केलि-कुन्ज/ Keli Kunj

250.00

इस संग्रह में संकलित लीलाएँ पूज्य श्रीराधाबाबा का कृपा-प्रसाद है| पूज्य श्रीभाईजी हनुमानप्रसादजी पोद्दार के अनुरोध पर व्रजभाव के एक भावुक भक्त के लिए श्रीराधाबाबा ने स्वानुभूत लीलाओं को लिपिबद्ध किया था|सत्त्व-रज-ताम की छाया से विरहित निर्ग्रन्थ संत के मानस पटल पर ही दिव्य वृन्दावन अवतरित हुआ करता है| भोग की स्प्रहा से , यहाँ तक की मोक्ष की कामना से सर्वथा शून्य संत के त्रिगुणातीत महाशुद्ध सत्त्वमय मानस की ही परिणिति हो जाती है दिव्य वृन्दावन के रूप में, जो बन जाता है लिलाध्म अद्भुत-से-अद्भुत उत्तम-से-उत्तम  मधुर-से-मधुर भागवत लीलाओं का | मूलत: योजना थी 38 लीलाओं को लिपिबद्ध करने की| परन्तु लीलाओं की अतिदिव्य और गुह्य भाव अवस्था के कारण इसमें 29 लीलाओं को प्रकाशित किया गया है |

Description

इस संग्रह में संकलित लीलाएँ पूज्य श्रीराधाबाबा का कृपा-प्रसाद है| पूज्य श्रीभाईजी हनुमानप्रसादजी पोद्दार के अनुरोध पर व्रजभाव के एक भावुक भक्त के लिए श्रीराधाबाबा ने स्वानुभूत लीलाओं को लिपिबद्ध किया था|सत्त्व-रज-ताम की छाया से विरहित निर्ग्रन्थ संत के मानस पटल पर ही दिव्य वृन्दावन अवतरित हुआ करता है| भोग की स्प्रहा से , यहाँ तक की मोक्ष की कामना से सर्वथा शून्य संत के त्रिगुणातीत महाशुद्ध सत्त्वमय मानस की ही परिणिति हो जाती है दिव्य वृन्दावन के रूप में, जो बन जाता है लिलाध्म अद्भुत-से-अद्भुत उत्तम-से-उत्तम  मधुर-से-मधुर भागवत लीलाओं का | मूलत: योजना थी 38 लीलाओं को लिपिबद्ध करने की| परन्तु लीलाओं की अतिदिव्य और गुह्य भाव अवस्था के कारण इसमें 29 लीलाओं को प्रकाशित किया गया है |

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