जिन खोजा तिन पाइया/ Jin Khoja Tin Paiya

20.00

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.

श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा प्रणीत इस पुस्तकमें सब जिन खोजा तिन पाइया,सत् असत् का विवेक,भोग और योग, आदि बारह शीर्षकों के माध्यमसे साधना के गम्भीर रहस्यों का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

Description

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.

श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा प्रणीत इस पुस्तकमें सब जिन खोजा तिन पाइया,सत् असत् का विवेक,भोग और योग, आदि बारह शीर्षकों के माध्यमसे साधना के गम्भीर रहस्यों का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

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