"अच्छे बनो" स्वामी रामसुखदास जी महाराज द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक और मार्गदर्शक पुस्तक है, जो व्यक्ति को आत्मिक और नैतिक रूप से उत्कृष्ट बनने की प्रेरणा देती है। यह पुस्तक न केवल आत्मसुधार का संदेश देती है, बल्कि संपूर्ण समाज को उज्ज्वल और शांतिमय बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी विचारधारा प्रस्तुत करती है।
स्वामी जी का यह प्रयास केवल उपदेशात्मक नहीं है, बल्कि वह हर पाठक के अंतर्मन को छूने वाला है। पुस्तक में यह स्पष्ट किया गया है कि "अच्छा बनना" कोई कठिन तपस्या नहीं, बल्कि जीवन की सहज आवश्यकता और सहज साधना है। मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी उसका चरित्र है, और यह पुस्तक उसी चरित्र-निर्माण की प्रेरणा देती है।
मुख्य विषय-वस्तु:
1. अच्छाई की परिभाषा:
पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि अच्छा बनना केवल बाहर से सज्जन दिखना नहीं है, बल्कि अंतरात्मा की पवित्रता, विचारों की उदारता और कर्मों की निस्वार्थता ही सच्ची अच्छाई है।
2. जीवन का उद्देश्य:
स्वामी जी कहते हैं कि जीवन का मूल उद्देश्य केवल सुख-सुविधाओं की प्राप्ति नहीं, बल्कि स्वयं को ईश्वर के अनुरूप बनाना है। अच्छा बनने से ही जीवन सार्थक होता है और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
3. आंतरिक सुधार:
पुस्तक में आत्मनिरीक्षण, दोष-दर्शन, क्रोध-त्याग, लोभ-वश से बचने और ईर्ष्या से मुक्त रहने जैसे अनेक विषयों पर गहराई से चर्चा की गई है। स्वामी जी बताते हैं कि जब तक मनुष्य अपने भीतर छिपे दोषों को नहीं पहचानता, तब तक वह सच्चा सुधार नहीं कर सकता।
4. दूसरों के साथ व्यवहार:
"अच्छे बनो" पुस्तक में यह विशेष रूप से बताया गया है कि दूसरों के साथ विनम्रता, सहानुभूति, क्षमा और प्रेम का व्यवहार ही एक अच्छे व्यक्ति की पहचान है। कोई कितना भी बड़ा ज्ञानी या धनी क्यों न हो, यदि उसका व्यवहार कठोर या स्वार्थी है, तो वह अच्छा नहीं कहा जा सकता।
5. ईश्वर और धर्म के प्रति दृष्टिकोण:
अच्छे बनने का अर्थ केवल सामाजिक दृष्टि से अच्छा होना नहीं है, बल्कि अध्यात्म के प्रति आस्था और धर्म के मार्ग पर चलना भी आवश्यक है। स्वामी जी बताते हैं कि ईश्वर का स्मरण, सत्संग और शुद्ध आचरण मिलकर ही व्यक्ति को अच्छा बनाते हैं।
6. साधारण मनुष्य भी बन सकता है उत्तम:
स्वामी जी इस पुस्तक में यह स्पष्ट करते हैं कि अच्छे बनने के लिए कोई विशेष योग्यता, पढ़ाई या अधिकार की आवश्यकता नहीं है। चाहे वह गृहस्थ हो, विद्यार्थी, मजदूर या व्यापारी—हर कोई अच्छा बन सकता है, यदि उसकी नीयत और दिशा सही हो।
शैली और भाषा:
इस पुस्तक की भाषा अत्यंत सरल, सरस और हृदयस्पर्शी है। यह किसी भी वर्ग या आयु के व्यक्ति के लिए सहज रूप से समझ में आने योग्य है। स्वामी जी का अंदाज़ अत्यंत आत्मीय और प्रेरक है, जिससे पाठक को ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई आत्मीय व्यक्ति सीधे उसके मन से संवाद कर रहा हो।
पुस्तक का प्रभाव:
"अच्छे बनो" केवल एक धार्मिक या नैतिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है। यह व्यक्ति को आत्म-निर्माण की ओर ले जाती है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन की भूमि तैयार करती है। जो व्यक्ति इसे पढ़कर जीवन में अपनाता है, वह न केवल स्वयं में सुधार करता है बल्कि अपने परिवार, समाज और देश के लिए भी प्रेरणा बनता है।