"परमार्थ प्रसंग" – स्वामी विवेकानंद (Paramarth Prasang by Swami Vivekananda)
"परमार्थ प्रसंग" स्वामी विवेकानंद के विभिन्न प्रवचनों, लेखों और संवादों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने आध्यात्मिकता, वेदांत, योग, समाज सुधार, और मानव सेवा जैसे विषयों पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए उपयोगी है जो आध्यात्मिक उन्नति, आत्मज्ञान और सेवा के महत्व को समझना चाहते हैं।
पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ
1. परमार्थ (उच्चतम आध्यात्मिक सत्य) की खोज
- स्वामी विवेकानंद समझाते हैं कि परमार्थ का अर्थ केवल धार्मिक कर्मकांडों से नहीं, बल्कि आत्मबोध और मानवता की सेवा से है।
- वे बताते हैं कि सच्चा परमार्थ आत्मा की उन्नति और समाज के कल्याण में निहित है।
2. सेवा, कर्म और भक्ति का महत्व
- वे कहते हैं कि परमार्थ का सर्वोत्तम मार्ग सेवा है – मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है।
- कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
3. भारतीय संस्कृति और वेदांत
- वेदांत के सिद्धांतों की सरल भाषा में व्याख्या करते हुए, वे यह दर्शाते हैं कि कैसे आध्यात्मिकता ही भारत की आत्मा है।
- वे भारतीय परंपराओं और आधुनिक विज्ञान के समन्वय पर बल देते हैं।
4. आत्मनिर्भरता और साहस
- वे आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और संघर्ष की भावना को आवश्यक मानते हैं।
- वे युवाओं को अपने भीतर छिपी असीम शक्ति को पहचानने और जीवन में महान कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।
5. समाज सुधार और मानव कल्याण
- वे कहते हैं कि परमार्थ का अर्थ केवल आत्म-उन्नति नहीं, बल्कि समाज के कल्याण से भी जुड़ा है।
- जातिवाद, गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए शिक्षा और सेवा को अनिवार्य मानते हैं।