन तटपर ग्रीष्म ऋतुमें करते थे । वहाँपर तथा अन्यत्र जो भी प्रवचन मनुष्योंके कल्याणके लिये उन्होंने दिये, उनमेंसे कुछको यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है, जिससे हमलोग अब भी उनसे आध्यात्मिक लाभ उठा लें । हमें आशा है, पाठकगण इन्हें पढ़ेंगे और मनन करेंगे ।

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