• वाक्यवृत्ति तथा लघुवाक्यवृत्तिः   (Vakya-Vritti tatha Laghu-Vakya-Vrittih)

    1.  (Vakya-Vritti)
    वाक्यवृत्ति आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें अद्वैत वेदांत के प्रमुख सिद्धांतों का सरल व्याख्या के माध्यम से वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ "तत्त्वमसि" महावाक्य की व्याख्या करता है और जीव-ब्रह्म ऐक्य (जीव और ब्रह्म की एकता) को विस्तार से समझाने का कार्य करता है। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से वेदांत के सिद्धांतों को गुरु-शिष्य संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति इसे सरलता से समझ सके।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • अद्वैत वेदांत का सरल और स्पष्ट विवेचन

    • "तत्त्वमसि" (तू ही ब्रह्म है) महावाक्य का विस्तारपूर्वक विश्लेषण

    • जीव और ब्रह्म के अद्वैत (अभिन्नता) की व्याख्या

    • आत्मा और परमात्मा की एकता को समझाने का प्रयास

    2. लघुवाक्यवृत्ति (Laghu-Vakya-Vritti)
    लघुवाक्यवृत्ति भी वेदांत के प्रमुख सिद्धांतों को सरल भाषा में समझाने वाला एक छोटा ग्रंथ है। यह मूल वाक्यवृत्ति से छोटा है और अधिक संक्षिप्त शैली में अद्वैत वेदांत के मुख्य विचारों को प्रस्तुत करता है। इसमें वेदांत के चार महावाक्यों में से किसी एक की व्याख्या दी जाती है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति वेदांत के सार को आसानी से ग्रहण कर सके।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • वाक्यवृत्ति का संक्षिप्त रूप

    • अद्वैत वेदांत का संक्षिप्त और सारगर्भित वर्णन

    • महावाक्य की व्याख्या का सरल और सुबोध रूप

    महत्व:
    दोनों ग्रंथ वेदांत अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और वेदांत दर्शन के गंभीर साधकों के लिए अद्वैत सिद्धांत को समझने में सहायक हैं

  • 📖 पुस्तक: "वर्तमान भारत" – स्वामी विवेकानंद

    "वर्तमान भारत" (Vartaman Bharat) स्वामी विवेकानंद द्वारा 1899 में लिखी गई एक प्रभावशाली पुस्तक है, जिसमें उन्होंने भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थिति का विश्लेषण किया है। यह पुस्तक भारत के गौरवशाली अतीत, उसके पतन के कारणों और पुनर्जागरण के उपायों पर प्रकाश डालती है।

     पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    1. भारत का गौरवशाली अतीत और पतन के कारण

    • स्वामी विवेकानंद बताते हैं कि प्राचीन भारत ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिकता का केंद्र था
    • लेकिन विदेशी आक्रमणों, सामाजिक बंधनों, अज्ञानता और आत्मसम्मान की कमी के कारण देश का पतन हुआ।

    2. भारत के पुनर्निर्माण में युवाओं की भूमिका

    • विवेकानंद जी कहते हैं कि भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव युवा शक्ति पर टिकी है
    • वे युवाओं से साहसी, आत्मनिर्भर और समाज के उत्थान के लिए समर्पित होने का आह्वान करते हैं।

    3. शिक्षा ही असली शक्ति है

    • वे उस शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हैं, जो केवल अंग्रेजी संस्कृति को बढ़ावा देती थी लेकिन भारत के मूल्यों को नजरअंदाज करती थी।
    • उन्होंने ऐसी शिक्षा का समर्थन किया जो आत्मनिर्भरता, चरित्र निर्माण और सेवा भाव को बढ़ावा दे।

    4. भारत की शक्ति आध्यात्मिकता में है

    • स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि भारत की आत्मा आध्यात्मिकता में बसती है, और यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
    • वे इस बात पर जोर देते हैं कि भारत को आधुनिक विज्ञान और प्राचीन वेदांत ज्ञान को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

    5. सामाजिक सुधारों की आवश्यकता

    • उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया।
    • वे मानते थे कि जब तक समाज के निचले तबके को ऊपर नहीं उठाया जाएगा, तब तक भारत सशक्त नहीं बन सकता
  • वचनामृत के आलोक में श्रीरामकृष्ण

    (विवरण)

    यह पुस्तक या लेख वचनामृत (The Gospel of Sri Ramakrishna) के माध्यम से श्रीरामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और उनके आध्यात्मिक जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। वचनामृत, जिसे महेंद्रनाथ गुप्त (M.) ने लिपिबद्ध किया, श्रीरामकृष्ण के साथ हुए संवादों और उनके द्वारा कहे गए दिव्य वचनों का संकलन है।

    इस ग्रंथ में प्रस्तुत श्रीरामकृष्ण के उपदेश अद्वैत वेदांत, भक्तियोग, कर्मयोग और तंत्र की परंपराओं का समन्वय करते हैं। "वचनामृत के आलोक में श्रीरामकृष्ण" शीर्षक से लिखा गया यह कार्य उन शिक्षाओं को एक गहरे विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करता है जो आज भी साधकों के लिए मार्गदर्शक हैं।

    इस पुस्तक में निम्नलिखित विषयों को उजागर किया गया है:

    • श्रीरामकृष्ण का सहज धर्म और सरल भाषा में गूढ़ ज्ञान

    • विभिन्न धर्मों की एकता की उनकी अनुभूति

    • गुरु-शिष्य संबंध की पराकाष्ठा

    • आत्मसाक्षात्कार और भक्ति की व्यावहारिक विधियाँ

    • उनके जीवन और व्यवहार में धार्मिकता का जीवंत रूप

    यह ग्रंथ न केवल उनके उपदेशों की व्याख्या करता है, बल्कि आधुनिक पाठकों के लिए उन्हें प्रासंगिक और उपयोगी भी बनाता है।

  • "लक्ष्य अब दूर नहीं!" पुस्तक, पूज्य स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज के गहन, सरल और हृदयस्पर्शी प्रवचनों का सार-संग्रह है। यह पुस्तक पाठकों को आत्म-उन्नयन, भगवद्भक्ति और जीवन के परम लक्ष्य—मोक्ष की ओर प्रेरित करती है।

    इस पुस्तक में स्वामीजी ने यह स्पष्ट किया है कि जीवन का लक्ष्य कोई दूर की बात नहीं है, बल्कि एक सहज, सरल एवं निकट उपलब्ध अनुभव है — बशर्ते मनुष्य उसे पाने का दृढ़ निश्चय कर ले।

    स्वामीजी के प्रवचनों की विशेषता यह है कि वे व्यवहारिक जीवन की समस्याओं को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं और आम जन के लिए भी गूढ़ विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं। यह पुस्तक उसी शैली का सजीव उदाहर

    मुख्य विषयवस्तु:

    • जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है?

    • आत्मज्ञान और ईश्वरप्राप्ति के सरल मार्ग

    • संसार में रहते हुए वैराग्य की भावना

    • भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का महत्व

    • आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाली साधनाएँ


      🌿 पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

      1. जीवन के लक्ष्य की स्पष्टता:
        स्वामीजी समझाते हैं कि हमारा जीवन केवल सांसारिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका एक परम लक्ष्य है — आत्मसाक्षात्कार और ईश्वरप्राप्ति। यह लक्ष्य कोई दूर या कठिन नहीं, बल्कि हमारे निकट ही है।

      2. आध्यात्मिक मार्ग का सरल विवेचन:
        इस पुस्तक में यह बताया गया है कि केवल विद्वानों या संन्यासियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर साधारण गृहस्थ के लिए भी ईश्वर प्राप्ति संभव है — केवल श्रद्धा, प्रेम और समर्पण चाहिए।

      3. व्यवहारिक जीवन से जुड़ी सीख:
        सांसारिक कर्तव्यों में रमे हुए व्यक्ति भी आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं — यही इस पुस्तक की मूल प्रेरणा है। यह "त्यागो नहीं, योग करो" की भावना को उजागर करती है।

      4. सारगर्भित भाषा, सरल शैली:
        स्वामीजी के प्रवचन कठिन संस्कृत या दार्शनिक भाषा में नहीं हैं, बल्कि वे आमजन की भाषा में इतने सहज और प्रभावशाली हैं कि पाठक को ऐसा लगेगा जैसे गुरु साक्षात सामने बैठकर उपदेश दे रहे हों।


      🧘‍♂️ प्रेरणादायक विषयवस्तु:

      • आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध

      • स्वधर्म, परोपकार और साधना

      • मन, बुद्धि और अहंकार का शमन

      • नाम-स्मरण, सत्संग और ध्यान की महिमा

      • संसार में रहकर भी विरक्ति का भाव

      • कर्तव्य पालन के साथ आध्यात्मिक जागरण


      📚 पाठकों के लिए उपयोगिता:

      • आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को दिशा प्रदान करती है

      • गृहस्थ जीवन में संतुलन और साधना सिखाती है

      • मानसिक शांति और आत्मबल को बढ़ाती है

      • परमात्मा की ओर यात्रा को सरल बनाती है

      • जीवन की उलझनों में स्पष्टता और समाधान देती है


      🪔 उपसंहार:

      "लक्ष्य अब दूर नहीं!" केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि यह आत्मा की जागृति और परमात्मा की ओर बढ़ते पगों की पुकार है। स्वामी श्रीरामसुखदास जी के अमृतवाणी स्वरूप ये वाक्य जीवन की अंधकारमयी राह में दीपक का कार्य करते हैं। यह पुस्तक बार-बार पढ़ने योग्य है, क्योंकि हर बार यह कुछ नया उद्घाटित करती है।

  • स्वामी विवेकानंद द्वारा 'रामायण' पुस्तक के बारे में

    स्वामी विवेकानंद ने "रामायण" नामक कोई स्वतंत्र पुस्तक नहीं लिखी, लेकिन उन्होंने रामायण, भगवान राम, और उनके जीवन मूल्यों पर अपने भाषणों और लेखों में गहन चर्चा की है। उनके विचार "स्वामी विवेकानंद संपूर्ण रचनाएं", "कोलंबो से अल्मोड़ा तक प्रवचन", और "प्रैक्टिकल वेदांत" जैसी पुस्तकों में संकलित हैं।

    📖 स्वामी विवेकानंद के विचारों में रामायण

    1. भगवान राम का आदर्श चरित्र

    • स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं—यानी आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श मित्र।
    • उन्होंने राम को कर्तव्य, सत्य, और धर्म का प्रतीक माना, जो हर इंसान को जीवन में अनुशासन और त्याग का पाठ पढ़ाते हैं।

    2. माता सीता – आदर्श नारी का प्रतीक

    • स्वामी विवेकानंद ने माता सीता को शक्ति, धैर्य और पवित्रता की मूर्ति बताया।
    • वे उनके त्याग और सहनशीलता की सराहना करते थे और महिलाओं के लिए उन्हें प्रेरणा स्रोत मानते थे।

    3. हनुमान – पूर्ण समर्पण और शक्ति का प्रतीक

    • वे हनुमान जी को भक्ति, साहस और शक्ति का आदर्श मानते थे।
    • उन्होंने युवाओं को हनुमान की तरह दृढ़ निश्चयी, निडर और सेवा भावी बनने की प्रेरणा दी।

    4. रामायण – एक जीवन दर्शन

    • विवेकानंद के अनुसार, रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन पथ प्रदर्शक है
    • इसमें कर्तव्य, आदर्श, बलिदान, और समाज सेवा के सर्वोच्च आदर्श सिखाए गए हैं।
  • श्री रामनाम संकीर्तनम् एक भक्ति गीत या स्तोत्र है जिसमें भगवान श्रीराम के नाम का गुणगान किया जाता है। इसका मूल उद्देश्य भक्तों को भगवान राम के नाम के जाप और उनके गुणों की महिमा गाने के लिए प्रेरित करना होता है। यह संकीर्तन आमतौर पर भजन मंडलियों, सत्संगों और धार्मिक समारोहों में सामूहिक रूप से गाया जाता है।

    श्री रामनाम संकीर्तनम्

    नाम: श्री रामनाम संकीर्तनम्
    भाषा: संस्कृत/हिंदी
    विषय: भगवान श्रीराम का नामस्मरण और महिमा
    स्वरूप: सामूहिक गायन (भजन/कीर्तन)
    मुख्य उद्देश्य: भगवान राम के नाम की महिमा का गान और भक्तों में भक्ति भावना का संचार।

    संकीर्तनम् का भावार्थ:

    •  समें "राम राम" नाम का बारंबार उच्चारण किया जाता है।

    •  राम नाम को "मोक्षदायक", "पापहारक" और "शुद्ध करने वाला" बताया जाता है।

    • इसमें यह कहा गया है कि राम का नाम स्वयं भगवान राम से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि नाम तो सब जगह पहुँचता है – मन, वाणी और हृदय में।

    • यह संकीर्तन साधकों के मन को एकाग्र करता है और आत्मिक शांति देता है।

    उदाहरण स्वरूप एक श्लोक:

    राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।
    सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥

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    रामकृष्ण की जीवनी/ Ramakrishna Ki Jivani

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  • राजयोग - स्वामी विवेकानंद

    परिचय:
    "राजयोग" स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित एक महान ग्रंथ है, जिसमें योग के सर्वोच्च रूप, राजयोग का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ पतंजलि के योगसूत्रों पर आधारित है और ध्यान, मानसिक एकाग्रता तथा आत्म-साक्षात्कार की गूढ़ विधियों को सरल भाषा में समझाता है।

    विषय-वस्तु:
    स्वामी विवेकानंद इस पुस्तक में योग के विभिन्न अंगों, विशेष रूप से राजयोग, के महत्व को स्पष्ट करते हैं। इसमें ध्यान (मेडिटेशन), प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि के विषय में विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक आत्म-विकास, आत्म-नियंत्रण और मानसिक शक्ति को जागृत करने की विधियाँ सिखाती है।

    मुख्य बिंदु:

    • राजयोग क्या है और इसका उद्देश्य

    • ध्यान और आत्म-साक्षात्कार का महत्व

    • मन की शक्ति और उसे नियंत्रित करने के उपाय

    • आध्यात्मिक जागरूकता और आत्म-उन्नति के मार्ग

    महत्व:
    यह पुस्तक उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो मानसिक शांति, आत्म-साक्षात्कार और ध्यान की गहराइयों को समझना चाहते हैं। स्वामी विवेकानंद ने इसे वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, जिससे हर व्यक्ति इसे अपने जीवन में लागू कर सकता है।

    निष्कर्ष:
    "राजयोग" केवल एक पुस्तक नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक मार्गदर्शिका है, जो योग और ध्यान के माध्यम से मनुष्य को आत्म-जागरण की ओर ले जाती है। यह आत्म-विकास और मानसिक शांति के पथ पर अग्रसर होने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक ग्रंथ है।

  • "रहस्यमय प्रवचन" पुस्तक भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अनमोल ग्रंथ है, जिसकी रचना प्रसिद्ध धार्मिक चिंतक और लेखक श्री जयदयाल गोयंदका ने की है। यह पुस्तक उन गूढ़ और गहन रहस्यों का विश्लेषण करती है, जिन्हें सामान्य जनमानस अक्सर समझ नहीं पाता, परंतु जिनकी जानकारी आत्मिक उन्नयन के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।

    पुस्तक का उद्देश्य है — पाठक को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक पहुँचाने हेतु जीवन, आत्मा, परमात्मा, माया, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष और भक्ति जैसे विषयों का स्पष्ट एवं रहस्यमय रूप से विवेचन करना। इसमें वर्णित प्रवचन न केवल तात्त्विक हैं, बल्कि आत्मा की अंतर्यात्रा के साक्षी भी हैं।


    मुख्य विषयवस्तु:

    1. शिव-तत्त्व की व्याख्या:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर शिवजी का चित्र यह संकेत करता है कि इसमें शिव के स्वरूप, उनके प्रतीकों (त्रिनेत्र, नाग, चंद्र, गंगा, जटाएं आदि) का रहस्यात्मक और दार्शनिक विश्लेषण है। लेखक शिव को केवल एक देव नहीं, अपितु 'अविनाशी चैतन्य' के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

    2. आत्मा और परमात्मा का संबंध:
      आत्मा क्या है? वह शरीर से भिन्न कैसे है? परमात्मा से उसका क्या संबंध है? इस पुस्तक में इन प्रश्नों का उत्तर शास्त्रीय प्रमाणों, उपनिषदों और भगवद्गीता के माध्यम से दिया गया है।

    3. माया और मोह का जाल:
      संसार क्यों इतना मोहक प्रतीत होता है? मनुष्य बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में क्यों फँसता है? लेखक माया की शक्तियों और उसके प्रभाव का वर्णन करते हुए बताते हैं कि किस प्रकार साधक उसे पहचान कर पार हो सकता है।

    4. साधना और मोक्ष का मार्ग:
      साधना के विभिन्न स्वरूपों – जप, ध्यान, संकीर्तन, आत्मचिंतन आदि का वर्णन करते हुए मोक्ष (जीवन-मुक्ति) की प्रक्रिया को सरल एवं व्यावहारिक बनाया गया है। मोक्ष को केवल मृत्यु के बाद की अवस्था न मानकर, जीवन में ही उसे प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।

    5. भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन:
      यह पुस्तक बताती है कि केवल ज्ञान या केवल भक्ति पर्याप्त नहीं, अपितु तीनों—भक्ति, ज्ञान और निष्काम कर्म—का समन्वय ही आत्मोन्नति का मार्ग है।


    विशेषताएँ:

    • सरल भाषा, गूढ़ अर्थ:
      लेखक ने अत्यंत जटिल आध्यात्मिक विषयों को बहुत ही सरल, बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत किया है, जिससे सामान्य पाठक भी गहराई से समझ सके।

    • प्रमाण आधारित विवेचना:
      प्रत्येक प्रवचन शास्त्रों के प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया है—जैसे उपनिषद, भगवद्गीता, वेदांत सूत्र, पुराण आदि।

    • ध्यान और चिंतन को प्रेरित करने वाली शैली:
      पुस्तक पाठक को मात्र जानकारी ही नहीं देती, बल्कि आत्म-चिंतन और साधना की ओर प्रेरित करती है।

    • सनातन धर्म का सार:
      यह ग्रंथ सनातन वैदिक परंपरा की मूल शिक्षाओं को सहेजकर पाठक के समक्ष रखता है, जो आज की भौतिकता में आध्यात्मिक जागृति का दीपक बन सकता है।


    पाठकों के लिए उपयोगिता:

    • साधकों, ध्यानियों, योगियों, तथा आध्यात्मिक मार्ग के जिज्ञासुओं के लिए यह एक अनमोल मार्गदर्शक है।

    • वे पाठक जो जीवन के गूढ़ प्रश्नों—“मैं कौन हूँ?”, “मेरा उद्देश्य क्या है?”, “मृत्यु के बाद क्या?”—का उत्तर खोज रहे हैं, उन्हें यह पुस्तक एक स्पष्ट दिशा प्रदान करती है।

    • आध्यात्मिक प्रवचनकारों के लिए भी यह पुस्तक एक उत्तम संदर्भ ग्रंथ है।


    निष्कर्ष:

    "रहस्यमय प्रवचन" केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, अपितु यह आत्मा की गहराइयों में उतरने की एक यज्ञवेदी है। श्री जयदयाल गोयंदका जी ने इस ग्रंथ के माध्यम से सनातन धर्म के उन तत्त्वों को उद्घाटित किया है, जो सामान्य दृष्टि से छिपे रहते हैं। यह पुस्तक एक साधक के जीवन में प्रकाश का दीपक सिद्ध हो सकती है।

  • रसिक अनन्य माल – भक्ति और प्रेम का दिव्य ग्रंथ

    "रसिक अनन्य माल" एक अद्भुत आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो शुद्ध भक्ति (अनन्य भक्ति), दिव्य प्रेम और भगवान के प्रति संपूर्ण समर्पण को स्पष्ट करता है। यह विशेष रूप से रसिक संतों की परंपरा से संबंधित है, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति पर बल देते हैं।

    मुख्य विषय-वस्तु

    • इस ग्रंथ में अनन्य भक्ति (अखंड प्रेम और निस्वार्थ समर्पण) का महत्व बताया गया है।
    • इसमें रसिक संतों के आध्यात्मिक अनुभवों का संग्रह है, जिन्होंने दिव्य प्रेम और भक्ति रस का अनुभव किया।
    • यह संसार की माया से विरक्ति (वैराग्य) और भगवान में संपूर्ण आत्मसमर्पण का मार्ग दिखाता है।
    • इसमें भजन, पद और भक्ति से ओतप्रोत काव्य के माध्यम से भगवान के प्रेम की अनुभूति कराई गई है।

    Rasik Ananya Maal – A Devotional Treasure

    "Rasik Ananya Maal" is a profound spiritual book that delves into the essence of devotion (bhakti), divine love, and complete surrender to God. It is particularly revered in the tradition of Rasik saints who emphasize unwavering love and exclusive devotion to the Divine.

    Main Themes of the Book

    • It focuses on pure, selfless devotion (Ananya Bhakti) towards Lord Krishna.
    • The book highlights the mystical experiences of Rasik saints who have attained divine love.
    • It discusses the importance of detachment from the material world and total surrender to God.
    • Through poetic expressions and devotional hymns, it portrays the blissful experiences of divine union with God.
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    योगसमन्वय /Yogasamanvaya

    Original price was: ₹150.00.Current price is: ₹120.00.

     योगसमन्वय (स्वामी विवेकानंद)

    "योगसमन्वय" स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित एक अद्भुत ग्रंथ है, जो भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग और राजयोग के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। यह पुस्तक बताती है कि योग केवल साधना का एक रूप नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार का मार्ग है और सभी आध्यात्मिक पथ एक ही अंतिम सत्य की ओर ले जाते हैं।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    चार योगों का समन्वयभक्ति, ज्ञान, कर्म और राजयोग के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग।
    वैज्ञानिक दृष्टिकोणस्वामी विवेकानंद ने योग को तर्कसंगत, व्यावहारिक और वैज्ञानिक तरीके से समझाया है
    आध्यात्मिक ज्ञान – यह पुस्तक दर्शाती है कि सभी धार्मिक मार्ग एक ही शाश्वत सत्य की ओर ले जाते हैं
    आत्म-साक्षात्कार और व्यावहारिक आध्यात्मिकतायोग को दैनिक जीवन में कैसे अपनाएं, इस पर गहन विचार।
    भारतीय दर्शन की आधारशिला – आधुनिक जीवन में वेदांत और योग के महत्व को उजागर करती है।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    योग साधकों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए – जो योग के गहरे अर्थ को समझना चाहते हैं।
    वेदांत और स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों के लिए – जो गूढ़ आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में हैं
    विभिन्न योग मार्गों के अभ्यासियों के लिए – जो कर्म, भक्ति, ज्ञान और राजयोग का अभ्यास करते हैं

  • युवाओं के प्रति (Yuvako ke prati) एक विषय है जो समाज में युवाओं की भूमिका, उनके कर्तव्य, चुनौतियाँ और संभावनाओं को समझने और व्यक्त करने से संबंधित होता है। नीचे इसका एक वर्णन (description) हिंदी में दिया गया है:


    युवाओं के प्रति 

    युवा किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत होते हैं। उनमें ऊर्जा, जोश, कल्पनाशक्ति और बदलाव लाने की क्षमता होती है। समाज और राष्ट्र की उन्नति युवाओं की सोच और कार्यों पर निर्भर करती है इसलिए युवाओं के प्रति समाज की विशेष जिम्मेदारी होती है – उन्हें सही मार्गदर्शन देना, शिक्षा और रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान करना, और नैतिक मूल्यों की समझ विकसित करना

    आज का युवा एक ओर आधुनिक तकनीक से जुड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर वह परंपराओं और संस्कारों से भी प्रभावित होता है। उसे सही दिशा में प्रोत्साहित करना आवश्यक है ताकि वह नशा, अपराध, और सामाजिक भटकाव से दूर रहे और देश की प्रगति में योगदान दे सके।

    युवाओं को भी चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों को समझें – समाज के प्रति, परिवार के प्रति और देश के प्रति। आत्मनिर्भर बनना, शिक्षा में उत्कृष्टता लाना, पर्यावरण की रक्षा करना और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना – ये सब उनके प्रमुख दायित्व हैं।