"संध्या, संध्या-गायत्री का महत्व और ब्रह्मचर्य" का वर्णन
🌅 संध्या क्या है?
‘संध्या’ का शाब्दिक अर्थ है — संधिकाल अर्थात दिन और रात के मिलन का समय।
प्रत्येक दिन में तीन संधिकाल होते हैं:
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प्रातः संध्या (सूर्योदय से पूर्व)
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मध्याह्न संध्या (दोपहर का समय)
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सायं संध्या (सूर्यास्त का समय)
🔆 ये काल अत्यंत पवित्र माने गए हैं, क्योंकि इन समयों में प्रकृति शांत और दिव्यता से युक्त होती है। यही समय ईश्वर-स्मरण, जप और ध्यान के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
🪔 संध्या-गायत्री का महत्व
गायत्री मंत्र वेदों का सार है —
"ॐ भूर्भुवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यं ।
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥"
🧘♂️ यह मंत्र सविता (सूर्य देवता) की उपासना है। इसका जप संध्या के समय करने से —
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मन शुद्ध होता है
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बुद्धि में सतोगुण की वृद्धि होती है
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आत्मबल और विवेक जाग्रत होता है
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पापों का क्षय होता है
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ब्रह्मविद्या की प्राप्ति का मार्ग खुलता है
🎇 गायत्री मंत्र को 'ब्रह्मविद्या' और 'मंत्रों की जननी' कहा गया है।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है:
"गायत्री च्छन्दसामहम्।" (श्रीमद्भगवद्गीता 10.35)
🌟 ब्रह्मचर्य का महत्व
‘ब्रह्मचर्य’ का अर्थ केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि इन्द्रिय-निग्रह, विचार-शुद्धि और ईश्वर में स्थित रहने का अभ्यास है।
🔹 ब्रह्मचर्य पालन से लाभ:
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शरीर बलवान होता है
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मन स्थिर और बुद्धि तेज होती है
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स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है
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साधना में प्रगति होती है
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आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है
🧘♂️ महर्षि पतंजलि ने कहा है —
"ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः॥"
(अष्टांगयोग, योगसूत्र 2.38)
"जब ब्रह्मचर्य पूर्ण रूप से स्थिर हो जाता है, तब अपूर्व तेजस्विता की प्राप्ति होती है।"
👉 संध्या आत्मा का स्नान है।
👉 गायत्री मंत्र आत्मा का भोजन है।
👉 ब्रह्मचर्य आत्मा की रक्षा है।
जो व्यक्ति इन तीनों को जीवन में अपनाता है, वह आध्यात्मिक मार्ग पर अभ्युदय (सर्वांगीण उन्नति) और निःश्रेयस (मोक्ष) दोनों को प्राप्त करता है।