अन्तरंग-वार्तालाप/ Antarang Vartalap

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अन्तरंग-वार्तालाप” एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें रस-सिद्ध संत श्रीभगवानप्रसादजी ‘पोषक’ के दुर्लभ पत्र, आत्मीय संवाद और रहस्यात्मक वार्तालापों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक किसी साधारण संवाद-संग्रह नहीं, बल्कि संत के हृदय में गूंजती हुई प्रभु-भक्ति की ध्वनि है, जो उनके प्रियजनों, शिष्यों एवं भक्तों के माध्यम से हम तक पहुँची है।

इस ग्रंथ का संकलन श्यामसुंदर दुजारी जी ने अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा से किया है, जिसमें भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमिका पुस्तक को विशेष गरिमा प्रदान करती है। भाईजी स्वयं एक महात्मा, लेखक, और गीताप्रेस के संस्थापक संपादक रहे हैं। उन्होंने ‘पोषक’ जी के अंतरंग भावों और उच्च आध्यात्मिक स्थिति की सराहना करते हुए इस संकलन को प्रत्येक साधक के लिए उपयोगी और प्रेरणास्पद बताया है।


🪔 मुख्य विशेषताएँ:

  1. श्री ‘पोषक’ जी के दुर्लभ पत्र:
    जिनमें वे अपने आत्मीय भक्तों से संवाद करते हैं — ये पत्र न केवल स्नेहपूर्ण होते हैं, बल्कि उनमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन, रसिकता और भगवद्भाव से ओतप्रोत बातें होती हैं।

  2. भावमयी वार्तालाप:
    यह वार्तालाप साधारण प्रश्नोत्तर नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य या आत्मीयों के बीच हृदय की बातें हैं — जिनमें भक्ति, वैराग्य, सेवा, विनय, और रस-तत्व जैसे विषय सहज रूप से प्रकट होते हैं।

  3. गूढ़ आध्यात्मिक संकेत:
    ‘पोषक’ जी के कथन अक्सर प्रतीकों में होते हैं — साधकों को उन संकेतों का मनन करना होता है, जिससे वे गहराई तक पहुँच सकें।

  4. रसिक मार्गदर्शन:
    श्रीराधा-कृष्ण की रसमयी उपासना में किस प्रकार प्रेम, विरह, लीनता और सेवा के भाव विकसित हों — इस पर गहन मार्गदर्शन।

  5. संत-वाणी का अद्भुत संग्रह:
    यह पुस्तक एक प्रकार से संत-विचारों का जीवंत संग्रहालय है, जहाँ पाठक सीधे संत के मनोभावों को महसूस कर सकते हैं।


🌸 पाठकों के लिए उपयोगिता:

  • यह पुस्तक उन साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अभ्यंतर साधना, अंतरंग भक्ति, और रस-संपन्न जीवन की खोज में हैं।

  • इसमें ऐसी बातें हैं जो न तो प्रवचनों में आती हैं, न ही सार्वजनिक सत्संगों में — बल्कि वे बातें हैं जो संत अपने अत्यंत प्रियजनों से गोपनीय रूप में करते हैं।

  • इसका पाठ मन को शांत, हृदय को भावमय, और चिंतन को गहरा बनाता है।


    “अन्तरंग-वार्तालाप” केवल पढ़ने योग्य नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है — जो संतों के सच्चे सान्निध्य की झलक देता है।

Description

अन्तरंग-वार्तालाप” एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें रस-सिद्ध संत श्रीभगवानप्रसादजी ‘पोषक’ के दुर्लभ पत्र, आत्मीय संवाद और रहस्यात्मक वार्तालापों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक किसी साधारण संवाद-संग्रह नहीं, बल्कि संत के हृदय में गूंजती हुई प्रभु-भक्ति की ध्वनि है, जो उनके प्रियजनों, शिष्यों एवं भक्तों के माध्यम से हम तक पहुँची है।

इस ग्रंथ का संकलन श्यामसुंदर दुजारी जी ने अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा से किया है, जिसमें भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमिका पुस्तक को विशेष गरिमा प्रदान करती है। भाईजी स्वयं एक महात्मा, लेखक, और गीताप्रेस के संस्थापक संपादक रहे हैं। उन्होंने ‘पोषक’ जी के अंतरंग भावों और उच्च आध्यात्मिक स्थिति की सराहना करते हुए इस संकलन को प्रत्येक साधक के लिए उपयोगी और प्रेरणास्पद बताया है।


🪔 मुख्य विशेषताएँ:

  1. श्री ‘पोषक’ जी के दुर्लभ पत्र:
    जिनमें वे अपने आत्मीय भक्तों से संवाद करते हैं — ये पत्र न केवल स्नेहपूर्ण होते हैं, बल्कि उनमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन, रसिकता और भगवद्भाव से ओतप्रोत बातें होती हैं।

  2. भावमयी वार्तालाप:
    यह वार्तालाप साधारण प्रश्नोत्तर नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य या आत्मीयों के बीच हृदय की बातें हैं — जिनमें भक्ति, वैराग्य, सेवा, विनय, और रस-तत्व जैसे विषय सहज रूप से प्रकट होते हैं।

  3. गूढ़ आध्यात्मिक संकेत:
    ‘पोषक’ जी के कथन अक्सर प्रतीकों में होते हैं — साधकों को उन संकेतों का मनन करना होता है, जिससे वे गहराई तक पहुँच सकें।

  4. रसिक मार्गदर्शन:
    श्रीराधा-कृष्ण की रसमयी उपासना में किस प्रकार प्रेम, विरह, लीनता और सेवा के भाव विकसित हों — इस पर गहन मार्गदर्शन।

  5. संत-वाणी का अद्भुत संग्रह:
    यह पुस्तक एक प्रकार से संत-विचारों का जीवंत संग्रहालय है, जहाँ पाठक सीधे संत के मनोभावों को महसूस कर सकते हैं।


🌸 पाठकों के लिए उपयोगिता:

  • यह पुस्तक उन साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अभ्यंतर साधना, अंतरंग भक्ति, और रस-संपन्न जीवन की खोज में हैं।

  • इसमें ऐसी बातें हैं जो न तो प्रवचनों में आती हैं, न ही सार्वजनिक सत्संगों में — बल्कि वे बातें हैं जो संत अपने अत्यंत प्रियजनों से गोपनीय रूप में करते हैं।

  • इसका पाठ मन को शांत, हृदय को भावमय, और चिंतन को गहरा बनाता है।


    “अन्तरंग-वार्तालाप” केवल पढ़ने योग्य नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है — जो संतों के सच्चे सान्निध्य की झलक देता है।

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