• दृग-दृश्य-विवेक (Drig-Drishya-Viveka) एक प्रसिद्ध वेदांतिक ग्रंथ है, जिसे श्री आदि शंकराचार्य या उनके किसी शिष्य द्वारा रचित माना जाता है। यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की व्याख्या करता है और आत्मा (दृग) तथा दृश्य जगत (दृश्य) के बीच भेद को स्पष्ट करता है।

    दृग-दृश्य-विवेक  

    इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि

    1. दृग (द्रष्टा) और दृश्य (जो देखा जाता है) अलग हैं
      उदाहरण के लिए, आँखें बाहरी वस्तुओं को देखती हैं, लेकिन आँखें स्वयं चित्त (मन) द्वारा जानी जाती हैं।
      मन भी एक दृष्ट वस्तु है, जिसे आत्मा के प्रकाश में देखा जाता है।

    2. अंततः, केवल आत्मा ही शुद्ध द्रष्टा (साक्षी) है
      आत्मा स्वयं किसी के द्वारा देखी नहीं जा सकती, बल्कि वह स्वयं सर्वज्ञानी और स्वयंप्रकाशित है।

    3. माया और ब्रह्म के भेद को समझना
      दृश्य जगत परिवर्तनशील और नश्वर है, जबकि आत्मा नित्य, शुद्ध और अविनाशी है।
      जब साधक "नेति-नेति" (यह नहीं, वह नहीं) के माध्यम से भौतिक जगत को मिथ्या समझता है, तब वह अपनी वास्तविक प्रकृति (सच्चिदानंद स्वरूप) को पहचानता है।

    मुख्य शिक्षाएँ:

    • स्थूल (भौतिक) जगत अस्थायी है, जबकि आत्मा नित्य और शाश्वत है।

    • स्वयं को शुद्ध चैतन्य (आत्मा) के रूप में जानना ही मोक्ष का मार्ग है।

    • ज्ञानयोग के अभ्यास से आत्म-साक्षात्कार संभव है।

    यह ग्रंथ ध्यान और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से अद्वैत वेदांत को समझने के लिए एक प्रभावशाली साधन है।

  • कृपया स्पष्ट करें कि आप किस प्रकार का "Deva Vani with logo by description in Hindi" चाहते हैं:

    • क्या आप "Deva Vani" नाम का एक लोगो डिज़ाइन करवाना चाहते हैं, जिसका विवरण हिंदी में लिखा हो?

    • या आप चाहते हैं कि मैं "Deva Vani" नाम के लिए एक विवरण (description) हिंदी में लिखूं और साथ में एक लोगो बनाऊं?

    उदाहरण के लिए, यदि आप चाहते हैं:

    "Deva Vani एक आध्यात्मिक या धार्मिक चैनल/ब्रांड है, कृपया उसका लोगो बनाएं और हिंदी में उसका विवरण दें।"

    तो कृपया थोड़ी जानकारी दें:

    1. Deva Vani किस बारे में है? (जैसे: आध्यात्मिकता, भजन, योग, संस्कृत, धार्मिक प्रवचन आदि)

    2. लोगो में क्या शामिल होना चाहिए? (जैसे: ओम् चिन्ह, वेद, दीपक, कोई विशेष रंग आदि)

    मैं तब आपके लिए एक लोगो डिज़ाइन और एक सुंदर हिंदी विवरण तैयार कर सकता हूँ।

    क्या आप थोड़ा विवरण साझा कर सकते हैं?

  • "देवी भागवत की प्रमुख कथाएँ" गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित एक सुंदर और शिक्षाप्रद पुस्तक है, जो विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए बनाई गई है। इस पुस्तक में देवी भागवत पुराण की प्रमुख कहानियों को संक्षेप में रंगीन चित्रों के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को हमारे महान ग्रंथों के बारे में जानकारी मिलती है और उनके संस्कार तथा ज्ञान में वृद्धि होती है

    📖 प्रमुख कहानियाँ

    इस पुस्तक में निम्नलिखित प्रमुख कथाएँ संकलित हैं:

    • भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की कथा

    • मधु-कैटभ की कथा

    • महामुनि शुकदेव एवं तत्त्वज्ञानी जनक की कथा

    • भगवती महिषासुरमर्दिनी की कथा

    • राजा सुरथ एवं समाधि वैश्य को देवी-दर्शन की कथा

    • सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की कथा

    • भगवती शताक्षी (शाकम्भरी) की कथा

    • भगवती के 'दुर्गा' नाम का इतिहास

    • उमा (हैमवती) देवी की कथा

    • परात्पर भगवान श्यामसुंदर एवं मूल प्रकृति राधा की कथा

    • श्रीकृष्ण के वामांश से प्रकट राधा और श्रीकृष्ण द्वारा सृष्टि रचना की कथा

    • त्रिदेवों द्वारा भगवती की आराधना और रावणवध का वरदान

    • श्री भ्रामरी देवी की कथा

    • इन्द्रदर्पहारिणी भगवती आदिशक्ति की कथा

    • श्री भुवनेश्वरी देवी तथा उनका परमधाम मणिद्वीप की कथा

    • गायत्री महिमा और त्रिकालोपास्या भगवती गायत्री की कथा                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          इन कहानियों के माध्यम से पाठकों को देवी की विभिन्न लीलाओं, अवतारों और भक्तों के साथ उनके संबंधों की जानकारी मिलती है, जो उनके आध्यात्मिक विकास में सहायक होती है ।यह पुस्तक न केवल बच्चों के लिए एक आदर्श उपहार है, बल्कि सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए देवी भागवत पुराण की गूढ़ शिक्षाओं को सरल और रोचक रूप में प्रस्तुत करती है

  • तुलसीदास जी केवल रामकथा के कवि नहीं, बल्कि एक उच्चकोटि के समाजसुधारक और जीवनद्रष्टा भी थे। 'दोहावली' में उनका यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इस काव्य-संग्रह में 573 दोहे और सोरठा छंद हैं, जो पाठकों को न केवल धर्म का पाठ पढ़ाते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु:

    1. रामभक्ति:

      • भगवान राम के गुण, लीला और नाम की महिमा का भव्य वर्णन

      • राम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' रूप में देखना और उनसे प्रेरणा लेना

    2. नीति और सदाचार:

      • सत्य, संयम, दया, क्षमा, विनम्रता, स्वधर्म का पालन

      • राजा, प्रजा, गुरु, शिष्य, स्त्री, ब्राह्मण, वैश्य आदि के आचरण की शिक्षाएँ

    3. ज्ञान और वैराग्य:

      • संसार की नश्वरता का बोध

      • आत्मा, माया, जन्म-मृत्यु के चक्र की विवेचना

      • ईश्वर के प्रति समर्पण और अंतर्मुखी साधना की प्रेरणा

    4. समाज सुधार:

      • सामाजिक कुरीतियों पर करारा व्यंग्य

      • जाति, पाखंड, लोभ, छल, और दिखावे की आलोचना

      • सत्संग और सच्चे गुरु की महत्ता


    🌟 शैली और विशेषताएँ:

    • छंद शैली: दोहा और सोरठा — छोटे मगर गहरे अर्थवाले छंद

    • भाषा: ब्रज और अवधी मिश्रित, जो भावनाओं के सहज संप्रेषण में सक्षम है

    • भावार्थ: गीता प्रेस द्वारा प्रदत्त हिंदी व्याख्या सहज और सुपाठ्य है

    • पाठ के साथ चिंतन: हर दोहे में जीवन की दिशा देनेवाली चेतना छिपी है


    🧠 दोहावली से प्रेरक उदाहरण:

    (कुछ प्रसिद्ध दोहे)

    "तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
    वशीकरण एक मंत्र है, तजि कलुष वचन घोर॥"

    ➡️ मधुर वाणी ही सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है।

    "संत ह्रदय नवनीत सम, कठिन जाति कुचाल।
    जो छुवै दुःख दूसरन को, ताहि संत कहु काल॥"

    ➡️ संतों का हृदय माखन जैसा होता है, पर जो दूसरों को कष्ट दे, वह संत नहीं।


    🎯 पुस्तक किसके लिए उपयुक्त है?

    • जो लोग नीति, भक्ति और जीवन-दर्शन में रुचि रखते हैं

    • विद्यार्थी, गृहस्थ, साधक और समाजसेवी

    • जो तुलसी साहित्य को गहराई से समझना चाहते हैं

    • जो रामचरितमानस के समानांतर तुलसी के अन्य विचारों से परिचित होना चाहते हैं                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            दोहावली’ एक ऐसी कालजयी कृति है जो तुलसीदास जी की संतवाणी को जनमानस के हृदय तक पहुँचाती है। इसमें वर्णित दोहे सरल होते हुए भी अत्यंत गहन हैं। यह पुस्तक न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक जीवनशास्त्र है, जो हर व्यक्ति को एक श्रेष्ठ मनुष्य बनने की प्रेरणा देता है।

  • धर्मतत्त्व – स्वामी विवेकानंद द्वारा

    "धर्मतत्त्व" स्वामी विवेकानंद का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गहन विचारपूर्ण लेख है, जिसमें उन्होंने धर्म के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट किया है। यह केवल धार्मिक कर्तव्यों या कर्मकांडों का वर्णन नहीं है, बल्कि धर्म के दार्शनिक, नैतिक और आत्मिक पहलुओं की गहराई से विवेचना है।

    स्वामी विवेकानंद के अनुसार:

    • धर्म कोई संकीर्ण परंपरा या जातिगत नियम नहीं, बल्कि वह सार्वभौमिक सिद्धांत है जो मनुष्य और ब्रह्मांड दोनों को संचालित करता है।

    • सच्चा धर्म वह है जो व्यक्ति को अपने भीतर स्थित दिव्यता (ईश्वरत्व) का अनुभव कराए।

    • धर्म का मूल उद्देश्य आत्मोद्धार और मोक्ष की प्राप्ति है, न कि केवल बाहरी आडंबर या पूजा-पाठ।

    • स्वामीजी बताते हैं कि धर्म का स्वरूप समय, स्थान और व्यक्ति की स्थिति के अनुसार बदलता है, लेकिन उसका सार एक ही रहता है — सच्चाई, करुणा, आत्म-ज्ञान और परोपकार

    • उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का पालन केवल तभी सार्थक होता है, जब वह आत्मा की स्वतंत्रता और सभी प्राणियों में ईश्वर की भावना के साथ जुड़ा हो।

    धर्मतत्त्व – स्वामी विवेकानंद द्वारा

    "धर्मतत्त्व" स्वामी विवेकानंद का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गहन विचारपूर्ण लेख है, जिसमें उन्होंने धर्म के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट किया है। यह केवल धार्मिक कर्तव्यों या कर्मकांडों का वर्णन नहीं है, बल्कि धर्म के दार्शनिक, नैतिक और आत्मिक पहलुओं की गहराई से विवेचना है।

    स्वामी विवेकानंद के अनुसार:

    • धर्म कोई संकीर्ण परंपरा या जातिगत नियम नहीं, बल्कि वह सार्वभौमिक सिद्धांत है जो मनुष्य और ब्रह्मांड दोनों को संचालित करता है।

    • सच्चा धर्म वह है जो व्यक्ति को अपने भीतर स्थित दिव्यता (ईश्वरत्व) का अनुभव कराए।

    • धर्म का मूल उद्देश्य आत्मोद्धार और मोक्ष की प्राप्ति है, न कि केवल बाहरी आडंबर या पूजा-पाठ।

    • स्वामीजी बताते हैं कि धर्म का स्वरूप समय, स्थान और व्यक्ति की स्थिति के अनुसार बदलता है, लेकिन उसका सार एक ही रहता है — सच्चाई, करुणा, आत्म-ज्ञान और परोपकार

    • उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का पालन केवल तभी सार्थक होता है, जब वह आत्मा की स्वतंत्रता और सभी प्राणियों में ईश्वर की भावना के साथ जुड़ा हो।

  • धर्मविज्ञान - स्वामी विवेकानंद  

    धर्मविज्ञान का अर्थ है – धर्म का वैज्ञानिक और तर्कसंगत अध्ययन एवं उसका वास्तविक अनुभव। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, धर्म केवल आस्था या परंपरा नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवंत और अनुभव-सिद्ध प्रक्रिया है जिसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा और अपनाया जा सकता है।

    स्वामी विवेकानंद का मानना था कि सच्चा धर्म वह है जिसे स्वयं अनुभव किया जा सके, न कि केवल किताबों या परंपराओं के आधार पर स्वीकार किया जाए। उन्होंने धर्म को एक व्यक्तिगत आत्मानुभूति और आध्यात्मिक विज्ञान (Spiritual Science) के रूप में प्रस्तुत किया।

    उनके धर्मविज्ञान के मुख्य बिंदु:

    • धर्म का सार्वभौमिक स्वरूप: सभी धर्मों का मूल उद्देश्य एक ही है – सत्य की प्राप्ति और आत्मा की शुद्धि। उन्होंने सभी धर्मों के मूल तत्वों को एक जैसे बताया।

    • आत्मा की पहचान: उन्होंने कहा – "उठो, जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए, रुको मत।" उनका संदेश था कि हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर बसता है। आत्मा अमर है, शुद्ध है और वही हमारी सच्ची पहचान है।

    • व्यावहारिक वेदांत: आध्यात्मिकता केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होनी चाहिए। इसे जीवन में, समाज सेवा में और कर्म में उतारना ही सच्चा धर्म है।

    • धर्म और विज्ञान का मेल: विवेकानंद ने कहा कि जैसे विज्ञान भौतिक जगत की खोज करता है, वैसे ही धर्म अंतर्जगत (Inner World) की खोज करता है। दोनों का उद्देश्य सत्य की प्राप्ति है और दोनों में कोई विरोध नहीं है।

    निष्कर्ष:

    स्वामी विवेकानंद का धर्मविज्ञान एक ऐसा दर्शन है जो बुद्धि, अनुभव और कर्म पर आधारित है। यह न केवल आत्मा की उन्नति करता है, बल्कि समाज को भी जागरूक और सशक्त बनाता है। उनका धर्म केवल उपदेश नहीं था, वह जीवन जीने की एक सशक्त और वैज्ञानिक पद्धति थी।

  • नया भारत गढ़ो"  

       

    "नया भारत गढ़ो" एक प्रेरणादायक नारा है, जो देश की प्रगति, विकास और नव निर्माण की सोच को दर्शाता है। इसका उद्देश्य भारत को एक सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है।

    अर्थ और उद्देश्य:

    "नया भारत गढ़ो" का सीधा अर्थ है — "एक नए, उन्नत और मजबूत भारत का निर्माण करो।"
    यह संदेश सभी भारतीयों को उनके कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों की याद दिलाता है कि वे अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक योगदान दें।


    मुख्य विशेषताएँ:

    1. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण

    2. शिक्षा और तकनीकी विकास

    3. महिला सशक्तिकरण

    4. आत्मनिर्भर भारत (Make in India)

    5. भ्रष्टाचार मुक्त समाज

    6. डिजिटल इंडिया

    7. स्वास्थ्य और फिटनेस

    8. युवाओं की भागीदारी

    9. सांस्कृतिक एकता और विविधता

    10. रोजगार सृजन और स्टार्टअप्स को बढ़ावा


    संदेश:

    "नया भारत गढ़ो" केवल सरकार का नहीं, बल्कि हर नागरिक का सपना और जिम्मेदारी है। जब हर व्यक्ति अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाएगा, तभी एक स्वच्छ, सुंदर, आधुनिक और समृद्ध भारत

  • "नवधा भक्ति" पुस्तक प्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक जयदयाल गोयंदका जी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो भगवान श्रीराम द्वारा शबरी को बताए गए भक्ति के नौ प्रकारों — जिन्हें "नवधा भक्ति" कहा जाता है — का सारगर्भित और गूढ़ विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह पुस्तक रामचरितमानस की उस अमर शिक्षा पर आधारित है जिसमें श्रीराम ने शबरी से कहा था:

    “प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
    दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
    तृती भजनु करि कपट तजि गाना।
    चौथी भगति मम गुण गन करा ना॥”

    इत्यादि।


    🌿 नवधा भक्ति के नौ अंग:

    1. श्रवण – भगवान की कथा और गुणों को श्रवण करना

    2. कीर्तन – भगवन्नाम और लीला का कीर्तन करना

    3. स्मरण – भगवान का निरंतर स्मरण करना

    4. पादसेवन – प्रभु के चरणों की सेवा करना

    5. अर्चन – विग्रह या प्रतिमा की विधिपूर्वक पूजा करना

    6. वंदन – भगवान को नमस्कार अर्पित करना

    7. दास्य – स्वयं को भगवान का सेवक मानना

    8. साख्य – प्रभु को अपना सखा मानकर व्यवहार करना

    9. आत्मनिवेदन – सम्पूर्ण आत्मा का समर्पण कर देना


    🔍 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • सरल भाषा: पुस्तक अत्यंत सरल हिंदी में लिखी गई है, जिससे यह हर आयु वर्ग के पाठक के लिए सहज और सुगम बन जाती है।

    • धार्मिक शिक्षाओं का सार: इसमें प्रत्येक भक्ति अंग के महत्व, उदाहरण, व्यवहारिक पक्ष और आध्यात्मिक लाभों को गहराई से समझाया गया है।

    • प्रेरणादायक: यह ग्रंथ व्यक्ति को भक्ति-पथ पर अग्रसर करने वाला है और जीवन में भगवद्भाव, सेवा और समर्पण का भाव उत्पन्न करता है।

    • सचित्र प्रस्तुति: कवर चित्र में नवधा भक्ति के प्रत्येक अंग को एक-एक भक्त के माध्यम से दर्शाया गया है, जो दर्शनीय और शिक्षाप्रद है।


    🙏 यह पुस्तक उपयुक्त है:

    • भक्तों और साधकों के लिए जो श्रीराम या श्रीकृष्ण की भक्ति में आगे बढ़ना चाहते हैं

    • युवा पीढ़ी के लिए जो धर्म, भक्ति और मूल्यों की समझ प्राप्त करना चाहती है

    • धार्मिक संगठनों, पाठशालाओं या सत्संगों में भक्ति की शिक्षा देने हेतु

    • संस्कारवान जीवन जीने के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए


    निष्कर्ष:

    "नवधा भक्ति" केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है, जो बताता है कि कैसे मनुष्य भगवान से जुड़ सकता है — श्रवण से लेकर आत्मनिवेदन तक। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति दिखावे या बाह्य आडंबर में नहीं, बल्कि हृदय के प्रेम, सेवा और समर्पण में होती है।

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    नारद भक्ति सूत्र /Narad Bhakti Sutra

    Original price was: ₹80.00.Current price is: ₹60.00.

    पुस्तक परिचय: नारद भक्ति सूत्र 

    "नारद भक्ति सूत्र" एक अत्यंत महत्वपूर्ण भक्ति ग्रंथ है, जिसे देवर्षि नारद द्वारा रचित माना जाता है। यह पुस्तक 84 सूत्रों (संक्षिप्त वाक्यों) के माध्यम से भक्ति (ईश्वर-प्रेम) के स्वरूप, महत्व और उसके फलस्वरूप प्राप्त मोक्ष (मुक्ति) की व्याख्या करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    भक्ति की परिभाषा – भक्ति को निस्वार्थ, शुद्ध और प्रेममयी ईश्वर भक्ति के रूप में समझाया गया है।
    भक्ति के प्रकार – इसमें विभिन्न प्रकार की भक्ति और उनकी महत्ता को बताया गया है।
    अन्य मार्गों से तुलना – भक्ति को कर्म (कर्मयोग) और ज्ञान (ज्ञानयोग) की तुलना में श्रेष्ठ बताया गया है।
    समर्पण का महत्वईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना गया है।
    ऋषियों और संतों के उपदेश – इसमें प्राचीन ऋषियों और संतों की शिक्षाओं का संकलन भी है।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    आध्यात्मिक साधकों के लिए – जो भक्ति मार्ग और ईश्वर प्रेम को गहराई से समझना चाहते हैं।
    भक्ति योग के अनुयायियों के लिए – जो भक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहते हैं
    श्री विष्णु, श्री कृष्ण, श्री राम के भक्तों के लिए – जो ईश्वर की भक्ति और प्रेम को महसूस करना चाहते हैं

  • नारद भक्ति सूत्र एवं भक्ति 

    नारद भक्ति सूत्र एवं भक्ति विवेचन

    लेखक:

    नारद मुनि (प्राचीन ग्रंथ) | विवेचन: विभिन्न विद्वानों द्वारा


    विषय-वस्तु का परिचय:

    नारद भक्ति सूत्र एक अत्यंत प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसे महर्षि नारद द्वारा रचित माना जाता है। यह भक्ति योग (ईश्वर की भक्ति) के रहस्यों, स्वरूप, लक्षणों और साधनाओं की सरल और गूढ़ व्याख्या करता है।

    यह ग्रंथ भक्ति मार्ग को सरल, सहज और प्रेमपूर्ण बताता है। इसमें कुल 84 सूत्र (संक्षिप्त वाक्य) हैं, जो सीधे हृदय से जुड़ने वाले हैं।


    मुख्य विषय — नारद भक्ति सूत्र में क्या है?

    ● भक्ति क्या है?
    ● भक्ति का स्वरूप कैसा है?
    ● भक्ति के लक्षण कौन-कौन से हैं?
    ● भक्ति साधना के मार्ग कौन से हैं?
    ● सच्चे भक्त की पहचान क्या है?
    ● भक्ति किसे प्राप्त होती है?
    ● भक्ति में बाधाएँ और उनका समाधान
    ● प्रेम भक्ति का महत्व
    ● भगवान की कृपा का प्रभाव


    भक्ति विवेचन क्या है?

    "भक्ति विवेचन" का अर्थ है — भक्ति सूत्रों की व्याख्या, अर्थ और गहराई से समझ।
    यह भाग हमें सूत्रों के भावार्थ, उनके व्यवहारिक पहलू और जीवन में भक्ति को उतारने की विधि समझाता है।

    यह भाग भक्तों के उदाहरण, कथाएँ और उपदेश के रूप में भक्ति की व्याख्या करता है।


    उद्देश्य क्या है इस ग्रंथ का?

    "मनुष्य के जीवन को प्रेम और भक्ति से भर देना।
    ईश्वर से सीधा संबंध जोड़ना।
    सच्ची भक्ति को पहचानना और जीना।"


    विशेषताएँ:

    • सरल भाषा में गहन अध्यात्म

    • प्रेम, त्याग और समर्पण की सीख

    • ईश्वर प्रेम की सर्वोच्च महिमा

    • शुद्ध भक्ति का मार्गदर्शन

    • व्यवहारिक जीवन में भक्ति का प्रयोग

  • यह पुस्तक "नित्यकर्म-प्रयोग" है, जो कि गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित की गई है। इस पुस्तक का उद्देश्य हिन्दू धर्म में प्रतिदिन किए जाने वाले नित्य कर्मों (जैसे संध्या-वंदन, पूजा, जप, हवन आदि) का विधिपूर्वक अभ्यास सिखाना है।

    🔶 नित्यकर्म का अर्थ:

    हिन्दू धर्म में "नित्यकर्म" वे कर्म होते हैं जिन्हें प्रत्येक श्रद्धालु को प्रतिदिन करना अनिवार्य माना गया है। ये कर्म धर्मशास्त्रों द्वारा निर्धारित हैं और जीवन को शुद्ध, अनुशासित तथा ईश्वर-केन्द्रित बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं।

    "नित्यकर्म-प्रयोग" पुस्तक में इन नित्यकर्मों की संपूर्ण विधियों का वर्णन अत्यंत शास्त्रीय एवं व्यावहारिक रूप में किया गया है।


    🧘‍♂️ पुस्तक की प्रमुख सामग्री:

    1. संध्या-वंदन विधि:

    • ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्य जातियों के लिए त्रिकाल संध्या का विधान

    • गायत्री मंत्र जप की विधि और महत्व

    • आचमन, प्राणायाम, अर्घ्य-प्रदान, मार्जन, उपस्थान आदि की विधियाँ

    2. देव-पूजन:

    • गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य आदि की दैनिक पूजा पद्धति

    • पंचोपचार और षोडशोपचार पूजन की संक्षिप्त एवं विस्तृत विधियाँ

    • पुष्प अर्पण, धूप-दीप, नैवेद्य और आरती

    3. हवन-विधि:

    • अग्नि स्थापन, आहुति मंत्र, स्वाहा के प्रयोग के साथ हवन करना

    • गृहस्थों के लिए नित्य हवन का महत्व और सरल प्रयोग

    4. जप और ध्यान:

    • मंत्र-जप की मानसिक, वाचिक और उपांशु विधियाँ

    • ध्यान की सरल पद्धति — देवता का ध्यान कैसे करें?

    • माला की विधिवत उपयोग विधि

    5. स्नान-संस्कार:

    • स्नान से पूर्व मंत्र, स्नान की विधि, वस्त्र-धारण आदि

    • आत्म-शुद्धि और मनोभाव की शुद्धता पर बल

    6. तर्पण और पितृ-कर्म:

    • नित्य पितृ-तर्पण का संक्षिप्त विधान

    • पितरों को श्रद्धा से जल अर्पण करना क्यों आवश्यक है?

    7. आरती, स्तुति और प्रार्थनाएँ:

    • विभिन्न देवताओं की आरतियाँ और स्तुति

    • प्रातः-संध्या, मध्याह्न और सायं के समय की प्रार्थनाएँ


    🌟 विशेषताएँ:

    • सरल भाषा में जटिल वैदिक विधियों को प्रस्तुत किया गया है

    • संस्कृत श्लोकों के साथ उनका हिन्दी अनुवाद एवं उपयोग विधि भी दी गई है

    • चित्रों के माध्यम से विधियों की दृश्यात्मक सहायता दी गई है (जैसे कवर पर दिखाया गया है)

    • नवीन और अनुभवी साधकों दोनों के लिए उपयुक्त


    🖼️ मुखपृष्ठ की प्रतीकात्मक व्याख्या:

    कवर चित्र में:

    • केंद्र में एक दिव्य आकृति (भगवान) से प्रकाश फैल रहा है — यह परमात्मा का प्रतीक है जो सभी नित्यकर्मों का केंद्र है।

    • चारों ओर विभिन्न क्रियाएँ करते हुए पुरुष दर्शाए गए हैं — जो कि दैनिक धार्मिक कृत्यों जैसे पूजा, संध्या, जप, हवन, ध्यान आदि में लीन हैं।

    • यह चित्र यह बताता है कि ये सभी कर्म भगवान की कृपा प्राप्ति के साधन हैं।


    🎯 किसके लिए उपयोगी है यह पुस्तक?

    • विद्यार्थी जो वैदिक पद्धति सीखना चाहते हैं

    • गृहस्थजन जो नित्य कर्म करना आरंभ करना चाहते हैं

    • ब्राह्मण और कर्मकाण्ड करने वाले पुजारी

    • सनातन धर्म के साधक जो दैनिक साधना को नियमबद्ध बनाना चाहते हैं


    📘 निष्कर्ष:

    "नित्यकर्म-प्रयोग" केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक आदर्श दिनचर्या का पथदर्शक ग्रंथ है, जो जीवन में आध्यात्मिक अनुशासन, मानसिक शुद्धि, और ईश्वर से जुड़ाव को सहज बनाता है। यह पारंपरिक सनातन धर्म की अनमोल विधियों को सहज भाषा और शुद्ध स्वरूप में प्रस्तुत करता है।

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    नीति-शतकम् में व्यावहारिक ज्ञान,  धर्म, नैतिकता, और लोकनीति से संबंधित गूढ़ बातें सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत की गई हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला गया है:

    1. विद्या और ज्ञान का महत्व – यह बताता है कि ज्ञान और शिक्षा व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धन है।
    2. सज्जनों और दुर्जनों का स्वभाव – सज्जन (नेक) व्यक्ति और दुर्जन (दुष्ट) व्यक्ति के आचरण में अंतर बताया गया है।
    3. धन और संपत्ति का प्रभाव – धन की शक्ति और उसके सदुपयोग व दुरुपयोग पर चर्चा की गई है।
    4. मित्रता और शत्रुता – सच्चे मित्र और कपटी मित्र की पहचान के उपाय बताए गए हैं।
    5. सद्गुणों और चरित्र निर्माण – व्यक्ति को अपने चरित्र और गुणों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वही उसकी असली पहचान हैं।