भगवच्चर्चा (छः भाग)/ Bhagvad Charccha (6 parts in one book)

आज गीताप्रेस गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है।

ये गीता प्रेस गोरखपुर से श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार द्वारा लिखित और संपादित प्रमुख पुस्तक हैं।

यह सुन्दर चयन भगवच्चर्चा के नामसे जनताकी सेवामें प्रस्तुत किया जा रहा है।

Continue Reading भगवच्चर्चा (छः भाग)/ Bhagvad Charccha (6 parts in one book)

श्रीरामचरितमानस केवल हिन्दी/ Shri Ramcharit Manas (Keval Hindi Anuvad)

रामचरितमानस अवधि भाषा में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधि साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।

रामचरितमानस के नायक राम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।

रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं – वालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दर काण्ड, लंकाकाण्ड(युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार वालकाण्डऔर किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारो का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। रामचरितमानस में प्रत्येक हिन्दू की अनन्य आस्था है और इसे हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है।

तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।

Continue Reading श्रीरामचरितमानस केवल हिन्दी/ Shri Ramcharit Manas (Keval Hindi Anuvad)

पद-रत्नाकर/ Pada Ratnakar

आज गीताप्रेस गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है।

उन्ही के द्वारा प्रकासित पद-रत्नाकर जो कि एक पद-सग्रह है।इस
पद-रत्नाकर की विषयवली इस प्रकार से है-

वंदना एवं प्रार्थना

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

बाल-माधुरी की झाँकियाँ

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

अभिलाषा

Continue Reading पद-रत्नाकर/ Pada Ratnakar

मार्क्सवाद और रामराज्य -श्री स्वामी करपात्रीजी/ Marksvad our Ram Rajya – Swami Karapatri ji

धर्मसम्राट स्वामी करपात्री (१९०७ – १९८२) भारत के एक सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था। वे दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम ‘हरिहरानन्द सरस्वती’ था किन्तु वे ‘करपात्री’ नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुलि का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे (कर = हाथ , पात्र = बर्तन, करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) । उन्होने अखिल भारतीय़ रामराज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।

स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये अमुक पुस्तक के अमुक पृष्ठ पर अमुक रूप में लिखा हुआ है। आज जो रामराज्य सम्बन्धी विचार गांधी दर्शन तक में दिखाई देते हैं, धर्म संघ, रामराज्य परिषद्, राममंदिर आन्दोलन, धर्म सापेक्ष राज्य, आदि सभी के मूल में स्वामी जी ही हैं।

मार्क्सवाद

कार्ल मार्क्स की साम्यवादी विचारधारा ही मार्क्सवादी विचारधारा के नाम से जानी जाती है। मार्क्स एक समाजवादी विचारक थे और यथार्थ पर आधारित समाजवादी विचारक के रूप में जाने जाते हैं। सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है

मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है।

मार्क्सवाद के अनुसार सामाजिक संरचना की आर्थिक व्याख्या करने वाला यह प्रमुख सिद्धांत है। यह सिद्धांत उन्नीसवीं शताब्दी के बाद लागू होता है। उससे पहले इस विचारधारा के होने या पाए जाने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। आर्थिक रुप से शोषण करने वालों (शोषक)के खिलाफ़ आवाज उठाने में मार्क्सवाद का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
रामराज्य
हिन्दु संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रुपक (प्रतीक) के रामराज्य, लोकतंन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी। गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद गा्रम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी।

वाल्मिकी रामायण में भरत जी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियां बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट–पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।
धर्मसम्राट् ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्री जी महाराज द्वारा प्रणीत यह पुस्तक भारतीय धर्म-दर्शन की निधि है। इसमें स्वामीजी ने पाश्चात्त्य दार्शनिकों, राजनीतिज्ञों की जीवनी, उनका समय, मत-निरूपण, भारतीय ऋषियों से उनकी तुलना, विकासवाद का खण्डन, ईश्वरवाद का मण्डन, मार्क्सवाद का प्रबल शास्त्रीय आलोक में विरोध तथा न्याय और वेदान्त के सिद्धान्त का विस्तार से प्रतिपादन किया है। यह राजनीति और दर्शन के विश्वकोश के रूप में आदरणीय और मननीय ग्रन्थ है।

Continue Reading मार्क्सवाद और रामराज्य -श्री स्वामी करपात्रीजी/ Marksvad our Ram Rajya – Swami Karapatri ji

श्रीरामचरितमानस/ Shri Ramcharit Manas

रामचरितमानस अवधि भाषा में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधि साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण‘ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।

रामचरितमानस के नायक राम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।

रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं –
बालकाण्ड

अयोध्याकाण्ड
अरण्यकाण्ड
किष्किन्धाकाण्ड
सुंदरकाण्ड
लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड)
उत्तरकाण्ड
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारो का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। रामचरितमानस में प्रत्येक हिन्दू की अनन्य आस्था है और इसे हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है।

तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।

Continue Reading श्रीरामचरितमानस/ Shri Ramcharit Manas

मानस-पीयूष (सात खण्ड)/ Manas Piyus (Set of 7 books)

माहात्मा श्रीअंजनी नन्दनजी शरणके द्वारा सम्पादित “मानस-पीयूष” श्रीरामचरितमानसकी सबसे बृहत् टीका है। यह महान ग्रन्थ ख्यातिलब्ध रामायणियों, उत्कृष्ट विचारकों, तपोनिष्ठ महात्माओं एवं आधुनिक मानसविज्ञोकी व्याख्याओंका एक साथ अनुपम संग्रह है।

आजतकके समस्त टीकाकारोंके इतने विशद तथा सुसंगत भावोंका ऐसा संग्रह अत्यंत दुर्लभ है। भक्तोंके लिये तो यह एकमात्र विश्रामस्थान तथा संसार- सागरसे पार होनेके लिये सुन्दर सेतु है। विभिन्न दृष्टियोंसे यह ग्रन्थ विश्वके समस्त जिज्ञासुओं, भक्तों, विद्वानों तथा सर्वसामान्यके लिये असीम ज्ञानका भण्डार एवं संग्रह तथा स्वाध्यायका विषय है।

रामायण’ का संधि विच्छेद करने है ‘राम’ + ‘अयन’। ‘अयन’ का अर्थ है ‘यात्रा’ इसलिये रामायण का अर्थ है राम की यात्रा।

इसमें ४,८०,००२ शब्द हैं जो महाभारत का चौथाई है।

“मानस-पीयूष” के सात खण्ड इस प्रकार हैं-

बालकाण्ड
अयोध्याकाण्ड
अरण्यकाण्ड
किष्किन्धाकाण्ड
सुंदरकाण्ड
लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड)
उत्तरकाण्ड
आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है

Continue Reading मानस-पीयूष (सात खण्ड)/ Manas Piyus (Set of 7 books)

श्रीरामचरितमानस मूल मझला साइज/ Shri Ramcharit Manas- Mool- Medium Size

रामचरितमानस अवधि भाषा में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधि साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण‘ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।

रामचरितमानस के नायक राम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।

रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं – वालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दर काण्ड, लंकाकाण्ड(युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार वालकाण्डऔर किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारो का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। रामचरितमानस में प्रत्येक हिन्दू की अनन्य आस्था है और इसे हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है।

यह बात उस समय की है जब मनु सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वर्ष तपस्या करने के बाद शंकरजी ने स्वयं पार्वती से कहा कि ब्रह्म , विष्णु और मैं कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के लिये आये (“बिधि हरि हर तप देखि अपारा, मनु समीप आये बहु बारा”) और कहा कि जो वर तुम माँगना चाहते हो माँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुत्र रूप में स्वयं परमब्रह्म को ही माँगना था, फिर ये कैसे उनसे यानी शंकर, ब्रह्मा और विष्णु से वर माँगते? हमारे प्रभु राम तो सर्वज्ञ हैं। वे भक्त के ह्रदय की अभिलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वर्ष और बीत गये तो प्रभु राम के द्वारा आकाशवाणी होती है-

प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृप रानी।
माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी॥

तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।

Continue Reading श्रीरामचरितमानस मूल मझला साइज/ Shri Ramcharit Manas- Mool- Medium Size

श्रीरामचरितमानस सटीक मझला साइज/ Shri Ramcharit Manas- Medium Size

रामचरितमानस अवधि भाषा में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधि साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण‘ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।

रामचरितमानस के नायक राम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।

रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं – वालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दर काण्ड, लंकाकाण्ड(युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार वालकाण्डऔर किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारो का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। रामचरितमानस में प्रत्येक हिन्दू की अनन्य आस्था है और इसे हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है।

यह बात उस समय की है जब मनु सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वर्ष तपस्या करने के बाद शंकरजी ने स्वयं पार्वती से कहा कि ब्रह्म , विष्णु और मैं कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के लिये आये (“बिधि हरि हर तप देखि अपारा, मनु समीप आये बहु बारा”) और कहा कि जो वर तुम माँगना चाहते हो माँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुत्र रूप में स्वयं परमब्रह्म को ही माँगना था, फिर ये कैसे उनसे यानी शंकर, ब्रह्मा और विष्णु से वर माँगते? हमारे प्रभु राम तो सर्वज्ञ हैं। वे भक्त के ह्रदय की अभिलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वर्ष और बीत गये तो प्रभु राम के द्वारा आकाशवाणी होती है-

प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृप रानी।
माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी॥

तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।

Continue Reading श्रीरामचरितमानस सटीक मझला साइज/ Shri Ramcharit Manas- Medium Size