• 🌸 परिचय: हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

    हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (1892–1971) भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म के एक महान प्रचारक थे। वे गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के संस्थापक संपादक थे। उनके द्वारा रचित और संकलित सरस प्रसंग आज भी पाठकों के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करते हैं।


    📖 'सरस प्रसंग' का अर्थ

    ‘सरस’ का अर्थ है रसपूर्ण, हृदय को छूने वाले।
    ‘प्रसंग’ का अर्थ है घटना या किस्सा
    इस प्रकार ‘सरस प्रसंग’ उन प्रेरणादायक, भावपूर्ण और आध्यात्मिक घटनाओं को कहते हैं जो किसी संत, महापुरुष, या भक्त के जीवन से जुड़ी होती हैं और जिन्हें पढ़कर पाठक को श्रद्धा, भक्ति, विनम्रता और सदाचार की प्रेरणा मिलती है।


    🪔 हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंगों की विशेषताएं

    • सरल, सहज और हृदयस्पर्शी भाषा

    • छोटे-छोटे प्रसंगों में गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षा

    • संतों, भक्तों और भगवान की चरित्र-कथाओं का संकलन

    • प्रत्येक प्रसंग में नैतिकता और भक्ति का संदेश

    • आम जनमानस को भक्ति और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाली शैली।


    🌼 एक सरस प्रसंग (हनुमान प्रसाद जी की शैली में)

    प्रसंग: "सच्ची भक्ति"

    एक बार एक भक्त ने संत से पूछा —
    "महाराज! भगवान तो सबके हैं, फिर कुछ लोगों को ही उनकी कृपा क्यों मिलती है?"

    संत मुस्कराए और बोले —
    "बेटा! सूर्य तो सबके लिए चमकता है, पर जो अपनी आँखें खोलकर उसकी ओर देखता है, वही प्रकाश पाता है।
    उसी प्रकार, जो सच्चे मन से, विश्वासपूर्वक और विनम्रता से भक्ति करता है, भगवान की कृपा उसी पर प्रकट होती है।"

    संदेश: भगवान सबके हैं, पर उनका अनुभव वही करता है जो सच्चे मन से उन्हें पुकारता है।


    📚 कहाँ मिलेंगे हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंग?

    • गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित:

      • ‘कल्याण’ पत्रिका (वर्ष–संख्या जैसे: भक्तिसंकल्पांक, संत अंक, नाममहिमा अंक आदि)

      • भक्त चरित्र, महापुरुषों की जीवनगाथाएं, संतों के प्रेरक प्रसंग

      • सत्संग सुधा, रामकथा, कृष्णलीला आदि

  • "श्रीराधाबल्लभ अष्टयाम" एक अत्यंत भावपूर्ण एवं भक्तिमय ग्रंथ है, जो श्रीराधाबल्लभ संप्रदाय की उपासना पद्धति, लीला-स्मरण और अष्टयाम सेवा की दिव्य परंपरा का परिचय कराता है। यह पुस्तक उन भक्तों के लिए रत्नस्वरूप है, जो श्री राधा-कृष्ण की लीला-भक्ति में गहराई से डूबना चाहते हैं।


    🌸 मुख्य विषयवस्तु:

    • अष्टयाम लीला वर्णन (प्रातः से रात्रि तक श्री राधाकृष्ण की दिव्य लीलाओं का क्रमिक वर्णन)

    • रसिक नाम ध्वनि, प्रभुगुणगान, वियोगोत्सव ‘व्याकुलता’ जैसे भावप्रधान अंश

    • करुणा बेली, भृकुटि पदावली, प्रिय नामावली, विरहिणी उत्सव – भक्ति एवं विरह भाव से ओतप्रोत सामग्री


    🎵 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • रसिक परंपरा की सुंदर प्रस्तुति जिसमें भक्तिरस की गहराइयाँ व्यक्त की गई हैं।

    • पदों, नामों और लीलाओं के माध्यम से श्रीराधा-कृष्ण के प्रति आत्मसमर्पण का मार्ग।

    • लीलास्मरण के साथ-साथ विरह भाव को प्रबलता से प्रस्तुत करती है।


    🙏 पुस्तक किसके लिए उपयुक्त है:

    • राधा बल्लभ संप्रदाय के अनुयायियों के लिए।

    • श्रीराधा-कृष्ण की अष्टयाम सेवा में रुचि रखने वाले साधकों के लिए।

    • भावभक्ति, लीला-स्मरण और रसविचार में रुचि रखने वाले अध्यात्मप्रेमियों के लिए।


    "श्रीराधाबल्लभ अष्टयाम" न केवल एक ग्रंथ है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जो भक्ति के उच्च शिखर तक ले जाने वाला साधन है। यह ग्रंथ ह्रदय को प्रेम और विरह के रस में डुबो देता है।

  • संत-दर्शन’ पुस्तक भारतीय संत परंपरा का एक अमूल्य संग्रह है, जिसमें विभिन्न युगों के महान संतों, साधकों और भक्तों के जीवन, शिक्षाओं और उनके योगदान का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में उन संतों के चित्र और उनके जीवन की झलकियाँ दी गई हैं जिन्होंने भारतवर्ष की आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया और समाज में नैतिकता, प्रेम, करुणा तथा भक्ति का संदेश फैलाया।

    हनुमानप्रसाद पोद्दार जी के संपादन में प्रस्तुत यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक साधकों के लिए उपयोगी है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को समझने के लिए एक उत्कृष्ट स्रोत भी है। इसमें कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, मीराबाई, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक संतों के जीवन दर्शन को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

    इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह पाठकों को विभिन्न संत परंपराओं – भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, योग मार्ग – आदि के संतों की विविधता और उनकी आध्यात्मिक साधनाओं से परिचित कराती है। यह पुस्तक संतों के विचारों और उपदेशों के माध्यम से मनुष्य को आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    1. संतों की विविधता:
      यह ग्रंथ भारत की महान संत परंपरा की विविधता को दर्शाता है। इसमें शैव, वैष्णव, शाक्त, सिख, जैन, बौद्ध तथा निर्गुण भक्ति के अनेक संतों का वर्णन किया गया है। कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, रविदास, दादूदयाल, नामदेव, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, समर्थ रामदास, ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि संतों के जीवन प्रसंग और संदेश इसमें समाहित हैं।

    2. आध्यात्मिक दिशा और प्रेरणा:
      यह पुस्तक आत्मा की खोज, ईश्वर प्रेम, सेवा, तपस्या, त्याग, वैराग्य, भक्ति और मुक्ति जैसे गूढ़ विषयों को सहज रूप से प्रस्तुत करती है। यह पाठकों को न केवल आध्यात्मिक दृष्टि देती है, बल्कि एक शुद्ध और पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है।

    3. चित्र और दृश्यात्मक सौंदर्य:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर संतों की एक लहर सी दिखाई देती है जो प्रकाश की ओर अग्रसर हो रही है — यह दृश्य न केवल कलात्मक है बल्कि यह दर्शाता है कि संत समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले दीपक हैं।

    4. सामाजिक जागृति:
      संतों ने केवल आत्मकल्याण का मार्ग नहीं दिखाया, बल्कि समाज सुधार, छुआछूत मिटाने, जातिवाद का विरोध, प्रेम और भाईचारे की भावना को जगाने का कार्य भी किया। इस पुस्तक में उन संतों का विशेष वर्णन है जिन्होंने सामाजिक चेतना फैलाने का कार्य किया।

    5. सरल भाषा, गहरी बात:
      यह पुस्तक संस्कृतनिष्ठ नहीं है, बल्कि इसमें भक्तिभाव से ओतप्रोत सरल और भावपूर्ण हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे यह जनसामान्य के लिए भी सहज रूप से ग्राह्य हो जाती है।


    संतों का उद्देश्य और योगदान

    • संतों ने मानव को आत्मा और परमात्मा के संबंध का बोध कराया।

    • जीवन की क्षणभंगुरता का स्मरण कराते हुए सच्चे सुख की खोज भीतर करने को कहा।

    • अहंकार, मोह, माया और क्रोध से मुक्त होकर सेवा, त्याग और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

    • भक्ति मार्ग के साथ-साथ कर्म और ज्ञान के समन्वय पर भी बल दिया।


    उद्देश्य और उपयोगिता:

    ‘संत-दर्शन’ का मुख्य उद्देश्य है –

    • संतों के माध्यम से पाठकों के भीतर आत्मिक चेतना जगाना।

    • पाठकों को सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना।

    • समाज को आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से उन्नत बनाना।

    • भारत की गौरवशाली संत परंपरा को जन-जन तक पहुँचाना।

    यह पुस्तक धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत मूल्यवान है। इसे हर आयु वर्ग के पाठकों को पढ़ना चाहिए — विशेषकर युवाओं को, ताकि वे जीवन की दिशा को सही रूप से समझ सकें।


    निष्कर्ष:

    ‘संत-दर्शन’ केवल संतों के जीवन का परिचय नहीं है, यह एक जीवन-दर्शन है। इसमें छिपी शिक्षाएँ और प्रेरणाएँ आज के भटके हुए मानव के लिए एक प्रकाशस्तंभ के समान हैं। हनुमानप्रसाद पोद्दार जी द्वारा संकलित यह ग्रंथ भारतीय अध्यात्म का सार प्रस्तुत करता है, और यह हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो सच्चे ज्ञान, भक्ति और शांति की खोज में है।

  • ‘महाभागा व्रज देवियाँ पूज्य श्री राधा बाबा जी द्वारा रचित एक दिव्य एवं भावपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें ब्रज की गोपिकाओं, विशेषतः अष्ट महा सखियों (ललिता, विशाखा आदि) की अनुपम भक्ति, सेवा-भाव, त्याग और श्रीकृष्ण के प्रति उनकी पूर्ण समर्पित प्रेमाभक्ति का हृदयस्पर्शी वर्णन है।

    इस ग्रंथ में यह दर्शाया गया है कि ब्रज की गोपियाँ केवल रूपवती नहीं, अपितु भाववती, भक्ति में निष्णात, तथा अपने इष्ट श्रीकृष्ण के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित साधिकाएँ थीं। उनका प्रेम सांसारिक नहीं था, बल्कि आत्मा की परमात्मा के प्रति पुकार थी — जो सम्पूर्ण वेदों, यज्ञों और तपों से भी श्रेष्ठ था।


    🌸 मुख्य विषयवस्तु:

    • अष्ट सखियों की महिमा एवं उनका श्रीराधा-कृष्ण के साथ दिव्य लीलाओं में योगदान

    • गोपियों की निष्काम सेवा एवं अद्भुत समर्पण

    • ब्रज-जीवन की सात्विकता, सहजता और उसकी आध्यात्मिक ऊँचाई

    • प्रेम-भक्ति की सर्वोच्च अवस्था का विवेचन

    • श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम की रहस्यात्मक झलकियाँ


    उदाहरण स्वरूप भावपूर्ण अंश:

    "स्वामिन! बड़े-बड़े यज्ञ आपको अब तक तृप्त नहीं कर सके,
    परन्तु ब्रज की गोपिकाएँ धन्य हैं, जिनके बालक बनकर
    आपने उनके स्तनों से निसृत दुग्ध-सुधा का पान किया है।"

    यह पंक्ति स्पष्ट करती है कि ब्रज की गोपियों की निष्कलंक सेवा और वात्सल्य भावना कितनी ऊँची थी कि स्वयं श्रीकृष्ण को भी वह अधिक प्रिय लगीं, जो उन्हें वैदिक यज्ञों में प्राप्त नहीं हुईं।

    श्री राधा बाबा (स्वामी चक्रधर जी महाराज) गीता वाटिका, गोरखपुर के दिव्य संत थे। उनका सम्पूर्ण जीवन श्रीराधा के माधुर्य-भक्ति में लीन रहा। उनकी वाणी में रस, करुणा और सच्ची भक्ति की धारा बहती थी। उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथों में महाभाग गोपियाँ, गिरिराज गुंजन, श्री केलिकुंज लीला आदि प्रमुख हैं।

  • "अभिलाषामृत" एक गहन भावनात्मक एवं भक्ति से ओत-प्रोत ग्रंथ है, जिसे परम श्रद्धेय श्री राधेश्याम बांका जी ने रचा है। यह ग्रंथ श्रीकृष्ण प्राप्ति की तीव्रतम अभिलाषा को केंद्र में रखकर लिखा गया है, जहाँ एक साधक की अंतरतम व्याकुलता और तड़प को अत्यंत सरस एवं हृदयस्पर्शी शैली में व्यक्त किया गया है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • यह पुस्तक वृंदावन रसिक वाणी और गीताप्रेस गोरखपुर के सहयोग से प्रकाशित की गई है।

    • "अभिलाषामृत" में एक साधक की भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात् प्राप्ति हेतु हृदय से उठती गहन पुकार को दर्शाया गया है।

    • पुस्तक में राधा बाबा, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी, एवं अन्य महापुरुषों के जीवन और भक्ति की झलकियाँ भी मिलती हैं, जो साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

    • यह ग्रंथ भावप्रधान भक्ति मार्ग का उत्तम उदाहरण है, जो साधक को आत्मचिंतन, अनुराग और समर्पण की ओर प्रेरित करता है।

    श्री राधेश्याम बांका जी एक अत्यंत श्रद्धेय और भावमय लेखक हैं, जिन्होंने कई भक्तिमय ग्रंथों की रचना की है। उनकी लेखनी में श्रृंगार-रसिक भक्ति, महापुरुषों की जीवनगाथा, और शुद्ध हृदय से ईश्वर की प्राप्ति की उत्कंठा देखने को मिलती है।

    उनके अन्य प्रमुख ग्रंथ:

    • प्रियतम सौरभ – राधा बाबा की कविताओं पर आधारित विस्तृत व्याख्या (3 खंडों में)

    • प्रीति रसावतार महाभावनिमग्न श्री राधा बाबा – दो भागों में प्रकाशित, राधा बाबा की जीवनी

    • परिकर माला – पाँच खंडों में, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी आदि भक्तों का जीवन

    निष्कर्ष:

    "अभिलाषामृत" एक ऐसा आध्यात्मिक रत्न है जो भक्तों को श्रीकृष्ण की निष्काम भक्ति और पूर्ण समर्पण की अनुभूति कराता है। यह उन सभी साधकों के लिए अनमोल है, जो आध्यात्मिक पथ पर प्रेम, भक्ति और विरह के माध्यम से आगे बढ़ना चाहते हैं।

  • "केलि-कुंज" एक भक्तिमय और आध्यात्मिक ग्रंथ है जो श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं, प्रेम और भक्ति को केंद्र में रखकर लिखा गया है। इस पुस्तक में राधा-कृष्ण के मधुर मिलन, उनकी दिव्य लीलाओं और ब्रज की भावभूमि का अत्यंत सुंदर और रसपूर्ण वर्णन किया गया है।

    लेखक राधा बाबा ने इसे एक ऐसे रसिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है जो साधकों को भक्ति और प्रेम की उच्चतम अवस्थाओं की ओर प्रेरित करता है। इसमें भक्तिरस, माधुर्यभाव, लीलाचिंतन और रसराज श्रीकृष्ण की सखाओं-सखियों के संग का गहन वर्णन है।

    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. राधा-कृष्ण की मधुर लीलाएँ: पुस्तक में राधा और कृष्ण की विभिन्न रास लीलाओं का सुंदर और सरस वर्णन है। इन लीलाओं के माध्यम से भगवान के सौंदर्य, उनकी कोमलता और प्रेम के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया गया है।

    2. भाव-साधना और रसराज कृष्ण: यह पुस्तक केवल कथा नहीं है, बल्कि एक साधना-पथ है। इसमें भाव-भक्ति की उन ऊँचाइयों का वर्णन है जहाँ साधक स्वयं को लीलाओं में उपस्थित पाता है। ‘रसराज’ कृष्ण का निरूपण अत्यंत रसयुक्त भाषा में हुआ है।

    3. ब्रज संस्कृति और गोपियों की भक्ति: ग्रंथ में ब्रज की संस्कृति, वहाँ की गोपियाँ, उनकी सेवा-भावना और निश्छल प्रेम को अत्यंत भावुक रूप में चित्रित किया गया है। प्रत्येक गोपी की भक्ति का अपना विशेष रंग और स्वरूप है, जिन्हें लेखक ने अत्यंत गहराई से प्रस्तुत किया है।

    4. सेवा, विनय और समर्पण: केलि-कुंज केवल प्रेम या सौंदर्य की बात नहीं करता, यह सेवा और समर्पण की भी पराकाष्ठा दिखाता है। लेखक बताता है कि ब्रज में प्रेम का वास्तविक रूप केवल पाने का नहीं, अपितु खो देने का है — स्वयं को राधा-कृष्ण की सेवा में विलीन कर देना ही सच्चा प्रेम है।


    भाषा और शैली:

    लेखक राधा बाबा की लेखनी अत्यंत भावप्रवण, मधुर एवं रसयुक्त है। शुद्ध हिंदी और ब्रज भाषा के सुंदर संगम से यह पुस्तक एक काव्यात्मक आनंद देती है। शब्दों में ऐसा माधुर्य है कि पाठक न केवल पढ़ता है, बल्कि भावविभोर होकर अनुभव करता है।


    किनके लिए उपयुक्त है यह पुस्तक:

    • भक्ति और रसोपासना में रुचि रखने वाले साधक

    • राधा-कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखने वाले भक्त

    • ब्रज लीला और भाव-साधना में रुचि रखने वाले जिज्ञासु

    • भक्ति साहित्य पढ़ने वाले अध्येता

    • आध्यात्मिक चेतना की ओर उन्मुख साधक


    निष्कर्ष:

    "केलि-कुंज" एक ऐसी आध्यात्मिक निधि है जो केवल पढ़ने के लिए नहीं, अपितु आत्मा से अनुभूत करने के लिए है। यह पुस्तक पाठक को राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम-सागर में डुबो देती है और उसे उस कुंज तक पहुँचा देती है जहाँ भक्ति, प्रेम और सेवा का अमृत सतत प्रवाहित हो रहा है।

    यदि आप अध्यात्म, भक्ति और प्रेम की सच्ची अनुभूति करना चाहते हैं — तो "केलि-कुंज" आपके हृदय को गहराई से छूने वाला एक अनुपम ग्रंथ है।

  • कठ उपनिषद् या कठोपनिषद, एक कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद है। कठोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखा है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है परन्तु मुख्यत वेदव्यास जी को कई उपनिषदों का लेखक माना जाता है कृष्ण यजुर्वेद के कठशाखा के अंश इस उपिनषद में जहाँ यम-नचिकेता-संवाद के रूप में ब्रह्मविद्या का विशद वर्णन सुबोध और सरल शैली में किया गया है, वहीं इसमें वर्णित नचिकेता-चरित्र पितृ-भक्ति का अनुपम आदर्श है। सानुवाद, शांकरभाष्य।

    कठोपनिषद् भारतीय उपनिषद साहित्य की एक महान रचना है, जो यजुर्वेद की शाखा में आती है। यह उपनिषद आत्मा और परमात्मा के रहस्य, मृत्यु के बाद जीवन, तथा मोक्ष के गूढ़ रहस्यों पर आधारित एक संवादात्मक शैली में रचित है।

    इस ग्रंथ का मुख्य संवाद नचिकेता नामक एक जिज्ञासु बालक और यमराज (मृत्यु के देवता) के बीच होता है। नचिकेता अपने पिता द्वारा किए गए यज्ञ के दोष को देखकर गहन जिज्ञासा के साथ मृत्यु के रहस्य को जानने हेतु यमराज के पास जाता है। यमराज उसे तीन वर देने को कहते हैं, जिनमें अंतिम वर के रूप में नचिकेता आत्मा और मृत्यु के बाद की स्थिति का रहस्य पूछता है।


    मुख्य विषयवस्तु और दर्शन:

    • आत्मा क्या है? क्या वह नश्वर शरीर से अलग है?

    • मृत्यु के बाद आत्मा की गति क्या होती है?

    • मोक्ष (मुक्ति) क्या है, और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

    • ज्ञानी और अज्ञानी मनुष्यों के जीवन का अंतर

    • इन्द्रियों पर संयम, और विवेक के महत्व

    कठोपनिषद् केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक दार्शनिक मार्गदर्शक है। यह व्यक्ति को आत्मा के ज्ञान, आत्मनियंत्रण और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। इसका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि सहस्त्रों वर्ष पूर्व था।

    प्रेरणादायक श्लोक:

    "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।"
    (उठो, जागो, और श्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त करो)


    यदि आप आध्यात्मिक जिज्ञासा, मृत्यु के रहस्य, और ब्रह्मज्ञान में रुचि रखते हैं, तो कठोपनिषद् आपके लिए एक अनमोल ग्रंथ है।

  • केनोपनिषद् (Kena Upanishad) वेदों में से सामवेद के तलवकार शाखा से संबंधित एक प्रमुख उपनिषद है। यह उपनिषद "उपनिषदों की आत्मा" कहे जाने वाले ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान का गूढ़ विवेचन करता है। इसका नाम "केन" (अर्थात् "किससे") शब्द से पड़ा है, जो इसके पहले ही मंत्र में आता है:

    "केनेषितं पतति प्रेषितं मन:।"
    (मन किसके आदेश से गति करता है?)


    🔹 मूल विषय:

    केनोपनिषद् आत्मा, मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि की प्रेरणा शक्ति की खोज करता है। यह पूछता है कि:

    • कौन है वह शक्ति जो हमें सोचने, देखने, सुनने, और बोलने की क्षमता देती है?

    • क्या ये इन्द्रियाँ अपने-आप कार्य करती हैं या कोई और चेतना इन्हें संचालित करती है?


    🔹 उपनिषद के चार भाग:

    केनोपनिषद चार खंडों (खंडिका) में विभाजित है:

    शिष्य गुरु से पूछता है — मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि कैसे कार्य करते हैं?
    गुरु उत्तर देता है कि ये सब एक परम चेतना से प्रेरित हैं — वही ब्रह्म है।

    "श्रोत्रस्य श्रोत्रं... मनसो मन:..."
    (जो कान के पीछे का कान है, मन के पीछे का मन है...)

    यहाँ ब्रह्म को इन्द्रियों के परे बताया गया है।


    2️⃣ ब्रह्म का स्वरूप:

    ब्रह्म को बताया गया है कि:

    • जिसे इन्द्रियाँ नहीं पकड़ सकतीं

    • जिसे सोचकर भी नहीं जाना जा सकता

    • वही ब्रह्म है

    "यन्मनसा न मनुते... तद्ब्रह्म त्वं विद्धि"
    (जिसे मन नहीं जान सकता, वही ब्रह्म है)


    3️⃣ ब्रह्म की प्राप्ति की परीक्षा (उपाख्यान):

    एक रोचक कथा दी गई है —
    देवताओं को अहंकार हो गया कि उन्होंने असुरों पर विजय पाई।
    ब्रह्मा ने उनकी परीक्षा ली — एक रहस्यमय यक्ष प्रकट हुआ।
    देवता (अग्नि, वायु, इन्द्र) उसे पहचान नहीं पाए।

    इन्द्र ने आगे बढ़कर जानना चाहा — वहाँ उमा (ब्रह्मविद्या का रूप) प्रकट हुई और उसने बताया कि वह यक्ष ही ब्रह्म था।


    4️⃣ ब्रह्म का अनुभूतिपरक ज्ञान:

    ब्रह्म को तर्क से नहीं, केवल अनुभव से जाना जा सकता है।
    जो कहता है "मैं जानता हूँ", वह नहीं जानता।
    जो कहता है "मैं नहीं जानता", वही जानने के मार्ग पर है।


    🔹 मुख्य शिक्षाएं:

    1. ब्रह्म इन्द्रियों से परे है – वह देखने, सुनने, सोचने से परे है।

    2. सर्वशक्तिमान प्रेरक शक्ति – जो सबको प्रेरित करती है, वही ब्रह्म है।

    3. अहंकार ज्ञान में बाधक है – आत्मज्ञान के मार्ग में अहंकार का त्याग आवश्यक है।

    4. ब्रह्म अनुभव का विषय है – केवल शास्त्रों से नहीं, साधना से जाना जा सकता है।


    🔹 सरल निष्कर्ष:

    "ब्रह्म वह है, जिससे मन, वाणी, इन्द्रियाँ भी लौट आती हैं, क्योंकि वे उसे जान नहीं सकतीं।"
    अतः — सत्य ज्ञान केवल अनुभव से संभव है, अहंकार छोड़कर आत्म-चिंतन और साधना से।

  • ‘परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएँ’ गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित एक अत्यंत प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक पुस्तक है, जिसमें मनुष्य जीवन के परे—मृत्यु के बाद के जीवन, परलोक की अवस्थाओं और पुनर्जन्म से संबंधित सत्य घटनाओं का संग्रह किया गया है।

    इस पुस्तक में वास्तविक जीवन की घटनाओं के माध्यम से यह समझाया गया है कि आत्मा अमर है, शरीर नाशवान है। मृत्यु अंत नहीं, बल्कि आत्मा की एक यात्रा का पड़ाव है, जिसके आगे पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, यमलोक आदि की अवस्थाएँ आती हैं।


    🧘‍♂️ मुख्य विषय-वस्तु:

    • मृत्यु के बाद क्या होता है?

    • आत्मा की यात्रा कहाँ जाती है?

    • परलोक की वास्तविकता

    • यमराज, चित्रगुप्त, स्वर्ग, नरक आदि का वर्णन

    • पुनर्जन्म की विविध घटनाएँ

    • कर्म का फल और उसके अनुसार योनियाँ

    • जीवात्मा को अच्छे या बुरे जन्म किस कारण मिलते हैं

    • धार्मिक जीवन क्यों आवश्यक है?


    🕉️ प्रेरणादायक घटनाएँ:

    पुस्तक में भारतवर्ष और अन्य देशों की प्रामाणिक घटनाओं का संकलन है, जिनमें लोग पिछले जन्मों को स्मरण करते हैं, मृत्यु के बाद की रहस्यमय घटनाओं का अनुभव करते हैं या मृत्यु के बाद आत्मा का मार्गदर्शन करती है।

    इन घटनाओं को पढ़कर पाठक को यह अनुभव होता है कि:

    • जीवन केवल इहलोक तक सीमित नहीं है

    • अच्छे-बुरे कर्मों का फल निश्चित रूप से प्राप्त होता है

    • धर्म, संयम, सत्कर्म और भक्ति ही सच्ची निधि हैं


    🌼 उद्देश्य:

    इस पुस्तक का उद्देश्य यह है कि पाठक:

    • जीवन को अधिक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाए

    • मृत्यु से न डरे बल्कि आत्मा की अमरता को समझे

    • अधर्म और पाप से बचे

    • पुण्य, भक्ति और सदाचार की ओर प्रवृत्त हो

    • परलोक और पुनर्जन्म के विषय में श्रद्धा और जागरूकता विकसित करें


    📚 यह पुस्तक किसके लिए उपयोगी है?

    • वे जो मृत्यु के रहस्य और आत्मा की यात्रा को जानना चाहते हैं

    • जिनका झुकाव पुनर्जन्म या परलोक की सच्चाइयों की ओर है

    • जो धार्मिक, आध्यात्मिक और जीवन-परिवर्तनकारी कथाओं में रुचि रखते हैं

    • माता-पिता, गुरुजन और विद्यार्थी जो धर्म की शिक्षा को गहराई से समझना चाहते हैं


    “परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएँ” न केवल एक आध्यात्मिक पुस्तक है, बल्कि यह जीवन को धर्म और अध्यात्म से जोड़ने वाली एक अमूल्य निधि है, जो पाठक को आत्म-जागरण और मोक्ष की दिशा में प्रेरित करती है।

  • "अमृत के घूँट" पूज्य श्रीरामचरण महेन्द्र जी द्वारा लिखित एक अत्यंत हृदयस्पर्शी और आत्मिक प्रेरणा से पूर्ण पुस्तक है, जिसमें उन्होंने जीवन की छोटी-छोटी बातों में छुपे हुए गूढ़ आध्यात्मिक संदेशों को सरल, मीठी भाषा में प्रस्तुत किया है।

    यह पुस्तक पाठक को आत्मनिरीक्षण, सद्विचार, और ईश्वर की ओर अग्रसर करने वाली होती है। इसका पठन ऐसा अनुभव कराता है, मानो हर शब्द ईश्वरीय अमृत के समान हो, जो आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करता है।


    मुख्य विशेषताएँ

    1. सरल पर प्रभावशाली शैली:
      श्रीरामचरण महेन्द्र जी की लेखनी में कोई भारी तत्त्वज्ञान नहीं, बल्कि ऐसा मधुर भाव होता है, जो सीधे हृदय को छू जाता है।

    2. संवादात्मक शैली:
      कई प्रसंग ऐसे हैं जो पाठक और आत्मा के बीच संवाद जैसा प्रतीत होते हैं — जैसे गुरु और शिष्य की बातचीत।

    3. आध्यात्मिक जीवन की झलकियाँ:
      जीवन में त्याग, सेवा, भक्ति, सत्य, संयम और संतोष का महत्व सहज भाषा में बताया गया है।

    4. प्रसंग और दृष्टांत:
      पुस्तक में कई छोटे-छोटे प्रसंग, दृष्टांत या विचार-मोती हैं, जो आत्मविकास में सहायक हैं।


    🌺 कुछ प्रमुख विषय (अध्याय या भाव):

    • मन को वश में कैसे करें?

    • ईश्वर की स्मृति में रहना क्या होता है?

    • सेवा का सही अर्थ क्या है?

    • आत्मा और शरीर का संबंध

    • लोभ-मोह से मुक्ति का मार्ग

    • प्रभु की प्राप्ति का सरल उपाय

    • संतों की संगति का प्रभाव


    🧘‍♂️ क्यों पढ़ें यह पुस्तक?

    • यदि आप चाहते हैं मन की शांति,

    • जीवन में सकारात्मक सोच,

    • भक्ति और आत्मा का पोषण,

    • तो यह पुस्तक आपके लिए अमृत-घूँट की तरह है।

    यह पुस्तक छोटे आकार में गहरी साधना का मार्ग बताती है, और प्रतिदिन एक पृष्ठ पढ़ना भी आत्मा के लिए अमृततुल्य है।

  • हिन्दू धर्म में विभिन्न देवताओं के अवतार की मान्यता है। प्रायः विष्णु के दस अवतार माने गये हैं जिन्हें दशावतार कहते हैं।

     दशावतार एक चित्रमय पुस्तक है, जो भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों की कथाओं को सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में निम्नलिखित अवतारों की कहानियाँ शामिल हैं

    • मत्स्य (मछली)

    • कूर्म (कच्छप/कछुआ)

    • वराह (सूअर)

    • नरसिंह (आधा मानव, आधा सिंह)

    • वामन (बौना ब्राह्मण)

    • परशुराम (योद्धा ब्राह्मण)

    • राम (अयोध्या के राजा)

    • कृष्ण (द्वारका के राजा)

    • बुद्ध (गौतम बुद्ध)

    • कल्कि (भविष्य में आने वाला अवतार)

    • प्रत्येक अवतार की कथा को रंगीन चित्रों के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को भगवान विष्णु के अवतारों की लीलाओं और उद्देश्यों को समझने में सहायता मिलती है। यह पुस्तक विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए उपयुक्त है, जो हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में रुचि रखते हैं।

    • यह पुस्तक न केवल धार्मिक शिक्षा के लिए उपयोगी है, बल्कि बच्चों के लिए एक मनोरंजक और ज्ञानवर्धक संसाधन भी है। यदि आप अपने बच्चों को हिंदू धर्म की मूलभूत कथाओं से परिचित कराना चाहते हैं, तो यह पुस्तक एक उत्कृष्ट विकल्प है।
  • अष्टविनायक गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित एक संक्षिप्त और सारगर्भित पुस्तक है, जो महाराष्ट्र के आठ प्रमुख गणेश मंदिरों की पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक महत्व को प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो अष्टविनायक यात्रा की योजना बना रहे हैं या भगवान गणेश के इन आठ स्वरूपों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं।


    🛕 अष्टविनायक मंदिरों की सूची:

    1. मयूरेश्वर (मोरेश्वर), मोरगांव

      • यह अष्टविनायक यात्रा का प्रारंभिक और अंतिम मंदिर है।

    2. सिद्धिविनायक, सिद्धटेक

      • भीमा नदी के किनारे स्थित, यह मंदिर सिद्धियों के दाता गणेश को समर्पित है।

    3. बल्लाळेश्वर, पाली

      • यह मंदिर भगवान गणेश के भक्त बल्लाल की कथा से जुड़ा है।

    4. वरदविनायक, महड

      • यहां भक्तों को स्वयं मूर्ति के समीप जाकर पूजा करने की अनुमति है।

    5. चिंतामणि, थेऊर

      • यह मंदिर चिंताओं को हरने वाले गणेश जी को समर्पित है।

    6. गिरिजात्मज, लेण्याद्री

      • यह एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है जो एक पर्वत की गुफा में स्थित है।

    7. विघ्नेश्वर, ओझर

      • यह मंदिर विघ्नों को दूर करने वाले गणेश जी को समर्पित है।

    8. महागणपति, रांजणगांव

      • यहां भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने से पूर्व गणेश जी की आराधना की थी।                                                                                                                             

        📚 पुस्तक की विशेषताएँ:

        • संक्षिप्त और सरल भाषा में लिखी गई, जिससे सभी आयु वर्ग के पाठक इसे आसानी से समझ सकते हैं।

        • प्रत्येक मंदिर की कथा, इतिहास और महत्व को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है।

        • यात्रा की योजना बनाने वाले श्रद्धालुओं के लिए मार्गदर्शिका के रूप में उपयोगी।