संक्षिप्त जीवन परिचय:
श्री शारदा देवी (1853–1920), जिन्हें 'श्री माँ' (Holy Mother) के नाम से भी जाना जाता है, रामकृष्ण परमहंस जी की धर्मपत्नी और आध्यात्मिक सहयोगिनी थीं। उनका जन्म 22 दिसंबर 1853 को जयारामबाटी, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनका बचपन सरल, धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में बीता।
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उनका विवाह बाल्यकाल में ही रामकृष्ण परमहंस से हुआ, लेकिन यह एक आध्यात्मिक संबंध बन गया।
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उन्होंने सेवा, साधना और त्याग का जीवन अपनाया और रामकृष्ण मिशन के आदर्शों को आगे बढ़ाया।
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रामकृष्ण परमहंस के देहावसान के बाद उन्होंने शिष्यों का मार्गदर्शन किया और उन्हें मातृत्व का अनुभव कराया।
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उनका जीवन संयम, करुणा और मौन सेवा का प्रतीक रहा है।
🌷 मुख्य उपदेश / शिक्षाएं:
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"ईश्वर ही सब कुछ है। उन्हीं में मन को लगाओ।"
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उन्होंने भक्ति और ईश्वर-प्रेम पर जोर दिया।
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"जो कुछ भी होता है, वह ईश्वर की इच्छा से होता है।"
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उन्होंने हर परिस्थिति में धैर्य और ईश्वर में विश्वास रखने को कहा।
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"किसी को तुच्छ मत समझो। हर प्राणी में ईश्वर को देखो।"
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उनका व्यवहार करुणा और समदृष्टि से प्रेरित था।
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"यदि तुम किसी का दोष नहीं देख सकते, तो वह तुम्हारे लिए देवता के समान है।"
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आलोचना से बचने और सकारात्मक दृष्टिकोण रखने की प्रेरणा दी।
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"ध्यान रखो, तुम किसी स्त्री, पुरुष या बच्चे को जो भी चोट पहुँचाते हो, वह भगवान को ही पहुँचती है।"
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उन्होंने दूसरों के प्रति करुणा और संवेदना का भाव सिखाया।
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"दूसरों की सेवा ही सच्ची पूजा है।"
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उन्होंने सेवा को साधना बताया।
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