द्वादस-यश/ Dwadash-Yash

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राधा वल्लभीयसम्प्रदायाचार्य गोस्वामी श्री हित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु सोलहवीं शताब्दी में आविर्भूत विभूतियों में से एक अनन्यतम विभूति थे। उन्होंने अपने अद्भुत चरित और आचरणों के द्वारा उपासना, भक्ति, काव्य और संगी आदि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी मोड दिए। वह तत्कालीन रसिक समाज एवं संत समाज में श्रीजू, श्रीजी, हित जू एवं हिताचार्यआदि नामों से प्रख्यात थे। उनका जन्म बैसाख शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत् १५३० को मथुरा से 12 कि॰मी॰ दूर आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित ‘बाद’ ग्राम में हुआ था

श्रीहित हरिवंश महाप्रभु ने वृंदावन में साधना करते हुए हित रसोपासना में यमुनाष्टक, हित चौरासी, राधा सुधानिधि व स्फुट वाणियों की रचना की। आज राधाबल्लभ परंपरा को श्रीहित हरिवंश महाप्रभु द्वारा परंपरागत रूप से चलाई जा रही है।

द्वादस-यस ग्रंथ के रचयिता, स्वामी चर्तुरदासजी महाराज, थे। स्वामी जी मध्य प्रदेश के निवासी थे। प्राचीन, साहित्य, में उन्हे “गोंड देस तीर्थ कर्ता” छाप से विभुषित किया गया है

आज लगभग 40वर्ष वाद यह ग्रन्थ, पुनः रसिक, भक्तिमती-सेवक श्रीमती रतनीदेवी नवरंगलाल सूरजमलजी सिंघानिया द्वारा प्रकासित किया जा रहा हैं।  श्री नवरंगलाल सूरजमलजी सिंघानिया, सनातन धर्म, संस्कृति, के सच्चे पुजारी थे।

इस ग्रन्थ के सम्पादन मे श्रीवृन्दावन बिहारी, गोस्वामी, “निम्वार्क कोट” बाबा, राधेश्याम, एवं मुरार का पिन्टर्स ने अक्षरांकन करने मे विशेष सहयोग दिया।

Description

द्वादस-यश/ Dwadash-Yash श्री स्वामी चतुर्भुज दास प्रणीत * आज्ञानुसार प्रकाशित- श्री हित राधावल्लभीय संप्रदायाचार्य *

 

राधा वल्लभीयसम्प्रदायाचार्य गोस्वामी श्री हित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु सोलहवीं शताब्दी में आविर्भूत विभूतियों में से एक अनन्यतम विभूति थे। उन्होंने अपने अद्भुत चरित और आचरणों के द्वारा उपासना, भक्ति, काव्य और संगी आदि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी मोड दिए। वह तत्कालीन रसिक समाज एवं संत समाज में श्रीजू, श्रीजी, हित जू एवं हिताचार्यआदि नामों से प्रख्यात थे। उनका जन्म वैशाख शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत् १५३० को मथुरा से 12 कि॰मी॰ दूर आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित ‘बाद’ ग्राम में हुआ था

श्रीहित हरिवंश महाप्रभु ने वृंदावन में साधना करते हुए हित रसोपासना में यमुनाष्टक, हित चौरासी, राधा सुधानिधि व स्फुट वाणियों की रचना की। आज राधाबल्लभ परंपरा को श्रीहित हरिवंश महाप्रभु द्वारा परंपरागत रूप से चलाई जा रही है।

द्वादस-यस ग्रंथ के रचयिता, स्वामी चर्तुरदासजी महाराज, थे। स्वामी जी मध्य प्रदेश के निवासी थे। प्राचीन, साहित्य, में उन्हे “गोंड देस तीर्थ कर्ता” छाप से विभुषित किया गया है

आज लगभग 40वर्ष वाद यह ग्रन्थ, पुनः रसिक, भक्तिमती-सेवक श्रीमती रतनीदेवी नवरंगलाल सूरजमलजी सिंघानिया द्वारा प्रकासित किया जा रहा हैं।  श्री नवरंगलाल सूरजमलजी सिंघानिया, सनातन धर्म, संस्कृति, के सच्चे पुजारी थे।

इस ग्रन्थ के सम्पादन मे श्रीवृन्दावन बिहारी, गोस्वामी, “निम्वार्क कोट” बाबा, राधेश्याम, एवं मुरार का पिन्टर्स ने अक्षरांकन करने मे विशेष सहयोग दिया।

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