ईश्वर और संसार(तत्वचिन्तामणि)? Ishwar our sansar (Tatva Chintamani)

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ईश्वर प्राणियों के जन्म-मरण व कर्मफल सिद्धान्त है। वेदों से हमें यह विदित होता है कि संसार में ईश्वर, जीव और प्रकृति यह तीन पदार्थ अनादि व नित्य हैं। जीवात्मा अल्पज्ञ, एकदेशी, सूक्ष्म, अल्प शक्तिमान, जन्ममरणधर्मा, कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतन्त्र है।

वेद के अनुसार व्यक्ति के भीतर पुरुष ईश्वर ही है। परमेश्वर एक ही है। वैदिक और पाश्चात्य मतों में परमेश्वर की अवधारणा में यह गहरा अन्तर है कि वेद के अनुसार ईश्वर भीतर और परे दोनों है जबकि पाश्चात्य धर्मों के अनुसार ईश्वर केवल परे है। ईश्वर परब्रह्म का सगुण रूप है।  

इस पुस्तक की उपादेयताके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा रचित तत्त्व चिन्तामणि नामक पुस्तक की   एक किरण है । 

Description

ईश्वर प्राणियों के जन्म-मरण व कर्मफल सिद्धान्त है। वेदों से हमें यह विदित होता है कि संसार में ईश्वर, जीव और प्रकृति यह तीन पदार्थ अनादि व नित्य हैं। जीवात्मा अल्पज्ञ, एकदेशी, सूक्ष्म, अल्प शक्तिमान, जन्ममरणधर्मा, कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतन्त्र है।

वेद के अनुसार व्यक्ति के भीतर पुरुष ईश्वर ही है। परमेश्वर एक ही है। वैदिक और पाश्चात्य मतों में परमेश्वर की अवधारणा में यह गहरा अन्तर है कि वेद के अनुसार ईश्वर भीतर और परे दोनों है जबकि पाश्चात्य धर्मों के अनुसार ईश्वर केवल परे है। ईश्वर परब्रह्म का सगुण रूप है।  

इस पुस्तक की उपादेयताके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा रचित तत्त्व चिन्तामणि नामक पुस्तक की   एक किरण है । 

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