• षट्चक्र-निरुपणम एक महत्वपूर्ण योग-ग्रंथ है, जो तंत्र और कुंडलिनी योग पर आधारित है। यह ग्रंथ विशेष रूप से चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) का विवरण प्रदान करता है और यह समझाने का प्रयास करता है कि मानव शरीर में विभिन्न चक्र कैसे कार्य करते हैं और उन्हें जागृत करने के क्या लाभ हैं।

    मुख्य विषयवस्तु

    यह ग्रंथ सप्तचक्रों (सात चक्रों) की व्याख्या करता है, जो शरीर में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं। ये चक्र हैं:

    1. मूलाधार चक्र – रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में स्थित होता है और स्थायित्व व जड़ता का प्रतीक है।
    2. स्वाधिष्ठान चक्र – नाभि के नीचे स्थित होता है और रचनात्मकता तथा इच्छाशक्ति से जुड़ा होता है।
    3. मणिपुर चक्र – नाभि क्षेत्र में स्थित होता है और शक्ति, आत्मविश्वास तथा इच्छाशक्ति को नियंत्रित करता है।
    4. अनाहत चक्र – हृदय क्षेत्र में स्थित होता है और प्रेम, करुणा तथा भावनाओं का केंद्र माना जाता है।
    5. विशुद्धि चक्र – गले में स्थित होता है और संचार, सत्य और अभिव्यक्ति से संबंधित होता है।
    6. आज्ञा चक्र – भौहों के बीच स्थित होता है और अंतर्ज्ञान तथा आध्यात्मिक दृष्टि का केंद्र होता है।
    7. सहस्रार चक्र – सिर के ऊपर स्थित होता है और परम चेतना एवं आत्मज्ञान से जुड़ा होता है।
  • Jai Hanuman – For Young Readers by Swami Raghaveshananda is a beautifully illustrated children's book that brings the heroic life of Hanuman to young audiences. Published by Ramakrishna Math, Chennai, this 128-page deluxe hardbound edition is designed to captivate and inspire readers with the noble qualities of Hanuman, such as courage, devotion, and selfless service.Ramakrishna Math iStore+6vedanta.com+6Vedanta Society+6Advaita Ashrama Shop

    A special feature of the book is its extensive coverage of the Sundarakandam, a significant portion of the Ramayana that highlights Hanuman's daring exploits and unwavering dedication to Lord Rama. The narrative is enriched with numerous illustrations and drawings, making it particularly appealing to children and young readers.Ramakrishna Math iStore+2Advaita Ashrama Shop+2Vivekananda Live+2

    Swami Vivekananda regarded Hanuman as an ideal role model for youth, embodying strength, discipline, and devotion. This book aims to instill these virtues in young minds, encouraging them to emulate Hanuman's exemplary character in their own lives.

  • वाटिका निधि श्री राधेश्याम बंका 


    वाटिका निधि - श्री राधेश्याम बंका

    परिचय:

    वाटिका निधि एक प्रतिष्ठित वित्तीय संस्था है जिसकी स्थापना समाज की आर्थिक प्रगति एवं समृद्धि के उद्देश्य से की गई है। इस संस्था के प्रमुख मार्गदर्शक एवं प्रेरणास्त्रोत श्री राधेश्याम बंका हैं, जो न केवल एक सफल उद्योगपति हैं, बल्कि एक समाजसेवी, धार्मिक विचारों वाले एवं दूरदृष्टि रखने वाले व्यक्तित्व भी हैं।

    श्री राधेश्याम बंका का योगदान:

    • उन्होंने वाटिका समूह के माध्यम से अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिनमें रियल एस्टेट, वित्त, और सामाजिक सेवा प्रमुख हैं।

    • उनका उद्देश्य केवल व्यापारिक लाभ नहीं, बल्कि समाज को आत्मनिर्भर एवं समृद्ध बनाना भी रहा है।

    • उन्होंने सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य एवं महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में अनेक पहल की हैं।

    वाटिका निधि के मुख्य उद्देश्य:

    • आम जनता को सुरक्षित एवं लाभदायक वित्तीय योजनाएँ उपलब्ध कराना।

    • छोटे निवेशकों के लिए विश्वसनीय एवं पारदर्शी निवेश के अवसर प्रदान करना।

    • सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाना।

    विशेषताएँ:

    • पारदर्शिता और विश्वास पर आधारित संचालन

    • अनुभवी नेतृत्व एवं मजबूत प्रबंधन

    • ग्राहकों की संतुष्टि को सर्वोच्च प्राथमिकता

  • श्री भगवान की असीम, अहैतुकी कृपा से ही जीव को मानव शरीर मिलता है। इसका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति ही है। परन्तु मनुष्य इस शरीर को प्राप्त करने के बाद अपने मूल उद्देश्य को भूलकर शरीर के साथ दृढ़ता से तादात्म्य कर लेता है और इसके सुख को ही परम सुख मानने लगता है। शरीर के सुखों में मान-बड़ाई का सुख सबसे सूक्ष्म होता है। इसकी प्राप्ति के लिए वह झूठ, कपट, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचार भी करने लग जाता है। शरीर के नाम में प्रियता होने से उसमें दूसरों से अपनी प्रशंसा, स्तुति की चाहना रहती है। वह यह चाहता है कि जीवन पर्यन्त मेरे को मान-बढ़ाई मिले और मरने के बाद मेरे नाम की कीर्ति हो। वह यह भूल जाता है कि केवल लौकिक व्यवहार के लिए शरीर का रखा हुआ नाम शरीर के नष्ट होने के बाद कोई अस्तित्व नहीं रखता। इस दृष्टि से शरीर की पूजा, मान-आदर एवं नाम को बनाए रखने का भाव किसी महत्व का नहीं है। परन्तु मनुष्य अपने प्रियजनों के साथ तो ऐसा व्यवहार करते ही हैं, जो सच्चे हृदय से जीवनभर भगवद्भक्ति में रहते हैं। अधिक क्या कहा जाए, उन साधकों का शरीर निष्प्राण होने पर भी उसकी स्मृति बनाये रखने के लिए वे उस शरीर को चित्र में आबद्ध करते हैं एवं उसको बहुत ही साज-सज्जा के साथ अन्तिम संस्कार-स्थल तक ले जाते हैं। विनाशी नाम को अविनाशी बनाने के प्रयास में वे उस संस्कार-स्थल पर छतरी, चबूतरा या मकान (स्मारक) आदि बना देते हैं। इसके सिवाय उनके शरीर से सम्बंधित एकपक्षीय घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर उनको जीवनी, संस्मरण आदि के रूप में लिखते और प्रकाशित कराते हैं। कहने को तो वे अपने-आपको उन साधकों का श्रद्धालु कहते हैं, पर काम वही करते हैं, जिसका वे साधक निषेध करते हैं। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। कपड़ेकी मजबूत जिल्द एवं सुन्दर रंगीन, लेमिनेटेड आवरणसहित। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ प्रत्येक देश, वेष, भाषा एवं सम्प्रदाय के साधकों के लिये साधन की उपयोगी एवं मार्गदर्शक सामग्री से युक्त है।
  • उत्तर-रामचरितम्

    परिचय:
    उत्तर-रामचरितम्संस्कृत साहित्य का एक प्रमुख नाटक है, जिसकी रचना प्रसिद्ध कवि भवभूति ने की थी। यह नाटक रामकथा पर आधारित है और इसमें विशेष रूप से श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद के जीवन की घटनाओं को दर्शाया गया है।

    कथावस्तु:
    इस नाटक में कुल सात अंकों में विभाजित कथा प्रस्तुत की गई है। इसमें मुख्य रूप से श्रीराम और सीता के वियोग और पुनर्मिलन का मार्मिक चित्रण किया गया है। इसमें राम के राज्यकाल में सीता का वनवास, लव-कुश की कथा और अंततः राम-सीता के पुनर्मिलन को अत्यंत भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    1. करुण रस की प्रधानता – यह नाटक अपनी मार्मिकता और संवेदनशीलता के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
    2. उच्च कोटि की काव्यशैली – भवभूति की भाषा अत्यंत सरस और प्रभावशाली है।
    3. चरित्र चित्रण – राम, सीता, लव-कुश और वाल्मीकि जैसे पात्रों का गहन मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है।
    4. न्याय और धर्म का संघर्ष – राम के चरित्र में एक राजा और पति के कर्तव्यों के बीच द्वंद्व को दर्शाया गया है।
    5. प्रेरणादायक संदेश – यह नाटक हमें प्रेम, त्याग और कर्तव्य के महत्त्व का बोध कराता है।

    निष्कर्ष:
    उत्तर-रामचरितम् केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और धर्म के आदर्शों का उत्कृष्ट संगम है। यह भवभूति की प्रतिभा का एक अमर उदाहरण है और आज भी इसे संस्कृत साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

  • The River Sindhu also name as Indus River Originally started from Tibet and passes through Ladakh in India then it enter to POK and then passes through Pakistan. The maximum part of the river passes through Pakistan. It's a Holy river for Hindus according to Hindu mythology. Sindhu is one of holy river out of 7 holy river described in Puranas. The water is collected from Holy river Sindhu (Indus) at Ladakh. The water is not purified drinking water; it's raw water collected directly from the river and packed after normal filter. The water is for puja purpose only.
  • वीर हनुमान साबर मंत्र – पुस्तक परिचय

    "वीर हनुमान साबर मंत्र" एक आध्यात्मिक और तांत्रिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए अद्भुत एवं प्रभावशाली साबर मंत्रों का संकलन किया गया है। ये मंत्र रक्षा, शक्ति, सफलता, संकट निवारण और आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावी माने जाते हैं।

    "Veer Hanuman Sabar Mantra"

    "Veer Hanuman Sabar Mantra" is a spiritual book dedicated to Lord Hanuman and the mystical Sabar Mantras, which are believed to be powerful, effective, and easy-to-use mantras for protection, strength, and divine blessings. This book is highly revered by devotees and spiritual practitioners who seek Hanuman Ji’s grace for courage, success, and removal of obstacles.

    "Veer Hanuman Sabar Mantra" is a spiritual book dedicated to Lord Hanuman and the mystical Sabar Mantras, which are believed to be powerful, effective, and easy-to-use mantras for protection, strength, and divine blessings. This book is highly revered by devotees and spiritual practitioners who seek Hanuman Ji’s grace for courage, success, and removal of obstacles.

  • अष्टावक्र गीता – संक्षिप्त परिचय

    "अष्टावक्र गीता" एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसमें महर्षि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच हुआ संवाद संकलित है। यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत (अद्वैतवाद) के गूढ़ रहस्यों को सरल शब्दों में प्रकट करता है और आत्मज्ञान एवं मोक्ष (मुक्ति) का सीधा मार्ग दिखाता है।

    मुख्य विषय-वस्तु:

    अद्वैत वेदांत का शुद्ध स्वरूप – आत्मा सदा मुक्त और निरपेक्ष है, यह संसार मात्र एक माया है।
    प्रत्यक्ष अनुभव पर जोर – मोक्ष पाने के लिए किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं, केवल आत्म-साक्षात्कार ही पर्याप्त है।
    अहंकार और बंधनों से मुक्ति – मनुष्य केवल अज्ञान के कारण स्वयं को बंधन में समझता है।

    Ashtavakra Gita

    "Ashtavakra Gita" is an ancient Sanskrit scripture that presents a deep exploration of Advaita Vedanta (non-dualism) through a dialogue between Sage Ashtavakra and King Janaka. It teaches the nature of the Self, ultimate truth, and liberation (moksha).

    Key Themes:

    Pure Non-Duality (Advaita Vedanta) – Declares that the Self is already free and beyond illusion.
    Direct Path to Liberation – No rituals or external practices; realization comes through knowledge.
    Wisdom Beyond Mind & Body – Teaches detachment from the physical world to recognize one's true nature.

  • योग दर्शन का वर्णन 

    परिचय:

    योग दर्शन भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है, जिसे महर्षि पतंजलि ने सूत्रों के रूप में संकलित किया। यह दर्शन व्यक्ति के आत्म-साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने पर बल देता है। योग दर्शन मुख्यतः "पतंजलि योग सूत्र" के माध्यम से जाना जाता है, जिसमें कुल 195 सूत्र हैं।


    योग दर्शन की विशेषताएं:

    1. अष्टांग योग (Ashtanga Yoga):
      पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिसे अष्टांग योग कहा जाता है:

      • यम (नियम): अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह

      • नियम (अनुशासन): शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान

      • आसन: शरीर को स्थिर व स्वस्थ रखने की प्रक्रिया

      • प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करने की विधि

      • प्रत्याहार: इन्द्रियों को विषयों से हटाना

      • धारण: मन को एक स्थान पर केंद्रित करना

      • ध्यान: निरंतर ध्यान की अवस्था

      • समाधि: आत्मा और परमात्मा का मिलन

    2. दर्शन शास्त्र का हिस्सा:
      योग दर्शन सांख्य दर्शन के सिद्धांतों को आधार बनाता है लेकिन उसमें ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है, जो इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।

    3. प्रायोगिक दर्शन:
      योग केवल सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक भी है। यह जीवन के हर पहलू को शुद्ध और संतुलित करने की प्रक्रिया है।

    4. उद्देश्य:
      योग दर्शन का मुख्य उद्देश्य चित्त की वृत्तियों का निरोध करना है –
      "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" – पतंजलि योग सूत्र 1.2
      अर्थात् मन की चंचलताओं को रोकना ही योग है।


    योग दर्शन का महत्व:

  • न्याय दर्शन  

    परिचय:

    न्याय दर्शन (नैयाय दर्शन) प्राचीन भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है। यह एक आस्तिक दर्शन है, अर्थात यह वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है। न्याय दर्शन का मुख्य उद्देश्य है – सत्य ज्ञान प्राप्त करना और मोक्ष की प्राप्ति करना। इसका प्रमुख ग्रंथ है "न्याय सूत्र", जिसकी रचना महर्षि गौतम ने की थी।


    न्याय दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ:

    1. ज्ञान और मोक्ष का संबंध:

      • न्याय दर्शन के अनुसार सही ज्ञान (तत्त्वज्ञान) से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

      • अविद्या ही दुखों का कारण है, और उसका नाश करके आत्मा को बंधन से मुक्त किया जा सकता है।

    2. प्रमाण  

      • न्याय दर्शन चार प्रमाणों को मानता है, जिनसे ज्ञान प्राप्त होता है:

        1. प्रत्यक्ष (इंद्रियों द्वारा अनुभव)

        2. अनुमान (तर्क द्वारा ज्ञान)

        3. उपमान (सादृश्य के द्वारा ज्ञान)

        4. शब्द (प्रामाणिक व्यक्ति या वेदवाक्य)

    3. अनुमान (तर्कशक्ति) का विशेष स्थान:

      • न्याय दर्शन में तर्क और विश्लेषण को बहुत महत्व दिया गया है।

      • तर्क के द्वारा सत्य और असत्य में भेद किया जाता है।

    4. पदार्थ शास्त्र (सृष्टि का विश्लेषण):

      • न्याय दर्शन ने विश्व को सोलह (16) पदार्थों में विभाजित किया है, जैसे – आत्मा, मन, इंद्रियाँ, बुद्धि, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुख आदि।

    5. ईश्वर का अस्तित्व:

      • यह दर्शन ईश्वर को सर्वज्ञ और सृष्टिकर्ता मानता है।

      • न्याय दर्शन में ईश्वर को न्याय व्यवस्था का आधार बताया गया है।

    6. मोक्ष की परिभाषा:

      • मोक्ष को दुखों की पूर्ण निवृत्ति और आत्मा की स्वतंत्रता के रूप में देखा गया है।


    न्याय दर्शन के योगदान:

    • भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र की नींव न्याय दर्शन ने रखी।

    • यह दर्शन तथ्यों की विवेचना, प्रश्न पूछने और उत्तर खोजने की परंपरा को बढ़ावा देता है।

    • बाद में विकसित वैशेषिक दर्शन के साथ इसका घनिष्ठ संबंध है।

  • श्री हित हरिवंश चरितामृत का विवरण 

    नाम: श्री हित हरिवंश चरितामृत
    लेखक: यह ग्रंथ श्री हित हरिवंश महाप्रभु के अनुयायियों या शिष्यों द्वारा उनकी लीलाओं और शिक्षाओं के आधार पर लिखा गया है।
    भाषा: ब्रज भाषा और संस्कृत मिश्रित हिंदी
    संप्रदाय: राधावल्लभ संप्रदाय
    मुख्य विषय: राधा-कृष्ण की भक्ति, श्री वृंदावन धाम की महिमा, श्री हरिवंश जी की लीलाएं और उपदेश


    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. श्री हित हरिवंश महाप्रभु का जीवन परिचय:

      • जन्म, बाल्यकाल, विवाह और वृंदावन गमन।

      • श्री राधावल्लभ लाल की सेवा स्थापना।

    2. भक्ति मार्ग का प्रवर्तन:

    3. लीलाओं का वर्णन:

    4. उपदेश और संवाद:

      • साधना के तरीके, सेवा भावना और ब्रह्म प्रेम का निरूपण।

    5. श्री राधावल्लभ मंदिर की स्थापना:


    महत्व:

    • यह ग्रंथ भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है।

    • इसमें राधा-कृष्ण की माधुर्य भक्ति का सुंदर निरूपण किया गया है।

    • श्री हित हरिवंश जी को श्री राधा का अवतार माना जाता है, इसलिए उनका चरित भक्ति साधना में बहुत प्रभावी और पूजनीय माना जाता है।

  • "श्री राधा चरितामृत" एक भक्तिमय ग्रंथ है जो राधा रानी की लीलाओं, गुणों और महिमा का सुंदर वर्णन करता है। यह ग्रंथ विशेष रूप से गौड़ीय वैष्णव परंपरा में अत्यंत पूजनीय है और श्रीमद्भागवत, राधा रस सुद्ध निधि, राधा रसायन, आदि रसिक ग्रंथों की भांति इसका स्थान भी विशेष माना जाता है।

    श्री राधा चरितामृत  

    लेखक: रसराज रसिक संत (कुछ संस्करणों में श्री हित हरिवंश महाप्रभु या रसिक संतों को माना जाता है)
    भाषा: ब्रजभाषा या संस्कृत (कुछ संस्करण हिंदी में भी अनुवादित हैं)
    विषय: श्री राधा रानी का जीवन, लीलाएँ, सौंदर्य, प्रेम, और कृष्ण के साथ उनका दिव्य प्रेम संबंध।


    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. श्री राधा का प्राकट्य (जन्म कथा):
      वृंदावन की पावन भूमि पर श्री राधा रानी के अवतरण की कथा, जो श्री वृषभानु जी के घर में हुआ। यह भाग भक्तों के हृदय को प्रेमरस में डुबो देता है।

    2. बाल लीलाएँ:
      श्री राधा रानी की बाल्यकाल की मधुर लीलाओं का वर्णन — जैसे रसोई की लीला, सखियों के साथ क्रीड़ा, आदि।

    3. रास लीला और प्रेम लीला:
      श्रीकृष्ण और श्री राधा रानी के दिव्य मिलन और रास लीला का वर्णन, जिसमें राधा रानी की अधिष्ठात्री रूप में महिमा प्रकट होती है।

    4. उद्धव संवाद एवं राधा की महिमा:
      उद्धव जी के वृंदावन आगमन पर गोपियों विशेषतः श्री राधा का अद्वितीय प्रेम और तत्त्वज्ञान।

    5. राधा रानी का स्वरूप वर्णन:
      उनके रूप, गुण, भाव, माधुर्य और वात्सल्य का अत्यंत सुंदर वर्णन।


    शैली और भाषा: