• "स्त्रियों के लिये कर्तव्य शिक्षा" एक अत्यंत उपयोगी और शिक्षाप्रद पुस्तक है, जिसमें नारी जीवन के विभिन्न पक्षों पर धर्म, संस्कृति, मर्यादा और कर्तव्य के आलोक में मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। यह पुस्तक विशेष रूप से भारतीय सनातन संस्कृति और गृहस्थ धर्म की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए स्त्रियों के आदर्श जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है।


    📖 मुख्य विषयवस्तु:

    1. नारी का स्थान और महत्व

      • भारतीय संस्कृति में नारी को 'गृहलक्ष्मी', 'धर्मपत्नी', 'संस्कारदायिनी' और 'संस्कृति की रक्षक' के रूप में सम्मान प्राप्त है।

      • नारी परिवार की रीढ़ होती है, जो संस्कारों की नींव डालती है।

    2. पत्नी का धर्म और कर्तव्य

      • पति के प्रति श्रद्धा, सेवा, सहयोग और उसकी उन्नति में भागी बनने की प्रेरणा।

      • विवाह पश्चात स्त्री का जीवन किस प्रकार धर्ममय और त्यागमय होना चाहिए – इसका विवेचन।

    3. मातृत्व का आदर्श

      • मातृत्व की गरिमा और बच्चों को धार्मिक व नैतिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी पर प्रकाश।

    4. नारी और संयम

      • इन्द्रियों पर नियंत्रण, चरित्र की शुद्धता, शील और सदाचार का महत्व।

    5. सद्गुणों की साधना

      • विनय, सहनशीलता, दया, क्षमा, संतोष, सादगी आदि गुणों के विकास की आवश्यकता।

    6. स्त्रियों के लिए शिक्षा का उद्देश्य

      • नारी शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी या व्यवसाय नहीं, अपितु धर्म, सेवा, परिवार व्यवस्था और आत्मिक उन्नति होना चाहिए।

    7. आदर्श स्त्रियों के जीवन प्रसंग

      • सीता, सावित्री, अनसूया, गार्गी, मदालसा आदि महान स्त्रियों के प्रेरक जीवन प्रसंग।


    🌷 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • सरल हिंदी में लिखा गया है, जिससे हर आयु की स्त्रियाँ सहजता से समझ सकें।

    • प्राचीन शास्त्रीय दृष्टिकोण के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा को मिलाकर प्रस्तुत किया गया है।

    • पारिवारिक जीवन, वैवाहिक संबंध, मातृत्व और सामाजिक व्यवहार को संतुलित करने की दिशा में उत्कृष्ट मार्गदर्शन।

    • स्त्रियों के आत्मविकास, धार्मिक जीवन और संयमयुक्त व्यवहार को बढ़ावा देने वाली अमूल्य पुस्तक।


    🙏 उपयोगिता:

    यह पुस्तक उन स्त्रियों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अपने जीवन को धर्ममय, मर्यादित, संस्कारित और समाजोपयोगी बनाना चाहती हैं। साथ ही यह युवा कन्याओं, गृहिणियों और माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

  • सहज साधना  स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक ग्रंथ है, जो साधकों को आत्म-साक्षात्कार और भगवत्प्राप्ति के सरल, सहज और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। इस पुस्तक में स्वामी जी ने बताया है कि कैसे साधक बिना जटिल विधियों के, अपने दैनिक जीवन में ही साधना को आत्मसात कर सकते हैं।

    स्वामी जी के अनुसार, संसार के भोगों और कर्मों में आसक्ति ही दुःख का मूल कारण है। जब मनुष्य इनसे विरक्त होकर समत्व की स्थिति में स्थित होता है, तभी वह योगारूढ़ कहलाता है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए स्वामी जी ने तीन प्रमुख मार्ग बताए हैं

    • कर्मयोग: सभी क्रियाओं को निःस्वार्थ भाव से, केवल दूसरों के हित के लिए करना।

    • ज्ञानयोग: यह समझना कि सभी क्रियाएँ प्रकृति के गुणों के अनुसार होती हैं, और आत्मा अक्रिय है।

    • भक्तियोग: सभी क्रियाओं को भगवान की प्रसन्नता के लिए समर्पित करना                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    इन मार्गों का अनुसरण करके साधक संयोग की रुचि को समाप्त कर सकता है, जिससे उसे नित्ययोग की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि संसार का वियोग स्वाभाविक और अनिवार्य है, जबकि परमात्मा का योग सदा प्राप्त है। इसलिए, साधक को केवल संयोग की इच्छा का त्याग करना है, जिससे वह सहज रूप से परमात्मा में स्थित हो सकता है

  • "समता अमृत और विषमता विष" – यह पुस्तक श्री जयदयाल गोयन्दका जी द्वारा रचित एक गहन वैदिक और सांस्कृतिक चिंतन है, जो समाज में व्याप्त विषमता (असमानता) की जड़ों को उजागर करता है और समता (समानता) के वैदिक, धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों की महिमा को प्रस्तुत करता है।

    यह पुस्तक दर्शाती है कि समता ही मानवता का अमृत है, जबकि विषमता संहारक विष के समान है, जो समाज, राष्ट्र और आत्मा – तीनों का पतन करता है।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु / Key Themes:

    1. समता का वैदिक सिद्धांत:
      सभी जीवों में आत्मा समान है, भेद केवल शरीर, गुण और कर्म के आधार पर है। यह अध्यात्मिक समता का आधार है।

    2. विषमता का खंडन:
      जाति, वर्ण, पद, संपत्ति या जन्म के आधार पर उत्पन्न भेदभाव सामाजिक विकृति हैं, जिनका समर्थन न वेद करते हैं, न संत।

    3. धार्मिक ग्रंथों का सटीक विवेचन:
      गोयन्दका जी वेद, उपनिषद, गीता और अन्य शास्त्रों के प्रमाण देकर यह सिद्ध करते हैं कि धर्म कभी विषमता को नहीं मान्यता देता।

    4. सामाजिक समरसता का संदेश:
      पुस्तक समरस समाज की ओर प्रेरित करती है – जहाँ न ऊँच-नीच हो, न अहंकार हो, न अपमान।

    5. धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार:
      पाखंड, रूढ़िवाद और धर्म के नाम पर विषमता फैलाने वालों की कटु आलोचना की गई है, पर संतुलित और शास्त्रीय भाषा में।


    📚 पुस्तक की विशेषताएं / Highlights:

    • सरल, तर्कपूर्ण और ओजस्वी भाषा।

    • शास्त्र सम्मत तात्त्विक विवेचन।

    • धार्मिक दृष्टिकोण से सामाजिक समता का समर्थन।

    • आधुनिक समस्याओं पर सनातन समाधान।


    🎯 पाठकों के लिए उपयुक्त:

    • सामाजिक समरसता में रुचि रखने वाले

    • भारतीय दर्शन और धर्म के विद्यार्थी

    • वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से सामाजिक सुधार चाहने वाले

    • जाति-वर्ण पर तर्कपूर्ण और शास्त्रीय दृष्टिकोण समझना चाहने वाले


    📌 पुस्तक का उद्देश्य:

    धर्म और अध्यात्म के नाम पर समाज में फैलाई गई विषमता की आलोचना करते हुए, "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना से ओतप्रोत एक समतामूलक समाज की स्थापना का संदेश देना।

  • "प्रेम-दर्शन" एक आध्यात्मिक और भक्ति से परिपूर्ण ग्रंथ है, जो महान भक्त और देवर्षि नारद द्वारा रचित नारद भक्ति सूत्रों की व्याख्या पर आधारित है। यह ग्रंथ भक्ति को जीवन का परम लक्ष्य बताता है और प्रेम को उस भक्ति का सबसे उत्कृष्ट रूप। हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ने अपने गहन आध्यात्मिक अनुभव, सरल शैली और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ इन सूत्रों को हिन्दी भाषा में अत्यंत सुबोध रूप में प्रस्तुत किया है।

    यह पुस्तक श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से जुड़ी सूक्ष्म भावनाओं को उजागर करती है और मानव जीवन को परमात्मा की ओर मोड़ने का मार्गदर्शन देती है।


    🔸 मुख्य विषयवस्तु और संरचना:

    1. नारद भक्ति सूत्रों का शाब्दिक अर्थ और गूढ़ भावार्थ:
    पुस्तक में प्रत्येक सूत्र को संस्कृत में उद्धृत कर उसका हिन्दी में अनुवाद तथा विस्तृत विवेचन किया गया है। इन सूत्रों में भक्तिभाव का अद्भुत वर्णन मिलता है।

    2. भक्ति का स्वरूप:
    नारद मुनि के अनुसार भक्ति कोई साधारण भावना नहीं, बल्कि वह दिव्य प्रेम है जिसमें आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। यह निष्काम, निरपेक्ष और पूर्ण समर्पण से युक्त होती है।

    3. प्रेम और भक्ति का संबंध:
    इस ग्रंथ में प्रेम को ही भक्ति का सर्वोच्च रूप कहा गया है। जहाँ लौकिक प्रेम में स्वार्थ होता है, वहीं भक्ति में ईश्वर के प्रति निश्छल प्रेम होता है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।

    4. भक्ति के प्रकार और साधन:
    इस पुस्तक में शास्त्रों के प्रमाणों सहित यह बताया गया है कि भक्ति के कई रूप होते हैं – जैसे शरणागति, नामस्मरण, कथा-श्रवण, सेवा, ध्यान, कीर्तन आदि। इन सबका उद्देश्य एक ही है – प्रभु से मिलन।

    5. भक्तों का जीवन और उदाहरण:
    ग्रंथ में प्रह्लाद, ध्रुव, शबरी, गोपियों, मीरा, तुलसीदास, नारद आदि भक्तों का उदाहरण देकर भक्ति की महानता को सिद्ध किया गया है। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि भक्त कोई भी हो – बालक, स्त्री, पशुप्रेमी, ज्ञानी – सबको ईश्वर ने अपनाया।

    6. भक्ति की राह में आने वाली बाधाएँ और समाधान:
    मानव जीवन में अहंकार, मोह, राग, द्वेष जैसी अनेक बाधाएँ होती हैं। प्रेम-दर्शन इनसे पार पाने का उपाय बताता है – प्रभु का स्मरण, साधु संगति और सत्साहित्य का अध्ययन।

    7. भक्त के लक्षण:
    इसमें बताया गया है कि सच्चा भक्त क्रोधरहित, विनम्र, समदर्शी, और करुणामय होता है। वह ईश्वर की सेवा को ही जीवन का सार मानता है।


    🌼 लेखक की विशेषता:

    हनुमानप्रसाद पोद्दा जी गीताप्रेस के प्रतिष्ठित सम्पादक, महान भक्त और समाजसुधारक थे। उनकी रचनाएँ केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार होती हैं। उन्होंने नारद भक्ति सूत्रों की सूक्ष्मता को गहराई से समझते हुए, आमजन की भाषा में इस पुस्तक को प्रस्तुत किया है। यह ग्रंथ उनके हृदय की भक्ति का प्रतिबिंब है।


    📚 पाठकों के लिए लाभ:

    • यह पुस्तक एक आध्यात्मिक मार्गदर्शिका है, जो मनुष्य को भौतिकता से हटाकर आत्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।

    • नवीन साधक इसे पढ़कर भक्ति की ओर आकर्षित होंगे, वहीं जिज्ञासु और योगीजन इसके सूत्रों से प्रेरणा पाएँगे।

    • यह ग्रंथ भक्ति, प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रेरणास्त्रोत है।

    • जीवन में शांति, संतुलन और संतोष की खोज करने वालों के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है।


    📌 निष्कर्ष:

    "प्रेम-दर्शन" केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भक्ति का साक्षात दर्शन है। यह प्रेम की उस ऊँचाई तक ले जाती है जहाँ केवल ईश्वर ही दिखते हैं, और स्वयं का अस्तित्व केवल उनकी भक्ति में विलीन हो जाता है। यह ग्रंथ भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की अनुपम देन है, जिसे हर जिज्ञासु आत्मा को पढ़ना चाहिए।

  • "सुखी बनो" एक आध्यात्मिक, नैतिक और आत्मविकास से परिपूर्ण प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसे गीता प्रेस के संस्थापक पुरुषों में से एक, पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने लिखा है। इस पुस्तक में व्यक्ति को "सच्चे सुख" के रहस्य से परिचित कराया गया है—जो बाह्य साधनों से नहीं, बल्कि अंतःकरण की निर्मलता, सद्भावना, ईश्वरप्रेम, और धर्ममय जीवन से प्राप्त होता है।

    यह पुस्तक जीवन की उन सूक्ष्म बातों को सरल भाषा में उद्घाटित करती है जिन्हें हम प्रतिदिन अनुभव तो करते हैं, लेकिन अक्सर उपेक्षित कर देते हैं।


    🔑 पुस्तक की मूल भावना:

    सुखी बनो” एक आशीर्वाद की तरह है—केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा से निकला एक सन्देश। इस पुस्तक में बताया गया है कि:

    • सुख संपत्ति, भोग, पद या बाहरी वैभव में नहीं है।

    • वास्तविक सुख है मन की शांति, संतोष, सकारात्मक दृष्टिकोण और ईश्वर में विश्वास

    • यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक सामान्य व्यक्ति भी, अपनी सोच और जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव कर के सदैव सुखी और शांतिमय जीवन जी सकता है।


    📖 मुख्य विषय-वस्तु और विचारधाराएँ:

    1. मन की दशा और दृष्टिकोण का प्रभाव

    • सुख या दुःख हमारी मानसिक स्थिति से उत्पन्न होते हैं।

    • मन यदि नियंत्रित और संतुलित हो, तो जीवन के कठिन दौर भी सहज हो जाते हैं।

    2. संतोष: सुख का मूल आधार

    • जो मिला है, उसमें प्रसन्न रहना—यह सबसे बड़ी पूँजी है।

    • लोभ, ईर्ष्या और असंतोष जीवन का विष है।

    3. कर्तव्यपालन और निष्काम कर्म

    • अपने कर्तव्यों को परमात्मा के अर्पण भाव से करना।

    • फल की चिंता न करते हुए सेवा भाव से कर्म करना सुख की कुंजी है।

    4. ईश्वरभक्ति और आत्म-संपर्क

    • जीवन में सच्चा सुख केवल ईश्वर की शरण में ही संभव है।

    • भक्ति, जप, ध्यान, सत्संग और धार्मिक अध्ययन से अंतःकरण शांत और निर्मल बनता है।

    5. मोह, माया और वासनाओं से मुक्ति

    • सुख की राह में मोह और विषय-वासनाएँ सबसे बड़ा बंधन हैं।

    • इनसे मुक्त होकर ही आत्मा के स्तर पर सुख का अनुभव किया जा सकता है।

    6. सच्चे सुखी कौन हैं?

    • जो दूसरों की सेवा करके हर्षित होते हैं।

    • जो लेने में नहीं, देने में विश्वास रखते हैं।

    • जो विपत्ति में भी धैर्य और आस्था रखते हैं।


    🌷 भाषा एवं शैली:

    • भाषा अत्यंत सरल, प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी है।

    • उदाहरणों और उपदेशों को सहज बोधगम्य शैली में प्रस्तुत किया गया है।

    • ऐसा लगता है जैसे कोई सज्जन और अनुभवी बुज़ुर्ग मन से आशीर्वाद दे रहा हो


    🎯 पुस्तक क्यों पढ़ें?

    • यदि आप मन की अशांति, असंतोष, या जीवन में निरर्थकता महसूस कर रहे हैं—यह पुस्तक आपको नवचेतना, आशा, और सकारात्मक दृष्टिकोण दे सकती है।

    • यह किसी धर्म, वर्ग या आयु के बंधन में नहीं है—हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो जीवन को सार्थक और सुखद बनाना चाहता है।

    • छात्र, गृहस्थ, साधक, सेवानिवृत्त, कर्मी, व्यवसायी, साधु — सभी इसके पाठ से लाभान्वित हो सकते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    "सुखी बनो" कोई साधारण पुस्तक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवन की चाबी है। यह पुस्तक हमें भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है और बताती है कि सच्चा सुख ना कहीं बाहर है, ना भविष्य में—बल्कि हमारे अपने हृदय में है। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ सच्ची मुस्कान और आत्मिक शांति की ओर एक कदम है।

  • "नवधा भक्ति" पुस्तक प्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक जयदयाल गोयंदका जी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो भगवान श्रीराम द्वारा शबरी को बताए गए भक्ति के नौ प्रकारों — जिन्हें "नवधा भक्ति" कहा जाता है — का सारगर्भित और गूढ़ विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह पुस्तक रामचरितमानस की उस अमर शिक्षा पर आधारित है जिसमें श्रीराम ने शबरी से कहा था:

    “प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
    दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
    तृती भजनु करि कपट तजि गाना।
    चौथी भगति मम गुण गन करा ना॥”

    इत्यादि।


    🌿 नवधा भक्ति के नौ अंग:

    1. श्रवण – भगवान की कथा और गुणों को श्रवण करना

    2. कीर्तन – भगवन्नाम और लीला का कीर्तन करना

    3. स्मरण – भगवान का निरंतर स्मरण करना

    4. पादसेवन – प्रभु के चरणों की सेवा करना

    5. अर्चन – विग्रह या प्रतिमा की विधिपूर्वक पूजा करना

    6. वंदन – भगवान को नमस्कार अर्पित करना

    7. दास्य – स्वयं को भगवान का सेवक मानना

    8. साख्य – प्रभु को अपना सखा मानकर व्यवहार करना

    9. आत्मनिवेदन – सम्पूर्ण आत्मा का समर्पण कर देना


    🔍 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • सरल भाषा: पुस्तक अत्यंत सरल हिंदी में लिखी गई है, जिससे यह हर आयु वर्ग के पाठक के लिए सहज और सुगम बन जाती है।

    • धार्मिक शिक्षाओं का सार: इसमें प्रत्येक भक्ति अंग के महत्व, उदाहरण, व्यवहारिक पक्ष और आध्यात्मिक लाभों को गहराई से समझाया गया है।

    • प्रेरणादायक: यह ग्रंथ व्यक्ति को भक्ति-पथ पर अग्रसर करने वाला है और जीवन में भगवद्भाव, सेवा और समर्पण का भाव उत्पन्न करता है।

    • सचित्र प्रस्तुति: कवर चित्र में नवधा भक्ति के प्रत्येक अंग को एक-एक भक्त के माध्यम से दर्शाया गया है, जो दर्शनीय और शिक्षाप्रद है।


    🙏 यह पुस्तक उपयुक्त है:

    • भक्तों और साधकों के लिए जो श्रीराम या श्रीकृष्ण की भक्ति में आगे बढ़ना चाहते हैं

    • युवा पीढ़ी के लिए जो धर्म, भक्ति और मूल्यों की समझ प्राप्त करना चाहती है

    • धार्मिक संगठनों, पाठशालाओं या सत्संगों में भक्ति की शिक्षा देने हेतु

    • संस्कारवान जीवन जीने के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए


    निष्कर्ष:

    "नवधा भक्ति" केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है, जो बताता है कि कैसे मनुष्य भगवान से जुड़ सकता है — श्रवण से लेकर आत्मनिवेदन तक। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति दिखावे या बाह्य आडंबर में नहीं, बल्कि हृदय के प्रेम, सेवा और समर्पण में होती है।

  • "परम साधन – भाग 2" पूज्य जयदयाल गोयन्दका जी की एक अत्यंत गूढ़, प्रेरणादायी और शास्त्रसम्मत आध्यात्मिक कृति है। यह पुस्तक विशेष रूप से साधकों (spiritual aspirants) के लिए लिखी गई है जो आत्मोन्नति, भक्ति और मोक्ष की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।

    पुस्तक में भक्ति, ज्ञान, ध्यान, वैराग्य और ईश्वर प्राप्ति जैसे विषयों पर अत्यंत सरल, तार्किक और अनुभवसिद्ध रूप से विवेचन किया गया है।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु / 

    1. ईश्वर प्राप्ति का मार्ग – परम साधन:
      मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है, और उसके लिए कौन-से साधन श्रेष्ठ हैं, इसका विस्तार से वर्णन है।

    2. भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की साधना:
      पुस्तक बताती है कि कैसे भक्ति के साथ-साथ ज्ञान और वैराग्य की आवश्यकता है, जिससे मन स्थिर हो और आत्मा शुद्ध हो।

    3. साधक के लिए व्यवहारिक मार्गदर्शन:
      एक साधक को दिनचर्या कैसी रखनी चाहिए, विचार और व्यवहार कैसा होना चाहिए – इसका विशद वर्णन किया गया है।

    4. शुद्धि और मनोनिग्रह:
      मन को वासनाओं से मुक्त कर ईश्वर में स्थिर करने की विधियाँ दी गई हैं। साधना के लिए मानसिक शुद्धता को अत्यंत आवश्यक बताया गया है।

    5. वेद, उपनिषद और गीता पर आधारित विचार:
      पूरे ग्रंथ में शास्त्रों का भरपूर संदर्भ है – जिससे यह पुस्तक न केवल प्रेरक, बल्कि प्रमाणिक भी बनती है।


    📚 पुस्तक की विशेषताएं /

    • सरल, भक्तिपूर्ण एवं स्पष्ट भाषा

    • शास्त्र आधारित और तात्त्विक विवेचन

    • साधकों के लिए उपयोगी सूत्र, नियम और अभ्यास

    • गहन चिंतन और आत्मविश्लेषण हेतु उपयुक्त ग्रंथ


    🙏 पाठकों के लिए उपयुक्त:

    • साधक एवं आध्यात्मिक पथ के जिज्ञासु

    • भक्ति, योग, ध्यान और मोक्ष मार्ग के अनुयायी

    • गीता और वेदांत दर्शन में रुचि रखने वाले

    • संयम और आंतरिक उन्नति चाहने वाले पाठक


    🎯 पुस्तक का उद्देश्य:

    जीवन को आत्मोन्मुख बनाकर परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग को सरल, व्यावहारिक और सिद्ध रूप में प्रस्तुत करना – यही इस ग्रंथ का लक्ष्य है। यह साधक के लिए एक दीपस्तंभ की भांति कार्य करता है।

  • यह पुस्तक स्वामी रामसुखदास द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक बाध्यकारी पेपरबैक है। पुस्तक प्रकाशक गीता प्रेस-गोरखपुर है। प्रथम संस्करण पुस्तक। इस पुस्तक के पृष्ठों की संख्या 192 है। यह पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखी गई है। यह एक धार्मिक ग्रंथ है।
    इस पुस्तक में स्वामी श्री रामसुखदास जी के प्रवचनों का एक अनुपम संग्रह है।
  • गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका बचपनसे ही अध्यात्म-पथ पर चल रहे थे, भक्तिके प्रचारके निमित्त उन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की । वहाँ सस्ते मूल्यपर गीता, रामायण तथा अन्य पारमार्थिक साहित्य जनसाधारणको मिलनेकी व्यवस्था की । स्वर्गाश्रममें गंगाके किनारे वैराग्यमय वटवृक्षपर तीन-चार महीनेके लिये सत्संगका आयोजन करना प्रारम्भ किया । किसी प्रकार मनुष्य भगवान्की ओर अग्रसर हों इसके लिये अथक प्रयास किया । अन्य स्थानोंपर घूम-घूमकर भी भगवद्भावोंका प्रचार करते रहे ।

    ऐसे जनहितकारी महापुरुषने एक अनोखी युक्ति सोची कि मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम, गीताजी आदि सुनाकर उनको मुक्त किया जाय । केवल मरणासन्न व्यक्ति ही नहीं, अपितु उसको भगवन्नाम, गीताजी सुनानेवाले भी मुक्त हो जायँ । एक प्रकारसे यह मुक्तिकी लूटका उपाय सोचा । इस हेतु उन्होंने गोविन्द भवन कोलकाता, गोरखपुर आदिमें परम सेवा समितिकी स्थापना की, वहाँ लोगोंको इस परम-सेवाके लिये उत्साहित किया और कितने ही लोगोंको इस प्रकार मुक्त किया ।

    लोगोंको जन्म-मरणके चक्रसे छुड़ानेके लिये बहुतसे प्रयास उन्होंने जीवनकालमें किये और उनकी प्रेरणासे अभी भी ऐसे कार्य हो रहे हैं । उन्होंने विभिन्न अवसरोंपर भगवन्नामकी महिमा और परम सेवाकी महत्ता पर विशेष रूपसे प्रवचन दिये । मृत्युके समय रोगीके साथ कैसे उपचार किया जाय-इन बातोंपर प्रकाश डाला । उनके उपरोक्त विषयोंपर सम्बन्धित प्रवचनोंको संकलित करके प्रस्तुत पुस्तकमें सम्मिलित किया गया है । भोग और शरीरका आराम ही मनुष्यको भगवत्प्राप्तिसे विमुख करानेवाले हैं । भोग और शरीरकेआराम महान् दुःखदायी तथा भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक हैं । कलियुगमें नामजप ही सर्वश्रेष्ठ साधन है, इन विषयोंके प्रवचन भी इस पुस्तकमें दिये गये हैं ।

    श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज श्रीगोयन्दकाजीके इस काममें पूरे सहयोगी रहे हैं । श्रद्धेय स्वामीजीके नाम-महिमा एवं परमसेवा पर कुछ प्रवचन इस पुस्तकमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । इन संतोंके भाव पाठकोंको एक साथ प्राप्त हो जायँ-इस दृष्टिसे यह प्रयास किया गया है ।

    पाठकगण इस पुस्तकको मन लगाकर पढ़ें एवं अपने प्रिय प्रेमी सज्जनों और बान्धवोंको इस पुस्तकको पढ़नेकी प्रेरणा करें । इस पुस्तकका पठन-पाठन हम सभीके जीवनको उन्नत बना देगा, ऐसी हमें आशा है ।

  • "भक्ति-रहस्य" एक गहन और दिव्य आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें "भक्ति" की वास्तविकता, उसका रहस्य, उसका विज्ञान और उसका साधनात्मक पक्ष गहराई से विवेचित किया गया है। इस पुस्तक में महान विद्वान और दार्शनिक महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज ने भारतीय भक्ति परंपरा का रहस्यात्मक पक्ष उजागर किया है और बताया है कि केवल कर्मकांड या भावनाओं तक सीमित न रहकर भक्ति एक आध्यात्मिक साधना है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।

    पुस्तक का सम्पादन प्रसिद्ध संत विचारक हनुमानप्रसाद पोद्दार ने किया है, जो गीता प्रेस के माध्यम से करोड़ों पाठकों तक भक्ति साहित्य पहुँचाने के लिए प्रसिद्ध हैं।


    मुख्य विषयवस्तु:

    1. भक्ति का तत्वज्ञान:
      पुस्तक में बताया गया है कि भक्ति केवल भगवान की स्तुति या पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य अनुभूति है, जो आत्मा की परमात्मा के प्रति गहन आकांक्षा से उत्पन्न होती है।

    2. भक्ति के मार्ग:
      इसमें नवधा भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण आदि) के गूढ़ अर्थ और उनके पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य को विश्लेषित किया गया है। यह बताया गया है कि प्रत्येक प्रकार की भक्ति अंततः आत्मा के शुद्धिकरण और ईश्वर से एकाकार की ओर ले जाती है।

    3. शिव की उपासना और ध्यान:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर भगवान शिव की उपस्थिति और भीतर दिए गए उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि शिवभक्ति के माध्यम से साधक किस प्रकार ईश्वर के रहस्य को आत्मसात कर सकता है।

    4. योग और भक्ति का संबंध:
      कविराज जी ने योग, ज्ञान और भक्ति के समन्वय की गूढ़ व्याख्या की है। यह बताया गया है कि भक्तियोग केवल भावप्रधान नहीं, बल्कि उच्चतम आत्मबोध का मार्ग है।

    5. व्यक्तिगत अनुभव और दार्शनिक विवेचना:
      इसमें लेखक ने अपने चिंतन और अनुभवों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि भक्ति कैसे साधक को भीतर से बदल देती है और उसे लोभ, मोह, अहंकार आदि से मुक्त कर देती है।


    भाषा और शैली:

    इस पुस्तक की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परंतु गूढ़ तत्वों को समझाने हेतु पर्याप्त व्याख्यात्मक है। जहाँ गहराई से विश्लेषण किया गया है, वहीं साधकों के लिए इसे सहज बनाने हेतु सम्पादक ने सरल टिप्पणी और भाष्य जोड़ा है।


    पाठकों के लिए विशेष संदेश:

    यह पुस्तक उन जिज्ञासु पाठकों और साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भक्ति को केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि एक दिव्य, दार्शनिक और साधनात्मक मार्ग मानते हैं। यह एक ऐसी रचना है, जो आत्मा को भीतर से झकझोरती है और सच्ची ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करती है।

  • "आस्तिकता की आधार-शिलाएँ" श्रद्धेय श्री राधा बाबा द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक और आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें आस्तिक जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक उन साधकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो भक्ति, आत्मचिंतन और नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन को समृद्ध बनाना चाहते हैं।



    🌿 विषयवस्तु एवं विशेषताएँ:

    इस ग्रंथ में श्री राधा बाबा ने आस्तिकता के विभिन्न पहलुओं को सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत किया है। पुस्तक में निम्नलिखित विषयों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है:

    • भक्ति और श्रद्धा: ईश्वर में अटूट विश्वास और समर्पण की भावना।

    • नैतिक मूल्य: सत्य, अहिंसा, करुणा और संयम जैसे गुणों का महत्व।

    • आत्मचिंतन: स्वयं के भीतर झांकने और आत्मा की शुद्धता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा।

    • संतों का संग: सज्जनों और संतों के संगति का महत्व और उससे प्राप्त होने वाले लाभ।

    पुस्तक में "व्रजलीला में गाय" नामक एक अन्य रचना भी समाहित है, जो व्रजभूमि की लीलाओं और गायों के प्रति प्रेम को दर्शाती है।


    📚 पुस्तक का महत्व:

    "आस्तिकता की आधार-शिलाएँ" केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक जीवनदर्शन है जो पाठकों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। यह पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी है जो जीवन में शांति, संतोष और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को विकसित करना चाहते हैं।

  • "अन्तरंग-वार्तालाप" एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें रस-सिद्ध संत श्रीभगवानप्रसादजी ‘पोषक’ के दुर्लभ पत्र, आत्मीय संवाद और रहस्यात्मक वार्तालापों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक किसी साधारण संवाद-संग्रह नहीं, बल्कि संत के हृदय में गूंजती हुई प्रभु-भक्ति की ध्वनि है, जो उनके प्रियजनों, शिष्यों एवं भक्तों के माध्यम से हम तक पहुँची है।

    इस ग्रंथ का संकलन श्यामसुंदर दुजारी जी ने अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा से किया है, जिसमें भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमिका पुस्तक को विशेष गरिमा प्रदान करती है। भाईजी स्वयं एक महात्मा, लेखक, और गीताप्रेस के संस्थापक संपादक रहे हैं। उन्होंने ‘पोषक’ जी के अंतरंग भावों और उच्च आध्यात्मिक स्थिति की सराहना करते हुए इस संकलन को प्रत्येक साधक के लिए उपयोगी और प्रेरणास्पद बताया है।


    🪔 मुख्य विशेषताएँ:

    1. श्री ‘पोषक’ जी के दुर्लभ पत्र:
      जिनमें वे अपने आत्मीय भक्तों से संवाद करते हैं — ये पत्र न केवल स्नेहपूर्ण होते हैं, बल्कि उनमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन, रसिकता और भगवद्भाव से ओतप्रोत बातें होती हैं।

    2. भावमयी वार्तालाप:
      यह वार्तालाप साधारण प्रश्नोत्तर नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य या आत्मीयों के बीच हृदय की बातें हैं — जिनमें भक्ति, वैराग्य, सेवा, विनय, और रस-तत्व जैसे विषय सहज रूप से प्रकट होते हैं।

    3. गूढ़ आध्यात्मिक संकेत:
      ‘पोषक’ जी के कथन अक्सर प्रतीकों में होते हैं — साधकों को उन संकेतों का मनन करना होता है, जिससे वे गहराई तक पहुँच सकें।

    4. रसिक मार्गदर्शन:
      श्रीराधा-कृष्ण की रसमयी उपासना में किस प्रकार प्रेम, विरह, लीनता और सेवा के भाव विकसित हों — इस पर गहन मार्गदर्शन।

    5. संत-वाणी का अद्भुत संग्रह:
      यह पुस्तक एक प्रकार से संत-विचारों का जीवंत संग्रहालय है, जहाँ पाठक सीधे संत के मनोभावों को महसूस कर सकते हैं।


    🌸 पाठकों के लिए उपयोगिता:

    • यह पुस्तक उन साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अभ्यंतर साधना, अंतरंग भक्ति, और रस-संपन्न जीवन की खोज में हैं।

    • इसमें ऐसी बातें हैं जो न तो प्रवचनों में आती हैं, न ही सार्वजनिक सत्संगों में — बल्कि वे बातें हैं जो संत अपने अत्यंत प्रियजनों से गोपनीय रूप में करते हैं।

    • इसका पाठ मन को शांत, हृदय को भावमय, और चिंतन को गहरा बनाता है।


      "अन्तरंग-वार्तालाप" केवल पढ़ने योग्य नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है — जो संतों के सच्चे सान्निध्य की झलक देता है।