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    परमार्थ प्रसंग /Paramarth Prasang

    Original price was: ₹70.00.Current price is: ₹50.00.

     "परमार्थ प्रसंग" – स्वामी विवेकानंद (Paramarth Prasang by Swami Vivekananda)

    "परमार्थ प्रसंग" स्वामी विवेकानंद के विभिन्न प्रवचनों, लेखों और संवादों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने आध्यात्मिकता, वेदांत, योग, समाज सुधार, और मानव सेवा जैसे विषयों पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए उपयोगी है जो आध्यात्मिक उन्नति, आत्मज्ञान और सेवा के महत्व को समझना चाहते हैं

    पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    1. परमार्थ (उच्चतम आध्यात्मिक सत्य) की खोज

    • स्वामी विवेकानंद समझाते हैं कि परमार्थ का अर्थ केवल धार्मिक कर्मकांडों से नहीं, बल्कि आत्मबोध और मानवता की सेवा से है
    • वे बताते हैं कि सच्चा परमार्थ आत्मा की उन्नति और समाज के कल्याण में निहित है

    2. सेवा, कर्म और भक्ति का महत्व

    • वे कहते हैं कि परमार्थ का सर्वोत्तम मार्ग सेवा है – मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है।
    • कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

    3. भारतीय संस्कृति और वेदांत

    • वेदांत के सिद्धांतों की सरल भाषा में व्याख्या करते हुए, वे यह दर्शाते हैं कि कैसे आध्यात्मिकता ही भारत की आत्मा है
    • वे भारतीय परंपराओं और आधुनिक विज्ञान के समन्वय पर बल देते हैं।

    4. आत्मनिर्भरता और साहस

    • वे आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और संघर्ष की भावना को आवश्यक मानते हैं।
    • वे युवाओं को अपने भीतर छिपी असीम शक्ति को पहचानने और जीवन में महान कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं

    5. समाज सुधार और मानव कल्याण

    • वे कहते हैं कि परमार्थ का अर्थ केवल आत्म-उन्नति नहीं, बल्कि समाज के कल्याण से भी जुड़ा है
    • जातिवाद, गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए शिक्षा और सेवा को अनिवार्य मानते हैं
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    परमहंस चरित / Paramahansh Charita

    Original price was: ₹90.00.Current price is: ₹65.00.

    परमहंस चरित 

    "परमहंस चरित" एक आध्यात्मिक जीवनी है जो श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन, शिक्षाओं और दिव्य अनुभवों को प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक उनकी अद्भुत भक्ति, साधना, और विभिन्न मार्गों से ईश्वर प्राप्ति के अनुभवों को उजागर करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    श्री रामकृष्ण का जीवन परिचय – उनका बाल्यकाल, साधना मार्ग, और ईश्वर साक्षात्कार का वर्णन।
    भक्ति और साधना का मार्गमाँ काली की उपासना और भक्ति का महत्व।
    विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों की व्याख्याभक्ति, ज्ञान, कर्म, और योग के माध्यम से ईश्वर-प्राप्ति का संदेश।
    सर्वधर्म समभाव का संदेश – उनका यह विश्वास कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं
    स्वामी विवेकानंद पर प्रभाव – उनकी शिक्षाओं ने स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन को कैसे प्रेरित किया।

  • गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका बचपनसे ही अध्यात्म-पथ पर चल रहे थे, भक्तिके प्रचारके निमित्त उन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की । वहाँ सस्ते मूल्यपर गीता, रामायण तथा अन्य पारमार्थिक साहित्य जनसाधारणको मिलनेकी व्यवस्था की । स्वर्गाश्रममें गंगाके किनारे वैराग्यमय वटवृक्षपर तीन-चार महीनेके लिये सत्संगका आयोजन करना प्रारम्भ किया । किसी प्रकार मनुष्य भगवान्की ओर अग्रसर हों इसके लिये अथक प्रयास किया । अन्य स्थानोंपर घूम-घूमकर भी भगवद्भावोंका प्रचार करते रहे ।

    ऐसे जनहितकारी महापुरुषने एक अनोखी युक्ति सोची कि मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम, गीताजी आदि सुनाकर उनको मुक्त किया जाय । केवल मरणासन्न व्यक्ति ही नहीं, अपितु उसको भगवन्नाम, गीताजी सुनानेवाले भी मुक्त हो जायँ । एक प्रकारसे यह मुक्तिकी लूटका उपाय सोचा । इस हेतु उन्होंने गोविन्द भवन कोलकाता, गोरखपुर आदिमें परम सेवा समितिकी स्थापना की, वहाँ लोगोंको इस परम-सेवाके लिये उत्साहित किया और कितने ही लोगोंको इस प्रकार मुक्त किया ।

    लोगोंको जन्म-मरणके चक्रसे छुड़ानेके लिये बहुतसे प्रयास उन्होंने जीवनकालमें किये और उनकी प्रेरणासे अभी भी ऐसे कार्य हो रहे हैं । उन्होंने विभिन्न अवसरोंपर भगवन्नामकी महिमा और परम सेवाकी महत्ता पर विशेष रूपसे प्रवचन दिये । मृत्युके समय रोगीके साथ कैसे उपचार किया जाय-इन बातोंपर प्रकाश डाला । उनके उपरोक्त विषयोंपर सम्बन्धित प्रवचनोंको संकलित करके प्रस्तुत पुस्तकमें सम्मिलित किया गया है । भोग और शरीरका आराम ही मनुष्यको भगवत्प्राप्तिसे विमुख करानेवाले हैं । भोग और शरीरकेआराम महान् दुःखदायी तथा भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक हैं । कलियुगमें नामजप ही सर्वश्रेष्ठ साधन है, इन विषयोंके प्रवचन भी इस पुस्तकमें दिये गये हैं ।

    श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज श्रीगोयन्दकाजीके इस काममें पूरे सहयोगी रहे हैं । श्रद्धेय स्वामीजीके नाम-महिमा एवं परमसेवा पर कुछ प्रवचन इस पुस्तकमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । इन संतोंके भाव पाठकोंको एक साथ प्राप्त हो जायँ-इस दृष्टिसे यह प्रयास किया गया है ।

    पाठकगण इस पुस्तकको मन लगाकर पढ़ें एवं अपने प्रिय प्रेमी सज्जनों और बान्धवोंको इस पुस्तकको पढ़नेकी प्रेरणा करें । इस पुस्तकका पठन-पाठन हम सभीके जीवनको उन्नत बना देगा, ऐसी हमें आशा है ।

  • "परम साधन – भाग 2" पूज्य जयदयाल गोयन्दका जी की एक अत्यंत गूढ़, प्रेरणादायी और शास्त्रसम्मत आध्यात्मिक कृति है। यह पुस्तक विशेष रूप से साधकों (spiritual aspirants) के लिए लिखी गई है जो आत्मोन्नति, भक्ति और मोक्ष की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।

    पुस्तक में भक्ति, ज्ञान, ध्यान, वैराग्य और ईश्वर प्राप्ति जैसे विषयों पर अत्यंत सरल, तार्किक और अनुभवसिद्ध रूप से विवेचन किया गया है।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु / 

    1. ईश्वर प्राप्ति का मार्ग – परम साधन:
      मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है, और उसके लिए कौन-से साधन श्रेष्ठ हैं, इसका विस्तार से वर्णन है।

    2. भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की साधना:
      पुस्तक बताती है कि कैसे भक्ति के साथ-साथ ज्ञान और वैराग्य की आवश्यकता है, जिससे मन स्थिर हो और आत्मा शुद्ध हो।

    3. साधक के लिए व्यवहारिक मार्गदर्शन:
      एक साधक को दिनचर्या कैसी रखनी चाहिए, विचार और व्यवहार कैसा होना चाहिए – इसका विशद वर्णन किया गया है।

    4. शुद्धि और मनोनिग्रह:
      मन को वासनाओं से मुक्त कर ईश्वर में स्थिर करने की विधियाँ दी गई हैं। साधना के लिए मानसिक शुद्धता को अत्यंत आवश्यक बताया गया है।

    5. वेद, उपनिषद और गीता पर आधारित विचार:
      पूरे ग्रंथ में शास्त्रों का भरपूर संदर्भ है – जिससे यह पुस्तक न केवल प्रेरक, बल्कि प्रमाणिक भी बनती है।


    📚 पुस्तक की विशेषताएं /

    • सरल, भक्तिपूर्ण एवं स्पष्ट भाषा

    • शास्त्र आधारित और तात्त्विक विवेचन

    • साधकों के लिए उपयोगी सूत्र, नियम और अभ्यास

    • गहन चिंतन और आत्मविश्लेषण हेतु उपयुक्त ग्रंथ


    🙏 पाठकों के लिए उपयुक्त:

    • साधक एवं आध्यात्मिक पथ के जिज्ञासु

    • भक्ति, योग, ध्यान और मोक्ष मार्ग के अनुयायी

    • गीता और वेदांत दर्शन में रुचि रखने वाले

    • संयम और आंतरिक उन्नति चाहने वाले पाठक


    🎯 पुस्तक का उद्देश्य:

    जीवन को आत्मोन्मुख बनाकर परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग को सरल, व्यावहारिक और सिद्ध रूप में प्रस्तुत करना – यही इस ग्रंथ का लक्ष्य है। यह साधक के लिए एक दीपस्तंभ की भांति कार्य करता है।

  •  Path-Pradarshika is not just a means to show directions but also a source of inspiration, knowledge, and guidance that helps individuals and societies progress

    पथ-प्रदर्शिका का अर्थ और विवरण

     
    "पथ-प्रदर्शिका" एक संस्कृत-हिंदी शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है—"पथ" (मार्ग या रास्ता) और "प्रदर्शिका" (दिखाने वाली)। इसका शाब्दिक अर्थ है "रास्ता दिखाने वाली" या "मार्गदर्शक"

    अर्थ और उपयोग:
    पथ-प्रदर्शिका का उपयोग उस व्यक्ति, वस्तु, या विचार के लिए किया जाता है जो दूसरों को सही दिशा दिखाने में मदद करता है। यह एक गुरु, शिक्षक, पुस्तक, विचारधारा, या मार्गदर्शक सिद्धांत को दर्शा सकता है।

    उदाहरण:

    1. व्यक्तिगत मार्गदर्शन:

    2. पुस्तक या साहित्य:

      • भगवद गीता, रामायण, और महाभारत जैसी ग्रंथों को आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शिका माना जाता है।

      • सफलता के नियम बताने वाली पुस्तकें भी पथ-प्रदर्शिका हो सकती हैं।

    3. प्रौद्योगिकी और दिशानिर्देश:

      • Google Maps एक डिजिटल पथ-प्रदर्शिका की तरह कार्य करता है।

      • किसी नए व्यवसाय के लिए एक अच्छी रणनीति पथ-प्रदर्शिका का काम करती है।

    निष्कर्ष:

    "पथ-प्रदर्शिका" केवल मार्ग दिखाने वाला साधन नहीं, बल्कि प्रेरणा, ज्ञान, और सही दिशा प्रदान करने वाला तत्व भी है, जो व्यक्ति या समाज को उन्नति की ओर ले जाता है।

  • योग दर्शन का वर्णन 

    परिचय:

    योग दर्शन भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है, जिसे महर्षि पतंजलि ने सूत्रों के रूप में संकलित किया। यह दर्शन व्यक्ति के आत्म-साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने पर बल देता है। योग दर्शन मुख्यतः "पतंजलि योग सूत्र" के माध्यम से जाना जाता है, जिसमें कुल 195 सूत्र हैं।


    योग दर्शन की विशेषताएं:

    1. अष्टांग योग (Ashtanga Yoga):
      पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिसे अष्टांग योग कहा जाता है:

      • यम (नियम): अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह

      • नियम (अनुशासन): शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान

      • आसन: शरीर को स्थिर व स्वस्थ रखने की प्रक्रिया

      • प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करने की विधि

      • प्रत्याहार: इन्द्रियों को विषयों से हटाना

      • धारण: मन को एक स्थान पर केंद्रित करना

      • ध्यान: निरंतर ध्यान की अवस्था

      • समाधि: आत्मा और परमात्मा का मिलन

    2. दर्शन शास्त्र का हिस्सा:
      योग दर्शन सांख्य दर्शन के सिद्धांतों को आधार बनाता है लेकिन उसमें ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है, जो इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।

    3. प्रायोगिक दर्शन:
      योग केवल सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक भी है। यह जीवन के हर पहलू को शुद्ध और संतुलित करने की प्रक्रिया है।

    4. उद्देश्य:
      योग दर्शन का मुख्य उद्देश्य चित्त की वृत्तियों का निरोध करना है –
      "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" – पतंजलि योग सूत्र 1.2
      अर्थात् मन की चंचलताओं को रोकना ही योग है।


    योग दर्शन का महत्व:

  • "पंचांग-पूजन-पद्धति" एक अत्यंत उपयोगी, प्रामाणिक और विधिवत पूजन-संहिता है, जो विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों और कर्मकाण्डों के लिए तैयार की गई है। इसमें होमविधि, कुशाकण्डिका, देवपूजन, मांगलिक कार्यों और पांच प्रमुख कर्मकाण्डों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।


    🔖 मुख्य विषयवस्तु:

    1. पंचांग पूजन की विधियाँ:
      पंचांग पूजन भारतीय परंपरा का एक अत्यंत शुभ और आवश्यक हिस्सा है। इस पुस्तक में तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण—इन पंचांग तत्वों के पूजन की संपूर्ण विधि दी गई है।

    2. कुशाकण्डिका विधि:
      यज्ञ एवं धार्मिक कर्मों में कुशा का प्रयोग आवश्यक होता है। इस ग्रंथ में कुश की विधिपूर्वक स्थापना और पूजन की संपूर्ण विधि बताई गई है।

    3. होमविधि:
      वैदिक होम, हवन और अग्निहोत्र की प्रक्रियाओं को शास्त्रीय नियमों के अनुसार चरणबद्ध रूप में वर्णित किया गया है। यह अनुभवी ब्राह्मणों के साथ-साथ नवशिक्षार्थियों के लिए भी उपयोगी है।

    4. मांगलिक कार्यों हेतु विधि:
      विवाह, उपनयन, गृहप्रवेश, अन्नप्राशन जैसे विविध मांगलिक संस्कारों में प्रयुक्त पूजन-विधियों का संकलन इस पुस्तक में है।

    5. देवपूजन एवं तत्त्वनिर्णय:
      इसमें गणेश, नवग्रह, पितृ आदि देवताओं के पूजन विधानों का भी समावेश है। साथ ही तत्त्वदर्शी शैली में पूजन के उद्देश्य, लाभ और वैदिक महत्त्व की चर्चा की गई है।


    📝 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • सरल, शुद्ध एवं संस्कृतनिष्ठ भाषा, जिससे पठन में आध्यात्मिक भाव की वृद्धि होती है।

    • प्रत्येक कर्म की क्रमबद्ध विधि, जिससे पूजन करने में कोई संशय न रहे।

    • छोटे आकार में विशाल जानकारी, जिससे यह पुस्तक पूजन के समय सहज उपयोग के लिए उपयुक्त है।

    • चित्र सहित प्रस्तुति, जिससे पूजन के स्थान और व्यवस्था की कल्पना सरल होती है।


    🙏 उपयोगिता:

    • यह पुस्तक ब्राह्मणों, पूजापाठ करने वालों, साधकों, तथा गृहस्थों के लिए समान रूप से उपयोगी है।

    • इसमें दी गई विधियाँ शास्त्रसम्मत, सरल, और व्यवहारिक हैं, जिससे हर स्तर का साधक इस पुस्तक से लाभ उठा सकता है।


    📚 निष्कर्ष:

    "पंचांग-पूजन-पद्धति" एक आदर्श धार्मिक ग्रंथ है, जो परंपरागत पूजन विधियों को सही ढंग से समझने और करने में मदद करता है। यह पुस्तक पूजा, यज्ञ, संस्कार आदि वैदिक कर्मों को शुद्ध रूप से संपन्न करने के लिए एक संपूर्ण मार्गदर्शक है।

  • न्याय दर्शन  

    परिचय:

    न्याय दर्शन (नैयाय दर्शन) प्राचीन भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है। यह एक आस्तिक दर्शन है, अर्थात यह वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है। न्याय दर्शन का मुख्य उद्देश्य है – सत्य ज्ञान प्राप्त करना और मोक्ष की प्राप्ति करना। इसका प्रमुख ग्रंथ है "न्याय सूत्र", जिसकी रचना महर्षि गौतम ने की थी।


    न्याय दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ:

    1. ज्ञान और मोक्ष का संबंध:

      • न्याय दर्शन के अनुसार सही ज्ञान (तत्त्वज्ञान) से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

      • अविद्या ही दुखों का कारण है, और उसका नाश करके आत्मा को बंधन से मुक्त किया जा सकता है।

    2. प्रमाण  

      • न्याय दर्शन चार प्रमाणों को मानता है, जिनसे ज्ञान प्राप्त होता है:

        1. प्रत्यक्ष (इंद्रियों द्वारा अनुभव)

        2. अनुमान (तर्क द्वारा ज्ञान)

        3. उपमान (सादृश्य के द्वारा ज्ञान)

        4. शब्द (प्रामाणिक व्यक्ति या वेदवाक्य)

    3. अनुमान (तर्कशक्ति) का विशेष स्थान:

      • न्याय दर्शन में तर्क और विश्लेषण को बहुत महत्व दिया गया है।

      • तर्क के द्वारा सत्य और असत्य में भेद किया जाता है।

    4. पदार्थ शास्त्र (सृष्टि का विश्लेषण):

      • न्याय दर्शन ने विश्व को सोलह (16) पदार्थों में विभाजित किया है, जैसे – आत्मा, मन, इंद्रियाँ, बुद्धि, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुख आदि।

    5. ईश्वर का अस्तित्व:

      • यह दर्शन ईश्वर को सर्वज्ञ और सृष्टिकर्ता मानता है।

      • न्याय दर्शन में ईश्वर को न्याय व्यवस्था का आधार बताया गया है।

    6. मोक्ष की परिभाषा:

      • मोक्ष को दुखों की पूर्ण निवृत्ति और आत्मा की स्वतंत्रता के रूप में देखा गया है।


    न्याय दर्शन के योगदान:

    • भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र की नींव न्याय दर्शन ने रखी।

    • यह दर्शन तथ्यों की विवेचना, प्रश्न पूछने और उत्तर खोजने की परंपरा को बढ़ावा देता है।

    • बाद में विकसित वैशेषिक दर्शन के साथ इसका घनिष्ठ संबंध है।

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    नीति-शतकम् में व्यावहारिक ज्ञान,  धर्म, नैतिकता, और लोकनीति से संबंधित गूढ़ बातें सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत की गई हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला गया है:

    1. विद्या और ज्ञान का महत्व – यह बताता है कि ज्ञान और शिक्षा व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धन है।
    2. सज्जनों और दुर्जनों का स्वभाव – सज्जन (नेक) व्यक्ति और दुर्जन (दुष्ट) व्यक्ति के आचरण में अंतर बताया गया है।
    3. धन और संपत्ति का प्रभाव – धन की शक्ति और उसके सदुपयोग व दुरुपयोग पर चर्चा की गई है।
    4. मित्रता और शत्रुता – सच्चे मित्र और कपटी मित्र की पहचान के उपाय बताए गए हैं।
    5. सद्गुणों और चरित्र निर्माण – व्यक्ति को अपने चरित्र और गुणों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वही उसकी असली पहचान हैं।
  • यह पुस्तक "नित्यकर्म-प्रयोग" है, जो कि गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित की गई है। इस पुस्तक का उद्देश्य हिन्दू धर्म में प्रतिदिन किए जाने वाले नित्य कर्मों (जैसे संध्या-वंदन, पूजा, जप, हवन आदि) का विधिपूर्वक अभ्यास सिखाना है।

    🔶 नित्यकर्म का अर्थ:

    हिन्दू धर्म में "नित्यकर्म" वे कर्म होते हैं जिन्हें प्रत्येक श्रद्धालु को प्रतिदिन करना अनिवार्य माना गया है। ये कर्म धर्मशास्त्रों द्वारा निर्धारित हैं और जीवन को शुद्ध, अनुशासित तथा ईश्वर-केन्द्रित बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं।

    "नित्यकर्म-प्रयोग" पुस्तक में इन नित्यकर्मों की संपूर्ण विधियों का वर्णन अत्यंत शास्त्रीय एवं व्यावहारिक रूप में किया गया है।


    🧘‍♂️ पुस्तक की प्रमुख सामग्री:

    1. संध्या-वंदन विधि:

    • ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्य जातियों के लिए त्रिकाल संध्या का विधान

    • गायत्री मंत्र जप की विधि और महत्व

    • आचमन, प्राणायाम, अर्घ्य-प्रदान, मार्जन, उपस्थान आदि की विधियाँ

    2. देव-पूजन:

    • गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य आदि की दैनिक पूजा पद्धति

    • पंचोपचार और षोडशोपचार पूजन की संक्षिप्त एवं विस्तृत विधियाँ

    • पुष्प अर्पण, धूप-दीप, नैवेद्य और आरती

    3. हवन-विधि:

    • अग्नि स्थापन, आहुति मंत्र, स्वाहा के प्रयोग के साथ हवन करना

    • गृहस्थों के लिए नित्य हवन का महत्व और सरल प्रयोग

    4. जप और ध्यान:

    • मंत्र-जप की मानसिक, वाचिक और उपांशु विधियाँ

    • ध्यान की सरल पद्धति — देवता का ध्यान कैसे करें?

    • माला की विधिवत उपयोग विधि

    5. स्नान-संस्कार:

    • स्नान से पूर्व मंत्र, स्नान की विधि, वस्त्र-धारण आदि

    • आत्म-शुद्धि और मनोभाव की शुद्धता पर बल

    6. तर्पण और पितृ-कर्म:

    • नित्य पितृ-तर्पण का संक्षिप्त विधान

    • पितरों को श्रद्धा से जल अर्पण करना क्यों आवश्यक है?

    7. आरती, स्तुति और प्रार्थनाएँ:

    • विभिन्न देवताओं की आरतियाँ और स्तुति

    • प्रातः-संध्या, मध्याह्न और सायं के समय की प्रार्थनाएँ


    🌟 विशेषताएँ:

    • सरल भाषा में जटिल वैदिक विधियों को प्रस्तुत किया गया है

    • संस्कृत श्लोकों के साथ उनका हिन्दी अनुवाद एवं उपयोग विधि भी दी गई है

    • चित्रों के माध्यम से विधियों की दृश्यात्मक सहायता दी गई है (जैसे कवर पर दिखाया गया है)

    • नवीन और अनुभवी साधकों दोनों के लिए उपयुक्त


    🖼️ मुखपृष्ठ की प्रतीकात्मक व्याख्या:

    कवर चित्र में:

    • केंद्र में एक दिव्य आकृति (भगवान) से प्रकाश फैल रहा है — यह परमात्मा का प्रतीक है जो सभी नित्यकर्मों का केंद्र है।

    • चारों ओर विभिन्न क्रियाएँ करते हुए पुरुष दर्शाए गए हैं — जो कि दैनिक धार्मिक कृत्यों जैसे पूजा, संध्या, जप, हवन, ध्यान आदि में लीन हैं।

    • यह चित्र यह बताता है कि ये सभी कर्म भगवान की कृपा प्राप्ति के साधन हैं।


    🎯 किसके लिए उपयोगी है यह पुस्तक?

    • विद्यार्थी जो वैदिक पद्धति सीखना चाहते हैं

    • गृहस्थजन जो नित्य कर्म करना आरंभ करना चाहते हैं

    • ब्राह्मण और कर्मकाण्ड करने वाले पुजारी

    • सनातन धर्म के साधक जो दैनिक साधना को नियमबद्ध बनाना चाहते हैं


    📘 निष्कर्ष:

    "नित्यकर्म-प्रयोग" केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक आदर्श दिनचर्या का पथदर्शक ग्रंथ है, जो जीवन में आध्यात्मिक अनुशासन, मानसिक शुद्धि, और ईश्वर से जुड़ाव को सहज बनाता है। यह पारंपरिक सनातन धर्म की अनमोल विधियों को सहज भाषा और शुद्ध स्वरूप में प्रस्तुत करता है।

  • नारद भक्ति सूत्र एवं भक्ति 

    नारद भक्ति सूत्र एवं भक्ति विवेचन

    लेखक:

    नारद मुनि (प्राचीन ग्रंथ) | विवेचन: विभिन्न विद्वानों द्वारा


    विषय-वस्तु का परिचय:

    नारद भक्ति सूत्र एक अत्यंत प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसे महर्षि नारद द्वारा रचित माना जाता है। यह भक्ति योग (ईश्वर की भक्ति) के रहस्यों, स्वरूप, लक्षणों और साधनाओं की सरल और गूढ़ व्याख्या करता है।

    यह ग्रंथ भक्ति मार्ग को सरल, सहज और प्रेमपूर्ण बताता है। इसमें कुल 84 सूत्र (संक्षिप्त वाक्य) हैं, जो सीधे हृदय से जुड़ने वाले हैं।


    मुख्य विषय — नारद भक्ति सूत्र में क्या है?

    ● भक्ति क्या है?
    ● भक्ति का स्वरूप कैसा है?
    ● भक्ति के लक्षण कौन-कौन से हैं?
    ● भक्ति साधना के मार्ग कौन से हैं?
    ● सच्चे भक्त की पहचान क्या है?
    ● भक्ति किसे प्राप्त होती है?
    ● भक्ति में बाधाएँ और उनका समाधान
    ● प्रेम भक्ति का महत्व
    ● भगवान की कृपा का प्रभाव


    भक्ति विवेचन क्या है?

    "भक्ति विवेचन" का अर्थ है — भक्ति सूत्रों की व्याख्या, अर्थ और गहराई से समझ।
    यह भाग हमें सूत्रों के भावार्थ, उनके व्यवहारिक पहलू और जीवन में भक्ति को उतारने की विधि समझाता है।

    यह भाग भक्तों के उदाहरण, कथाएँ और उपदेश के रूप में भक्ति की व्याख्या करता है।


    उद्देश्य क्या है इस ग्रंथ का?

    "मनुष्य के जीवन को प्रेम और भक्ति से भर देना।
    ईश्वर से सीधा संबंध जोड़ना।
    सच्ची भक्ति को पहचानना और जीना।"


    विशेषताएँ:

    • सरल भाषा में गहन अध्यात्म

    • प्रेम, त्याग और समर्पण की सीख

    • ईश्वर प्रेम की सर्वोच्च महिमा

    • शुद्ध भक्ति का मार्गदर्शन

    • व्यवहारिक जीवन में भक्ति का प्रयोग

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    नारद भक्ति सूत्र /Narad Bhakti Sutra

    Original price was: ₹80.00.Current price is: ₹60.00.

    पुस्तक परिचय: नारद भक्ति सूत्र 

    "नारद भक्ति सूत्र" एक अत्यंत महत्वपूर्ण भक्ति ग्रंथ है, जिसे देवर्षि नारद द्वारा रचित माना जाता है। यह पुस्तक 84 सूत्रों (संक्षिप्त वाक्यों) के माध्यम से भक्ति (ईश्वर-प्रेम) के स्वरूप, महत्व और उसके फलस्वरूप प्राप्त मोक्ष (मुक्ति) की व्याख्या करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    भक्ति की परिभाषा – भक्ति को निस्वार्थ, शुद्ध और प्रेममयी ईश्वर भक्ति के रूप में समझाया गया है।
    भक्ति के प्रकार – इसमें विभिन्न प्रकार की भक्ति और उनकी महत्ता को बताया गया है।
    अन्य मार्गों से तुलना – भक्ति को कर्म (कर्मयोग) और ज्ञान (ज्ञानयोग) की तुलना में श्रेष्ठ बताया गया है।
    समर्पण का महत्वईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना गया है।
    ऋषियों और संतों के उपदेश – इसमें प्राचीन ऋषियों और संतों की शिक्षाओं का संकलन भी है।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    आध्यात्मिक साधकों के लिए – जो भक्ति मार्ग और ईश्वर प्रेम को गहराई से समझना चाहते हैं।
    भक्ति योग के अनुयायियों के लिए – जो भक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहते हैं
    श्री विष्णु, श्री कृष्ण, श्री राम के भक्तों के लिए – जो ईश्वर की भक्ति और प्रेम को महसूस करना चाहते हैं