• "सुखी बनो" एक आध्यात्मिक, नैतिक और आत्मविकास से परिपूर्ण प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसे गीता प्रेस के संस्थापक पुरुषों में से एक, पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने लिखा है। इस पुस्तक में व्यक्ति को "सच्चे सुख" के रहस्य से परिचित कराया गया है—जो बाह्य साधनों से नहीं, बल्कि अंतःकरण की निर्मलता, सद्भावना, ईश्वरप्रेम, और धर्ममय जीवन से प्राप्त होता है।

    यह पुस्तक जीवन की उन सूक्ष्म बातों को सरल भाषा में उद्घाटित करती है जिन्हें हम प्रतिदिन अनुभव तो करते हैं, लेकिन अक्सर उपेक्षित कर देते हैं।


    🔑 पुस्तक की मूल भावना:

    सुखी बनो” एक आशीर्वाद की तरह है—केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा से निकला एक सन्देश। इस पुस्तक में बताया गया है कि:

    • सुख संपत्ति, भोग, पद या बाहरी वैभव में नहीं है।

    • वास्तविक सुख है मन की शांति, संतोष, सकारात्मक दृष्टिकोण और ईश्वर में विश्वास

    • यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक सामान्य व्यक्ति भी, अपनी सोच और जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव कर के सदैव सुखी और शांतिमय जीवन जी सकता है।


    📖 मुख्य विषय-वस्तु और विचारधाराएँ:

    1. मन की दशा और दृष्टिकोण का प्रभाव

    • सुख या दुःख हमारी मानसिक स्थिति से उत्पन्न होते हैं।

    • मन यदि नियंत्रित और संतुलित हो, तो जीवन के कठिन दौर भी सहज हो जाते हैं।

    2. संतोष: सुख का मूल आधार

    • जो मिला है, उसमें प्रसन्न रहना—यह सबसे बड़ी पूँजी है।

    • लोभ, ईर्ष्या और असंतोष जीवन का विष है।

    3. कर्तव्यपालन और निष्काम कर्म

    • अपने कर्तव्यों को परमात्मा के अर्पण भाव से करना।

    • फल की चिंता न करते हुए सेवा भाव से कर्म करना सुख की कुंजी है।

    4. ईश्वरभक्ति और आत्म-संपर्क

    • जीवन में सच्चा सुख केवल ईश्वर की शरण में ही संभव है।

    • भक्ति, जप, ध्यान, सत्संग और धार्मिक अध्ययन से अंतःकरण शांत और निर्मल बनता है।

    5. मोह, माया और वासनाओं से मुक्ति

    • सुख की राह में मोह और विषय-वासनाएँ सबसे बड़ा बंधन हैं।

    • इनसे मुक्त होकर ही आत्मा के स्तर पर सुख का अनुभव किया जा सकता है।

    6. सच्चे सुखी कौन हैं?

    • जो दूसरों की सेवा करके हर्षित होते हैं।

    • जो लेने में नहीं, देने में विश्वास रखते हैं।

    • जो विपत्ति में भी धैर्य और आस्था रखते हैं।


    🌷 भाषा एवं शैली:

    • भाषा अत्यंत सरल, प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी है।

    • उदाहरणों और उपदेशों को सहज बोधगम्य शैली में प्रस्तुत किया गया है।

    • ऐसा लगता है जैसे कोई सज्जन और अनुभवी बुज़ुर्ग मन से आशीर्वाद दे रहा हो


    🎯 पुस्तक क्यों पढ़ें?

    • यदि आप मन की अशांति, असंतोष, या जीवन में निरर्थकता महसूस कर रहे हैं—यह पुस्तक आपको नवचेतना, आशा, और सकारात्मक दृष्टिकोण दे सकती है।

    • यह किसी धर्म, वर्ग या आयु के बंधन में नहीं है—हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो जीवन को सार्थक और सुखद बनाना चाहता है।

    • छात्र, गृहस्थ, साधक, सेवानिवृत्त, कर्मी, व्यवसायी, साधु — सभी इसके पाठ से लाभान्वित हो सकते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    "सुखी बनो" कोई साधारण पुस्तक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवन की चाबी है। यह पुस्तक हमें भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है और बताती है कि सच्चा सुख ना कहीं बाहर है, ना भविष्य में—बल्कि हमारे अपने हृदय में है। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ सच्ची मुस्कान और आत्मिक शांति की ओर एक कदम है।

  • Sale

    सिस्टर निवेदिता  / Sister Nivedita

    Original price was: ₹160.00.Current price is: ₹130.00.

    सिस्टर निवेदिता 

    "सिस्टर निवेदिता" पुस्तक स्वामी विवेकानंद की प्रमुख शिष्या, सिस्टर निवेदिता के जीवन, योगदान और शिक्षाओं को दर्शाती है। मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से सिस्टर निवेदिता बनने तक की उनकी यात्रा में, वे भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय जागरण में समर्पित रहीं।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    प्रारंभिक जीवन और स्वामी विवेकानंद से भेंट – कैसे स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाया।
    भारतीय समाज में योगदानमहिलाओं की शिक्षा, समाज सेवा और राष्ट्रीय चेतना के लिए उनका संघर्ष।
    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका – उन्होंने भारतीयों में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।
    साहित्यिक और शैक्षिक योगदान – उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे
    भारत के प्रति प्रेम और समर्पण – उन्होंने भारत को अपनी मातृभूमि माना और अपना जीवन भारतवासियों की सेवा में अर्पित कर दिया।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    इतिहास और आध्यात्मिकता के जिज्ञासुओं के लिए – जो भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण को समझना चाहते हैं।
    स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों के लिए – क्योंकि सिस्टर निवेदिता उनकी शिष्या थीं और उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
    राष्ट्रभक्तों और समाज सुधारकों के लिए – जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में रुचि रखते हैं।

  • श्री भगवान की असीम, अहैतुकी कृपा से ही जीव को मानव शरीर मिलता है। इसका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति ही है। परन्तु मनुष्य इस शरीर को प्राप्त करने के बाद अपने मूल उद्देश्य को भूलकर शरीर के साथ दृढ़ता से तादात्म्य कर लेता है और इसके सुख को ही परम सुख मानने लगता है। शरीर के सुखों में मान-बड़ाई का सुख सबसे सूक्ष्म होता है। इसकी प्राप्ति के लिए वह झूठ, कपट, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचार भी करने लग जाता है। शरीर के नाम में प्रियता होने से उसमें दूसरों से अपनी प्रशंसा, स्तुति की चाहना रहती है। वह यह चाहता है कि जीवन पर्यन्त मेरे को मान-बढ़ाई मिले और मरने के बाद मेरे नाम की कीर्ति हो। वह यह भूल जाता है कि केवल लौकिक व्यवहार के लिए शरीर का रखा हुआ नाम शरीर के नष्ट होने के बाद कोई अस्तित्व नहीं रखता। इस दृष्टि से शरीर की पूजा, मान-आदर एवं नाम को बनाए रखने का भाव किसी महत्व का नहीं है। परन्तु मनुष्य अपने प्रियजनों के साथ तो ऐसा व्यवहार करते ही हैं, जो सच्चे हृदय से जीवनभर भगवद्भक्ति में रहते हैं। अधिक क्या कहा जाए, उन साधकों का शरीर निष्प्राण होने पर भी उसकी स्मृति बनाये रखने के लिए वे उस शरीर को चित्र में आबद्ध करते हैं एवं उसको बहुत ही साज-सज्जा के साथ अन्तिम संस्कार-स्थल तक ले जाते हैं। विनाशी नाम को अविनाशी बनाने के प्रयास में वे उस संस्कार-स्थल पर छतरी, चबूतरा या मकान (स्मारक) आदि बना देते हैं। इसके सिवाय उनके शरीर से सम्बंधित एकपक्षीय घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर उनको जीवनी, संस्मरण आदि के रूप में लिखते और प्रकाशित कराते हैं। कहने को तो वे अपने-आपको उन साधकों का श्रद्धालु कहते हैं, पर काम वही करते हैं, जिसका वे साधक निषेध करते हैं। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। कपड़ेकी मजबूत जिल्द एवं सुन्दर रंगीन, लेमिनेटेड आवरणसहित। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ प्रत्येक देश, वेष, भाषा एवं सम्प्रदाय के साधकों के लिये साधन की उपयोगी एवं मार्गदर्शक सामग्री से युक्त है।
  • "साधन-सुधा-निधि" पुस्तक उन दिव्य प्रवचनों और लेखों का संकलन है जो स्वामी रामसुखदास जी महाराज द्वारा दिए गए, किंतु पूर्व में प्रकाशित ग्रंथ "साधन-सुधा-सिंधु" में सम्मिलित नहीं हो पाए थे। यह पुस्तक वास्तव में साधकों के लिए एक अमूल्य निधि है, जिसमें आत्मिक साधना, व्यावहारिक धर्म, और भगवद्भक्ति की अमृत वर्षा है।


    🌼 मुख्य विषयवस्तु:

    • जीवन को साधना में कैसे बदलें — दिनचर्या से लेकर विचारों तक।

    • ईश्वर की ओर बढ़ने के मार्ग — शरणागति, नम्रता, श्रद्धा और भक्ति का महत्त्व।

    • मानव जीवन की सार्थकता — सत्संग, सेवा, त्याग और ध्यान के माध्यम से।

    • दैनंदिन संघर्षों में आत्मिक संतुलन — क्रोध, लोभ, मोह से मुक्त होने के उपाय।

    • शास्त्रों की सरल व्याख्या — गीता, उपनिषद और संतवाणी के आधार पर।


    🌷 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • गूढ़ विषयों की अत्यंत सरल भाषा में व्याख्या

    • हर पृष्ठ साधकों के लिए एक दीपक के समान

    • प्रवचन शैली में आत्मीयता और प्रेरणा

    • पूर्ववर्ती ग्रंथ 'साधन-सुधा-सिंधु' के पूरक रूप में यह पुस्तक।


    🙏 यह पुस्तक किसके लिए उपयुक्त है:

    • जो आध्यात्मिक जीवन को व्यावहारिक जीवन में लाना चाहते हैं।

    • जो शुद्ध साधना के मार्ग पर चलना चाहते हैं।

    • गीता और रामसुखदास जी के भक्त व अनुयायी।

    • ईश्वर-प्राप्ति की सच्ची आकांक्षा रखने वाले साधक।


    "साधन-सुधा-निधि" वास्तव में एक ऐसी आध्यात्मिक संपत्ति है जो जीवन को परम उद्देश्य की ओर ले जाने वाली अमूल्य कुंजी प्रदान करती है। यह पुस्तक गीता प्रेस की उन अनुपम कृतियों में से है, जो हर साधक के पास होनी चाहिए।

  • "साधकों के पत्र" महान आध्यात्मिक साधक, विचारक और गीताप्रेस के संस्थापक-प्रेरक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखित वह अनुपम संकलन है, जिसमें उन्होंने विभिन्न साधकों, जिज्ञासुओं, भक्तों और जीवन की दिशा खोजने वाले लोगों को अपने पत्रों के माध्यम से आध्यात्मिक, नैतिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है।

    इन पत्रों में न तो उपदेश है, न कोई अहं — यह एक सच्चे आत्मज्ञानी की आत्मीयता, करुणा और अनुभव का सहज प्रवाह है।


    ✉️ पुस्तक की विशेषताएँ:

    1. वास्तविक जीवन के प्रश्नों के उत्तर:
      ये पत्र हनुमान प्रसाद जी को विभिन्न साधकों ने लिखे थे — जैसे:

      • "मैं घर में रहते हुए ईश्वर-भजन कैसे करूँ?"

      • "मन बहुत चंचल है, साधना में कैसे लगाऊँ?"

      • "गृहस्थ धर्म निभाते हुए मोक्ष की दिशा कैसे अपनाऊँ?"

      • "क्या भक्ति और ज्ञान एक साथ चल सकते हैं?"
        इन जैसे सैकड़ों प्रश्नों के उत्तर अत्यंत सरल, गहराई से और अनुभवपूर्ण रूप में इन पत्रों में दिए गए हैं।

    2. गंभीर विषयों की सरल व्याख्या:
      आत्मा, परमात्मा, माया, भक्ति, साधना, सेवा, व्रत, संकल्प, मानसिक स्थिति, वैराग्य, परिवार में रहते हुए साधना — इन विषयों पर लेखक ने अत्यंत सहज भाषा में अत्यधिक प्रभावशाली विचार प्रस्तुत किए हैं।

    3. सामान्य जीवन को आध्यात्मिक बनाना:
      यह पुस्तक दिखाती है कि केवल जंगलों या मठों में रहकर नहीं, बल्कि परिवार, व्यापार और समाज में रहते हुए भी हम पूर्ण साधना और ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

    4. लेखन शैली:
      लेखक की शैली अत्यंत आत्मीय, करुणामय और व्यावहारिक है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई बड़े-बुजुर्ग स्नेहपूर्वक आपका मार्गदर्शन कर रहे हों।


     

    श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (भाईजी) केवल एक लेखक नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के सबसे बड़े धर्मप्रचारकों में से एक थे। उन्होंने कल्याण पत्रिका के माध्यम से लाखों लोगों को आध्यात्मिकता की राह दिखाई। उनका जीवन स्वयं भक्ति, सेवा, साधना और त्याग का प्रतिमान था।


    🌿 पुस्तक का उद्देश्य:

    • साधकों की शंकाओं का समाधान करना

    • जीवन को ईश्वर-केन्द्रित बनाना

    • गृहस्थों के लिए भी साधना का मार्ग प्रशस्त करना

    • आत्मिक शांति व उन्नति के लिए यथार्थ मार्ग बताना


    🪔 पाठकों के लिए विशेष सन्देश:

    "साधकों के पत्र" एक ऐसी पुस्तक है जिसे आप एक बार नहीं, बार-बार पढ़ेंगे — हर बार नई प्रेरणा, नई दृष्टि और नई शांति मिलेगी। यह साधना-पथ पर चलने वालों के लिए एक अमूल्य पाथेय है।

  • सहज साधना  स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक ग्रंथ है, जो साधकों को आत्म-साक्षात्कार और भगवत्प्राप्ति के सरल, सहज और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। इस पुस्तक में स्वामी जी ने बताया है कि कैसे साधक बिना जटिल विधियों के, अपने दैनिक जीवन में ही साधना को आत्मसात कर सकते हैं।

    स्वामी जी के अनुसार, संसार के भोगों और कर्मों में आसक्ति ही दुःख का मूल कारण है। जब मनुष्य इनसे विरक्त होकर समत्व की स्थिति में स्थित होता है, तभी वह योगारूढ़ कहलाता है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए स्वामी जी ने तीन प्रमुख मार्ग बताए हैं

    • कर्मयोग: सभी क्रियाओं को निःस्वार्थ भाव से, केवल दूसरों के हित के लिए करना।

    • ज्ञानयोग: यह समझना कि सभी क्रियाएँ प्रकृति के गुणों के अनुसार होती हैं, और आत्मा अक्रिय है।

    • भक्तियोग: सभी क्रियाओं को भगवान की प्रसन्नता के लिए समर्पित करना                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    इन मार्गों का अनुसरण करके साधक संयोग की रुचि को समाप्त कर सकता है, जिससे उसे नित्ययोग की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि संसार का वियोग स्वाभाविक और अनिवार्य है, जबकि परमात्मा का योग सदा प्राप्त है। इसलिए, साधक को केवल संयोग की इच्छा का त्याग करना है, जिससे वह सहज रूप से परमात्मा में स्थित हो सकता है

  • 🌸 परिचय: हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

    हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (1892–1971) भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म के एक महान प्रचारक थे। वे गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के संस्थापक संपादक थे। उनके द्वारा रचित और संकलित सरस प्रसंग आज भी पाठकों के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करते हैं।


    📖 'सरस प्रसंग' का अर्थ

    ‘सरस’ का अर्थ है रसपूर्ण, हृदय को छूने वाले।
    ‘प्रसंग’ का अर्थ है घटना या किस्सा
    इस प्रकार ‘सरस प्रसंग’ उन प्रेरणादायक, भावपूर्ण और आध्यात्मिक घटनाओं को कहते हैं जो किसी संत, महापुरुष, या भक्त के जीवन से जुड़ी होती हैं और जिन्हें पढ़कर पाठक को श्रद्धा, भक्ति, विनम्रता और सदाचार की प्रेरणा मिलती है।


    🪔 हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंगों की विशेषताएं

    • सरल, सहज और हृदयस्पर्शी भाषा

    • छोटे-छोटे प्रसंगों में गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षा

    • संतों, भक्तों और भगवान की चरित्र-कथाओं का संकलन

    • प्रत्येक प्रसंग में नैतिकता और भक्ति का संदेश

    • आम जनमानस को भक्ति और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाली शैली।


    🌼 एक सरस प्रसंग (हनुमान प्रसाद जी की शैली में)

    प्रसंग: "सच्ची भक्ति"

    एक बार एक भक्त ने संत से पूछा —
    "महाराज! भगवान तो सबके हैं, फिर कुछ लोगों को ही उनकी कृपा क्यों मिलती है?"

    संत मुस्कराए और बोले —
    "बेटा! सूर्य तो सबके लिए चमकता है, पर जो अपनी आँखें खोलकर उसकी ओर देखता है, वही प्रकाश पाता है।
    उसी प्रकार, जो सच्चे मन से, विश्वासपूर्वक और विनम्रता से भक्ति करता है, भगवान की कृपा उसी पर प्रकट होती है।"

    संदेश: भगवान सबके हैं, पर उनका अनुभव वही करता है जो सच्चे मन से उन्हें पुकारता है।


    📚 कहाँ मिलेंगे हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंग?

    • गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित:

      • ‘कल्याण’ पत्रिका (वर्ष–संख्या जैसे: भक्तिसंकल्पांक, संत अंक, नाममहिमा अंक आदि)

      • भक्त चरित्र, महापुरुषों की जीवनगाथाएं, संतों के प्रेरक प्रसंग

      • सत्संग सुधा, रामकथा, कृष्णलीला आदि

  • सरल दुर्गा सप्तशती  

    दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्मग्रंथ मार्कण्डेय पुराण का एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली भाग है, जिसमें देवी दुर्गा की महिमा, उनके युद्ध, और उनके द्वारा असुरों का संहार करने की कथा वर्णित है। यह ग्रंथ 700 श्लोकों (इसलिए इसे "सप्तशती" कहा जाता है) का संग्रह है और इसे चंडी पाठ भी कहा जाता है।


    🌸 सरल दुर्गा सप्तशती क्या है?

    सरल दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती का ही एक सरल और आसान भाषा में रूपांतरित संस्करण है, जिसे आम लोग बिना किसी पंडित या विशेष विद्वान के सहायता के पढ़ और समझ सकें। इसमें कठिन संस्कृत श्लोकों की जगह सरल संस्कृत या हिंदी में अर्थ सहित पाठ होता है।


    🌟 मुख्य उद्देश्य


    📖 मुख्य कथाएँ

    सरल दुर्गा सप्तशती में तीन मुख्य देवी स्वरूपों की कथाएँ होती हैं:

    1. महाकालीमधु-कैटभ नामक असुरों का वध

    2. महालक्ष्मीमहिषासुर जैसे बलशाली राक्षस का संहार

    3. महालक्ष्मी (चंडी रूप में)शुंभ-निशुंभ, धूम्रलोचन आदि का विनाश


    🙏 सरल दुर्गा सप्तशती का महत्त्व

    • मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है

    • भय, शोक, रोग, शत्रु आदि से मुक्ति दिलाती है

    • साधक को आत्मविश्वास और आंतरिक ऊर्जा देती है

    • देवी की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावशाली माध्यम

  • समाज सृंखला ग्रंथ वैष्णव भक्तिधारा की गहनतम परंपरा, मर्यादा और भावनात्मक अनुशासन का परिचायक है। यह पुस्तक श्री हरिदासी संप्रदाय के महान संत श्री कुंजबिहारी श्री हरिदास जी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण रचना है, जो न केवल धार्मिक अनुशासन का उपदेश देती है, बल्कि समाज और साधकों को एक सूत्र में बाँधने वाले सिद्धांतों की व्याख्या भी करती है।

    यह ग्रंथ समाज (भक्त समुदाय) के भीतर अनुशासन, परस्पर सम्मान, सेवा-भावना, और अध्यात्मिक उत्तरदायित्वों की श्रृंखलाबद्ध व्याख्या करता है। यह हर उस व्यक्ति के लिए एक मार्गदर्शक है जो हरिदासी परंपरा, वैष्णव भक्ति और संतमत को जीवन में अपनाना चाहता है।


    📖 ग्रंथ की प्रमुख विशेषताएँ:

    🔹 गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व:

    इस ग्रंथ में बताया गया है कि गुरु ही जीवात्मा को परमात्मा से मिलाने का माध्यम होता है। शिष्य को पूर्ण समर्पण भाव, सेवा और श्रद्धा से गुरु के चरणों में जीवन अर्पित करना चाहिए।

    🔹 समाज का स्वरूप और मर्यादा:

    "समाज" का अर्थ केवल एकत्रित भक्तों का समूह नहीं, बल्कि एक ऐसा दिव्य वातावरण है जहाँ नियम, मर्यादा, सेवा, और प्रेमपूर्वक व्यवहार की प्रधानता होती है। हरिदासी समाज में किस प्रकार से अनुशासन बना रहे, उसका सुंदर वर्णन इसमें मिलता है।

    🔹 आचार-विचार एवं सेवा प्रणाली:

    भक्तों के दैनिक जीवन में किस प्रकार का आचरण होना चाहिए – जैसे वाणी की मधुरता, परनिंदा से बचाव, गुरुसेवा, भगवत्-स्मरण और परस्पर प्रेमभाव – इन सभी बातों को विस्तार से बताया गया है।

    🔹 सामूहिक साधना एवं भजन परंपरा:

    भक्तों को एकत्र होकर भगवन्नाम कीर्तन, सत्संग एवं भजन का आयोजन करना चाहिए। यह सामूहिक साधना आत्मशुद्धि का श्रेष्ठ माध्यम है और समाज को एकता में बाँधने का कार्य करती है।

    यह पुस्तक हरिदासी संप्रदाय की गूढ़ शिक्षाओं को आम भाषा में प्रस्तुत करती है। श्री हित हरिवंश महाप्रभु और श्री हरिदास जी के उपदेशों की छाया में यह ग्रंथ प्रेम, सेवा, और त्याग के मार्ग को दिखाता है।


    🌸 ग्रंथ का महत्त्व:

    समाज सृंखला केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। यह समाज में एकात्मता, साधकों में शुचिता, और गुरु-भक्त संबंधों में पवित्रता को स्थिर करती है। यह उन सभी साधकों के लिए अनमोल रचना है, जो भक्ति के मार्ग में दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहते हैं।

    यह ग्रंथ न केवल वैष्णव समाज के लिए उपयोगी है, बल्कि समस्त आध्यात्मिक साधकों को भी एक आदर्श जीवन की दिशा दिखाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी रचना के समय थीं।

    The book "Samaj Shrinchika" is a symbol of the deepest tradition, dignity and emotional discipline of Vaishnav Bhaktidhara. This book is an important work written by the great saint of Shri Haridasi sect, Shri Kunjbihari Shri Haridas Ji, which not only preaches religious discipline, but also explains the principles that bind the society and the seekers together. This book explains discipline, mutual respect, service-spirit, and spiritual responsibilities within the society (devotee community) in a series. It is a guide for every person who wants to adopt the Haridasi tradition, Vaishnav Bhakti and Santmat in life. 📖 Key features of the book: 🔹 Importance of Guru-disciple tradition: It is told in this book that the Guru is the medium to unite the soul with the Supreme Soul. The disciple should dedicate his life at the feet of the Guru with complete dedication, service and devotion. 🔹 Nature and dignity of society: "Samaj" does not mean only a group of devotees gathered together, but a divine environment where rules, dignity, service, and loving behavior are paramount. A beautiful description of how discipline should be maintained in the Haridasi society is found in this. 🔹 Conduct and service system: What kind of conduct should be there in the daily life of devotees - such as sweetness of speech, avoiding backbiting, Guru Seva, remembrance of God and mutual love - all these things have been explained in detail. 🔹 Group worship and bhajan tradition: Devotees should gather together and organize Bhagwannaam Kirtan, Satsang and Bhajan. This group worship is the best medium of self-purification and works to bind the society in unity. 🔹 Propagation of Haridasi principles: This book presents the esoteric teachings of the Haridasi sect in common language. In the shadow of the teachings of Shri Hit Harivansh Mahaprabhu and Shri Haridas Ji, this Granth shows the path of love, service, and sacrifice. 🌸 Importance of the Granth: "Samaj Shrine" is not just a religious book, but a way of life. It establishes unity in society, purity in seekers, and sanctity in the Guru-devotee relationship. It is a precious work for all those seekers who want to move forward firmly on the path of devotion. This Granth is not only useful for the Vaishnav society, but also shows the direction of an ideal life to all spiritual seekers. Its teachings are as relevant today as they were at the time of its creation.
  • "समता अमृत और विषमता विष" – यह पुस्तक श्री जयदयाल गोयन्दका जी द्वारा रचित एक गहन वैदिक और सांस्कृतिक चिंतन है, जो समाज में व्याप्त विषमता (असमानता) की जड़ों को उजागर करता है और समता (समानता) के वैदिक, धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों की महिमा को प्रस्तुत करता है।

    यह पुस्तक दर्शाती है कि समता ही मानवता का अमृत है, जबकि विषमता संहारक विष के समान है, जो समाज, राष्ट्र और आत्मा – तीनों का पतन करता है।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु / Key Themes:

    1. समता का वैदिक सिद्धांत:
      सभी जीवों में आत्मा समान है, भेद केवल शरीर, गुण और कर्म के आधार पर है। यह अध्यात्मिक समता का आधार है।

    2. विषमता का खंडन:
      जाति, वर्ण, पद, संपत्ति या जन्म के आधार पर उत्पन्न भेदभाव सामाजिक विकृति हैं, जिनका समर्थन न वेद करते हैं, न संत।

    3. धार्मिक ग्रंथों का सटीक विवेचन:
      गोयन्दका जी वेद, उपनिषद, गीता और अन्य शास्त्रों के प्रमाण देकर यह सिद्ध करते हैं कि धर्म कभी विषमता को नहीं मान्यता देता।

    4. सामाजिक समरसता का संदेश:
      पुस्तक समरस समाज की ओर प्रेरित करती है – जहाँ न ऊँच-नीच हो, न अहंकार हो, न अपमान।

    5. धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार:
      पाखंड, रूढ़िवाद और धर्म के नाम पर विषमता फैलाने वालों की कटु आलोचना की गई है, पर संतुलित और शास्त्रीय भाषा में।


    📚 पुस्तक की विशेषताएं / Highlights:

    • सरल, तर्कपूर्ण और ओजस्वी भाषा।

    • शास्त्र सम्मत तात्त्विक विवेचन।

    • धार्मिक दृष्टिकोण से सामाजिक समता का समर्थन।

    • आधुनिक समस्याओं पर सनातन समाधान।


    🎯 पाठकों के लिए उपयुक्त:

    • सामाजिक समरसता में रुचि रखने वाले

    • भारतीय दर्शन और धर्म के विद्यार्थी

    • वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से सामाजिक सुधार चाहने वाले

    • जाति-वर्ण पर तर्कपूर्ण और शास्त्रीय दृष्टिकोण समझना चाहने वाले


    📌 पुस्तक का उद्देश्य:

    धर्म और अध्यात्म के नाम पर समाज में फैलाई गई विषमता की आलोचना करते हुए, "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना से ओतप्रोत एक समतामूलक समाज की स्थापना का संदेश देना।

  • सफलता के सोपान

    सफलता कोई एक रात में मिलने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि यह निरंतर प्रयास, धैर्य और समर्पण का परिणाम होती है। "सफलता के सोपान" का अर्थ है—वह सीढ़ियाँ या चरण, जिनका अनुसरण करके कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

    सफलता के   सोपान:

    1. सपना देखना (लक्ष्य निर्धारण) – बिना लक्ष्य के सफलता संभव नहीं है। सफलता प्राप्त करने के लिए पहले एक स्पष्ट उद्देश्य तय करना जरूरी है।

  • हाँ संपूर्ण गीता सार का वर्णन हिंदी में प्रस्तुत है:


    संपूर्ण गीता सार (Sampoorn Gita Saar)

    1. जो हुआ, वह अच्छा हुआ।

    2. जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है।

    3. जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।

    तुम पछताते क्यों हो?
    जिस चीज को तुम खो चुके हो, वह तुम्हारी थी ही नहीं।
    और जो तुम्हारा है, वह तुमसे कभी जाएगा नहीं।


    जीवन के 5 मूल संदेश

    1. चिंता मत करो — व्यर्थ है।

    चिंता करने से कुछ नहीं बदलता। जो होना है, वह होकर रहेगा।

    2. मोह त्यागो — सब माया है।

    यह शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है।

    3. कर्म करो — फल की इच्छा मत रखो।

    तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है, फल पर नहीं।

    4. आत्मा अजर-अमर है।

    न इसे कोई जला सकता है, न काट सकता है, न मार सकता है।

    5. सब भगवान की इच्छा से है।

    तुम केवल एक माध्यम हो। अहंकार मत करो।


    श्रीकृष्ण का अंतिम सन्देश अर्जुन से:

    "मुझे पूर्णतः समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हारे सारे पापों से तुम्हें मुक्त कर दूँगा। शोक मत करो।"