षट्चक्र-निरुपणम एक महत्वपूर्ण योग-ग्रंथ है, जो तंत्र और कुंडलिनी योग पर आधारित है। यह ग्रंथ विशेष रूप से चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) का विवरण प्रदान करता है और यह समझाने का प्रयास करता है कि मानव शरीर में विभिन्न चक्र कैसे कार्य करते हैं और उन्हें जागृत करने के क्या लाभ हैं।
मुख्य विषयवस्तु
यह ग्रंथ सप्तचक्रों (सात चक्रों) की व्याख्या करता है, जो शरीर में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं। ये चक्र हैं:
- मूलाधार चक्र – रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में स्थित होता है और स्थायित्व व जड़ता का प्रतीक है।
- स्वाधिष्ठान चक्र – नाभि के नीचे स्थित होता है और रचनात्मकता तथा इच्छाशक्ति से जुड़ा होता है।
- मणिपुर चक्र – नाभि क्षेत्र में स्थित होता है और शक्ति, आत्मविश्वास तथा इच्छाशक्ति को नियंत्रित करता है।
- अनाहत चक्र – हृदय क्षेत्र में स्थित होता है और प्रेम, करुणा तथा भावनाओं का केंद्र माना जाता है।
- विशुद्धि चक्र – गले में स्थित होता है और संचार, सत्य और अभिव्यक्ति से संबंधित होता है।
- आज्ञा चक्र – भौहों के बीच स्थित होता है और अंतर्ज्ञान तथा आध्यात्मिक दृष्टि का केंद्र होता है।
- सहस्रार चक्र – सिर के ऊपर स्थित होता है और परम चेतना एवं आत्मज्ञान से जुड़ा होता है।