लघुसिद्धान्तकौमुदी/ Laghu siddhant Kaumudi

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लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय संस्कृत व्याकरण की परम्परागत प्रवेशिका है। यह विद्वन्मान्य वरदराज की रचना है जो भट्टोजि दीक्षित के शिष्य थे। उनका एक व्याकरण ग्रन्थ मध्यसिद्धान्तकौमुदी भी है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में पाणिनि के सूत्रों को एक नए क्रम में रखा गया है ताकि एक विषय से सम्बन्धित सूत्र एक साथ रहें।

संस्कृत के विद्यार्थियों के लिये विशेष उपयोगी इस पुस्तक में टिप्पणी के द्वारा कठिन सूत्रों का अर्थ सरल संस्कृत में देकर उदाहृत पदों में उनका समन्वय दिखाया गया है। प्रत्येक प्रकरण के कठिन पदों का संस्कृत में साधन दिया गया है और उदाहरण में आये हुए प्रत्येक पदों का अर्थ भी दिया गया है। कारक, भावकर्म, कर्मकर्तृ आदि गम्भीर प्रकरणों का मर्म सरलता से समझाया गया है एवं कृदन्त शब्दों के मूल धातुओं का परिचय कराया गया है। विभिन्न दृष्टियों से यह पुस्तक संस्कृत के अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों के लिये विशेष उपयोगी है।

Description

लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय संस्कृत व्याकरण की परम्परागत प्रवेशिका है। यह विद्वन्मान्य वरदराज की रचना है जो भट्टोजि दीक्षित के शिष्य थे। उनका एक व्याकरण ग्रन्थ मध्यसिद्धान्तकौमुदी भी है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में पाणिनि के सूत्रों को एक नए क्रम में रखा गया है ताकि एक विषय से सम्बन्धित सूत्र एक साथ रहें।

संस्कृत के विद्यार्थियों के लिये विशेष उपयोगी इस पुस्तक में टिप्पणी के द्वारा कठिन सूत्रों का अर्थ सरल संस्कृत में देकर उदाहृत पदों में उनका समन्वय दिखाया गया है। प्रत्येक प्रकरण के कठिन पदों का संस्कृत में साधन दिया गया है और उदाहरण में आये हुए प्रत्येक पदों का अर्थ भी दिया गया है। कारक, भावकर्म, कर्मकर्तृ आदि गम्भीर प्रकरणों का मर्म सरलता से समझाया गया है एवं कृदन्त शब्दों के मूल धातुओं का परिचय कराया गया है। विभिन्न दृष्टियों से यह पुस्तक संस्कृत के अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों के लिये विशेष उपयोगी है।

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