प्रेम के वश में भगवान/ Prem ke Bash me Bhagwan

25.00

भक्त की जैसी भावना होती है, ईश्वर की अनुभूति उसी रुपमें होती है। बस हृदय में निष्काम होना चाहिए, तो भगवान भक्त की पुकार को सुन लेते है।

केवट जैसे भक्त ने सेवकाई से भगवान को वश में कर लिया था। भगवान भक्त केवट की बात सुनकर निरूत्तर हो गए। लेकिन, उसकी विवशता से अपना राज खोल दिए और बोले कि भोले शंकर से यह बचपन में सीखा। भवसागर पार उतरने का इससे सहज व सरल सूत्र कुछ हो नहीं सकता है। भगवान की कृपा पाने के लिए संगीत को सबसे सुगम माध्यम बताया। महाराज ने कहा कि प्रेम में नृत्य, गीत व वादन का आनंद सत्य, सुखद व शाश्वत है। केवट प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति का हृदय में जब वास हो जाए तो घर भी सुधर जाए और जीवन का हर घाट भी संवर जाए। उन्होंने कहा कि नारायण का पांव ब्रह्मा, जनक व केवट ने पखारा। नारायण का पांव बालि, अहिल्या व कालिया नाग के माथे पर पड़ा, लेकिन नारायण के हाथ केवल केवट के माथ पर पड़े। केवट के प्रेम व अनुराग को उच्च कोटि का बताते हुए कहा कि तभी तो भक्त भगवान के समतुल्य हो जाता है।

ईश्वर को गज की पुकार पर उसकी रक्षा के लिए आना पडा।  ईश्वर तो सबके हृदय में विराजमान है। बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए। यह दृष्टि हमें मन की भावना देती है। आध्यात्मिक वातावरण से विकार दूर होते है और मनुष्य अपने मूल स्वरूप में आ जाता है।

Description

भक्त की जैसी भावना होती है, ईश्वर की अनुभूति उसी रुपमें होती है। बस हृदय में निष्काम होना चाहिए, तो भगवान भक्त की पुकार को सुन लेते है।

केवट जैसे भक्त ने सेवकाई से भगवान को वश में कर लिया था। भगवान भक्त केवट की बात सुनकर निरूत्तर हो गए। लेकिन, उसकी विवशता से अपना राज खोल दिए और बोले कि भोले शंकर से यह बचपन में सीखा। भवसागर पार उतरने का इससे सहज व सरल सूत्र कुछ हो नहीं सकता है। भगवान की कृपा पाने के लिए संगीत को सबसे सुगम माध्यम बताया। महाराज ने कहा कि प्रेम में नृत्य, गीत व वादन का आनंद सत्य, सुखद व शाश्वत है। केवट प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति का हृदय में जब वास हो जाए तो घर भी सुधर जाए और जीवन का हर घाट भी संवर जाए। उन्होंने कहा कि नारायण का पांव ब्रह्मा, जनक व केवट ने पखारा। नारायण का पांव बालि, अहिल्या व कालिया नाग के माथे पर पड़ा, लेकिन नारायण के हाथ केवल केवट के माथ पर पड़े। केवट के प्रेम व अनुराग को उच्च कोटि का बताते हुए कहा कि तभी तो भक्त भगवान के समतुल्य हो जाता है।

ईश्वर को गज की पुकार पर उसकी रक्षा के लिए आना पडा।  ईश्वर तो सबके हृदय में विराजमान है। बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए। यह दृष्टि हमें मन की भावना देती है। आध्यात्मिक वातावरण से विकार दूर होते है और मनुष्य अपने मूल स्वरूप में आ जाता है।

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