• Kidrisyam-Bhavishyami (किद्रिस्यं-भविष्यामि) is a Sanskrit phrase that translates to "What will I become?" or "How will I be in the future?"

    Description:

    This phrase is often used in the context of self-reflection and future possibilities. It can relate to personality, destiny, success, or self-development.

    Grammatical Breakdown:

    • Kidrisyam (किद्रिस्यम्) = How / In what manner

    • Bhavishyami (भविष्यामि) = I will be / I will become

    It is a philosophical and introspective question that an individual might ask when contemplating their future, personal growth, or fate.

    किद्रिस्यं-भविष्यामि (Kidrisyam-Bhavishyami) संस्कृत भाषा का एक वाक्यांश है, जिसका अर्थ होता है "मैं कैसा बनूँगा?" या "भविष्य में मैं कैसा होऊँगा?"

    विवरण

    यह वाक्यांश मुख्य रूप से आत्मचिंतन और भविष्य की संभावनाओं को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह प्रश्न व्यक्तित्व, नियति, सफलता, या आत्मविकास से जुड़ा हो सकता है।

    व्याकरणिक संरचना:

    • किद्रिस्यम् (Kidrisyam) = कैसा / किस प्रकार

    • भविष्यामि (Bhavishyami) = मैं भविष्य में होऊँगा

    इसका प्रयोग व्यक्ति तब करता है जब वह अपने भविष्य को लेकर जिज्ञासु या चिंतित होता है। यह दार्शनिक, आध्यात्मिक, या व्यक्तिगत विकास से जुड़े चिंतन में एक महत्वपूर्ण प्रश्न बन सकता है

  • Kiratajurnium" शब्द स्पष्ट रूप से किसी विशेष ग्रंथ, पुस्तक या विषय का नाम प्रतीत होता है, लेकिन यह सामान्य या व्यापक रूप से प्रचलित शब्द नहीं है। ऐसा लग रहा है कि इसमें कोई वर्तनी (spelling) की त्रुटि हो सकती है।

    कृपया पुष्टि करें:

    क्या आप "Kirata Arjuniya" या "Kirātārjunīya" की बात कर रहे हैं?

    यदि हाँ, तो इसका विवरण नीचे दिया गया है:


    किरातार्जुनीयम् (Kirātārjunīya)  

    किरातार्जुनीयम् संस्कृत के महान कवि भारवि द्वारा रचित एक महाकाव्य है। यह काव्य महाभारत के वनपर्व पर आधारित है, जिसमें अर्जुन और भगवान शिव के बीच युद्ध का वर्णन है।

    मुख्य बिंदु:

    • यह महाकाव्य शिव और अर्जुन के बीच हुए युद्ध की कथा को केंद्र में रखता है।

    • अर्जुन, शिव की तपस्या करता है ताकि वह दिव्य अस्त्र प्राप्त कर सके।

    • शिव एक किरात (शिकारी) का रूप लेकर आते हैं और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं।

    • दोनों के बीच युद्ध होता है, और अंततः अर्जुन की वीरता और भक्ति से प्रसन्न होकर शिव उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान करते हैं।

    साहित्यिक विशेषताएँ:

    • यह संस्कृत काव्य अपने गूढ़ भाषा-शैली, अलंकारों और गंभीर भावनात्मक वर्णन के लिए प्रसिद्ध है।

    • इसे संस्कृत साहित्य की सबसे कठिन काव्यकृतियों में से एक माना जाता है।

  • "कृपामयी भगवद्गीता" पंडित श्रीरामसुखदास जी महाराज द्वारा रचित एक अत्यंत लोकप्रिय और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध पुस्तक है। यह पुस्तक भगवद्गीता का सरल, सहज और करुणामय भाष्य (टीका) प्रस्तुत करती है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की अनंत कृपा और करुणा को केंद्र में रखा गया है।

    यह पुस्तक विशेष रूप से उन पाठकों के लिए उपयुक्त है जो गीता के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में, भक्ति और श्रद्धा भाव के साथ समझना चाहते हैं। इसमें श्रीरामसुखदास जी महाराज ने गीता के प्रत्येक श्लोक की व्याख्या अत्यंत भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी और व्यावहारिक दृष्टिकोण से की है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    • सरल हिन्दी भाषा में गीता का भावार्थ

    • शुद्ध भक्तिपूर्ण शैली में रचना

    • आत्मकल्याण, निष्काम कर्म, और भगवान की कृपा पर बल

    • श्रीरामसुखदास जी महाराज की गहरी आध्यात्मिक दृष्टि का परिचय

    राजेन्द्र कुमार द्वारा विवरण:

    राजेन्द्र कुमार ने "कृपामयी भगवद्गीता" के संदर्भ में जो विवरण या प्रस्तावना दी है, वह पुस्तक के भावनात्मक पक्ष को और अधिक उजागर करता है। वे बताते हैं कि यह गीता केवल ज्ञान का ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवात्मा के लिए भगवान की कृपा का साक्षात अनुभव है। श्रीरामसुखदास जी की लेखनी में एक माँ की तरह ममता और एक संत की तरह करुणा झलकती है।

    "Kripamayi Bhagwat Geeta" by Swami Ramsukhdas and Rajendra Kumar is a spiritually rich interpretation of the Bhagavad Gita, presenting its timeless wisdom in a compassionate and easily relatable way. Here's a brief description in English:


    📘 Kripamayi Bhagwat Geeta 

    "Kripamayi Bhagwat Geeta", meaning "The Compassionate Bhagavad Gita", is a devotional and philosophical commentary on the Bhagavad Gita, emphasizing the boundless grace (kripa) of Lord Krishna. The book is a conversation between Lord Krishna and Arjuna, narrated in a way that highlights divine compassion, surrender, and the path to liberation through selfless action (karma yoga), devotion (bhakti yoga), and spiritual wisdom (jnana yoga).

    • Author: The teachings are based on the profound insights of Swami Ramsukhdas Ji, a revered saint known for his deep understanding of the Gita and simple, heartfelt style of explanation.

    • Presentation: Rajendra Kumar, known for his contributions in spreading spiritual literature, helps convey these teachings in an accessible and inspiring form.

    • Tone: The tone of the book is gentle and filled with reverence. It doesn’t focus on academic or philosophical jargon but instead touches the heart of the reader with the essence of divine love and grace.

    • Purpose: The book aims to make the Gita's messages more understandable to the common person, guiding them toward a peaceful and purposeful life, rooted in faith and devotion.

  • केना उपनिषद 

    परिचय:
    केना उपनिषद भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण उपनिषदों में से एक है। यह सामवेद से संबंधित उपनिषद है और इसमें ज्ञानयोग तथा उपासना का गूढ़ रहस्य बताया गया है। इसका मुख्य विषय "ब्रह्मविद्या" है, अर्थात् आत्मा और ब्रह्म के स्वरूप का ज्ञान।

    नाम का अर्थ:
    "केन" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है "किसके द्वारा"। इसलिए, केना उपनिषद आत्मा या ब्रह्म के ज्ञान के बारे में प्रश्न करता है—"किसके द्वारा यह सृष्टि संचालित होती है?"

    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. इंद्रियों का संचालक कौन? – इस उपनिषद की शुरुआत इस प्रश्न से होती है कि मनुष्य की इंद्रियों, मन, वाणी और प्राणों को कौन संचालित करता है? उत्तर में बताया जाता है कि यह सब "ब्रह्म" के द्वारा होता है, जो समस्त सृष्टि का आधार है।

    2. ब्रह्म का स्वरूप – यह उपनिषद बताता है कि ब्रह्म हमारी इंद्रियों और बुद्धि की पकड़ से परे है। वह देखने वाले की दृष्टि, सुनने वाले की श्रवण शक्ति, सोचने वाले की बुद्धि और बोलने वाले की वाणी से परे है।

    3. ज्ञान और अज्ञान का भेद – जो व्यक्ति यह सोचता है कि वह ब्रह्म को जानता है, वह वास्तव में उसे नहीं जानता। और जो यह स्वीकार करता है कि वह ब्रह्म को नहीं जानता, वह वास्तव में उसे जानने के करीब होता है।

    4. ब्रह्म की अनुभूति – इस उपनिषद में एक कथा आती है जिसमें देवताओं को यह भ्रम हो जाता है कि उन्होंने स्वयं अपने बल से विजय प्राप्त की है। तब ब्रह्म उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान कराते हैं और दिखाते हैं कि वास्तव में वही सृष्टि का आधार है।

    उपसंहार:
    केना उपनिषद हमें यह सिखाता है कि ब्रह्म को न तो इंद्रियों से देखा जा सकता है और न ही तर्क से समझा जा सकता है। वह केवल आत्मसाक्षात्कार के द्वारा जाना जा सकता है। इसका संदेश है कि ज्ञान का अहंकार छोड़कर विनम्रता और भक्ति के साथ आत्मा और ब्रह्म के रहस्य को समझने का प्रयास करना चाहिए।

    यह उपनिषद वेदांत दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और आत्मज्ञान की दिशा में एक अमूल्य ग्रंथ है।

  • केनोपनिषद्  

    परिचय:
    केनोपनिषद् (केन उपनिषद) सामवेद के तालवकार ब्राह्मण का एक भाग है और यह उपनिषद् वेदांत दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसका नाम "केन" शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ "किसके द्वारा" है। यह उपनिषद् मुख्य रूप से ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा के स्वरूप पर चर्चा करता है।

    मुख्य विषयवस्तु:

    1. ब्रह्म की सत्ता: केनोपनिषद् का पहला प्रश्न ही यह है— "केन इषितं पतति प्रेषितं मनः?" अर्थात, मन किसके द्वारा प्रेरित होकर कार्य करता है? इसके उत्तर में कहा गया है कि सभी इंद्रियों (नेत्र, कान, वाणी आदि) से परे जो शक्ति है, वही ब्रह्म है।

    2. ज्ञान और अज्ञान का भेद: इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति यह सोचता है कि उसने ब्रह्म को जान लिया है, वास्तव में उसने नहीं जाना, क्योंकि ब्रह्म इंद्रियों और बुद्धि से परे है।

    3. ब्रह्म और देवताओं की कथा: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार अग्नि, वायु और इंद्र को अपनी शक्ति पर अहंकार हो गया। तब ब्रह्म ने एक अदृश्य यक्ष के रूप में प्रकट होकर उन्हें उनकी सीमाओं का अहसास कराया। अंततः इंद्र को ही ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ।

    4. उपनिषद् का अंतिम संदेश: इस उपनिषद् में "तत् त्वं असि" (तू वही है) जैसे महावाक्य नहीं हैं, बल्कि यह बताता है कि ब्रह्म इंद्रियों और बुद्धि से परे अनुभव करने की चीज़ है। इसे केवल ध्यान और आत्मानुभूति द्वारा जाना जा सकता है।

    निष्कर्ष:
    केनोपनिषद् हमें यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वही है जो हमें आत्मा और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को समझने में सहायता करे। अहंकार का त्याग कर, ध्यान और आत्मचिंतन के द्वारा ही इसे प्राप्त किया जा सकता

  • केनोपनिषद् (Kena Upanishad) वेदों में से सामवेद के तलवकार शाखा से संबंधित एक प्रमुख उपनिषद है। यह उपनिषद "उपनिषदों की आत्मा" कहे जाने वाले ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान का गूढ़ विवेचन करता है। इसका नाम "केन" (अर्थात् "किससे") शब्द से पड़ा है, जो इसके पहले ही मंत्र में आता है:

    "केनेषितं पतति प्रेषितं मन:।"
    (मन किसके आदेश से गति करता है?)


    🔹 मूल विषय:

    केनोपनिषद् आत्मा, मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि की प्रेरणा शक्ति की खोज करता है। यह पूछता है कि:

    • कौन है वह शक्ति जो हमें सोचने, देखने, सुनने, और बोलने की क्षमता देती है?

    • क्या ये इन्द्रियाँ अपने-आप कार्य करती हैं या कोई और चेतना इन्हें संचालित करती है?


    🔹 उपनिषद के चार भाग:

    केनोपनिषद चार खंडों (खंडिका) में विभाजित है:

    शिष्य गुरु से पूछता है — मन, प्राण, वाणी, चक्षु आदि कैसे कार्य करते हैं?
    गुरु उत्तर देता है कि ये सब एक परम चेतना से प्रेरित हैं — वही ब्रह्म है।

    "श्रोत्रस्य श्रोत्रं... मनसो मन:..."
    (जो कान के पीछे का कान है, मन के पीछे का मन है...)

    यहाँ ब्रह्म को इन्द्रियों के परे बताया गया है।


    2️⃣ ब्रह्म का स्वरूप:

    ब्रह्म को बताया गया है कि:

    • जिसे इन्द्रियाँ नहीं पकड़ सकतीं

    • जिसे सोचकर भी नहीं जाना जा सकता

    • वही ब्रह्म है

    "यन्मनसा न मनुते... तद्ब्रह्म त्वं विद्धि"
    (जिसे मन नहीं जान सकता, वही ब्रह्म है)


    3️⃣ ब्रह्म की प्राप्ति की परीक्षा (उपाख्यान):

    एक रोचक कथा दी गई है —
    देवताओं को अहंकार हो गया कि उन्होंने असुरों पर विजय पाई।
    ब्रह्मा ने उनकी परीक्षा ली — एक रहस्यमय यक्ष प्रकट हुआ।
    देवता (अग्नि, वायु, इन्द्र) उसे पहचान नहीं पाए।

    इन्द्र ने आगे बढ़कर जानना चाहा — वहाँ उमा (ब्रह्मविद्या का रूप) प्रकट हुई और उसने बताया कि वह यक्ष ही ब्रह्म था।


    4️⃣ ब्रह्म का अनुभूतिपरक ज्ञान:

    ब्रह्म को तर्क से नहीं, केवल अनुभव से जाना जा सकता है।
    जो कहता है "मैं जानता हूँ", वह नहीं जानता।
    जो कहता है "मैं नहीं जानता", वही जानने के मार्ग पर है।


    🔹 मुख्य शिक्षाएं:

    1. ब्रह्म इन्द्रियों से परे है – वह देखने, सुनने, सोचने से परे है।

    2. सर्वशक्तिमान प्रेरक शक्ति – जो सबको प्रेरित करती है, वही ब्रह्म है।

    3. अहंकार ज्ञान में बाधक है – आत्मज्ञान के मार्ग में अहंकार का त्याग आवश्यक है।

    4. ब्रह्म अनुभव का विषय है – केवल शास्त्रों से नहीं, साधना से जाना जा सकता है।


    🔹 सरल निष्कर्ष:

    "ब्रह्म वह है, जिससे मन, वाणी, इन्द्रियाँ भी लौट आती हैं, क्योंकि वे उसे जान नहीं सकतीं।"
    अतः — सत्य ज्ञान केवल अनुभव से संभव है, अहंकार छोड़कर आत्म-चिंतन और साधना से।

  • "केलि-कुंज" एक भक्तिमय और आध्यात्मिक ग्रंथ है जो श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं, प्रेम और भक्ति को केंद्र में रखकर लिखा गया है। इस पुस्तक में राधा-कृष्ण के मधुर मिलन, उनकी दिव्य लीलाओं और ब्रज की भावभूमि का अत्यंत सुंदर और रसपूर्ण वर्णन किया गया है।

    लेखक राधा बाबा ने इसे एक ऐसे रसिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है जो साधकों को भक्ति और प्रेम की उच्चतम अवस्थाओं की ओर प्रेरित करता है। इसमें भक्तिरस, माधुर्यभाव, लीलाचिंतन और रसराज श्रीकृष्ण की सखाओं-सखियों के संग का गहन वर्णन है।

    मुख्य विषय-वस्तु:

    1. राधा-कृष्ण की मधुर लीलाएँ: पुस्तक में राधा और कृष्ण की विभिन्न रास लीलाओं का सुंदर और सरस वर्णन है। इन लीलाओं के माध्यम से भगवान के सौंदर्य, उनकी कोमलता और प्रेम के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया गया है।

    2. भाव-साधना और रसराज कृष्ण: यह पुस्तक केवल कथा नहीं है, बल्कि एक साधना-पथ है। इसमें भाव-भक्ति की उन ऊँचाइयों का वर्णन है जहाँ साधक स्वयं को लीलाओं में उपस्थित पाता है। ‘रसराज’ कृष्ण का निरूपण अत्यंत रसयुक्त भाषा में हुआ है।

    3. ब्रज संस्कृति और गोपियों की भक्ति: ग्रंथ में ब्रज की संस्कृति, वहाँ की गोपियाँ, उनकी सेवा-भावना और निश्छल प्रेम को अत्यंत भावुक रूप में चित्रित किया गया है। प्रत्येक गोपी की भक्ति का अपना विशेष रंग और स्वरूप है, जिन्हें लेखक ने अत्यंत गहराई से प्रस्तुत किया है।

    4. सेवा, विनय और समर्पण: केलि-कुंज केवल प्रेम या सौंदर्य की बात नहीं करता, यह सेवा और समर्पण की भी पराकाष्ठा दिखाता है। लेखक बताता है कि ब्रज में प्रेम का वास्तविक रूप केवल पाने का नहीं, अपितु खो देने का है — स्वयं को राधा-कृष्ण की सेवा में विलीन कर देना ही सच्चा प्रेम है।


    भाषा और शैली:

    लेखक राधा बाबा की लेखनी अत्यंत भावप्रवण, मधुर एवं रसयुक्त है। शुद्ध हिंदी और ब्रज भाषा के सुंदर संगम से यह पुस्तक एक काव्यात्मक आनंद देती है। शब्दों में ऐसा माधुर्य है कि पाठक न केवल पढ़ता है, बल्कि भावविभोर होकर अनुभव करता है।


    किनके लिए उपयुक्त है यह पुस्तक:

    • भक्ति और रसोपासना में रुचि रखने वाले साधक

    • राधा-कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखने वाले भक्त

    • ब्रज लीला और भाव-साधना में रुचि रखने वाले जिज्ञासु

    • भक्ति साहित्य पढ़ने वाले अध्येता

    • आध्यात्मिक चेतना की ओर उन्मुख साधक


    निष्कर्ष:

    "केलि-कुंज" एक ऐसी आध्यात्मिक निधि है जो केवल पढ़ने के लिए नहीं, अपितु आत्मा से अनुभूत करने के लिए है। यह पुस्तक पाठक को राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम-सागर में डुबो देती है और उसे उस कुंज तक पहुँचा देती है जहाँ भक्ति, प्रेम और सेवा का अमृत सतत प्रवाहित हो रहा है।

    यदि आप अध्यात्म, भक्ति और प्रेम की सच्ची अनुभूति करना चाहते हैं — तो "केलि-कुंज" आपके हृदय को गहराई से छूने वाला एक अनुपम ग्रंथ है।

  • "क्या करे क्या ना करे" को राजेंद्र कुमार धवन ने हिंदी में लिखा है। यह हिंदू धर्म पर एक किताब है। यह 20वीं संस्करण की हार्डकवर पुस्तक है जिसे 2016 में गीता प्रेस प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किया गया था। यह 15 से 80 वर्ष की आयु के लिए अनुशंसित है।

    🕉️ पुस्तक का उद्देश्य:

    यह पुस्तक जीवन में सदाचरण, धार्मिकता, और नैतिकता के महत्व को सरल भाषा में स्पष्ट करती है। इसमें बताया गया है कि:

    • मनुष्य को किन बातों का पालन करना चाहिए (क्या करें) और

    • किन बातों से बचना चाहिए (क्या न करें)

    पुस्तक का मूल उद्देश्य पाठकों को एक संतुलित, सात्विक और धर्मसम्मत जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करना है।


    🧘‍♂️ प्रमुख विषय-वस्तु:

    🔹 आचार-संहिता 

    • मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहने की प्रेरणा

    • माता-पिता, गुरु, अतिथि, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य

    🔹 क्या करें?

    • सत्य बोलना, दया करना, संयम रखना

    • प्रातःकाल उठना, स्नान, संध्या-वंदन, पूजा

    • समय का सदुपयोग, विद्या का सम्मान

    • संतों के साथ संगति, सत्संग, सेवा

    🔹 क्या न करें?

    • झूठ बोलना, क्रोध करना, चोरी, छल

    • निंदा, परनिंदा, ईर्ष्या, द्वेष

    • आलस्य, अपवित्र भोजन, व्यसन (नशा आदि)

    • शास्त्र-विरुद्ध आचरण

    🔹 जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लिए मार्गदर्शन:

    • विद्यार्थी के लिए कर्तव्य

    • गृहस्थ के लिए नैतिकता

    • समाज में आचरण के नियम

    • आत्मिक उन्नति के उपाय


    🖼️ कवर चित्र की व्याख्या:

    कवर पर एक वृद्ध और तेजस्वी ऋषि को ध्यानपूर्वक लेखन करते हुए दिखाया गया है। यह छवि वैदिक युग के आचार्यों की है, जो धर्मशास्त्रों को लिपिबद्ध कर समाज को मार्गदर्शन देते थे। यह इस पुस्तक के विषय को सार्थक रूप से दर्शाता है: ज्ञान, अनुशासन और सदाचार।


    🌟 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • अत्यंत सरल भाषा में जटिल विषयों की व्याख्या

    • व्यवहार में उतारे जा सकने योग्य प्रायोगिक ज्ञान

    • विशेष रूप से युवाओं, गृहस्थों और साधकों के लिए उपयोगी

    • नैतिक शिक्षा और धार्मिक अनुशासन का सामंजस्य


    🎯 यह पुस्तक क्यों पढ़ें?

    • जीवन में नैतिक और धार्मिक स्थिरता लाने के लिए

    • सही और गलत के बीच अंतर को समझने के लिए

    • आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से श्रेष्ठ बनने के लिए


    🔚 निष्कर्ष:

    "क्या करें, क्या न करें?" केवल एक पुस्तक नहीं है — यह एक आचार-संहिता, एक जीवन-मार्गदर्शिका है जो बताती है कि व्यक्ति किस प्रकार जीवन को धर्म, नैतिकता और संयम के आधार पर श्रेष्ठ बना सकता है। लेखक राजेन्द्र कुमार धवन ने इसे अत्यंत सरल और प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया है, जिससे यह पुस्तक हर आयु वर्ग के लिए उपयोगी बन जाती है।

     
  • "गिरिराज गुंजन" एक अत्यंत भावपूर्ण और रससिक्त ग्रंथ है, जो श्री राधा बाबा की श्री गिरिराज जी के प्रति अनन्य भक्ति, प्रेम और आंतरिक तल्लीनता का सजीव दस्तावेज़ है। यह ग्रंथ श्री राधेश्याम बांका द्वारा संकलित एवं प्रस्तुत किया गया है, जो राधा बाबा के परम भक्त एवं जीवनी लेखक हैं।

    यह पुस्तक उन भक्ति-पदों, वंदनाओं, और गीतों का संग्रह है, जो श्री राधा बाबा गिरिराज जी की परिक्रमा के समय गाया करते थे या जिनका गान उनके साथ रहने वाले साधक किया करते थे। इन पदों से न केवल गिरिराज जी की महिमा प्रकट होती है, बल्कि राधा बाबा के व्रज-भाव, गोपी-प्रेम, और रसराज श्रीकृष्ण के प्रति आत्मसमर्पण की झलक भी प्राप्त होती है।


    📖 विषयवस्तु एवं भावधारा:

    • यह ग्रंथ श्री गिरिराज जी की महिमा का निरंतर गुंजन है — इसलिए इसका नाम भी "गिरिराज गुंजन" रखा गया है।

    • इसमें वर्णित पद विरह, विनय, माधुर्य और करुणा से ओत-प्रोत हैं, जो साधक के हृदय को भक्ति से भर देते हैं।

    • पुस्तक में कई पद शृंगार-रसिक भक्ति परंपरा के हैं, जिनमें स्वामिनी राधिका के प्रति पूर्ण समर्पण भाव देखने को मिलता है।

    • हर पद, हर छंद एक आत्मा की पुकार है — "हे गिरिराज! मुझे अपने चरणों में रख लो, मुझे वृंदावन का कण-कण प्रिय है, मुझे केवल सेवा का अवसर चाहिए।"

    • इस ग्रंथ का अध्ययन करने से यह अनुभव होता है कि भक्ति केवल बाहरी आडंबर नहीं, वरन् एक आंतरिक ज्वाला है, जो गिरिराज महाराज की छाया में शांत और पूर्ण होती है।


    🌿 श्री राधा बाबा की छाया में:

    श्री राधा बाबा एक अद्वितीय रसिक संत थे, जिनका जीवन स्वामिनी राधिका और श्रीकृष्ण के प्रेम में पूर्णत: निमग्न था। उनका समस्त जीवन व्रजभावना, दैन्य, विनय और सेवा की जीवंत मूर्ति था।

    • वे गिरिराज जी की परिक्रमा अत्यंत श्रद्धा और प्रेम से करते थे।

    • यह पुस्तक उसी परिक्रमा लीलाओं, गायन, और अनुभवों का संग्रह है।


    🛕 आध्यात्मिक लाभ:

    • गिरिराज गुंजन उन साधकों के लिए अमूल्य निधि है जो व्रजभक्ति के सूक्ष्मतम रस का अनुभव करना चाहते हैं।

    • यह ग्रंथ परिक्रमा करने वालों, गिरिराज जी के उपासकों, और श्रीराधा-कृष्ण के प्रेमी साधकों के लिए एक मार्गदर्शक और सहचर है।

    • इस पुस्तक को पढ़ते हुए साधक मानसिक रूप से स्वयं को गोवर्धन के उस पवित्र परिवेश में उपस्थित अनुभव करता है, जहाँ बाबा के चरणों से प्रेम की गंगा बह रही हो।



    🪔 निष्कर्ष:

    "गिरिराज गुंजन" केवल एक भक्ति संग्रह नहीं है — यह एक अनुभव है, एक जीवंत रस यात्रा है, एक अनुपम काव्यात्मक साधना है, जो श्री गिरिराज महाराज और श्री राधा बाबा की कृपा से हमारे जीवन में भक्ति का नवप्रकाश भर सकती है।

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    गीतातत्त्व/ Gitatatva

    Original price was: ₹120.00.Current price is: ₹99.00.

    स्वामी सारदानन्द द्वारा रचित 'गीतातत्त्व' (Geetatattva) भगवद्गीता के गहन तत्वों पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पुस्तक रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित की गई है और हिंदी में उपलब्ध है। पुस्तक के हिंदी संस्करण का अनुवाद श्री नृसिंहवल्लभ गोस्वामी ने किया है। यह पेपरबैक संस्करण में 189 पृष्ठों की है

    पुस्तक की सामग्री में स्वामी सारदानन्द के गीता पर विचार और व्याख्याएँ शामिल हैं, जो पाठकों को गीता के दार्शनिक और आध्यात्मिक पहलुओं को समझने में सहायता करती हैं।

    इसके अतिरिक्त, 'गीतातत्त्व-चिन्तन' (Gita Tattwa Chintan) शीर्षक से दो खंडों में स्वामी आत्मानन्द द्वारा गीता पर हिंदी में व्याख्यान उपलब्ध हैं। पहला खंड गीता के परिचय और पहले दो अध्यायों को कवर करता है, जबकि दूसरा खंड तीसरे से छठे अध्याय तक की व्याख्या प्रदान करता है। ये पुस्तकें अद्वैत आश्रम द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

  • "गीतावली" गोस्वामी तुलसीदासजी कृत एक अत्यंत मधुर एवं भक्तिमय ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीराम की संपूर्ण लीला का गायन ब्रज भाषा में सुंदर छंदों और गीतों के माध्यम से किया गया है। यह ग्रंथ रामचरितमानस, कवितावली, और विनयपत्रिका के समान ही श्रीराम भक्ति से ओतप्रोत है।

    इस संस्करण में सरल भाषार्थ सहित भावों की व्याख्या दी गई है, जिससे सामान्य पाठक भी इस ग्रंथ के गूढ़ तत्वों को सहजता से समझ सके।


    📖 मुख्य विशेषताएँ:

    • संगीतात्मक शैली: गीतावली के सभी पद शास्त्रीय और लोकभाषा के रागों में रचित हैं, जिससे इसका पाठ एक संगीतमय भक्ति का अनुभव देता है।

    • रामचरित पर आधारित: इसमें श्रीराम के जीवन की घटनाओं को गीतों के रूप में वर्णित किया गया है – बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक।

    • भाषा: मूल ब्रज भाषा में है, किन्तु इस संस्करण में सरल हिंदी में अर्थ भी साथ में दिया गया है।

    • भावप्रधान काव्य: यह ग्रंथ भक्तों के भावों को प्रकट करने वाला और हृदय को स्पर्श करने वाला है।


    🕉 पुस्तक के मुख्य खंड (कांड):

    1. बालकांड

    2. अयोध्याकांड

    3. अरण्यकांड

    4. किष्किंधाकांड

    5. सुंदरकांड

    6. लंकाकांड

    7. उत्तरकांड


    🎨 कवर चित्र विशेष:

    इस गीता प्रेस संस्करण के मुखपृष्ठ पर भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की चित्रमय झांकी है, जो महलों की पृष्ठभूमि में दर्शाई गई है, जिससे पुस्तक का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सौंदर्य और भी निखरता है।


    🔖 उपयोगिता:

    यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है:

    • जो श्रीरामचरित को काव्य और संगीतात्मक रूप में पढ़ना चाहते हैं।

    • जो तुलसीदास जी की भक्ति भावना से जुड़ना चाहते हैं।

    • जो सरल भाषा में श्रीराम के चरित्र को आत्मसात करना चाहते हैं।

  • गुरु नानक की वाणी का विवरण (Guru Nanak Ki Vani Ka Varnan)

    गुरु नानक देव जी की वाणी आध्यात्मिक ज्ञान, मानवता, प्रेम और सत्य के संदेश से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में ईश्वर की एकता, सेवा, करुणा और सत्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

    1. एक ओंकार और एकता का संदेश

    गुरु नानक जी की वाणी का मुख्य आधार "एक ओंकार" है, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में समाया हुआ है। उन्होंने जात-पात, धर्म और ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने की शिक्षा दी।

    2. नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण)

    गुरु नानक जी ने सिखाया कि ईश्वर का नाम (नाम सिमरन) जपने से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

    3. सच्चा आचरण और ईमानदारी

    उन्होंने कहा कि केवल बाहरी पूजा-पाठ से कुछ नहीं होगा, बल्कि सच्चे मन और ईमानदारी से जीवन जीना ही सच्ची भक्ति है।

    4. कीर्तन और भजन

    गुरु नानक जी की वाणी शबद कीर्तन के रूप में गाई जाती है, जो आत्मा को शांति और ईश्वर के करीब लाने में सहायक होती है।

    5. वाणी का संकलन – गुरु ग्रंथ साहिब

    गुरु नानक जी की वाणी को उनके शिष्यों ने संकलित किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा बनी। इसमें "जपुजी साहिब", "सिद्ध गोष्ठी" और अन्य शिक्षाएं शामिल हैं।

    6. प्रमुख उपदेश (मूल मंत्र)

    गुरु नानक जी ने "नाम जपो, किरत करो और वंड छको" का संदेश दिया, जिसका अर्थ है –

    1. नाम जपो – ईश्वर का स्मरण करो।

    2. किरत करो – ईमानदारी और मेहनत से जीवनयापन करो।

    3. वंड छको – दूसरों के साथ मिल-बाँटकर खाओ और उनकी सेवा करो।

    7. सामाजिक और धार्मिक सुधार

    गुरु नानक देव जी ने अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और कर्मकांडों का विरोध किया और सरल भक्ति मार्ग का प्रचार किया।

    गुरु नानक की वाणी न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक है। उनकी वाणी प्रेम, शांति और समभाव का संदेश देती है।