• "श्री कृष्ण की जीवनी" – एक दिव्य प्रेरणादायक ग्रंथ

    "श्री कृष्ण की जीवनी" एक अद्भुत ग्रंथ है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाल लीलाओं, युवावस्था, महाभारत में उनकी भूमिका और उनके दिव्य उपदेशों को विस्तार से प्रस्तुत करता है। यह पुस्तक श्रीकृष्ण के जीवन और उनके द्वारा स्थापित धर्म के सिद्धांतों को सरल और प्रेरणादायक रूप में समझाने का कार्य करती है।

    पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    कृष्ण जन्म और बाल लीलाएँ

    • कंस के अत्याचारों के बीच भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य जन्म की कथा
    • गोकुल और वृंदावन में माखन चोरी, ग्वालबालों के साथ क्रीड़ा और पूतना वध जैसी अद्भुत लीलाएँ।

    असुरों पर विजय

    • श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग का दमन, शकटासुर, अघासुर और बकासुर जैसे दैत्यों का वध
    • कंस के अंत और मथुरा में धर्म की स्थापना की कथा।

    रासलीला और भक्ति का संदेश

    युद्ध, राजनीति और धर्म स्थापना

    • कृष्ण द्वारा द्वारका नगरी की स्थापना और पांडवों की सहायता।
    • महाभारत युद्ध में अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश और कर्मयोग का संदेश।

    भगवद गीता के उपदेश

    • धर्म, भक्ति, ज्ञान और निष्काम कर्म का महत्व
    • जीवन में साहस, धैर्य और सत्य की आवश्यकता
  • "भारत और उसकी समस्याएँ" – स्वामी विवेकानंद द्वारा एक विचारोत्तेजक ग्रंथ

    "भारत और उसकी समस्याएँ" स्वामी विवेकानंद द्वारा भारत के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं पर लिखित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह पुस्तक भारत की वास्तविक स्थिति, उसकी कमजोरियों और उनके समाधान पर प्रकाश डालती है। स्वामी जी ने इस पुस्तक में राष्ट्रवाद, शिक्षा, समाज सुधार और स्वावलंबन को विशेष रूप से महत्व दिया है।

    पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    भारत का गौरवशाली अतीत

    • भारत की प्राचीन संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्मिक विरासत का वर्णन।
    • स्वामी विवेकानंद ने बताया कि भारत ने विश्व को धर्म, योग और वेदांत का ज्ञान दिया

    भारत की वर्तमान समस्याएँ (स्वामी जी के समय की दृष्टि से)

    • अशिक्षा – शिक्षा की कमी के कारण सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन।
    • गरीबी और आर्थिक विषमता – समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता और निर्धनता।
    • धर्म और समाज में बंधन – धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और रूढ़ियों से ग्रसित समाज।
    • नारी उत्पीड़न – महिलाओं की स्थिति सुधारने की आवश्यकता।

    समस्याओं का समाधान

    • शिक्षा का प्रचार-प्रसार – स्वामी जी ने कहा, "एक समाज को ऊपर उठाने के लिए शिक्षा सबसे बड़ा साधन है।"
    • आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन – उन्होंने भारतीय युवाओं को स्वदेशी उद्योग और आत्मनिर्भरता अपनाने की प्रेरणा दी।
    • धर्म और सामाजिक सुधार – स्वामी जी ने सच्चे धर्म को अपनाने और अंधविश्वास को छोड़ने पर जोर दिया।
    • नारी शिक्षा और सशक्तिकरण – उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता को आवश्यक बताया।

    राष्ट्रवाद और युवा शक्ति का महत्व

    • भारत के पुनर्निर्माण में युवाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण
    • स्वामी विवेकानंद ने कहा – "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
  • "विवेकानंद की जीवनगाथा" – स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक जीवनी

    "विवेकानंद की जीवनगाथा" स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक जीवन की कहानी है। यह पुस्तक उनके बचपन, आध्यात्मिक यात्रा, शिक्षाओं और समाज में उनके योगदान पर प्रकाश डालती है।

    स्वामी विवेकानंद का जीवन संघर्ष, आत्म-साक्षात्कार और राष्ट्र के प्रति समर्पण का उदाहरण है। यह पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी है जो स्वामी जी के विचारों और दर्शन को गहराई से समझना चाहते हैं

    📖 पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    👶 बचपन और प्रारंभिक जीवन

    • 1863 में कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
    • बचपन से ही वे जिज्ञासु, तर्कशील और निर्भीक स्वभाव के थे।
    • ईश्वर की खोज में वे कई संतों से मिले और अंततः रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बने।

    🧘 आध्यात्मिक जागरण

    • रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें अद्वैत वेदांत और ईश्वर की एकता का गूढ़ ज्ञान दिया।
    • गुरु के महासमाधि लेने के बाद उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और भारतभर में भ्रमण किया।
    • देश में फैली गरीबी, अज्ञानता और सामाजिक कुरीतियों को देखकर उन्होंने भारत के उत्थान का संकल्प लिया।

    🌍 शिकागो भाषण और विश्वप्रसिद्धि

    • 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में उनका ऐतिहासिक भाषण, जो "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका" से शुरू हुआ, उन्हें विश्वभर में प्रसिद्ध कर गया।
    • उन्होंने दुनिया को हिंदू धर्म, वेदांत और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया।

    🏛 रामकृष्ण मिशन की स्थापना

    • 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा कार्यों में समर्पित है।
    • उन्होंने "व्यावहारिक वेदांत" का सिद्धांत दिया, जो आध्यात्मिकता को कर्म और सेवा से जोड़ता है।

    🔥 मुख्य शिक्षाएँ और विचार

    • "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
    • आत्मबल और आत्मनिर्भरता पर विशेष जोर।
    • धर्म को केवल पूजा-पाठ तक सीमित न रखकर जीवन में उतारने की प्रेरणा
    • भारत के पुनर्जागरण के लिए युवाओं को जागरूक करने का प्रयास

    🙏 अंतिम वर्ष और विरासत

    • स्वामी विवेकानंद ने केवल 39 वर्ष की आयु में 1902 में महासमाधि ले ली
    • उनकी शिक्षाएँ आज भी विश्वभर में लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं

  • स्वामी विवेकानंद द्वारा 'रामायण' पुस्तक के बारे में

    स्वामी विवेकानंद ने "रामायण" नामक कोई स्वतंत्र पुस्तक नहीं लिखी, लेकिन उन्होंने रामायण, भगवान राम, और उनके जीवन मूल्यों पर अपने भाषणों और लेखों में गहन चर्चा की है। उनके विचार "स्वामी विवेकानंद संपूर्ण रचनाएं", "कोलंबो से अल्मोड़ा तक प्रवचन", और "प्रैक्टिकल वेदांत" जैसी पुस्तकों में संकलित हैं।

    📖 स्वामी विवेकानंद के विचारों में रामायण

    1. भगवान राम का आदर्श चरित्र

    • स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं—यानी आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श मित्र।
    • उन्होंने राम को कर्तव्य, सत्य, और धर्म का प्रतीक माना, जो हर इंसान को जीवन में अनुशासन और त्याग का पाठ पढ़ाते हैं।

    2. माता सीता – आदर्श नारी का प्रतीक

    • स्वामी विवेकानंद ने माता सीता को शक्ति, धैर्य और पवित्रता की मूर्ति बताया।
    • वे उनके त्याग और सहनशीलता की सराहना करते थे और महिलाओं के लिए उन्हें प्रेरणा स्रोत मानते थे।

    3. हनुमान – पूर्ण समर्पण और शक्ति का प्रतीक

    • वे हनुमान जी को भक्ति, साहस और शक्ति का आदर्श मानते थे।
    • उन्होंने युवाओं को हनुमान की तरह दृढ़ निश्चयी, निडर और सेवा भावी बनने की प्रेरणा दी।

    4. रामायण – एक जीवन दर्शन

    • विवेकानंद के अनुसार, रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन पथ प्रदर्शक है
    • इसमें कर्तव्य, आदर्श, बलिदान, और समाज सेवा के सर्वोच्च आदर्श सिखाए गए हैं।
  • 📖 पुस्तक: "ज्ञानयोग पर प्रवचन" – स्वामी विवेकानंद

    "ज्ञानयोग पर प्रवचन" स्वामी विवेकानंद के ज्ञानयोग (Jnana Yoga) पर दिए गए महत्वपूर्ण प्रवचनों का संग्रह है। यह पुस्तक भारतीय वेदांत के दर्शन, तर्क, और आध्यात्मिक ज्ञान का गहन अध्ययन प्रस्तुत करती है। इसमें विवेकानंद ने आत्मा, ब्रह्म, माया, मुक्ति, और अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को सरल और प्रभावशाली भाषा में समझाया है।

     पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    1. ज्ञानयोग का परिचय

    • स्वामी विवेकानंद के अनुसार, ज्ञानयोग आत्मा और ब्रह्म को जानने का मार्ग है
    • इसमें आत्मा की शाश्वतता, ब्रह्मांड की वास्तविकता और मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य पर चर्चा की गई है।

    2. आत्मा और ब्रह्म का रहस्य

    • उन्होंने वेदांत के इस सिद्धांत को स्पष्ट किया कि ब्रह्म ही सत्य है और यह संसार माया है
    • आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है—"तत्त्वमसि" (तू वही है) का व्याख्यान।

    3. माया और बंधन का सिद्धांत

    • माया का अर्थ केवल भ्रम नहीं, बल्कि ब्रह्म की शक्ति है, जो इस संसार को नियंत्रित करती है।
    • मनुष्य अज्ञान और अहंकार के कारण माया में फंस जाता है और जन्म-मरण के चक्र में बंध जाता है।

    4. मोक्ष और आत्मज्ञान का मार्ग

    • स्वामी विवेकानंद ने कहा कि ज्ञान का प्रकाश ही मुक्ति का द्वार खोलता है
    • आत्म-साक्षात्कार ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है और इसे ध्यान, विवेक और वैराग्य से प्राप्त किया जा सकता है।

    5. अद्वैत वेदांत की व्याख्या

    • उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत को सरल भाषा में समझाया।
    • उन्होंने यह भी बताया कि कैसे ज्ञान, भक्ति, कर्म और ध्यान—चारों योग एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं

  • 📖 पुस्तक: "वर्तमान भारत" – स्वामी विवेकानंद

    "वर्तमान भारत" (Vartaman Bharat) स्वामी विवेकानंद द्वारा 1899 में लिखी गई एक प्रभावशाली पुस्तक है, जिसमें उन्होंने भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थिति का विश्लेषण किया है। यह पुस्तक भारत के गौरवशाली अतीत, उसके पतन के कारणों और पुनर्जागरण के उपायों पर प्रकाश डालती है।

     पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    1. भारत का गौरवशाली अतीत और पतन के कारण

    • स्वामी विवेकानंद बताते हैं कि प्राचीन भारत ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिकता का केंद्र था
    • लेकिन विदेशी आक्रमणों, सामाजिक बंधनों, अज्ञानता और आत्मसम्मान की कमी के कारण देश का पतन हुआ।

    2. भारत के पुनर्निर्माण में युवाओं की भूमिका

    • विवेकानंद जी कहते हैं कि भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव युवा शक्ति पर टिकी है
    • वे युवाओं से साहसी, आत्मनिर्भर और समाज के उत्थान के लिए समर्पित होने का आह्वान करते हैं।

    3. शिक्षा ही असली शक्ति है

    • वे उस शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हैं, जो केवल अंग्रेजी संस्कृति को बढ़ावा देती थी लेकिन भारत के मूल्यों को नजरअंदाज करती थी।
    • उन्होंने ऐसी शिक्षा का समर्थन किया जो आत्मनिर्भरता, चरित्र निर्माण और सेवा भाव को बढ़ावा दे।

    4. भारत की शक्ति आध्यात्मिकता में है

    • स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि भारत की आत्मा आध्यात्मिकता में बसती है, और यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
    • वे इस बात पर जोर देते हैं कि भारत को आधुनिक विज्ञान और प्राचीन वेदांत ज्ञान को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

    5. सामाजिक सुधारों की आवश्यकता

    • उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया।
    • वे मानते थे कि जब तक समाज के निचले तबके को ऊपर नहीं उठाया जाएगा, तब तक भारत सशक्त नहीं बन सकता
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    सिस्टर निवेदिता  / Sister Nivedita

    Original price was: ₹160.00.Current price is: ₹130.00.

    सिस्टर निवेदिता 

    "सिस्टर निवेदिता" पुस्तक स्वामी विवेकानंद की प्रमुख शिष्या, सिस्टर निवेदिता के जीवन, योगदान और शिक्षाओं को दर्शाती है। मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से सिस्टर निवेदिता बनने तक की उनकी यात्रा में, वे भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय जागरण में समर्पित रहीं।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    प्रारंभिक जीवन और स्वामी विवेकानंद से भेंट – कैसे स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाया।
    भारतीय समाज में योगदानमहिलाओं की शिक्षा, समाज सेवा और राष्ट्रीय चेतना के लिए उनका संघर्ष।
    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका – उन्होंने भारतीयों में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।
    साहित्यिक और शैक्षिक योगदान – उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे
    भारत के प्रति प्रेम और समर्पण – उन्होंने भारत को अपनी मातृभूमि माना और अपना जीवन भारतवासियों की सेवा में अर्पित कर दिया।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    इतिहास और आध्यात्मिकता के जिज्ञासुओं के लिए – जो भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण को समझना चाहते हैं।
    स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों के लिए – क्योंकि सिस्टर निवेदिता उनकी शिष्या थीं और उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
    राष्ट्रभक्तों और समाज सुधारकों के लिए – जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में रुचि रखते हैं।

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    "स्वामी विवेकानंद साहित्य संचयन" (Swami Vivekananda Sahitya Sanchayana)

    "स्वामी विवेकानंद साहित्य संचयन" स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित और बोले गए विचारों का एक संकलन है, जिसमें उनके प्रमुख व्याख्यान, पत्र, लेख, और संवाद शामिल हैं। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति, धर्म, योग, समाज सुधार, शिक्षा, और राष्ट्रवाद पर उनके गहरे विचारों को प्रस्तुत करती है।

     पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ (मुख्य विषय)

    1. भारतीय आध्यात्मिकता और वेदांत

    • स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान वेदांत, उपनिषद और भगवद गीता पर केंद्रित हैं।
    • वे बताते हैं कि आध्यात्मिकता ही भारत की आत्मा है और यह विश्व को मार्गदर्शन दे सकती है।

    2. कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, और राजयोग

    • उन्होंने योग के चार मार्गों (कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, और राजयोग) की व्याख्या की है।
    • इन योगों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक और मानसिक रूप से समृद्ध हो सकता है।

    3. राष्ट्रवाद और भारत का पुनरुत्थान

    • वे भारतीय युवाओं से स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करने का आग्रह करते हैं।
    • वे भारत के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए शिक्षा और सेवा को अनिवार्य मानते हैं

    4. शिक्षा और समाज सुधार

    • वे ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत करते हैं, जो केवल डिग्री नहीं बल्कि चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता सिखाए।
    • वे जातिवाद, अंधविश्वास, और लैंगिक असमानता के खिलाफ हैं और समानता और स्वतंत्रता की बात करते हैं।

    5. पश्चिम और भारत की तुलना

    • वे पश्चिम की वैज्ञानिक उपलब्धियों की सराहना करते हैं, लेकिन भारत की आध्यात्मिक श्रेष्ठता को भी रेखांकित करते हैं।
    • वे मानते हैं कि विज्ञान और आध्यात्मिकता का संतुलन भारत को आगे ले जाएगा।
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    पुस्तक परिचय: "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" – सिस्टर निवेदिता (हिंदी)

    "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" सिस्टर निवेदिता (मार्गरेट नोबल) द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व, विचारों और आदर्शों को उनके निकटतम शिष्य की दृष्टि से प्रस्तुत किया है।

    यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं, उनकी आध्यात्मिक गहराई और भारत के प्रति उनके प्रेम को उजागर करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ (हिंदी):

    व्यक्तिगत संस्मरण – सिस्टर निवेदिता द्वारा स्वामी विवेकानंद के साथ बिताए गए अनुभवों का संकलन।
    विचार और शिक्षाएँ – उनके आध्यात्मिक ज्ञान, राष्ट्रभक्ति और भारत के पुनर्जागरण के विचारों का वर्णन।
    स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व – उनकी करुणा, अनुशासन, हास्य-प्रवृत्ति और नेतृत्व क्षमता पर प्रकाश।
    भारत और विश्व के लिए उनका संदेश – कैसे उन्होंने भारतीय संस्कृति और वेदांत को पश्चिम में फैलाया
    प्रेरणादायक पुस्तक – स्वामी विवेकानंद के विचारों से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्गदर्शन

  • Flashes from Sri Ramakrishna" is a collection of profound spiritual teachings, parables, and insights from Sri Ramakrishna Paramahamsa, one of India's most revered mystics and spiritual masters. The book presents his wisdom in short, illuminating passages that capture his unique way of expressing deep spiritual truths in a simple and relatable manner.

    Sri Ramakrishna often used stories, metaphors, and real-life examples to explain complex philosophical ideas, making them accessible to people from all walks of life. His teachings emphasize love for God, devotion, self-realization, and the harmony of religions, encouraging seekers to find their own path to divine realization.

    The book serves as a spiritual guide, offering brief but powerful flashes of wisdom that inspire introspection and transformation. It is especially valuable for those seeking practical spirituality, inner peace, and a deeper understanding of life’s purpose

  • Could you clarify what you mean by "Great-Saying

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  • गुरु नानक की वाणी का विवरण (Guru Nanak Ki Vani Ka Varnan)

    गुरु नानक देव जी की वाणी आध्यात्मिक ज्ञान, मानवता, प्रेम और सत्य के संदेश से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में ईश्वर की एकता, सेवा, करुणा और सत्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

    1. एक ओंकार और एकता का संदेश

    गुरु नानक जी की वाणी का मुख्य आधार "एक ओंकार" है, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में समाया हुआ है। उन्होंने जात-पात, धर्म और ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने की शिक्षा दी।

    2. नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण)

    गुरु नानक जी ने सिखाया कि ईश्वर का नाम (नाम सिमरन) जपने से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

    3. सच्चा आचरण और ईमानदारी

    उन्होंने कहा कि केवल बाहरी पूजा-पाठ से कुछ नहीं होगा, बल्कि सच्चे मन और ईमानदारी से जीवन जीना ही सच्ची भक्ति है।

    4. कीर्तन और भजन

    गुरु नानक जी की वाणी शबद कीर्तन के रूप में गाई जाती है, जो आत्मा को शांति और ईश्वर के करीब लाने में सहायक होती है।

    5. वाणी का संकलन – गुरु ग्रंथ साहिब

    गुरु नानक जी की वाणी को उनके शिष्यों ने संकलित किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा बनी। इसमें "जपुजी साहिब", "सिद्ध गोष्ठी" और अन्य शिक्षाएं शामिल हैं।

    6. प्रमुख उपदेश (मूल मंत्र)

    गुरु नानक जी ने "नाम जपो, किरत करो और वंड छको" का संदेश दिया, जिसका अर्थ है –

    1. नाम जपो – ईश्वर का स्मरण करो।

    2. किरत करो – ईमानदारी और मेहनत से जीवनयापन करो।

    3. वंड छको – दूसरों के साथ मिल-बाँटकर खाओ और उनकी सेवा करो।

    7. सामाजिक और धार्मिक सुधार

    गुरु नानक देव जी ने अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और कर्मकांडों का विरोध किया और सरल भक्ति मार्ग का प्रचार किया।

    गुरु नानक की वाणी न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक है। उनकी वाणी प्रेम, शांति और समभाव का संदेश देती है।

  • एकाग्रता का रहस्य

    "एकाग्रता का रहस्य" एक ऐसी पुस्तक या विचारधारा है जो हमें यह समझाने का प्रयास करती है कि ध्यान केंद्रित करने की शक्ति (एकाग्रता) कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती है और इसे कैसे विकसित किया जा सकता है।

    एकाग्रता का महत्व

    • एकाग्रता का अर्थ है अपने मन को किसी एक कार्य, विचार या उद्देश्य पर केंद्रित करना।

    • यह सफलता की कुंजी है, चाहे वह शिक्षा हो, करियर हो या आध्यात्मिक उन्नति।

    • महान लोग अपनी एकाग्रता शक्ति के कारण ही असाधारण कार्य कर पाते हैं।

    एकाग्रता कैसे विकसित करें?

    1. ध्यान और योग – प्रतिदिन ध्यान करने से मन शांत और केंद्रित होता है।

    2. नकारात्मक विचारों से बचाव – व्यर्थ की चिंताओं से बचकर हम अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगा सकते हैं।

    3. आसन और शारीरिक अनुशासन – शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन भी केंद्रित रहेगा।

    4. उद्देश्य स्पष्ट करें – जब लक्ष्य स्पष्ट होगा तो मन भटकेगा नहीं।

    5. एक समय में एक ही कार्य करें – मल्टीटास्किंग से बचकर हम अधिक प्रभावी बन सकते हैं।

    6. पढ़ने और लिखने की आदत डालें – यह मन को व्यवस्थित और अनुशासित बनाता है।

    एकाग्रता के लाभ

    • निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है।

    • तनाव और चिंता कम होती है।

    • पढ़ाई और काम में अधिक उत्पादकता आती है।

    • आत्मविश्वास बढ़ता है।

    संक्षेप में, "एकाग्रता का रहस्य" यही है कि हम अपने मन को सही दिशा में लगाकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

  •  मुहम्मद-पैग़म्बर की वाणी 

    इस्लाम धर्म के प्रवर्तक, पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की वाणी को हदीस कहा जाता है। हदीस इस्लाम में महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जिसमें पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कार्यों और उनके अनुमोदनों का संग्रह किया गया है। यह कुरआन के बाद इस्लाम का दूसरा प्रमुख धार्मिक ग्रंथ माना जाता है।

    मुहम्मद पैग़म्बर की वाणी (हदीस) के मुख्य विषय:

    1. ईश्वर (अल्लाह) की एकतामुहम्मद साहब ने तौहीद (अल्लाह की एकता) पर बल दिया और मूर्तिपूजा का खंडन किया।

    2. न्याय और सदाचार – उन्होंने नैतिकता, सत्यता, और ईमानदारी का उपदेश दिया।

    3. दयालुता और परोपकार गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता को महत्वपूर्ण बताया।

    4. शांति और भाईचारा – आपसी प्रेम, सौहार्द और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।

    5. शिक्षा और ज्ञान – ज्ञान प्राप्ति को हर पुरुष और महिला के लिए आवश्यक बताया।

    6. स्त्रियों के अधिकार – महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान को विशेष रूप से महत्व दिया।

    7. अच्छे आचरण – अच्छे व्यवहार, विनम्रता और सेवा-भाव को श्रेष्ठ बताया।

    हदीस के प्रमुख संग्रह:

    • सहीह अल-बुखारी – इमाम बुखारी द्वारा संकलित

    • सहीह मुस्लिम – इमाम मुस्लिम द्वारा संकलित

    • जामिअ तिर्मिज़ी – इमाम तिर्मिज़ी द्वारा संकलित

    • सुनन अबू दाऊद – इमाम अबू दाऊद द्वारा संकलित

    पैग़म्बर मुहम्मद की वाणी ने न केवल अरब समाज बल्कि पूरे विश्व को नैतिकता और आध्यात्मिकता की नई दिशा प्रदान की। उनका संदेश आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायक है।

  • नया भारत गढ़ो"  

       

    "नया भारत गढ़ो" एक प्रेरणादायक नारा है, जो देश की प्रगति, विकास और नव निर्माण की सोच को दर्शाता है। इसका उद्देश्य भारत को एक सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है।

    अर्थ और उद्देश्य:

    "नया भारत गढ़ो" का सीधा अर्थ है — "एक नए, उन्नत और मजबूत भारत का निर्माण करो।"
    यह संदेश सभी भारतीयों को उनके कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों की याद दिलाता है कि वे अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक योगदान दें।


    मुख्य विशेषताएँ:

    1. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण

    2. शिक्षा और तकनीकी विकास

    3. महिला सशक्तिकरण

    4. आत्मनिर्भर भारत (Make in India)

    5. भ्रष्टाचार मुक्त समाज

    6. डिजिटल इंडिया

    7. स्वास्थ्य और फिटनेस

    8. युवाओं की भागीदारी

    9. सांस्कृतिक एकता और विविधता

    10. रोजगार सृजन और स्टार्टअप्स को बढ़ावा


    संदेश:

    "नया भारत गढ़ो" केवल सरकार का नहीं, बल्कि हर नागरिक का सपना और जिम्मेदारी है। जब हर व्यक्ति अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाएगा, तभी एक स्वच्छ, सुंदर, आधुनिक और समृद्ध भारत

  • Swami Vivekananda  

    Swami Vivekananda (1863–1902) was a great Indian Hindu monk, spiritual leader, and philosopher who played a major role in introducing Indian philosophies of Vedanta and Yoga to the Western world. He was born as Narendranath Datta in Kolkata (then Calcutta), India.

    A devoted disciple of Sri Ramakrishna Paramahamsa, Swami Vivekananda emphasized the importance of self-realization, universal brotherhood, and the unity of all religions. He is best known for his powerful speech at the Parliament of the World's Religions in Chicago in 1893, where he began with the famous words: “Sisters and Brothers of America…” This speech earned him international recognition.

    Swami Vivekananda believed in the power of youth and inspired many to serve the nation through selfless work and spiritual growth. He founded the Ramakrishna Mission in 1897, which works in the fields of education, health care, and social reform.

    He passed away at a young age of 39, but his teachings continue to influence millions across the world. His birthday, January 12, is celebrated in India as National Youth Day.

  • सूक्तियां,  सुभाषित – विवरण

    1. सूक्तियां (Sukhiyan / सूक्तियाँ)

    सूक्तियां संक्षिप्त और सारगर्भित वाक्य होते हैं जो गहरे जीवन-दर्शन, नैतिकता या व्यवहारिक ज्ञान को व्यक्त करते हैं। ये समाज और व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

    उदाहरण:

    • "सत्यमेव जयते" (सत्य की ही विजय होती है)
    • "अहिंसा परमो धर्मः" (अहिंसा सर्वोच्च धर्म है)

    2. अव्ययम् (Avaim / अव्यय)

    अव्यय वे शब्द होते हैं जो रूप नहीं बदलते, अर्थात वे विभक्तियों, लिंग या वचन के आधार पर परिवर्तन नहीं करते। संस्कृत में अव्यय शब्दों का विशेष महत्त्व है, जो वाक्यों को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

    उदाहरण:

    • यथा (जैसे)
    • (और)
    • एव (ही)
    • अपि (भी)

    3. सुभाषित (Subhashit / सुभाषितम्)

    सुभाषित संस्कृत में कहे गए सुंदर और शिक्षाप्रद वचन होते हैं जो नैतिकता, ज्ञान, और सद्गुणों की प्रेरणा देते हैं। ये श्लोक के रूप में होते हैं और विभिन्न ग्रंथों, नीतिशास्त्रों एवं महाकाव्यों में मिलते हैं।

    उदाहरण:
    📖 विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
    (विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है।)

    📖 असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
    (असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।)

    निष्कर्ष

    सूक्तियां संक्षिप्त ज्ञानवर्धक कथन होते हैं, अव्यय वे शब्द होते हैं जो अपरिवर्तनीय होते हैं, और सुभाषित वे शिक्षाप्रद वचन होते हैं जो जीवन को सही दिशा दिखाते हैं। ये सभी हमारे जीवन में सकारात्मकता और नैतिकता की वृद्धि करते हैं। 🌿📜

  • सफलता के सोपान

    सफलता कोई एक रात में मिलने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि यह निरंतर प्रयास, धैर्य और समर्पण का परिणाम होती है। "सफलता के सोपान" का अर्थ है—वह सीढ़ियाँ या चरण, जिनका अनुसरण करके कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

    सफलता के   सोपान:

    1. सपना देखना (लक्ष्य निर्धारण) – बिना लक्ष्य के सफलता संभव नहीं है। सफलता प्राप्त करने के लिए पहले एक स्पष्ट उद्देश्य तय करना जरूरी है।

  • Swami Vivekananda's teachings and messages, often referred to as "Vivekananda Vani," are a source of inspiration, wisdom, and spiritual awakening. His words emphasize the power of self-confidence, service to humanity, and the pursuit of knowledge. Some of his key teachings include:

    1. Strength and Courage Swami Vivekananda believed that strength is life, and weakness is death. He encouraged people to be fearless in their pursuit of truth and righteousness.

    2. Faith in Oneself – He always emphasized self-confidence and the belief that every individual has immense potential. "All power is within you; you can do anything and everything."

      स्वामी विवेकानंद की वाणी

      स्वामी विवेकानंद की वाणी प्रेरणा, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर है। उनकी शिक्षाएँ मानवता, सेवा, आत्मनिर्भरता और ज्ञान प्राप्ति पर केंद्रित थीं। उनके प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:

      1. शक्ति और साहस – स्वामी विवेकानंद कहते थे, "शक्ति ही जीवन है, निर्बलता मृत्यु के समान है।" उन्होंने हमेशा निडर होकर सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

      2. आत्मविश्वास – उनका मानना था कि हर व्यक्ति में अनंत शक्ति है। वे कहते थे, "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

      3. मानव सेवा ही ईश्वर सेवा – उन्होंने कहा, "जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं, वे ही वास्तव में जीवित हैं।" वे मानव सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते थे।

      4. सभी धर्मों की एकता – वे सभी धर्मों को समान मानते थे और कहा करते थे कि "सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।"

      5. शिक्षा और चरित्र निर्माण – वे शिक्षा को केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं मानते थे, बल्कि उसका उद्देश्य चरित्र निर्माण और आत्मविकास होना चाहिए।

      6. कर्मयोग – वे भगवद गीता के कर्मयोग सिद्धांत में विश्वास रखते थे और सिखाते थे कि "निष्काम कर्म ही सच्ची पूजा है।"

      7. विश्व बंधुत्व – उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में अपने ऐतिहासिक भाषण द्वारा पूरी दुनिया को "विश्व बंधुत्व" का संदेश दिया।

      स्वामी विवेकानंद की वाणी आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देती है और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करती है।

    3. Service to Humanity – He saw serving mankind as the highest form of worship, stating, "They alone live who live for others."

    4. Spirituality and Religion – He promoted the idea that all religions lead to the same truth and preached the harmony of religions.

    5. Education and Character Building – He stressed the importance of education not just for information but for character-building and self-development.

    6. Karma Yoga – He advocated selfless action without attachment to results, in alignment with Bhagavad Gita’s teachings.

    7. Universal Brotherhood – His famous speech at the Parliament of Religions in Chicago (1893) called for unity and brotherhood beyond religious and national boundaries.

    Swami Vivekananda’s words continue to inspire millions worldwide, guiding them toward a life of strength, wisdom, and service.

  • भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलग्राम (वर्तमान में वैशाली जिला) में हुआ था। उनका मूल नाम वर्धमान था। वे राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे।

    महावीर बचपन से ही बहुत साहसी, दयालु और सत्यवादी थे। उन्होंने युवावस्था में राजसी वैभव त्याग कर सत्य, अहिंसा और तपस्या का मार्ग अपनाया। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया और 12 वर्षों तक कठिन तपस्या की। अंततः उन्हें केवल ज्ञान (कैवल्य ज्ञान) की प्राप्ति हुई, जिसके बाद वे तीर्थंकर बने और जैन धर्म का प्रचार किया।

    महावीर स्वामी ने अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों पर जोर दिया। उन्होंने जीव मात्र के कल्याण के लिए अहिंसा को सर्वोपरि माना। 72 वर्ष की आयु में, 527 ईसा पूर्व पावापुरी (बिहार) में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।

    उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज में शांति, सद्भाव और नैतिक जीवन के लिए प्रेरणा देती हैं

  • आत्म-तत्त्व - स्वामी विवेकानंद (Aatma-Tatva - Swami Vivekananda)


      स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण से

    स्वामी विवेकानंद भारतीय दर्शन, विशेषकर वेदांत और अद्वैत वेदांत के प्रमुख प्रचारक थे। उनके विचारों में "आत्मा" का विशेष स्थान है। वे मानते थे कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ईश्वर का अंश है, और आत्मा शुद्ध, अमर एवं अनंत है।

    स्वामी विवेकानंद के आत्म-तत्त्व संबंधी प्रमुख विचार:

    1. आत्मा अमर है: विवेकानंद का मानना था कि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अमर है। मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरण मात्र।

    2. "त्वं एव ब्रह्म असि" (तू ही ब्रह्म है): वेदांत के इस सूत्र पर विवेकानंद ने बल दिया। उनका कहना था कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। आत्म-साक्षात्कार ही मोक्ष का मार्ग है।

    3. आत्मा का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है: स्वामीजी के अनुसार बाहरी ज्ञान की अपेक्षा आत्म-ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है। जब मनुष्य अपने भीतर झांकता है, तभी उसे सत्य का अनुभव होता है।

    4. विश्व आत्मा का विस्तार है: उन्होंने आत्मा को केवल व्यक्तिगत चेतना नहीं माना, बल्कि उसे समस्त ब्रह्मांडीय चेतना का हिस्सा कहा। अत: हर जीव में आत्मा है और वह सम्मान योग्य है।

    5. सेवा ही आत्मा की अभिव्यक्ति है: विवेकानंद के अनुसार जब हम दूसरों की सेवा करते हैं, तब हम अपने भीतर की दिव्यता को प्रकट करते हैं। "जीव सेवा ही शिव सेवा" उनका प्रमुख संदेश था।

  • आपका निवेदन "ईसा मसीह की वाणी" (Isa Masiha Ki Wani) नामक पेज के लिए लोगो और डिस्क्रिप्शन हिंदी में तैयार करने का है। नीचे एक सुंदर और प्रभावशाली डिस्क्रिप्शन और लोगो के लिए एक सुझाव दिया गया है:


    🕊 ईसा मसीह की वाणी | Isa Masiha Ki Wani

    "प्रेम, क्षमा और शांति का संदेश"

    📖 यीशु मसीह के अमूल्य वचनों और शिक्षाओं से जुड़े सुविचार, प्रेरणादायक संदेश और पवित्र बाइबिल के वचन। यह पेज मसीह की सत्य वाणी को जन-जन तक पहुँचाने का माध्यम है।

    🙏 यहाँ आप पाएँगे:

    • यीशु मसीह के प्रेरणादायक वचन

    • बाइबिल से पवित्र श्लोक (वर्सेस)

    • आत्मिक शांति और प्रार्थनाएँ

    • मसीही त्योहारों और पर्वों की जानकारी

    • जीवन में प्रेम, क्षमा और विश्वास का मार्ग

    🌟 हमारा उद्देश्य:
    लोगों के हृदय में प्रभु यीशु के प्रेम और सच्चाई की ज्योति जलाना।


    लोगो सुझाव:

    लोगो में निम्न तत्व शामिल हो सकते हैं:

    • एक क्रॉस (✝️) जो यीशु मसीह के बलिदान को दर्शाता है।

    • प्रकाश की किरणें — जो सत्य और प्रकाश फैलाने का प्रतीक हों।

    • खुले हाथ या दिल का चित्र — जो प्रेम और क्षमा का प्रतीक हो।

    • बैकग्राउंड में पवित्र बाइबिल का चित्र।

  •  गीतामें भगवान्‌ने एक बड़ी विलक्षण बात बतायी है–

    बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।

    वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥

    बहुत जन्मोंके अन्तमें अर्थात् मनुष्यजन्ममें ‘सब कुछ वासुदेव ही है’–ऐसे जो ज्ञानवान मेरे शरण होता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।’

    ज्ञान किसी अभ्याससे पैदा नहीं होता, प्रत्युत जो वास्तवमें है, उसको वैसा ही यथार्थ जान लेनेका नाम ‘ज्ञान’ है । ‘वासुदेवः सर्वम्’ (सब कुछ परमात्मा ही है)–यह ज्ञान वास्तवमें है ही ऐसा । यह कोई नया बनाया हुआ ज्ञान नहीं है, प्रत्युत स्वतःसिद्ध है । अतः भगवान्‌की वाणीसे हमें इस बातका पता लग गया कि सब कुछ परमात्मा ही है, यह कितने आनन्दकी बात है ! यह ऊँचा-से-ऊँचा ज्ञान है । इससे बढ़कर कोई ज्ञान है ही नहीं । कोई भले ही सब शास्त्र पढ़ ले, वेद पढ़ ले, पुराण पढ़ ले, पर अन्तमें यही बात रहेगी कि सब कुछ परमात्मा ही है; क्योंकि वास्तवमें बात है ही यही !

     

  • सहज साधना  स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक ग्रंथ है, जो साधकों को आत्म-साक्षात्कार और भगवत्प्राप्ति के सरल, सहज और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। इस पुस्तक में स्वामी जी ने बताया है कि कैसे साधक बिना जटिल विधियों के, अपने दैनिक जीवन में ही साधना को आत्मसात कर सकते हैं।

    स्वामी जी के अनुसार, संसार के भोगों और कर्मों में आसक्ति ही दुःख का मूल कारण है। जब मनुष्य इनसे विरक्त होकर समत्व की स्थिति में स्थित होता है, तभी वह योगारूढ़ कहलाता है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए स्वामी जी ने तीन प्रमुख मार्ग बताए हैं

    • कर्मयोग: सभी क्रियाओं को निःस्वार्थ भाव से, केवल दूसरों के हित के लिए करना।

    • ज्ञानयोग: यह समझना कि सभी क्रियाएँ प्रकृति के गुणों के अनुसार होती हैं, और आत्मा अक्रिय है।

    • भक्तियोग: सभी क्रियाओं को भगवान की प्रसन्नता के लिए समर्पित करना                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    इन मार्गों का अनुसरण करके साधक संयोग की रुचि को समाप्त कर सकता है, जिससे उसे नित्ययोग की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि संसार का वियोग स्वाभाविक और अनिवार्य है, जबकि परमात्मा का योग सदा प्राप्त है। इसलिए, साधक को केवल संयोग की इच्छा का त्याग करना है, जिससे वह सहज रूप से परमात्मा में स्थित हो सकता है

  • "भगवन्नाम-महात्म्य" एक दिव्य और अत्यंत उपयोगी पुस्तक है, जो भगवन्नाम (ईश्वर के नाम) के जप, स्मरण और महिमा पर केन्द्रित है। इसमें विशेष रूप से 28860 बार नाम-जप का विधान बताया गया है, जिससे पाठक न केवल नामस्मरण की महत्ता को समझता है, बल्कि व्यवस्थित रूप से भगवान का नाम लेने का अभ्यास भी प्राप्त करता है।

    इस पुस्तक में मुख्य रूप से “राम नाम” की महिमा को वर्णित किया गया है, जैसा कि कवर पर बार-बार लिखा गया है:
    🔁 "राम राम राम राम राम..."
    इसके साथ ही इसमें अन्य भगवन्नामों की भी व्याख्या, जप विधि, लाभ और महिमा से संबंधित शास्त्रीय प्रमाण, संतों के अनुभव, और साधकों के लिए उपयोगी निर्देश दिए गए हैं।


    🪔 मुख्य विषय-वस्तु:

    1. भगवन्नाम की महिमा:
      शास्त्रों, संतों और अनुभवों के आधार पर भगवान के नाम के जप की महत्ता – जैसे कि कलियुग में केवल नाम-जप से मोक्ष संभव है।

    2. रामनाम की शक्ति:
      राम नाम को विशेष रूप से “मोक्षदायक”, “पापनाशक” और “भवसागर से पार लगाने वाला” बताया गया है।

    3. 28860 नाम-जप का विधान:
      यह विशेष संख्या किस प्रकार साधक को दैनिक रूप से जप करने में मार्गदर्शन देती है — इसका सारणीबद्ध तरीका भी इसमें हो सकता है।

    4. जप की विधियाँ और नियम:
      मानसिक, वाचिक (बोलकर) और उपांशु (धीरे-धीरे) जप के भेद, साथ ही समय, आसन, नियम आदि का वर्णन।

    5. संतों के कथन एवं अनुभव:
      तुलसीदास, नामदेव, एकनाथ, समर्थ रामदास आदि संतों द्वारा भगवन्नाम की प्रशंसा।

    6. शास्त्रीय आधार:
      भगवन्नाम के समर्थन में श्रीमद्भागवत, नारद भक्ति सूत्र, पद्मपुराण आदि से संदर्भ।


    ✍️ पाठकों के लिए विशेष उपयोगिता:

    • जो साधक नित्य जप-साधना करना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक एक व्यवस्थित सहायक है।

    • जो लोग अपने जीवन में आध्यात्मिक शांति, चिंतन, और भक्ति लाना चाहते हैं, उनके लिए रामनाम-जप अत्यंत फलदायक बताया गया है।

    • घरों में, मठों में, सत्संगों में इसका नियमित पाठ और जप-गणना की जा सकती है।


    📖 पुस्तक का प्रभाव:

    यह पुस्तक पाठक के भीतर एक भक्तिपूर्ण अनुशासन, नियंत्रण, और नाम-जप की स्थिरता विकसित करती है। जब कोई व्यक्ति दिन-प्रतिदिन नियमित रूप से नामजप करता है, तो उसका मन शांत, बुद्धि निर्मल और हृदय प्रभु-प्रेम से भर जाता है।

    28860 28860
  • "How to Be a Leader" by Swami Vivekananda

    "How to Be a Leader" is a book based on the teachings and speeches of Swami Vivekananda, emphasizing leadership, self-confidence, and service to humanity. It is a valuable guide for those who wish to lead with wisdom, strength, and compassion.

    Key Themes of the Book

    Self-Confidence and FearlessnessSwami Vivekananda emphasizes that a true leader must be fearless, confident, and full of faith in oneself.

    Service to SocietyLeadership is not about power but about serving others selflessly and working for the welfare of society.

    Strength and Determination – A leader must have mental and physical strength, along with unwavering determination to face challenges.

    Character and EthicsSwami Vivekananda stresses that a leader should possess high moral values, honesty, and integrity.

    Spiritual Leadership – A true leader is one who is not just intellectually strong but also spiritually awakened, guiding others towards truth and righteousness.

  • शक्ति-दायी विचार  

    शक्ति-दायी विचार वे विचार होते हैं जो मन, शरीर और आत्मा को ऊर्जा, प्रेरणा और आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। ये विचार व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता लाते हैं, कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देते हैं और सफलता की ओर अग्रसर करते हैं।

    शक्ति-दायी विचारों के लाभ

    1. आत्मविश्वास बढ़ाते हैं – जब हम सकारात्मक और प्रेरणादायक विचारों से भरे होते हैं, तो हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है।
    2. साहस और धैर्य देते हैं – ये विचार हमें चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत और कठिन परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने की क्षमता प्रदान करते हैं।
    3. नकारात्मकता से बचाते हैं – शक्ति-दायी विचार हमें नकारात्मक सोच, भय और संदेह से बचाने में मदद करते हैं।
    4. लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होते हैं – जब हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं और प्रेरणादायक विचारों से खुद को भरते हैं, तो हमारी सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
    5. मानसिक और शारीरिक ऊर्जा बढ़ाते हैं – सकारात्मक विचार मन को शांत और शरीर को ऊर्जावान बनाए रखते हैं।

    कुछ शक्ति-दायी विचार

    • "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।"
    • "हर कठिनाई में एक अवसर छिपा होता है।"
    • "यदि आप खुद पर विश्वास करते हैं, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।"
    • "सपने वो नहीं जो हम सोते समय देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।" – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
    • "जो जोखिम नहीं उठाते, वे कभी आगे नहीं बढ़ते।"

    शक्ति-दायी विचार केवल शब्द नहीं होते, बल्कि ये हमारी सोच को प्रभावित कर हमारी पूरी जिंदगी बदल सकते हैं। जब हम इन विचारों को अपनाते हैं और अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं, तो हम अधिक सुखी, सफल और प्रेरित महसूस करते हैं।

  • "Thus Spoke Zarathustra" – A Brief Description

    "Thus Spoke Zarathustra" (German: Also sprach Zarathustra) is a philosophical novel by Friedrich Nietzsche, written between 1883 and 1885. It is one of Nietzsche’s most famous works and presents deep reflections on morality, religion, existence, and human potential.

    Overview of the Book

    The book is written in a poetic and allegorical style, following the journey of Zarathustra, a fictional prophet who descends from the mountains after years of solitude to share his wisdom with humanity. His teachings challenge conventional moral and religious beliefs and propose a new way of thinking about life.

    Key Ideas in the Book:

    1. "God is dead" – Nietzsche’s famous declaration symbolizes the decline of traditional religious and moral values in modern society.

    2. The Übermensch (Superman/Overman) – Nietzsche envisions a higher type of human being who surpasses conventional morality and creates his own values.

    3. The Will to Power – A central idea in Nietzsche’s philosophy, suggesting that the fundamental drive of life is not survival or happiness, but the pursuit of power and self-overcoming.

    4. Reevaluation of Morality – Nietzsche criticizes traditional morality (especially Christian ethics) as life-denying and promotes a new morality based on strength, creativity, and self-assertion.

    Style and Influence

    The book is written in a unique, poetic style, resembling religious scriptures, but instead of reinforcing faith, it challenges it. It has profoundly influenced existentialism, postmodernism, and atheistic philosophy.

    "Thus Spoke Zarathustra" remains a highly influential work, encouraging readers to question societal norms and explore their own potential. Would you like to discuss any specific part of it? 😊

     

  • Thus Spake Vivekananda" is a collection of the teachings, sayings, and writings of Swami Vivekananda, one of India's most influential spiritual leaders and philosophers. The book presents his thoughts on various topics, including religion, spirituality, self-discipline, education, character-building, and nationalism.

    Key Themes of the Book:

    1. Spirituality and Religion Vivekananda emphasizes the essence of Vedanta, self-realization, and the unity of all religions.

    2. Self-Confidence and Strength – He inspires individuals to be fearless and work toward self-improvement.

    3. Service to Humanity – He stresses the importance of selfless service (Seva) as a path to enlightenment.

    4. Education and Character Building – He advocates for education that nurtures both intellect and moral strength.

    5. Nationalism and Youth Power – He calls upon the youth to build a strong and independent India.

    The book serves as an inspiring guide for those seeking wisdom, motivation, and a deeper understanding of life. Would you like a summary of specific sections?

  • श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् 

    श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान विष्णु के 1000 नामों का संकलन है। यह महाभारत के अनुशासन पर्व (अध्याय 149) में वर्णित है और इसे भीष्म पितामह ने कुरुक्षेत्र में युधिष्ठिर को सुनाया था। इस स्तोत्र का पाठ करने से शांति, समृद्धि, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


    1. श्री विष्णु सहस्रनाम का महत्त्व:

    • भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार (संरक्षक) के रूप में पूजा जाता है।

    • सहस्रनाम में भगवान के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है।

    • इसका नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, संकटों का निवारण और जीवन में सफलता मिलती है।

    • यह सभी कष्टों को दूर करने और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।


    2. श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र की रचना:

    (क) प्रारंभिक संवाद:

    • इसमें युधिष्ठिर और भीष्म पितामह के बीच संवाद है।

    • युधिष्ठिर प्रश्न पूछते हैं: "सबसे बड़ा धर्म क्या है? सबसे उत्तम भक्ति मार्ग कौन सा है?"

    • भीष्म उत्तर देते हैं कि भगवान विष्णु के 1000 नामों का पाठ करने से सभी दुखों का अंत होता है

    (ख) मुख्य स्तोत्र:

  • स्वामी विवेकानंद के विचारों में मरणोत्तर जीवन

    स्वामी विवेकानंद, जो वेदांत और भारतीय दर्शन के प्रख्यात प्रचारक थे, मरणोत्तर जीवन (Afterlife) को वेदांत और उपनिषदों के आधार पर समझाते हैं। उनके अनुसार, मृत्यु के बाद जीवन समाप्त नहीं होता, बल्कि आत्मा अपनी यात्रा जारी रखती है। उनके विचार मुख्य रूप से अद्वैत वेदांत, कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित हैं।

    1. आत्मा अमर है

    स्वामी विवेकानंद के अनुसार, आत्मा (आत्मन्) कभी नष्ट नहीं होती। वह जन्म और मृत्यु से परे होती है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, लेकिन आत्मा की यात्रा जारी रहती है। उन्होंने भगवद गीता के इस श्लोक को उद्धृत किया:
    "न जायते म्रियते वा कदाचिन्, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।"
    (अर्थ: आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है। यह नष्ट नहीं होती, यह सदा-अविनाशी है।)

    2. कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत

    स्वामी विवेकानंद ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्ति का अगला जन्म उसके कर्मों पर निर्भर करता है।

    • अच्छे कर्मों का फल अच्छे जन्म के रूप में मिलता है।

    • बुरे कर्मों का फल कष्ट और पीड़ा के रूप में प्राप्त होता है।

    • जब तक आत्मा अपने कर्मों के बंधन से मुक्त नहीं हो जाती, तब तक पुनर्जन्म की प्रक्रिया चलती रहती है।

    3. मृत्यु के बाद की चेतना

    स्वामी विवेकानंद के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा की चेतना समाप्त नहीं होती, बल्कि वह एक नई अवस्था में चली जाती है। उन्होंने कहा कि मृत्यु के बाद व्यक्ति के विचार, इच्छाएँ और कर्म आत्मा के साथ रहते हैं, और यही आगे के जन्म को निर्धारित करते हैं।

    4. मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य

    विवेकानंद के अनुसार, मरणोत्तर जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। मोक्ष का अर्थ है जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और परम सत्य (ब्रह्म) में लीन हो जाना।

    • जब आत्मा अज्ञान (अविद्या) से मुक्त होती है, तब उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

    • मोक्ष के लिए ध्यान, ज्ञान, भक्ति और सेवा का मार्ग अपनाना आवश्यक है।

    5. मृत्यु का भय नहीं होना चाहिए

    स्वामी विवेकानंद ने मृत्यु के भय को मिटाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति आत्मा के अस्तित्व और अमरता को समझता है, वह मृत्यु से नहीं डरता।
    उनके शब्दों में:
    "डरो मत! मृत्यु केवल एक और जीवन की शुरुआत है।"

    निष्कर्ष

    स्वामी विवेकानंद के अनुसार, मरणोत्तर जीवन कोई अंत नहीं बल्कि आत्मा की निरंतर यात्रा है। उन्होंने कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष को इसकी आधारशिला माना। उनके विचार आत्म-ज्ञान, निडरता और आध्यात्मिक उत्थान की प्रेरणा देते हैं।

  • वाक्यवृत्ति तथा लघुवाक्यवृत्तिः   (Vakya-Vritti tatha Laghu-Vakya-Vrittih)

    1.  (Vakya-Vritti)
    वाक्यवृत्ति आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें अद्वैत वेदांत के प्रमुख सिद्धांतों का सरल व्याख्या के माध्यम से वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ "तत्त्वमसि" महावाक्य की व्याख्या करता है और जीव-ब्रह्म ऐक्य (जीव और ब्रह्म की एकता) को विस्तार से समझाने का कार्य करता है। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से वेदांत के सिद्धांतों को गुरु-शिष्य संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति इसे सरलता से समझ सके।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • अद्वैत वेदांत का सरल और स्पष्ट विवेचन

    • "तत्त्वमसि" (तू ही ब्रह्म है) महावाक्य का विस्तारपूर्वक विश्लेषण

    • जीव और ब्रह्म के अद्वैत (अभिन्नता) की व्याख्या

    • आत्मा और परमात्मा की एकता को समझाने का प्रयास

    2. लघुवाक्यवृत्ति (Laghu-Vakya-Vritti)
    लघुवाक्यवृत्ति भी वेदांत के प्रमुख सिद्धांतों को सरल भाषा में समझाने वाला एक छोटा ग्रंथ है। यह मूल वाक्यवृत्ति से छोटा है और अधिक संक्षिप्त शैली में अद्वैत वेदांत के मुख्य विचारों को प्रस्तुत करता है। इसमें वेदांत के चार महावाक्यों में से किसी एक की व्याख्या दी जाती है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति वेदांत के सार को आसानी से ग्रहण कर सके।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • वाक्यवृत्ति का संक्षिप्त रूप

    • अद्वैत वेदांत का संक्षिप्त और सारगर्भित वर्णन

    • महावाक्य की व्याख्या का सरल और सुबोध रूप

    महत्व:
    दोनों ग्रंथ वेदांत अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और वेदांत दर्शन के गंभीर साधकों के लिए अद्वैत सिद्धांत को समझने में सहायक हैं

  • दृग-दृश्य-विवेक (Drig-Drishya-Viveka) एक प्रसिद्ध वेदांतिक ग्रंथ है, जिसे श्री आदि शंकराचार्य या उनके किसी शिष्य द्वारा रचित माना जाता है। यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की व्याख्या करता है और आत्मा (दृग) तथा दृश्य जगत (दृश्य) के बीच भेद को स्पष्ट करता है।

    दृग-दृश्य-विवेक  

    इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि

    1. दृग (द्रष्टा) और दृश्य (जो देखा जाता है) अलग हैं
      उदाहरण के लिए, आँखें बाहरी वस्तुओं को देखती हैं, लेकिन आँखें स्वयं चित्त (मन) द्वारा जानी जाती हैं।
      मन भी एक दृष्ट वस्तु है, जिसे आत्मा के प्रकाश में देखा जाता है।

    2. अंततः, केवल आत्मा ही शुद्ध द्रष्टा (साक्षी) है
      आत्मा स्वयं किसी के द्वारा देखी नहीं जा सकती, बल्कि वह स्वयं सर्वज्ञानी और स्वयंप्रकाशित है।

    3. माया और ब्रह्म के भेद को समझना
      दृश्य जगत परिवर्तनशील और नश्वर है, जबकि आत्मा नित्य, शुद्ध और अविनाशी है।
      जब साधक "नेति-नेति" (यह नहीं, वह नहीं) के माध्यम से भौतिक जगत को मिथ्या समझता है, तब वह अपनी वास्तविक प्रकृति (सच्चिदानंद स्वरूप) को पहचानता है।

    मुख्य शिक्षाएँ:

    • स्थूल (भौतिक) जगत अस्थायी है, जबकि आत्मा नित्य और शाश्वत है।

    • स्वयं को शुद्ध चैतन्य (आत्मा) के रूप में जानना ही मोक्ष का मार्ग है।

    • ज्ञानयोग के अभ्यास से आत्म-साक्षात्कार संभव है।

    यह ग्रंथ ध्यान और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से अद्वैत वेदांत को समझने के लिए एक प्रभावशाली साधन है।