पूर्वराग/Purvrag

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“पूर्वराग” एक अनुपम और भावनापूर्ण भक्ति-काव्य संग्रह है, जो भारतीय आध्यात्मिक साहित्य की हृदयस्पर्शी धरोहरों में से एक मानी जाती है। इस पुस्तक का संकलन और संपादन सुप्रसिद्ध अध्यात्मपुरुष श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार द्वारा किया गया है, जिनका उद्देश्य सदैव रहा कि सामान्य जन मानस को गहन आध्यात्मिक भावों से सरल भाषा में जोड़ सकें।

इस पुस्तक का शीर्षक – “पूर्वराग” – संस्कृत का एक गूढ़ शब्द है, जिसका अर्थ होता है प्रेम या मिलन से पूर्व उत्पन्न होने वाला गहन भाव, उत्कंठा, और विरह की मनोभूमि। यह वही अवस्था है जब आत्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) की उपस्थिति की प्यास से तड़पती है। इस ग्रंथ में यह पूर्वराग भाव राधा और श्रीकृष्ण के दिव्य प्रेम के माध्यम से गहराई से प्रस्तुत किया गया है।

मुख्यतः राधा-कृष्ण के प्रेम और ब्रज की रसभरी लीलाओं पर आधारित यह ग्रंथ तीन विशेषताओं को समाहित करता है:

  1. काव्य की माधुरी (साहित्यिक उत्कृष्टता):
    इसमें चयनित पद, गीत और कविताएँ हिंदी के भक्तिकालीन कवियों द्वारा रचित हैं, जो काव्य सौंदर्य और भावनात्मक गहराई दोनों में समृद्ध हैं। रस, छंद, अलंकार और भाव की त्रिवेणी इस संकलन को उच्च साहित्यिक स्तर प्रदान करती है।

  2. भक्ति की प्रबलता:
    यह केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है। पाठक जब इन पदों को पढ़ते हैं, तो वह स्वयं को एक गोपी, एक प्रेम में पगी आत्मा के रूप में अनुभव करता है जो अपने कृष्ण को पाने के लिए व्याकुल है। यह भक्ति और आत्मविज्ञान का एक अनूठा संगम है।

  3. संवेदना और मनोवैज्ञानिक गहराई:
    “पूर्वराग” में संकलित पदों में प्रेम, वियोग, मिलन की उत्कंठा, ईर्ष्या, विनय, शरणागत भाव जैसे मनोवैज्ञानिक पहलुओं को अत्यंत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया गया है। ये केवल धार्मिक भावनाएँ नहीं, बल्कि मानवीय मन के गहरे रंग हैं, जो परमात्मा से जुड़ने के लिए छटपटा रहे हैं।


पुस्तक की विशेषताएँ:

  • राधा-कृष्ण की दिव्य लीलाओं का रसपूर्ण चित्रण

  • भक्तिकालीन कवियों जैसे सूरदास, मीराबाई, रसखान, विद्यापति आदि के पदों का संकलन

  • भाव, रस और अनुभूति का गहन प्रवाह

  • सादगीपूर्ण परंतु अत्यंत प्रभावशाली भाषा

  • हर भावनाशील पाठक के लिए आत्मा को छू लेने वाली रचना

  • गीताप्रेस की आध्यात्मिक दृष्टि और धार्मिक उद्देश्यों से प्रकाशित


पुस्तक क्यों पढ़ें?

यदि आप भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप से भावात्मक रूप से जुड़ना चाहते हैं, यदि आप प्रेम को आत्मा की भाषा के रूप में अनुभव करना चाहते हैं, और यदि आप अध्यात्म को केवल पूजा-पाठ के रूप में नहीं, बल्कि “जीवन के सौंदर्य और वेदना की भाषा” के रूप में समझना चाहते हैं – तो “पूर्वराग” आपके लिए एक अनमोल रत्न है।

यह पुस्तक मन को भीतर से झकझोर देती है, अश्रु-प्रवाहित कर देती है, और अंत में प्रेम के उस शिखर तक पहुँचा देती है जहाँ आत्मा केवल राधा हो जाती है – और कृष्ण ही परम सत्य।

Description

“पूर्वराग” एक अनुपम और भावनापूर्ण भक्ति-काव्य संग्रह है, जो भारतीय आध्यात्मिक साहित्य की हृदयस्पर्शी धरोहरों में से एक मानी जाती है। इस पुस्तक का संकलन और संपादन सुप्रसिद्ध अध्यात्मपुरुष श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार द्वारा किया गया है, जिनका उद्देश्य सदैव रहा कि सामान्य जन मानस को गहन आध्यात्मिक भावों से सरल भाषा में जोड़ सकें।

इस पुस्तक का शीर्षक – “पूर्वराग” – संस्कृत का एक गूढ़ शब्द है, जिसका अर्थ होता है प्रेम या मिलन से पूर्व उत्पन्न होने वाला गहन भाव, उत्कंठा, और विरह की मनोभूमि। यह वही अवस्था है जब आत्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) की उपस्थिति की प्यास से तड़पती है। इस ग्रंथ में यह पूर्वराग भाव राधा और श्रीकृष्ण के दिव्य प्रेम के माध्यम से गहराई से प्रस्तुत किया गया है।

मुख्यतः राधा-कृष्ण के प्रेम और ब्रज की रसभरी लीलाओं पर आधारित यह ग्रंथ तीन विशेषताओं को समाहित करता है:

  1. काव्य की माधुरी (साहित्यिक उत्कृष्टता):
    इसमें चयनित पद, गीत और कविताएँ हिंदी के भक्तिकालीन कवियों द्वारा रचित हैं, जो काव्य सौंदर्य और भावनात्मक गहराई दोनों में समृद्ध हैं। रस, छंद, अलंकार और भाव की त्रिवेणी इस संकलन को उच्च साहित्यिक स्तर प्रदान करती है।

  2. भक्ति की प्रबलता:
    यह केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है। पाठक जब इन पदों को पढ़ते हैं, तो वह स्वयं को एक गोपी, एक प्रेम में पगी आत्मा के रूप में अनुभव करता है जो अपने कृष्ण को पाने के लिए व्याकुल है। यह भक्ति और आत्मविज्ञान का एक अनूठा संगम है।

  3. संवेदना और मनोवैज्ञानिक गहराई:
    “पूर्वराग” में संकलित पदों में प्रेम, वियोग, मिलन की उत्कंठा, ईर्ष्या, विनय, शरणागत भाव जैसे मनोवैज्ञानिक पहलुओं को अत्यंत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया गया है। ये केवल धार्मिक भावनाएँ नहीं, बल्कि मानवीय मन के गहरे रंग हैं, जो परमात्मा से जुड़ने के लिए छटपटा रहे हैं।


पुस्तक की विशेषताएँ:

  • राधा-कृष्ण की दिव्य लीलाओं का रसपूर्ण चित्रण

  • भक्तिकालीन कवियों जैसे सूरदास, मीराबाई, रसखान, विद्यापति आदि के पदों का संकलन

  • भाव, रस और अनुभूति का गहन प्रवाह

  • सादगीपूर्ण परंतु अत्यंत प्रभावशाली भाषा

  • हर भावनाशील पाठक के लिए आत्मा को छू लेने वाली रचना

  • गीताप्रेस की आध्यात्मिक दृष्टि और धार्मिक उद्देश्यों से प्रकाशित


पुस्तक क्यों पढ़ें?

यदि आप भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप से भावात्मक रूप से जुड़ना चाहते हैं, यदि आप प्रेम को आत्मा की भाषा के रूप में अनुभव करना चाहते हैं, और यदि आप अध्यात्म को केवल पूजा-पाठ के रूप में नहीं, बल्कि “जीवन के सौंदर्य और वेदना की भाषा” के रूप में समझना चाहते हैं – तो “पूर्वराग” आपके लिए एक अनमोल रत्न है।

यह पुस्तक मन को भीतर से झकझोर देती है, अश्रु-प्रवाहित कर देती है, और अंत में प्रेम के उस शिखर तक पहुँचा देती है जहाँ आत्मा केवल राधा हो जाती है – और कृष्ण ही परम सत्य।

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