गुरु नानक की वाणी का विवरण (Guru Nanak Ki Vani Ka Varnan)
गुरु नानक देव जी की वाणी आध्यात्मिक ज्ञान, मानवता, प्रेम और सत्य के संदेश से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में ईश्वर की एकता, सेवा, करुणा और सत्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
1. एक ओंकार और एकता का संदेश
गुरु नानक जी की वाणी का मुख्य आधार "एक ओंकार" है, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में समाया हुआ है। उन्होंने जात-पात, धर्म और ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने की शिक्षा दी।
2. नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण)
गुरु नानक जी ने सिखाया कि ईश्वर का नाम (नाम सिमरन) जपने से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
3. सच्चा आचरण और ईमानदारी
उन्होंने कहा कि केवल बाहरी पूजा-पाठ से कुछ नहीं होगा, बल्कि सच्चे मन और ईमानदारी से जीवन जीना ही सच्ची भक्ति है।
4. कीर्तन और भजन
गुरु नानक जी की वाणी शबद कीर्तन के रूप में गाई जाती है, जो आत्मा को शांति और ईश्वर के करीब लाने में सहायक होती है।
5. वाणी का संकलन – गुरु ग्रंथ साहिब
गुरु नानक जी की वाणी को उनके शिष्यों ने संकलित किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा बनी। इसमें "जपुजी साहिब", "सिद्ध गोष्ठी" और अन्य शिक्षाएं शामिल हैं।
6. प्रमुख उपदेश (मूल मंत्र)
गुरु नानक जी ने "नाम जपो, किरत करो और वंड छको" का संदेश दिया, जिसका अर्थ है –
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नाम जपो – ईश्वर का स्मरण करो।
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किरत करो – ईमानदारी और मेहनत से जीवनयापन करो।
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वंड छको – दूसरों के साथ मिल-बाँटकर खाओ और उनकी सेवा करो।
7. सामाजिक और धार्मिक सुधार
गुरु नानक देव जी ने अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और कर्मकांडों का विरोध किया और सरल भक्ति मार्ग का प्रचार किया।
गुरु नानक की वाणी न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक है। उनकी वाणी प्रेम, शांति और समभाव का संदेश देती है।