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अनन्य भक्ति कैसे प्राप्त हो (Ananya Bhakti Kaise Prapt Ho)
अनन्य भक्ति का अर्थ है – भगवान के प्रति एकनिष्ठ, अविचल और अखंड प्रेम एवं समर्पण। इसमें भक्ति का केन्द्र केवल भगवान होते हैं, और कोई दूसरा उद्देश्य, लाभ या आकांक्षा नहीं होती। यह भक्ति श्रीमद्भगवद्गीता, भागवत महापुराण, रामचरितमानस आदि में सर्वोत्तम बताई गई है।
यहाँ अनन्य भक्ति प्राप्त करने के उपाय और साधन दिए गए हैं:
1. श्रीभगवान में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें
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भगवान ही सबके आधार हैं, वही सब कुछ कर सकते हैं – यह दृढ़ विश्वास आवश्यक है।
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जैसे अर्जुन ने गीता में कहा – “कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्”, वैसे ही हमें भी भगवान को ही अपना मार्गदर्शक मानना होगा।
2. एकनिष्ठता (एक ही ईश्वर में मन लगाना)
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किसी भी अन्य देवता, शक्ति या सांसारिक पदार्थ में आश्रय न लेना।
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केवल श्रीकृष्ण, श्रीराम या अपने आराध्य को ही समर्पित रहना – यही “अनन्यता” है।
3. सत्संग करना और भगवत्कथा श्रवण
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संतों की संगति में रहने से भक्ति का बीज पुष्पित होता है।
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भागवत, रामायण, गीता जैसे ग्रंथों का नियमित अध्ययन और श्रवण करें।
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Weight | 0.2 g |
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