उद्धार कैसे हो -परमार्थ पत्रावली भाग 1/ Uddhar Kaise ho?

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‘उद्धार कैसे हो? यह एक अत्यंत प्रेरणादायक, आध्यात्मिक तथा जीवन-मार्गदर्शक पुस्तक है, जिसकी रचना गीता प्रेस के संस्थापक और महान धर्मप्रचारक पूज्य श्री जयदयाल गोयन्दका जी ने की है। यह पुस्तक ‘परमार्थ-प्रबोधिनी’ नामक श्रृंखला का प्रथम भाग है, जिसका उद्देश्य है— जनसामान्य को सरल भाषा में आत्मोन्नति, मोक्ष-प्राप्ति और परम सत्य की ओर प्रेरित करना।

🧘‍♂️ विषयवस्तु:

इस पुस्तक में लेखक ने यह बताया है कि मानव जीवन केवल भोग-विलास, धन-संपत्ति और संसारिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के उद्धार के लिए है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जीवन में विवेक, वैराग्य, भक्ति और सत्संग का कितना महत्व है, इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

पुस्तक में प्रश्न उठाया गया है कि—

“हमारा उद्धार कैसे हो?
हम आत्मा हैं या शरीर?
क्या यह जीवन केवल खाने, सोने और भोगने के लिए है?”

लेखक इन प्रश्नों का उत्तर वेद, उपनिषद, गीता और संत वचनों के आलोक में देते हैं।

🔍 प्रमुख विषय:

  • आत्मा और शरीर का अंतर

  • जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का उपाय

  • सच्चा ज्ञान क्या है?

  • सच्चे धर्म और अधर्म की पहचान

  • भक्ति, ध्यान और सत्संग का महत्व

  • गुरुतत्त्व की आवश्यकता

  • शास्त्रों का महत्व और अध्ययन का लाभ

  • निष्काम कर्मयोग और भगवद्भक्ति की महिमा

✨ शैली और उद्देश्य:

श्री गोयन्दका जी की लेखनी अत्यंत सरल, मार्मिक और हृदयस्पर्शी है। वह दार्शनिक विषयों को भी इतनी सहजता से प्रस्तुत करते हैं कि एक सामान्य पाठक भी गहराई से समझ सके। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यही है कि पाठक आत्म-चिंतन की ओर प्रवृत्त हो और अपने जीवन की दिशा को परम लक्ष्य की ओर मोड़े।

👤 लेखक परिचय:

जयदयाल गोयन्दका जी (1889–1965) गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापक, महान धर्मनिष्ठ, भक्त, समाजसुधारक और आध्यात्मिक लेखक थे। उन्होंने अनेक श्रेष्ठ ग्रंथों की रचना की जिनमें गीता तत्त्व विचार, सत्संग सुधा, परमार्थ मार्गदर्शिका, और भागवत तत्त्व आदि प्रमुख हैं। उनका जीवन ही एक तपस्या और त्याग का आदर्श उदाहरण था। वे जन-जन को आत्मोद्धार का मार्ग दिखाने वाले युगद्रष्टा थे।


📚 यह पुस्तक किसके लिए उपयोगी है?

  • जो व्यक्ति आत्म-चिंतन और मोक्ष की खोज में हैं

  • जो शास्त्रों और भक्ति में रुचि रखते हैं

  • जो जीवन के सत्य उद्देश्य को जानना चाहते हैं

  • जो दुखों से मुक्त होकर शांति और आनंद की राह अपनाना चाहते हैं


“उद्धार कैसे हो?” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि यह जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में एक दिव्य मार्गदर्शन है।

Description

‘उद्धार कैसे हो? यह एक अत्यंत प्रेरणादायक, आध्यात्मिक तथा जीवन-मार्गदर्शक पुस्तक है, जिसकी रचना गीता प्रेस के संस्थापक और महान धर्मप्रचारक पूज्य श्री जयदयाल गोयन्दका जी ने की है। यह पुस्तक ‘परमार्थ-प्रबोधिनी’ नामक श्रृंखला का प्रथम भाग है, जिसका उद्देश्य है— जनसामान्य को सरल भाषा में आत्मोन्नति, मोक्ष-प्राप्ति और परम सत्य की ओर प्रेरित करना।

🧘‍♂️ विषयवस्तु:

इस पुस्तक में लेखक ने यह बताया है कि मानव जीवन केवल भोग-विलास, धन-संपत्ति और संसारिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के उद्धार के लिए है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जीवन में विवेक, वैराग्य, भक्ति और सत्संग का कितना महत्व है, इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

पुस्तक में प्रश्न उठाया गया है कि—

“हमारा उद्धार कैसे हो?
हम आत्मा हैं या शरीर?
क्या यह जीवन केवल खाने, सोने और भोगने के लिए है?”

लेखक इन प्रश्नों का उत्तर वेद, उपनिषद, गीता और संत वचनों के आलोक में देते हैं।

🔍 प्रमुख विषय:

  • आत्मा और शरीर का अंतर

  • जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का उपाय

  • सच्चा ज्ञान क्या है?

  • सच्चे धर्म और अधर्म की पहचान

  • भक्ति, ध्यान और सत्संग का महत्व

  • गुरुतत्त्व की आवश्यकता

  • शास्त्रों का महत्व और अध्ययन का लाभ

  • निष्काम कर्मयोग और भगवद्भक्ति की महिमा

✨ शैली और उद्देश्य:

श्री गोयन्दका जी की लेखनी अत्यंत सरल, मार्मिक और हृदयस्पर्शी है। वह दार्शनिक विषयों को भी इतनी सहजता से प्रस्तुत करते हैं कि एक सामान्य पाठक भी गहराई से समझ सके। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यही है कि पाठक आत्म-चिंतन की ओर प्रवृत्त हो और अपने जीवन की दिशा को परम लक्ष्य की ओर मोड़े।

👤 लेखक परिचय:

जयदयाल गोयन्दका जी (1889–1965) गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापक, महान धर्मनिष्ठ, भक्त, समाजसुधारक और आध्यात्मिक लेखक थे। उन्होंने अनेक श्रेष्ठ ग्रंथों की रचना की जिनमें गीता तत्त्व विचार, सत्संग सुधा, परमार्थ मार्गदर्शिका, और भागवत तत्त्व आदि प्रमुख हैं। उनका जीवन ही एक तपस्या और त्याग का आदर्श उदाहरण था। वे जन-जन को आत्मोद्धार का मार्ग दिखाने वाले युगद्रष्टा थे।


📚 यह पुस्तक किसके लिए उपयोगी है?

  • जो व्यक्ति आत्म-चिंतन और मोक्ष की खोज में हैं

  • जो शास्त्रों और भक्ति में रुचि रखते हैं

  • जो जीवन के सत्य उद्देश्य को जानना चाहते हैं

  • जो दुखों से मुक्त होकर शांति और आनंद की राह अपनाना चाहते हैं


“उद्धार कैसे हो?” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि यह जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में एक दिव्य मार्गदर्शन है।

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