परम सेवा/ Param Seva

गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका बचपनसे ही अध्यात्म-पथ पर चल रहे थे, भक्तिके प्रचारके निमित्त उन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की । वहाँ सस्ते मूल्यपर गीता, रामायण तथा अन्य पारमार्थिक साहित्य जनसाधारणको मिलनेकी व्यवस्था की । स्वर्गाश्रममें गंगाके किनारे वैराग्यमय वटवृक्षपर तीन-चार महीनेके लिये सत्संगका आयोजन करना प्रारम्भ किया । किसी प्रकार मनुष्य भगवान्की ओर अग्रसर हों इसके लिये अथक प्रयास किया । अन्य स्थानोंपर घूम-घूमकर भी भगवद्भावोंका प्रचार करते रहे ।

ऐसे जनहितकारी महापुरुषने एक अनोखी युक्ति सोची कि मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम, गीताजी आदि सुनाकर उनको मुक्त किया जाय । केवल मरणासन्न व्यक्ति ही नहीं, अपितु उसको भगवन्नाम, गीताजी सुनानेवाले भी मुक्त हो जायँ । एक प्रकारसे यह मुक्तिकी लूटका उपाय सोचा । इस हेतु उन्होंने गोविन्द भवन कोलकाता, गोरखपुर आदिमें परम सेवा समितिकी स्थापना की, वहाँ लोगोंको इस परम-सेवाके लिये उत्साहित किया और कितने ही लोगोंको इस प्रकार मुक्त किया ।

लोगोंको जन्म-मरणके चक्रसे छुड़ानेके लिये बहुतसे प्रयास उन्होंने जीवनकालमें किये और उनकी प्रेरणासे अभी भी ऐसे कार्य हो रहे हैं । उन्होंने विभिन्न अवसरोंपर भगवन्नामकी महिमा और परम सेवाकी महत्ता पर विशेष रूपसे प्रवचन दिये । मृत्युके समय रोगीके साथ कैसे उपचार किया जाय-इन बातोंपर प्रकाश डाला । उनके उपरोक्त विषयोंपर सम्बन्धित प्रवचनोंको संकलित करके प्रस्तुत पुस्तकमें सम्मिलित किया गया है । भोग और शरीरका आराम ही मनुष्यको भगवत्प्राप्तिसे विमुख करानेवाले हैं । भोग और शरीरकेआराम महान् दुःखदायी तथा भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक हैं । कलियुगमें नामजप ही सर्वश्रेष्ठ साधन है, इन विषयोंके प्रवचन भी इस पुस्तकमें दिये गये हैं ।

श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज श्रीगोयन्दकाजीके इस काममें पूरे सहयोगी रहे हैं । श्रद्धेय स्वामीजीके नाम-महिमा एवं परमसेवा पर कुछ प्रवचन इस पुस्तकमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । इन संतोंके भाव पाठकोंको एक साथ प्राप्त हो जायँ-इस दृष्टिसे यह प्रयास किया गया है ।

पाठकगण इस पुस्तकको मन लगाकर पढ़ें एवं अपने प्रिय प्रेमी सज्जनों और बान्धवोंको इस पुस्तकको पढ़नेकी प्रेरणा करें । इस पुस्तकका पठन-पाठन हम सभीके जीवनको उन्नत बना देगा, ऐसी हमें आशा है ।

Continue Reading परम सेवा/ Param Seva

साधकों का सहारा -भगवच्चर्चा/ Sadhakon ka Sahara- Bhagwat Charcha

आज गीताप्रेस गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है।

भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार जी के विचारो का एक अनुपम संकलन साधकों का सहारा के रुप में आपके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।

Continue Reading साधकों का सहारा -भगवच्चर्चा/ Sadhakon ka Sahara- Bhagwat Charcha

परम साधन -भाग-2/ Param Sadhan- Bhag-2

इस पुस्तकमें आबाल-वृद्ध-हेतु हर प्रकारके उन्नतिके साधनोंका निरूपण करते हुए भगवत्प्राप्तिमें मनुष्यमात्रका अधिकार, सत्यपालन, स्त्री-बालकों-हेतु कर्तव्य-शिक्षा एवं शिक्षाप्रद कहानियोंके संग्रहके साथ गीता-रामायणकी महत्ताका सरल प्रतिपादन है।

Continue Reading परम साधन -भाग-2/ Param Sadhan- Bhag-2

आदर्श भ्रातृ-प्रेम/ Aadarsh Bhatru prem

रामायणमें आदर्श भ्रातृ प्रेम नामक यह निबन्ध पुस्तकरूपमें पाठकोंके सामने उपस्थित करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है । रामायण केवल इतिहास या काव्यग्रन्थ ही नहीं है वह मानव जीवनको सुव्यवस्थित कल्याण मार्गपर सदा अग्रसर करते रहनेके लिये एक महान् पथप्रदर्शक भी है । रामायणमें हमें मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके यशोमय दिव्य शरीरकी प्रत्यक्ष झाँकी मिलती है । रामायण केवल हिंदू संस्कृतिका ही नहीं, मानव संस्कृतिका भी प्राण है । यदि रामायणके ही आदर्शोपर मानव जीवनका संगठन और संचालन किया जाय तो वह दिन दूर नहीं कि सर्वत्र रामराज्यके समान सुख शान्तिका स्रोत बहने लगे ।

प्रस्तुत पुस्तकमें श्रीवाल्मीकि, श्रीअध्यात्म और श्रीतुलसीकृत रामायणके ही आधारपर श्रीरामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न इन चारों भाइयोंके पारस्परिक प्रेम और भक्तिका बहुत ही मनोहर चित्रण किया गया है । आजकल दैहिक स्वार्थ और तुच्छ विषय सुखकी मृग तृष्णामें फँसकर विवेकशून्य हो जानेके कारण जो बहुधा भाई भाईमें विद्वेषकी अग्रि धंधकती दिखायी देती है उसको अनवरत प्रेम वारिकी वर्षासे सदाके लिये बुझा देनेमें यह पुस्तक बहुत ही सहायक हो सकती है । इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है । पढ़ते पढ़ते नेत्रोंमें प्रेमके आँसू उमड़ आते हैं ।

इस पुस्तककी उपादेयताके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा रचित तत्त्व चिन्तामणि नामक पुस्तकके द्वितीय भागकी एक किरण है । इसके प्रकाशमें रहनेपर भ्रातृ विद्वेषरूपी सर्पसे डँसे जानेका भय सर्वथा दूर हो सकता है । अनेकों प्रेमीजनोंके अनुरोधसे सर्वसाधारणको अत्यन्त सुलभ करनेके लिये यह निबन्ध अलग पुस्तकाकारमें प्रकाशित किया गया है । प्रेमी पाठकोंको इसे पढ़कर लाभ उठाना चाहिये ।

Continue Reading आदर्श भ्रातृ-प्रेम/ Aadarsh Bhatru prem

समता अमृत और विषमता विष/ Samata Amrit our Bissamta Biss

अलग-अलग सात भागों तथा विभिन्न शीर्षकों की तेरह पुस्तकों में पूर्व प्रकाशित सरल एवं व्यावहारिक शिक्षाप्रद लेखों के इस ग्रन्थाकार संकलन में गीता-रामायण आदि ग्रन्थों के सार तत्त्वों का संग्रह है। इसके अध्ययन से साधन-सम्बन्धी सभी जिज्ञासाओं का सहज ही समाधान हो जाता है। यह प्रत्येक घर में अवश्य रखने एवं उपहार में देने योग्य एक कल्याणकारी ग्रन्थ है।

इसमें वाल्मीकीय रामायण के अनुसार श्रीराम,श्रीभरत आदि के जीवन-चरित्र तथा स्त्री-शिक्षा और गो-सेवा विषयक लेख भी दिये गये है …

Continue Reading समता अमृत और विषमता विष/ Samata Amrit our Bissamta Biss

धर्म से लाभ और अधर्म से हानि/ Dharma Se Labh our Adharma Se Hani

यह ‘तत्त्व-चिन्तामणि’ का तीसरा भाग है। ‘धर्म-अधर्म कहानियाँ गाँव-देहात से शुरू होकर महानगर तक की जीवननुभूतियों को अभिव्यक्त करती हैं।

प्रस्तुत संग्रह अलग-अलग सात भागों तथा विभिन्न शीर्षकों की तेरह पुस्तकों में पूर्व प्रकाशित सरल एवं व्यावहारिक शिक्षाप्रद लेखों के इस ग्रन्थाकार संकलन में गीता-रामायण आदि ग्रन्थों के सार तत्त्वों का संग्रह है। इसके अध्ययन से साधन-सम्बन्धी सभी जिज्ञासाओं का सहज ही समाधान हो जाता है। यह प्रत्येक घर में अवश्य रखने एवं उपहार में देने योग्य एक कल्याणकारी ग्रन्थ है।

Continue Reading धर्म से लाभ और अधर्म से हानि/ Dharma Se Labh our Adharma Se Hani

सुन्दरकाण्ड (सटीक)/ Sundarakand -Satik

वाल्मीकि रामायण दुनिया की सबसे उल्लेखनीय क्लासिक्स में से एक है और अपनी नैतिक अपील में सभी को उत्कृष्ट बनाती है। यह सभी के लिए सबक से भरा है और स्वस्थ साहित्य के सभी प्रेमियों द्वारा रुचि और लाभ के साथ पढ़ने के योग्य है। यह अपनी काव्य उत्कृष्टता के लिए विख्यात है

त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि के श्रीमुख से साक्षात वेदों का ही श्रीमद्रामायण रूप में प्राकट्य हुआ, ऐसी आस्तिक जगत की मान्यता है। अतः श्रीमद्रामायण को वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त है। धराधाम का आदिकाव्य होनेसे इसमें भगवान के लोकपावन चरित्र की सर्वप्रथम वाङ्मयी परिक्रमा है। इसके एक-एक श्लोक में भगवान के दिव्य गुण, सत्य, सौहार्द्र, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता, गम्भीरता, ज्ञान, पराक्रम, प्रज्ञा-रंजकता, गुरुभक्ति, मैत्री, करुणा, शरणागत-वत्सलता जैसे अनन्त पुष्पोंकी दिव्य सुगन्ध है। प्रस्तुत पुस्तक में श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के सुन्दरकाण्ड का हिंदी टीका के साथ प्रकाशन किया गया है

Continue Reading सुन्दरकाण्ड (सटीक)/ Sundarakand -Satik

सूर्याङ्क – कल्याण/ Suryanka – Kalyan

जीवन में भगत्प्रेम, सेवा, त्याग, वैराग्य, सत्य, अहिंसा, विनय, प्रेम, उदारता, दानशीलता, दया, धर्म, नीति, सदाचार और शान्ति का प्रकाश भर देने वाली सरल, सुरुचिपूर्ण, सत्प्रेरणादायी छोटी-छोटी सत्कथाओं का संकलन कल्याण का यह विशेषांक सर्वदा अपने पास रखने योग्य है।

भगवत्कृपा से कल्याण का प्रकाशन ईस्वी सन 1926 से लगातार हो रहा है। इस पत्रिका के आद्य संपादक नित्यलीलालीन भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार थे। कल्याण के प्रथम अंक में प्रकाशित संपादकीय वक्तव्य पठन सामग्री में उधृत है।

भगवान सूर्य एक पूर्ण भगवान हैं। वह सभी देवताओं का वास है। सूर्य की पूजा और ध्यान सभी करते हैं। इस खंड में वेदों, पुराणों, उपनिषदों और रामायण में मौजूद संदर्भों के साथ सूर्य-तत्त्व पर संतों और सिद्ध आत्माओं द्वारा लिखे गए विद्वानों के लेखों के साथ-साथ भगवान सूर्य द्वारा खेले जाने वाले दिव्य खेलों का विशद वर्णन है। पुस्तक में दुनिया भर में प्रचलित सूर्य पूजा के विभिन्न साधन और भजन भी शामिल हैं । सूर्योपासना के विविध रूप तथा सूर्य-लीला का विवरण किया गया है।

Continue Reading सूर्याङ्क – कल्याण/ Suryanka – Kalyan