• केनोपनिषद् (Kena Upanishad) वेदों में से सामवेद के तलवकार शाखा से संबंधित एक प्रमुख उपनिषद है। यह उपनिषद "उपनिषदों की आत्मा" कहे जाने वाले ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान का गूढ़ विवेचन करता है। इसका नाम "केन" (अर्थात् "किससे") शब्द से पड़ा है, जो इसके पहले ही मंत्र में आता है:

    "केनेषितं पतति प्रेषितं मन:।"
    (मन किसके आदेश से गति करता है?)


    🔹 मूल विषय:

    केनोपनिषद् आत्मा, मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि की प्रेरणा शक्ति की खोज करता है। यह पूछता है कि:

    • कौन है वह शक्ति जो हमें सोचने, देखने, सुनने, और बोलने की क्षमता देती है?

    • क्या ये इन्द्रियाँ अपने-आप कार्य करती हैं या कोई और चेतना इन्हें संचालित करती है?


    🔹 उपनिषद के चार भाग:

    केनोपनिषद चार खंडों (खंडिका) में विभाजित है:

    शिष्य गुरु से पूछता है — मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि कैसे कार्य करते हैं?
    गुरु उत्तर देता है कि ये सब एक परम चेतना से प्रेरित हैं — वही ब्रह्म है।

    "श्रोत्रस्य श्रोत्रं... मनसो मन:..."
    (जो कान के पीछे का कान है, मन के पीछे का मन है...)

    यहाँ ब्रह्म को इन्द्रियों के परे बताया गया है।


    2️⃣ ब्रह्म का स्वरूप:

    ब्रह्म को बताया गया है कि:

    • जिसे इन्द्रियाँ नहीं पकड़ सकतीं

    • जिसे सोचकर भी नहीं जाना जा सकता

    • वही ब्रह्म है

    "यन्मनसा न मनुते... तद्ब्रह्म त्वं विद्धि"
    (जिसे मन नहीं जान सकता, वही ब्रह्म है)


    3️⃣ ब्रह्म की प्राप्ति की परीक्षा (उपाख्यान):

    एक रोचक कथा दी गई है —
    देवताओं को अहंकार हो गया कि उन्होंने असुरों पर विजय पाई।
    ब्रह्मा ने उनकी परीक्षा ली — एक रहस्यमय यक्ष प्रकट हुआ।
    देवता (अग्नि, वायु, इन्द्र) उसे पहचान नहीं पाए।

    इन्द्र ने आगे बढ़कर जानना चाहा — वहाँ उमा (ब्रह्मविद्या का रूप) प्रकट हुई और उसने बताया कि वह यक्ष ही ब्रह्म था।


    4️⃣ ब्रह्म का अनुभूतिपरक ज्ञान:

    ब्रह्म को तर्क से नहीं, केवल अनुभव से जाना जा सकता है।
    जो कहता है "मैं जानता हूँ", वह नहीं जानता।
    जो कहता है "मैं नहीं जानता", वही जानने के मार्ग पर है।


    🔹 मुख्य शिक्षाएं:

    1. ब्रह्म इन्द्रियों से परे है – वह देखने, सुनने, सोचने से परे है।

    2. सर्वशक्तिमान प्रेरक शक्ति – जो सबको प्रेरित करती है, वही ब्रह्म है।

    3. अहंकार ज्ञान में बाधक है – आत्मज्ञान के मार्ग में अहंकार का त्याग आवश्यक है।

    4. ब्रह्म अनुभव का विषय है – केवल शास्त्रों से नहीं, साधना से जाना जा सकता है।


    🔹 सरल निष्कर्ष:

    "ब्रह्म वह है, जिससे मन, वाणी, इन्द्रियाँ भी लौट आती हैं, क्योंकि वे उसे जान नहीं सकतीं।"
    अतः — सत्य ज्ञान केवल अनुभव से संभव है, अहंकार छोड़कर आत्म-चिंतन और साधना से।

  • "भक्ति-रहस्य" एक गहन और दिव्य आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें "भक्ति" की वास्तविकता, उसका रहस्य, उसका विज्ञान और उसका साधनात्मक पक्ष गहराई से विवेचित किया गया है। इस पुस्तक में महान विद्वान और दार्शनिक महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज ने भारतीय भक्ति परंपरा का रहस्यात्मक पक्ष उजागर किया है और बताया है कि केवल कर्मकांड या भावनाओं तक सीमित न रहकर भक्ति एक आध्यात्मिक साधना है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।

    पुस्तक का सम्पादन प्रसिद्ध संत विचारक हनुमानप्रसाद पोद्दार ने किया है, जो गीता प्रेस के माध्यम से करोड़ों पाठकों तक भक्ति साहित्य पहुँचाने के लिए प्रसिद्ध हैं।


    मुख्य विषयवस्तु:

    1. भक्ति का तत्वज्ञान:
      पुस्तक में बताया गया है कि भक्ति केवल भगवान की स्तुति या पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य अनुभूति है, जो आत्मा की परमात्मा के प्रति गहन आकांक्षा से उत्पन्न होती है।

    2. भक्ति के मार्ग:
      इसमें नवधा भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण आदि) के गूढ़ अर्थ और उनके पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य को विश्लेषित किया गया है। यह बताया गया है कि प्रत्येक प्रकार की भक्ति अंततः आत्मा के शुद्धिकरण और ईश्वर से एकाकार की ओर ले जाती है।

    3. शिव की उपासना और ध्यान:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर भगवान शिव की उपस्थिति और भीतर दिए गए उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि शिवभक्ति के माध्यम से साधक किस प्रकार ईश्वर के रहस्य को आत्मसात कर सकता है।

    4. योग और भक्ति का संबंध:
      कविराज जी ने योग, ज्ञान और भक्ति के समन्वय की गूढ़ व्याख्या की है। यह बताया गया है कि भक्तियोग केवल भावप्रधान नहीं, बल्कि उच्चतम आत्मबोध का मार्ग है।

    5. व्यक्तिगत अनुभव और दार्शनिक विवेचना:
      इसमें लेखक ने अपने चिंतन और अनुभवों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि भक्ति कैसे साधक को भीतर से बदल देती है और उसे लोभ, मोह, अहंकार आदि से मुक्त कर देती है।


    भाषा और शैली:

    इस पुस्तक की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परंतु गूढ़ तत्वों को समझाने हेतु पर्याप्त व्याख्यात्मक है। जहाँ गहराई से विश्लेषण किया गया है, वहीं साधकों के लिए इसे सहज बनाने हेतु सम्पादक ने सरल टिप्पणी और भाष्य जोड़ा है।


    पाठकों के लिए विशेष संदेश:

    यह पुस्तक उन जिज्ञासु पाठकों और साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भक्ति को केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि एक दिव्य, दार्शनिक और साधनात्मक मार्ग मानते हैं। यह एक ऐसी रचना है, जो आत्मा को भीतर से झकझोरती है और सच्ची ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करती है।

  • "आस्तिकता की आधार-शिलाएँ" श्रद्धेय श्री राधा बाबा द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक और आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें आस्तिक जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक उन साधकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो भक्ति, आत्मचिंतन और नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन को समृद्ध बनाना चाहते हैं।



    🌿 विषयवस्तु एवं विशेषताएँ:

    इस ग्रंथ में श्री राधा बाबा ने आस्तिकता के विभिन्न पहलुओं को सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत किया है। पुस्तक में निम्नलिखित विषयों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है:

    • भक्ति और श्रद्धा: ईश्वर में अटूट विश्वास और समर्पण की भावना।

    • नैतिक मूल्य: सत्य, अहिंसा, करुणा और संयम जैसे गुणों का महत्व।

    • आत्मचिंतन: स्वयं के भीतर झांकने और आत्मा की शुद्धता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा।

    • संतों का संग: सज्जनों और संतों के संगति का महत्व और उससे प्राप्त होने वाले लाभ।

    पुस्तक में "व्रजलीला में गाय" नामक एक अन्य रचना भी समाहित है, जो व्रजभूमि की लीलाओं और गायों के प्रति प्रेम को दर्शाती है।


    📚 पुस्तक का महत्व:

    "आस्तिकता की आधार-शिलाएँ" केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक जीवनदर्शन है जो पाठकों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। यह पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी है जो जीवन में शांति, संतोष और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को विकसित करना चाहते हैं।

  • "अन्तरंग-वार्तालाप" एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें रस-सिद्ध संत श्रीभगवानप्रसादजी ‘पोषक’ के दुर्लभ पत्र, आत्मीय संवाद और रहस्यात्मक वार्तालापों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक किसी साधारण संवाद-संग्रह नहीं, बल्कि संत के हृदय में गूंजती हुई प्रभु-भक्ति की ध्वनि है, जो उनके प्रियजनों, शिष्यों एवं भक्तों के माध्यम से हम तक पहुँची है।

    इस ग्रंथ का संकलन श्यामसुंदर दुजारी जी ने अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा से किया है, जिसमें भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमिका पुस्तक को विशेष गरिमा प्रदान करती है। भाईजी स्वयं एक महात्मा, लेखक, और गीताप्रेस के संस्थापक संपादक रहे हैं। उन्होंने ‘पोषक’ जी के अंतरंग भावों और उच्च आध्यात्मिक स्थिति की सराहना करते हुए इस संकलन को प्रत्येक साधक के लिए उपयोगी और प्रेरणास्पद बताया है।


    🪔 मुख्य विशेषताएँ:

    1. श्री ‘पोषक’ जी के दुर्लभ पत्र:
      जिनमें वे अपने आत्मीय भक्तों से संवाद करते हैं — ये पत्र न केवल स्नेहपूर्ण होते हैं, बल्कि उनमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन, रसिकता और भगवद्भाव से ओतप्रोत बातें होती हैं।

    2. भावमयी वार्तालाप:
      यह वार्तालाप साधारण प्रश्नोत्तर नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य या आत्मीयों के बीच हृदय की बातें हैं — जिनमें भक्ति, वैराग्य, सेवा, विनय, और रस-तत्व जैसे विषय सहज रूप से प्रकट होते हैं।

    3. गूढ़ आध्यात्मिक संकेत:
      ‘पोषक’ जी के कथन अक्सर प्रतीकों में होते हैं — साधकों को उन संकेतों का मनन करना होता है, जिससे वे गहराई तक पहुँच सकें।

    4. रसिक मार्गदर्शन:
      श्रीराधा-कृष्ण की रसमयी उपासना में किस प्रकार प्रेम, विरह, लीनता और सेवा के भाव विकसित हों — इस पर गहन मार्गदर्शन।

    5. संत-वाणी का अद्भुत संग्रह:
      यह पुस्तक एक प्रकार से संत-विचारों का जीवंत संग्रहालय है, जहाँ पाठक सीधे संत के मनोभावों को महसूस कर सकते हैं।


    🌸 पाठकों के लिए उपयोगिता:

    • यह पुस्तक उन साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अभ्यंतर साधना, अंतरंग भक्ति, और रस-संपन्न जीवन की खोज में हैं।

    • इसमें ऐसी बातें हैं जो न तो प्रवचनों में आती हैं, न ही सार्वजनिक सत्संगों में — बल्कि वे बातें हैं जो संत अपने अत्यंत प्रियजनों से गोपनीय रूप में करते हैं।

    • इसका पाठ मन को शांत, हृदय को भावमय, और चिंतन को गहरा बनाता है।


      "अन्तरंग-वार्तालाप" केवल पढ़ने योग्य नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है — जो संतों के सच्चे सान्निध्य की झलक देता है।

  • 🌸 परिचय: हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

    हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (1892–1971) भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म के एक महान प्रचारक थे। वे गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के संस्थापक संपादक थे। उनके द्वारा रचित और संकलित सरस प्रसंग आज भी पाठकों के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करते हैं।


    📖 'सरस प्रसंग' का अर्थ

    ‘सरस’ का अर्थ है रसपूर्ण, हृदय को छूने वाले।
    ‘प्रसंग’ का अर्थ है घटना या किस्सा
    इस प्रकार ‘सरस प्रसंग’ उन प्रेरणादायक, भावपूर्ण और आध्यात्मिक घटनाओं को कहते हैं जो किसी संत, महापुरुष, या भक्त के जीवन से जुड़ी होती हैं और जिन्हें पढ़कर पाठक को श्रद्धा, भक्ति, विनम्रता और सदाचार की प्रेरणा मिलती है।


    🪔 हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंगों की विशेषताएं

    • सरल, सहज और हृदयस्पर्शी भाषा

    • छोटे-छोटे प्रसंगों में गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षा

    • संतों, भक्तों और भगवान की चरित्र-कथाओं का संकलन

    • प्रत्येक प्रसंग में नैतिकता और भक्ति का संदेश

    • आम जनमानस को भक्ति और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाली शैली।


    🌼 एक सरस प्रसंग (हनुमान प्रसाद जी की शैली में)

    प्रसंग: "सच्ची भक्ति"

    एक बार एक भक्त ने संत से पूछा —
    "महाराज! भगवान तो सबके हैं, फिर कुछ लोगों को ही उनकी कृपा क्यों मिलती है?"

    संत मुस्कराए और बोले —
    "बेटा! सूर्य तो सबके लिए चमकता है, पर जो अपनी आँखें खोलकर उसकी ओर देखता है, वही प्रकाश पाता है।
    उसी प्रकार, जो सच्चे मन से, विश्वासपूर्वक और विनम्रता से भक्ति करता है, भगवान की कृपा उसी पर प्रकट होती है।"

    संदेश: भगवान सबके हैं, पर उनका अनुभव वही करता है जो सच्चे मन से उन्हें पुकारता है।


    📚 कहाँ मिलेंगे हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंग?

    • गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित:

      • ‘कल्याण’ पत्रिका (वर्ष–संख्या जैसे: भक्तिसंकल्पांक, संत अंक, नाममहिमा अंक आदि)

      • भक्त चरित्र, महापुरुषों की जीवनगाथाएं, संतों के प्रेरक प्रसंग

      • सत्संग सुधा, रामकथा, कृष्णलीला आदि

  • "श्रीराधाबल्लभ अष्टयाम" एक अत्यंत भावपूर्ण एवं भक्तिमय ग्रंथ है, जो श्रीराधाबल्लभ संप्रदाय की उपासना पद्धति, लीला-स्मरण और अष्टयाम सेवा की दिव्य परंपरा का परिचय कराता है। यह पुस्तक उन भक्तों के लिए रत्नस्वरूप है, जो श्री राधा-कृष्ण की लीला-भक्ति में गहराई से डूबना चाहते हैं।


    🌸 मुख्य विषयवस्तु:

    • अष्टयाम लीला वर्णन (प्रातः से रात्रि तक श्री राधाकृष्ण की दिव्य लीलाओं का क्रमिक वर्णन)

    • रसिक नाम ध्वनि, प्रभुगुणगान, वियोगोत्सव ‘व्याकुलता’ जैसे भावप्रधान अंश

    • करुणा बेली, भृकुटि पदावली, प्रिय नामावली, विरहिणी उत्सव – भक्ति एवं विरह भाव से ओतप्रोत सामग्री


    🎵 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • रसिक परंपरा की सुंदर प्रस्तुति जिसमें भक्तिरस की गहराइयाँ व्यक्त की गई हैं।

    • पदों, नामों और लीलाओं के माध्यम से श्रीराधा-कृष्ण के प्रति आत्मसमर्पण का मार्ग।

    • लीलास्मरण के साथ-साथ विरह भाव को प्रबलता से प्रस्तुत करती है।


    🙏 पुस्तक किसके लिए उपयुक्त है:

    • राधा बल्लभ संप्रदाय के अनुयायियों के लिए।

    • श्रीराधा-कृष्ण की अष्टयाम सेवा में रुचि रखने वाले साधकों के लिए।

    • भावभक्ति, लीला-स्मरण और रसविचार में रुचि रखने वाले अध्यात्मप्रेमियों के लिए।


    "श्रीराधाबल्लभ अष्टयाम" न केवल एक ग्रंथ है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जो भक्ति के उच्च शिखर तक ले जाने वाला साधन है। यह ग्रंथ ह्रदय को प्रेम और विरह के रस में डुबो देता है।

  • संत-दर्शन’ पुस्तक भारतीय संत परंपरा का एक अमूल्य संग्रह है, जिसमें विभिन्न युगों के महान संतों, साधकों और भक्तों के जीवन, शिक्षाओं और उनके योगदान का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में उन संतों के चित्र और उनके जीवन की झलकियाँ दी गई हैं जिन्होंने भारतवर्ष की आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया और समाज में नैतिकता, प्रेम, करुणा तथा भक्ति का संदेश फैलाया।

    हनुमानप्रसाद पोद्दार जी के संपादन में प्रस्तुत यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक साधकों के लिए उपयोगी है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को समझने के लिए एक उत्कृष्ट स्रोत भी है। इसमें कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, मीराबाई, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक संतों के जीवन दर्शन को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

    इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह पाठकों को विभिन्न संत परंपराओं – भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, योग मार्ग – आदि के संतों की विविधता और उनकी आध्यात्मिक साधनाओं से परिचित कराती है। यह पुस्तक संतों के विचारों और उपदेशों के माध्यम से मनुष्य को आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    1. संतों की विविधता:
      यह ग्रंथ भारत की महान संत परंपरा की विविधता को दर्शाता है। इसमें शैव, वैष्णव, शाक्त, सिख, जैन, बौद्ध तथा निर्गुण भक्ति के अनेक संतों का वर्णन किया गया है। कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, रविदास, दादूदयाल, नामदेव, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, समर्थ रामदास, ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि संतों के जीवन प्रसंग और संदेश इसमें समाहित हैं।

    2. आध्यात्मिक दिशा और प्रेरणा:
      यह पुस्तक आत्मा की खोज, ईश्वर प्रेम, सेवा, तपस्या, त्याग, वैराग्य, भक्ति और मुक्ति जैसे गूढ़ विषयों को सहज रूप से प्रस्तुत करती है। यह पाठकों को न केवल आध्यात्मिक दृष्टि देती है, बल्कि एक शुद्ध और पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है।

    3. चित्र और दृश्यात्मक सौंदर्य:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर संतों की एक लहर सी दिखाई देती है जो प्रकाश की ओर अग्रसर हो रही है — यह दृश्य न केवल कलात्मक है बल्कि यह दर्शाता है कि संत समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले दीपक हैं।

    4. सामाजिक जागृति:
      संतों ने केवल आत्मकल्याण का मार्ग नहीं दिखाया, बल्कि समाज सुधार, छुआछूत मिटाने, जातिवाद का विरोध, प्रेम और भाईचारे की भावना को जगाने का कार्य भी किया। इस पुस्तक में उन संतों का विशेष वर्णन है जिन्होंने सामाजिक चेतना फैलाने का कार्य किया।

    5. सरल भाषा, गहरी बात:
      यह पुस्तक संस्कृतनिष्ठ नहीं है, बल्कि इसमें भक्तिभाव से ओतप्रोत सरल और भावपूर्ण हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे यह जनसामान्य के लिए भी सहज रूप से ग्राह्य हो जाती है।


    संतों का उद्देश्य और योगदान

    • संतों ने मानव को आत्मा और परमात्मा के संबंध का बोध कराया।

    • जीवन की क्षणभंगुरता का स्मरण कराते हुए सच्चे सुख की खोज भीतर करने को कहा।

    • अहंकार, मोह, माया और क्रोध से मुक्त होकर सेवा, त्याग और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

    • भक्ति मार्ग के साथ-साथ कर्म और ज्ञान के समन्वय पर भी बल दिया।


    उद्देश्य और उपयोगिता:

    ‘संत-दर्शन’ का मुख्य उद्देश्य है –

    • संतों के माध्यम से पाठकों के भीतर आत्मिक चेतना जगाना।

    • पाठकों को सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना।

    • समाज को आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से उन्नत बनाना।

    • भारत की गौरवशाली संत परंपरा को जन-जन तक पहुँचाना।

    यह पुस्तक धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत मूल्यवान है। इसे हर आयु वर्ग के पाठकों को पढ़ना चाहिए — विशेषकर युवाओं को, ताकि वे जीवन की दिशा को सही रूप से समझ सकें।


    निष्कर्ष:

    ‘संत-दर्शन’ केवल संतों के जीवन का परिचय नहीं है, यह एक जीवन-दर्शन है। इसमें छिपी शिक्षाएँ और प्रेरणाएँ आज के भटके हुए मानव के लिए एक प्रकाशस्तंभ के समान हैं। हनुमानप्रसाद पोद्दार जी द्वारा संकलित यह ग्रंथ भारतीय अध्यात्म का सार प्रस्तुत करता है, और यह हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो सच्चे ज्ञान, भक्ति और शांति की खोज में है।

  • ‘महाभागा व्रज देवियाँ पूज्य श्री राधा बाबा जी द्वारा रचित एक दिव्य एवं भावपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें ब्रज की गोपिकाओं, विशेषतः अष्ट महा सखियों (ललिता, विशाखा आदि) की अनुपम भक्ति, सेवा-भाव, त्याग और श्रीकृष्ण के प्रति उनकी पूर्ण समर्पित प्रेमाभक्ति का हृदयस्पर्शी वर्णन है।

    इस ग्रंथ में यह दर्शाया गया है कि ब्रज की गोपियाँ केवल रूपवती नहीं, अपितु भाववती, भक्ति में निष्णात, तथा अपने इष्ट श्रीकृष्ण के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित साधिकाएँ थीं। उनका प्रेम सांसारिक नहीं था, बल्कि आत्मा की परमात्मा के प्रति पुकार थी — जो सम्पूर्ण वेदों, यज्ञों और तपों से भी श्रेष्ठ था।


    🌸 मुख्य विषयवस्तु:

    • अष्ट सखियों की महिमा एवं उनका श्रीराधा-कृष्ण के साथ दिव्य लीलाओं में योगदान

    • गोपियों की निष्काम सेवा एवं अद्भुत समर्पण

    • ब्रज-जीवन की सात्विकता, सहजता और उसकी आध्यात्मिक ऊँचाई

    • प्रेम-भक्ति की सर्वोच्च अवस्था का विवेचन

    • श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम की रहस्यात्मक झलकियाँ


    उदाहरण स्वरूप भावपूर्ण अंश:

    "स्वामिन! बड़े-बड़े यज्ञ आपको अब तक तृप्त नहीं कर सके,
    परन्तु ब्रज की गोपिकाएँ धन्य हैं, जिनके बालक बनकर
    आपने उनके स्तनों से निसृत दुग्ध-सुधा का पान किया है।"

    यह पंक्ति स्पष्ट करती है कि ब्रज की गोपियों की निष्कलंक सेवा और वात्सल्य भावना कितनी ऊँची थी कि स्वयं श्रीकृष्ण को भी वह अधिक प्रिय लगीं, जो उन्हें वैदिक यज्ञों में प्राप्त नहीं हुईं।

    श्री राधा बाबा (स्वामी चक्रधर जी महाराज) गीता वाटिका, गोरखपुर के दिव्य संत थे। उनका सम्पूर्ण जीवन श्रीराधा के माधुर्य-भक्ति में लीन रहा। उनकी वाणी में रस, करुणा और सच्ची भक्ति की धारा बहती थी। उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथों में महाभाग गोपियाँ, गिरिराज गुंजन, श्री केलिकुंज लीला आदि प्रमुख हैं।

  • "अभिलाषामृत" एक गहन भावनात्मक एवं भक्ति से ओत-प्रोत ग्रंथ है, जिसे परम श्रद्धेय श्री राधेश्याम बांका जी ने रचा है। यह ग्रंथ श्रीकृष्ण प्राप्ति की तीव्रतम अभिलाषा को केंद्र में रखकर लिखा गया है, जहाँ एक साधक की अंतरतम व्याकुलता और तड़प को अत्यंत सरस एवं हृदयस्पर्शी शैली में व्यक्त किया गया है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • यह पुस्तक वृंदावन रसिक वाणी और गीताप्रेस गोरखपुर के सहयोग से प्रकाशित की गई है।

    • "अभिलाषामृत" में एक साधक की भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात् प्राप्ति हेतु हृदय से उठती गहन पुकार को दर्शाया गया है।

    • पुस्तक में राधा बाबा, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी, एवं अन्य महापुरुषों के जीवन और भक्ति की झलकियाँ भी मिलती हैं, जो साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

    • यह ग्रंथ भावप्रधान भक्ति मार्ग का उत्तम उदाहरण है, जो साधक को आत्मचिंतन, अनुराग और समर्पण की ओर प्रेरित करता है।

    श्री राधेश्याम बांका जी एक अत्यंत श्रद्धेय और भावमय लेखक हैं, जिन्होंने कई भक्तिमय ग्रंथों की रचना की है। उनकी लेखनी में श्रृंगार-रसिक भक्ति, महापुरुषों की जीवनगाथा, और शुद्ध हृदय से ईश्वर की प्राप्ति की उत्कंठा देखने को मिलती है।

    उनके अन्य प्रमुख ग्रंथ:

    • प्रियतम सौरभ – राधा बाबा की कविताओं पर आधारित विस्तृत व्याख्या (3 खंडों में)

    • प्रीति रसावतार महाभावनिमग्न श्री राधा बाबा – दो भागों में प्रकाशित, राधा बाबा की जीवनी

    • परिकर माला – पाँच खंडों में, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी आदि भक्तों का जीवन

    निष्कर्ष:

    "अभिलाषामृत" एक ऐसा आध्यात्मिक रत्न है जो भक्तों को श्रीकृष्ण की निष्काम भक्ति और पूर्ण समर्पण की अनुभूति कराता है। यह उन सभी साधकों के लिए अनमोल है, जो आध्यात्मिक पथ पर प्रेम, भक्ति और विरह के माध्यम से आगे बढ़ना चाहते हैं।

  • "केलि-कुंज" एक भक्तिमय और आध्यात्मिक ग्रंथ है जो श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं, प्रेम और भक्ति को केंद्र में रखकर लिखा गया है। इस पुस्तक में राधा-कृष्ण के मधुर मिलन, उनकी दिव्य लीलाओं और ब्रज की भावभूमि का अत्यंत सुंदर और रसपूर्ण वर्णन किया गया है।

    लेखक राधा बाबा ने इसे एक ऐसे रसिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है जो साधकों को भक्ति और प्रेम की उच्चतम अवस्थाओं की ओर प्रेरित करता है। इसमें भक्तिरस, माधुर्यभाव, लीलाचिंतन और रसराज श्रीकृष्ण की सखाओं-सखियों के संग का गहन वर्णन है।

    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. राधा-कृष्ण की मधुर लीलाएँ: पुस्तक में राधा और कृष्ण की विभिन्न रास लीलाओं का सुंदर और सरस वर्णन है। इन लीलाओं के माध्यम से भगवान के सौंदर्य, उनकी कोमलता और प्रेम के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया गया है।

    2. भाव-साधना और रसराज कृष्ण: यह पुस्तक केवल कथा नहीं है, बल्कि एक साधना-पथ है। इसमें भाव-भक्ति की उन ऊँचाइयों का वर्णन है जहाँ साधक स्वयं को लीलाओं में उपस्थित पाता है। ‘रसराज’ कृष्ण का निरूपण अत्यंत रसयुक्त भाषा में हुआ है।

    3. ब्रज संस्कृति और गोपियों की भक्ति: ग्रंथ में ब्रज की संस्कृति, वहाँ की गोपियाँ, उनकी सेवा-भावना और निश्छल प्रेम को अत्यंत भावुक रूप में चित्रित किया गया है। प्रत्येक गोपी की भक्ति का अपना विशेष रंग और स्वरूप है, जिन्हें लेखक ने अत्यंत गहराई से प्रस्तुत किया है।

    4. सेवा, विनय और समर्पण: केलि-कुंज केवल प्रेम या सौंदर्य की बात नहीं करता, यह सेवा और समर्पण की भी पराकाष्ठा दिखाता है। लेखक बताता है कि ब्रज में प्रेम का वास्तविक रूप केवल पाने का नहीं, अपितु खो देने का है — स्वयं को राधा-कृष्ण की सेवा में विलीन कर देना ही सच्चा प्रेम है।


    भाषा और शैली:

    लेखक राधा बाबा की लेखनी अत्यंत भावप्रवण, मधुर एवं रसयुक्त है। शुद्ध हिंदी और ब्रज भाषा के सुंदर संगम से यह पुस्तक एक काव्यात्मक आनंद देती है। शब्दों में ऐसा माधुर्य है कि पाठक न केवल पढ़ता है, बल्कि भावविभोर होकर अनुभव करता है।


    किनके लिए उपयुक्त है यह पुस्तक:

    • भक्ति और रसोपासना में रुचि रखने वाले साधक

    • राधा-कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखने वाले भक्त

    • ब्रज लीला और भाव-साधना में रुचि रखने वाले जिज्ञासु

    • भक्ति साहित्य पढ़ने वाले अध्येता

    • आध्यात्मिक चेतना की ओर उन्मुख साधक


    निष्कर्ष:

    "केलि-कुंज" एक ऐसी आध्यात्मिक निधि है जो केवल पढ़ने के लिए नहीं, अपितु आत्मा से अनुभूत करने के लिए है। यह पुस्तक पाठक को राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम-सागर में डुबो देती है और उसे उस कुंज तक पहुँचा देती है जहाँ भक्ति, प्रेम और सेवा का अमृत सतत प्रवाहित हो रहा है।

    यदि आप अध्यात्म, भक्ति और प्रेम की सच्ची अनुभूति करना चाहते हैं — तो "केलि-कुंज" आपके हृदय को गहराई से छूने वाला एक अनुपम ग्रंथ है।

  • यह पुस्तक स्वामी रामसुखदास द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक बाध्यकारी पेपरबैक है। पुस्तक प्रकाशक गीता प्रेस-गोरखपुर है। प्रथम संस्करण पुस्तक। इस पुस्तक के पृष्ठों की संख्या 192 है। यह पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखी गई है। यह एक धार्मिक ग्रंथ है।
    इस पुस्तक में स्वामी श्री रामसुखदास जी के प्रवचनों का एक अनुपम संग्रह है।
  • गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका बचपनसे ही अध्यात्म-पथ पर चल रहे थे, भक्तिके प्रचारके निमित्त उन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की । वहाँ सस्ते मूल्यपर गीता, रामायण तथा अन्य पारमार्थिक साहित्य जनसाधारणको मिलनेकी व्यवस्था की । स्वर्गाश्रममें गंगाके किनारे वैराग्यमय वटवृक्षपर तीन-चार महीनेके लिये सत्संगका आयोजन करना प्रारम्भ किया । किसी प्रकार मनुष्य भगवान्की ओर अग्रसर हों इसके लिये अथक प्रयास किया । अन्य स्थानोंपर घूम-घूमकर भी भगवद्भावोंका प्रचार करते रहे ।

    ऐसे जनहितकारी महापुरुषने एक अनोखी युक्ति सोची कि मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम, गीताजी आदि सुनाकर उनको मुक्त किया जाय । केवल मरणासन्न व्यक्ति ही नहीं, अपितु उसको भगवन्नाम, गीताजी सुनानेवाले भी मुक्त हो जायँ । एक प्रकारसे यह मुक्तिकी लूटका उपाय सोचा । इस हेतु उन्होंने गोविन्द भवन कोलकाता, गोरखपुर आदिमें परम सेवा समितिकी स्थापना की, वहाँ लोगोंको इस परम-सेवाके लिये उत्साहित किया और कितने ही लोगोंको इस प्रकार मुक्त किया ।

    लोगोंको जन्म-मरणके चक्रसे छुड़ानेके लिये बहुतसे प्रयास उन्होंने जीवनकालमें किये और उनकी प्रेरणासे अभी भी ऐसे कार्य हो रहे हैं । उन्होंने विभिन्न अवसरोंपर भगवन्नामकी महिमा और परम सेवाकी महत्ता पर विशेष रूपसे प्रवचन दिये । मृत्युके समय रोगीके साथ कैसे उपचार किया जाय-इन बातोंपर प्रकाश डाला । उनके उपरोक्त विषयोंपर सम्बन्धित प्रवचनोंको संकलित करके प्रस्तुत पुस्तकमें सम्मिलित किया गया है । भोग और शरीरका आराम ही मनुष्यको भगवत्प्राप्तिसे विमुख करानेवाले हैं । भोग और शरीरकेआराम महान् दुःखदायी तथा भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक हैं । कलियुगमें नामजप ही सर्वश्रेष्ठ साधन है, इन विषयोंके प्रवचन भी इस पुस्तकमें दिये गये हैं ।

    श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज श्रीगोयन्दकाजीके इस काममें पूरे सहयोगी रहे हैं । श्रद्धेय स्वामीजीके नाम-महिमा एवं परमसेवा पर कुछ प्रवचन इस पुस्तकमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । इन संतोंके भाव पाठकोंको एक साथ प्राप्त हो जायँ-इस दृष्टिसे यह प्रयास किया गया है ।

    पाठकगण इस पुस्तकको मन लगाकर पढ़ें एवं अपने प्रिय प्रेमी सज्जनों और बान्धवोंको इस पुस्तकको पढ़नेकी प्रेरणा करें । इस पुस्तकका पठन-पाठन हम सभीके जीवनको उन्नत बना देगा, ऐसी हमें आशा है ।