ब्रह्म सूत्र, जिसे वेदांत सूत्र भी कहा जाता है, हिंदू दर्शन के छः दर्शनों में से एक – वेदांत दर्शन – का मूल ग्रंथ है। इसका रचयिता महर्षि बादरायण (या व्यास) माने जाते हैं। यह ग्रंथ वेदों (विशेषकर उपनिषदों) के सिद्धांतों को संक्षिप्त सूत्र रूप में प्रस्तुत करता है।
नाम का अर्थ:
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ब्रह्म = परम सत्य / परमात्मा
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सूत्र = संक्षिप्त व गूढ़ वाक्य जो एक बड़े सिद्धांत को सूक्ष्म रूप में प्रकट करता है
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अर्थात् ब्रह्म से संबंधित ज्ञान को सूत्रों में व्यक्त करने वाला ग्रंथ
ब्रह्म सूत्र की रचना:
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अध्याय: 4 (अध्याय / अध्यायाः)
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प्रत्येक अध्याय में चार-चार पाद (भाग) होते हैं
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भाषा: संस्कृत
चार अध्यायों का सारांश:
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समन्वय अध्याय (प्रथम अध्याय):
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उपनिषदों के विभिन्न विचारों का समन्वय करता है
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यह सिद्ध करता है कि ब्रह्म ही सब कुछ का कारण है
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अविरोध अध्याय (द्वितीय अध्याय):
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वेदांत के सिद्धांतों का अन्य दर्शनों (सांख्य, न्याय आदि) से विरोध न होना सिद्ध करता है
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तर्क के आधार पर वेदांत की श्रेष्ठता को दर्शाता है
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साधन अध्याय (तृतीय अध्याय):
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ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के साधन (उपाय) बताता है
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भक्ति, ध्यान, योग, और ज्ञान की व्याख्या करता है
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फल अध्याय (चतुर्थ अध्याय):
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ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के फल (उपलब्धि) का वर्णन करता है
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आत्मा की ब्रह्म में एकता, मोक्ष, और ज्ञान के प्रभाव पर चर्चा
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मुख्य विषयवस्तु:
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आत्मा और ब्रह्म की अद्वैतता (एकता)
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सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय का कारण
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जीव, ब्रह्म और जगत के बीच संबंध
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मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग