प्रश्नोत्तरमणिमाला/ Prashnottarmanimala

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प्रश्नोत्तरमणिमाला एक अद्भुत आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें जीवन, धर्म, आचरण, भक्ति, ज्ञान, मोक्ष, संसार और ईश्वर से संबंधित गूढ़ विषयों को प्रश्नोत्तर शैली में सरल एवं सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि जिज्ञासु पाठकों के मन में उत्पन्न होने वाले सामान्य से लेकर गहरे आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर संत स्वामी रामसुखदासजी ने शास्त्रसम्मत, तर्कयुक्त तथा अनुभवसिद्ध ढंग से दिए हैं।


🪔 प्रमुख विषयवस्तु और प्रश्नों के प्रकार:

  • जीवन का उद्देश्य क्या है?

  • आत्मा और शरीर में क्या अंतर है?

  • माया क्या है? इसकी पकड़ से कैसे छूटें?

  • भगवान को कैसे जानें और पाएं?

  • कर्म और अकर्म का वास्तविक ज्ञान क्या है?

  • भक्ति, ज्ञान और योग में श्रेष्ठ क्या है?

  • सच्चा साधक कौन होता है?

  • वैराग्य कैसे प्राप्त हो?

  • मुक्ति का स्वरूप क्या है?

  • क्या गृहस्थ जीवन में रहते हुए मोक्ष संभव है?

  • अहंकार का शमन कैसे हो?

  • शास्त्र का क्या महत्व है?

  • गुरु की आवश्यकता क्यों है?

इन जैसे सैकड़ों गूढ़ प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी ने अत्यंत सूक्ष्मता, गहराई और सरलता से दिए हैं। कहीं पर वे वेदांत की ऊँचाई पर ले जाते हैं, तो कहीं भक्तियोग की मधुरता में भीगा हुआ समाधान देते हैं।


🌿 शैली और भाषा:

स्वामी रामसुखदास जी की शैली अत्यंत सहज, संवादात्मक और हृदयस्पर्शी है। वे कठोर शास्त्रीय भाषा का प्रयोग नहीं करते, बल्कि आमजन की भाषा में अत्यंत ऊँचे आध्यात्मिक सत्य कह जाते हैं। उनकी भाषा में न तो दिखावा है, न शुष्क तर्क। वह पूरी तरह अनुभूतिजन्य, शास्त्रप्रमाणित और सच्चे साधक के अनुभवों से संचित होती है।


🧘‍♀️ पाठक को क्या लाभ मिलेगा?

  • यह पुस्तक आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने वाली है।

  • आत्मा, परमात्मा और संसार के रहस्यों को स्पष्ट करती है।

  • मानसिक शांति, वैराग्य, साधना और आत्मचिंतन की दिशा देती है।

  • जो गीता, उपनिषद, या वेदांत से जुड़े गूढ़ विषय नहीं समझ पाते, उनके लिए यह पुस्तक एक सरल प्रवेश द्वार है।

  • गृहस्थ, साधक, छात्र, वृद्ध – हर वर्ग के पाठक इससे लाभान्वित हो सकते हैं।


📜 उदाहरण रूप में एक प्रश्न:

प्रश्न: “भगवान तो सर्वत्र हैं, फिर हम उन्हें देख क्यों नहीं पाते?”
उत्तर: “सूर्य सामने है, पर यदि आंख पर पट्टी बंधी हो तो वह दिखाई नहीं देता। वैसे ही भगवान तो हमारे अंतःकरण में ही हैं, पर माया की पट्टी हमारी दृष्टि को ढक देती है। जब यह पट्टी हटेगी, तो भगवान के दर्शन स्वतः होंगे।”


🔚 निष्कर्ष:

“प्रश्नोत्तरमणिमाला” एक मणिमाला की तरह है – हर प्रश्न एक चमकता हुआ मोती है और हर उत्तर एक ज्ञानमयी रत्न। यह न केवल जिज्ञासाओं का समाधान करती है, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला एक गहरा साधन बनती है। यह पुस्तक पढ़ने मात्र से ही वैराग्य, भक्ति और आत्मबोध का बीज अंकुरित होता है।

Description

प्रश्नोत्तरमणिमाला एक अद्भुत आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें जीवन, धर्म, आचरण, भक्ति, ज्ञान, मोक्ष, संसार और ईश्वर से संबंधित गूढ़ विषयों को प्रश्नोत्तर शैली में सरल एवं सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि जिज्ञासु पाठकों के मन में उत्पन्न होने वाले सामान्य से लेकर गहरे आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर संत स्वामी रामसुखदासजी ने शास्त्रसम्मत, तर्कयुक्त तथा अनुभवसिद्ध ढंग से दिए हैं।


🪔 प्रमुख विषयवस्तु और प्रश्नों के प्रकार:

  • जीवन का उद्देश्य क्या है?

  • आत्मा और शरीर में क्या अंतर है?

  • माया क्या है? इसकी पकड़ से कैसे छूटें?

  • भगवान को कैसे जानें और पाएं?

  • कर्म और अकर्म का वास्तविक ज्ञान क्या है?

  • भक्ति, ज्ञान और योग में श्रेष्ठ क्या है?

  • सच्चा साधक कौन होता है?

  • वैराग्य कैसे प्राप्त हो?

  • मुक्ति का स्वरूप क्या है?

  • क्या गृहस्थ जीवन में रहते हुए मोक्ष संभव है?

  • अहंकार का शमन कैसे हो?

  • शास्त्र का क्या महत्व है?

  • गुरु की आवश्यकता क्यों है?

इन जैसे सैकड़ों गूढ़ प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी ने अत्यंत सूक्ष्मता, गहराई और सरलता से दिए हैं। कहीं पर वे वेदांत की ऊँचाई पर ले जाते हैं, तो कहीं भक्तियोग की मधुरता में भीगा हुआ समाधान देते हैं।


🌿 शैली और भाषा:

स्वामी रामसुखदास जी की शैली अत्यंत सहज, संवादात्मक और हृदयस्पर्शी है। वे कठोर शास्त्रीय भाषा का प्रयोग नहीं करते, बल्कि आमजन की भाषा में अत्यंत ऊँचे आध्यात्मिक सत्य कह जाते हैं। उनकी भाषा में न तो दिखावा है, न शुष्क तर्क। वह पूरी तरह अनुभूतिजन्य, शास्त्रप्रमाणित और सच्चे साधक के अनुभवों से संचित होती है।


🧘‍♀️ पाठक को क्या लाभ मिलेगा?

  • यह पुस्तक आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने वाली है।

  • आत्मा, परमात्मा और संसार के रहस्यों को स्पष्ट करती है।

  • मानसिक शांति, वैराग्य, साधना और आत्मचिंतन की दिशा देती है।

  • जो गीता, उपनिषद, या वेदांत से जुड़े गूढ़ विषय नहीं समझ पाते, उनके लिए यह पुस्तक एक सरल प्रवेश द्वार है।

  • गृहस्थ, साधक, छात्र, वृद्ध – हर वर्ग के पाठक इससे लाभान्वित हो सकते हैं।


📜 उदाहरण रूप में एक प्रश्न:

प्रश्न: “भगवान तो सर्वत्र हैं, फिर हम उन्हें देख क्यों नहीं पाते?”
उत्तर: “सूर्य सामने है, पर यदि आंख पर पट्टी बंधी हो तो वह दिखाई नहीं देता। वैसे ही भगवान तो हमारे अंतःकरण में ही हैं, पर माया की पट्टी हमारी दृष्टि को ढक देती है। जब यह पट्टी हटेगी, तो भगवान के दर्शन स्वतः होंगे।”


🔚 निष्कर्ष:

“प्रश्नोत्तरमणिमाला” एक मणिमाला की तरह है – हर प्रश्न एक चमकता हुआ मोती है और हर उत्तर एक ज्ञानमयी रत्न। यह न केवल जिज्ञासाओं का समाधान करती है, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला एक गहरा साधन बनती है। यह पुस्तक पढ़ने मात्र से ही वैराग्य, भक्ति और आत्मबोध का बीज अंकुरित होता है।

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