Srimad Bhagavadgita/ श्रीमद्भगवद्गीता

The Bhagavad Gita, often referred to as the Gita, is a 700-verse Hindu scripture that is part of the Indian epic Mahabharata. It consists of a conversation between Prince Arjuna and the god Krishna, who serves as his charioteer. The dialogue takes place on the battlefield of Kurukshetra just before the start of a great war.

The Bhagavad Gita addresses the moral and philosophical dilemmas faced by Arjuna as he struggles with his duty as a warrior. It covers various aspects of life, duty, righteousness, devotion, and the nature of reality. Krishna imparts spiritual wisdom and guidance to Arjuna, ultimately encouraging him to fulfill his duty as a warrior and to embrace his role in the cosmic order.

The teachings of the Bhagavad Gita have had a profound influence on Hindu philosophy and spirituality, as well as on the broader Indian cultural and intellectual landscape. Its message of selflessness, duty, and devotion continues to resonate with people around the world.

श्रीमद भगवत गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।

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गीता-संग्रह/ Gita Sangrah

महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक

“Gita Sangrah” translates to “Compilation of the Gita” or “Essence of the Gita.” The “Gita” refers to the Bhagavad Gita, a sacred Hindu scripture that is part of the Indian epic, the Mahabharata. It is a conversation between Prince Arjuna and the god Krishna, who serves as his charioteer. In the dialogue, Krishna imparts spiritual wisdom and guidance to Arjuna, who is conflicted about fighting in a great battle. The Bhagavad Gita addresses various aspects of life, duty, righteousness, and the nature of reality.

A “Gita Sangrah” could be a compilation or summary of key verses or teachings from the Bhagavad Gita, curated to offer essential insights or spiritual guidance. These compilations often serve as handy references for spiritual seekers or those interested in understanding the philosophical depth of the Bhagavad Gita without delving into its entirety.

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श्रीमद्भगवद्गीता /Srimad Bhagwadgita

Bhagavad Gita Path Niyam and Importance: श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है. गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो सभी महत्वपूर्ण है. महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे, वही गीता है. गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवन आदि का वृहद रूप से वर्णन किया गया है.

श्रीमद्भगवद्गीता, भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है और महाभारत के भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच एक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन, कर्तव्य, धर्म, और उच्चतम आध्यात्मिक सिद्धांतों के बारे में उपदेश देते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता में कुछ मुख्य विषय हैं जैसे की कर्मयोग (कर्म के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान), भक्तियोग (भगवान की भक्ति के माध्यम से मुक्ति), और ज्ञानयोग (ज्ञान के माध्यम से मुक्ति)। गीता में धर्म, कर्तव्य, ध्यान, और सामर्थ्य के बारे में अनेक उपदेश हैं जो मनुष्य को एक समृद्ध और सात्त्विक जीवन जीने के मार्ग पर प्रेरित करते हैं।

भगवद्गीता का संदेश विश्वस्त और आध्यात्मिक जीवन के लिए मार्गदर्शक है, जो समाज, परिवार, और व्यक्तिगत स्तर पर जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाता है। इसके उपदेशों को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है और इसे विभिन्न धार्मिक, दार्शनिक, और आध्यात्मिक संस्कृतियों में आदर्श ग्रंथ के रूप में स्वीकारा गया है।

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श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्रम्/ Shree Vishnu Sahastrannam Stotram

श्री विष्णु सहस्रनाम में भगवान का रूप वैभव है तो सहस्रनाम में उसकी नाम रमणीयता है। महाभारत युद्ध की विभीषिका से क्षुब्ध धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों तथा पत्नी सहित शरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह के सन्निकट गए और उनसे अनेक प्रकार की शंकाओं का समाधान करने का आग्रह किया। ज्यों ही पितामह ने उपदेश देना प्रारंभ किया त्यों ही द्रोपदी किंचित् हंस पड़ी। पितामह मौन हो गए और अविचलित भाव से द्रौपदी से पूछने लगे, ‘‘बेटी तू क्यों हंसी?  द्रौपदी ने सकुचाकर कहा, ‘‘दादाजी, मेरे अविनयको क्षमा करें। मुझे यों ही हंसी आ गई।’’  पितामह ने कहा, ‘‘नहीं बेटी, तू अभिजात परिवार की संस्कारी वधू है। तू यों ही नहीं हंस सकती। इसके पीछे कोई रहस्य अवश्य होना चाहिए।’’  द्रौपदी ने पुनः कहा, ’’नहीं दादा जी, कुछ रहस्य नहीं है। पर यदि आप आज्ञा करते हैं तो मैं पुनः क्षमा याचना कर पूछती हूं कि आज तो आप बड़े ही गंभीर होकर कर्तव्य पालन का उपदेश दे रहे हैं, परंतु जब दुष्ट कौरव दुःशासन आप सबकी सभा में विराजमान होते हुए मुझे निर्वस्त्र कर रहा था, तब आपका ज्ञान और आपकी बुद्धि कहां चली गई थी?  यह बात स्मरण आते ही मैं अपनी हंसी न रोक सकी। मुझसे अशिष्टता अवश्य हुई है जिसके लिए मैं अत्यंत लज्जित हूं। क्षमा चाहती हूं।’’  पितामह द्रौपदी के वचन सुनकर बोले, ‘‘ बेटी, क्षमा मांगने या लज्जित होने की कोई बात नहीं है। तुमने ठीक ही जिज्ञासा की है और इसका उत्तर यह है कि उस समय मैं कौरवों का अन्न खा रहा था जो शुद्ध नहीं था, विकारी था। इसी कारण मेरी बुद्धि मारी गई थी परंतु अर्जुन के तीक्ष्ण वाणों से मेरे शरीर का अशुद्ध रक्त निकल गया है। अतः अब मैं अनुभव कर रहा हूं कि जो कुछ कहूंगा, वह मानव मात्र के लिए कल्याण-प्रद होगा।’’ तभी धर्मराज ने उनसे पूछा कि वह ऐसा कोई सरल उपाय बता दें जिससे लोक कल्याण-साधित हो सके। इसी अनुरोध पर पितामह ने जीव जगत के अंतर में स्पंदित परम-सत्य का साक्षात्कार कराने वाले श्रीविष्णु सहस्रनामों का महत्व प्रतिपादित किया। 

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अयोध्या-महात्म्य/Ayoddhya-Mahatmya

“अयोध्या-महात्म्य” एक प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक पुराण है जो अयोध्या नामक पवित्र नगरी के महत्व को बताता है। इस पुराण में अयोध्या के ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक महत्व का वर्णन किया गया है।

“अयोध्या-महात्म्य” में अयोध्या के इतिहास, विभिन्न मंदिरों और तीर्थ स्थलों का वर्णन, उनके महत्व, और उनके पीछे चिपी रहस्यों को समेटा गया है। यह पुराण अयोध्या के पुरातात्विक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक धरोहर को समर्पित है।

अयोध्या का उल्लेख वेद, पुराण, रामायण, और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इसे भगवान राम के जन्मस्थल के रूप में भी जाना जाता है, और यह एक प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल है जो लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।

अयोध्या के सम्बंध में कई पुराण और ऐतिहासिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है, और इनमें “अयोध्या-महात्म्य” एक प्रमुख ग्रंथ है जो इस नगरी के महत्व को समझने में मदद करता है।

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Sachitra-Shreemad Bhagvadgita (With English Translation )

“श्रीमद् भगवद्गीता” भारतीय धर्मग्रंथ है जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई महाभारत के युद्ध के समय की एक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह ग्रंथ भगवद्धर्म, ज्ञान, और भक्ति के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेशों का संग्रह है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर समझाते हैं, जैसे कर्तव्य, धर्म, योग, सम्यक ज्ञान, और उत्तम जीवन की प्राप्ति।

श्रीमद् भगवद्गीता में अर्जुन की आत्मसमर्पण और भगवान के श्रीकृष्ण के उपदेशों के माध्यम से वह अपने कर्तव्य का निष्कर्ष निकालता है। यह ग्रंथ भगवान की अपूर्व शिक्षा को एक अद्वितीय रूप से प्रस्तुत करता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन के रूप में माना जाता है।

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श्रीमद्भगवद्गीता- तत्व विवेचनि/ Shreemad Bhagwadgita- Tatva Vivechani

श्रीमद्भगवद्गीता तत्वविवेचनी हिंदी टीका पदच्छेद अन्वयसहित

 

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है।

गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।

प्रथम अध्याय

प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है अर्जुन निर्णय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध करे अथवा वैराग्य ले ले। क्या करें, क्या न करें, कुछ समझ में नहीं आता था। इस मनोभाव की चरम स्थिति में पहुँचकर उसने धनुषबाण एक ओर डाल दिया।पहले अध्याय में सामान्य रीति से भूमिका रूप में अर्जुन ने भगवान से अपनी स्थिति कह दी।

प्रथम अध्याय में दोनों सेनाओं का वर्णन किया जाता है

दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इसमें जीवन की दो प्राचीन संमानित परंम्पराऔ का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उनका ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं।

तीसरा अध्याय

तीसरे अध्याय का नाम कर्मयोग है। तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं। यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में मिथ्याचार कहा है।

चौथा अध्याय

चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, भगवान अर्थात् की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

इस प्रकार से गीता में 18 अध्याय का विस्तार से वर्णन मिलता है।

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श्रीमद्भगवद्गीता साधक संजीवनी /Shreemadbhagavad Gita- Sadhak Sanjivani

श्रीमद्भगवद्गीता साधक संजीवनी ( परिशेष्टसहित ) हिंदी टीका

 

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है।

गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।

प्रथम अध्याय

प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है अर्जुन निर्णय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध करे अथवा वैराग्य ले ले। क्या करें, क्या न करें, कुछ समझ में नहीं आता था। इस मनोभाव की चरम स्थिति में पहुँचकर उसने धनुषबाण एक ओर डाल दिया।पहले अध्याय में सामान्य रीति से भूमिका रूप में अर्जुन ने भगवान से अपनी स्थिति कह दी।

प्रथम अध्याय में दोनों सेनाओं का वर्णन किया जाता है

दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इसमें जीवन की दो प्राचीन संमानित परंम्पराऔ का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उनका ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं।

तीसरा अध्याय

तीसरे अध्याय का नाम कर्मयोग है। तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं। यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में मिथ्याचार कहा है।

चौथा अध्याय

चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, भगवान अर्थात् की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

इस प्रकार से गीता में 18 अध्याय का विस्तार से वर्णन मिलता है।

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