Description
सच्चिदानंद स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को हम नमस्ते करते हैं, जो जगत की उत्पत्ति,
और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक -तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं |
जिस समय श्री शुकदेव जी का यज्ञोपवीत -संस्कार भी नहीं हुआ था तथा लौकिक -वैदिक कर्मों के अनुष्ठान का अवसर भी नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही सन्यास लेने के लिए लिए घरसे जाते देखकर उनके पिता व्यास जी विरहसे कातर होकर पुकारने लगे- बीटा ! बेटा ! तुम कहाँ जा रहे हो ? उस समय वृक्षों ने तन्मय होने के कारण श्री शुकदेवजी की ओर से उत्तर दिया ऐसे सर्वभूत -हृदय स्वरूप श्रीशुकदेव मुनि को मै नमस्कार करता हूँ
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