जयदेवाचार्य (कुछ मतों के अनुसार अन्य वैष्णव आचार्य)
भाषा: संस्कृत
विषय: भक्ति (विशेषतः श्रीकृष्ण भक्ति)
शैली: स्तोत्रात्मक, काव्यात्मक
विवरण:
"भगवत मकरंद" का अर्थ है "भगवान का मधुरतम मधु" या "भगवान की भक्ति रूपी मधु का सार"। यह ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम, भक्ति और अनुराग को प्रकट करता है। इसमें भगवान के रूप, गुण, लीलाओं और नामों का गान अत्यंत सरस एवं भावपूर्ण शैली में किया गया है।
इस ग्रंथ में भक्त और भगवान के संबंध को अत्यंत आत्मीयता के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ भक्ति मार्ग के साधकों को भगवान की लीलाओं में अनुरक्त होकर भक्ति भाव में लीन रहने की प्रेरणा देता है।
मुख्य विशेषताएँ:
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भगवत-मकरंद में कुल एक सौ (100) श्लोक होते हैं।
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यह ग्रंथ रागात्मक भक्ति पर आधारित है – जिसमें भगवान से प्रेम का संबंध जैसे सखा, दास, माता या प्रियतम के रूप में दर्शाया गया है।
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इसमें श्रीकृष्ण के नाम-स्मरण, रूप-स्मरण, लीला-स्मरण तथा उनके गुणानुवाद को अत्यंत मधुर भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
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यह ग्रंथ श्रीमद्भागवत, नारद भक्ति सूत्र आदि जैसे ग्रंथों की भक्ति भावना से प्रेरित है।
उद्देश्य:
भगवत-मकरंद का उद्देश्य साधक को नाम-स्मरण, ध्यान और प्रेम-भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करना है। यह भक्त के मन को भगवान के प्रति आकर्षित करता है और उसे सांसारिक मोह से दूर भगवद-प्रेम में डुबो देता है।