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    पुस्तक परिचय: "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" – सिस्टर निवेदिता (हिंदी)

    "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" सिस्टर निवेदिता (मार्गरेट नोबल) द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व, विचारों और आदर्शों को उनके निकटतम शिष्य की दृष्टि से प्रस्तुत किया है।

    यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं, उनकी आध्यात्मिक गहराई और भारत के प्रति उनके प्रेम को उजागर करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ (हिंदी):

    व्यक्तिगत संस्मरण – सिस्टर निवेदिता द्वारा स्वामी विवेकानंद के साथ बिताए गए अनुभवों का संकलन।
    विचार और शिक्षाएँ – उनके आध्यात्मिक ज्ञान, राष्ट्रभक्ति और भारत के पुनर्जागरण के विचारों का वर्णन।
    स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व – उनकी करुणा, अनुशासन, हास्य-प्रवृत्ति और नेतृत्व क्षमता पर प्रकाश।
    भारत और विश्व के लिए उनका संदेश – कैसे उन्होंने भारतीय संस्कृति और वेदांत को पश्चिम में फैलाया
    प्रेरणादायक पुस्तक – स्वामी विवेकानंद के विचारों से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्गदर्शन

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    कठोपनिषद / Katha Upanishad

    Original price was: ₹140.00.Current price is: ₹100.00.

     कठोपनिषद 

    "कठोपनिषद" कृष्ण यजुर्वेद के महत्वपूर्ण उपनिषदों में से एक है। इसमें युवा नचिकेता और यमराज (मृत्यु के देवता) के बीच संवाद होता है, जिसमें आत्मा, मृत्यु, मोक्ष और जीवन के अंतिम सत्य पर गहन चर्चा की गई है।

    यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत दर्शन का आधार है और आत्मा की अमरता तथा आध्यात्मिक मुक्ति को समझाने में सहायक है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ 

    नचिकेता और यमराज का संवाद – एक जिज्ञासु बालक मृत्यु से प्रश्न करता है और गूढ़ ज्ञान प्राप्त करता है
    आत्मा और अमरत्व का रहस्य – आत्मा अजन्मा, अविनाशी और अनंत है।
    आत्म-साक्षात्कार का महत्वइच्छाओं को त्यागकर आत्मज्ञान प्राप्त करने की शिक्षा
    श्रेयस बनाम प्रेयससही मार्ग (श्रेयस) और भोग के मार्ग (प्रेयस) के बीच चुनाव का महत्व
    वेदांत का आधार – यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत दर्शन की जड़ों को मजबूत करता है।

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    गीतातत्त्व/ Gitatatva

    Original price was: ₹120.00.Current price is: ₹99.00.

    स्वामी सारदानन्द द्वारा रचित 'गीतातत्त्व' (Geetatattva) भगवद्गीता के गहन तत्वों पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पुस्तक रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित की गई है और हिंदी में उपलब्ध है। पुस्तक के हिंदी संस्करण का अनुवाद श्री नृसिंहवल्लभ गोस्वामी ने किया है। यह पेपरबैक संस्करण में 189 पृष्ठों की है

    पुस्तक की सामग्री में स्वामी सारदानन्द के गीता पर विचार और व्याख्याएँ शामिल हैं, जो पाठकों को गीता के दार्शनिक और आध्यात्मिक पहलुओं को समझने में सहायता करती हैं।

    इसके अतिरिक्त, 'गीतातत्त्व-चिन्तन' (Gita Tattwa Chintan) शीर्षक से दो खंडों में स्वामी आत्मानन्द द्वारा गीता पर हिंदी में व्याख्यान उपलब्ध हैं। पहला खंड गीता के परिचय और पहले दो अध्यायों को कवर करता है, जबकि दूसरा खंड तीसरे से छठे अध्याय तक की व्याख्या प्रदान करता है। ये पुस्तकें अद्वैत आश्रम द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

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    'श्री रामकृष्ण वचनामृत प्रसंग' (Shri Ramakrishna Vachanamrit Prasang) एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों और शिक्षाओं पर आधारित है। यह पुस्तक उनके संवादों और विचारों की व्याख्या प्रस्तुत करती है, जिससे पाठक उनके आध्यात्मिक संदेशों को गहराई से समझ सकते हैं।

    पुस्तक का विवरण

    पुस्तक की विशेषताएँ

    1. श्री रामकृष्ण के उपदेशों की गहन व्याख्या:
      स्वामी भूतेशानन्द ने श्री रामकृष्ण के उपदेशों की गहराई से व्याख्या की है, जिससे उनके विचारों और शिक्षाओं को समझना आसान हो जाता है।

    2. आध्यात्मिक साधकों के लिए उपयोगी:
      यह पुस्तक उन लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करना चाहते हैं।

    3. वेदांत और आधुनिक विचारों का समन्वय:
      पुस्तक में श्री रामकृष्ण के उपदेशों को वेदांत और अन्य शास्त्रीय दृष्टिकोणों के साथ जोड़ा गया है, जिससे उनका गूढ़ अर्थ स्पष्ट होता है।

    4. सरल और प्रभावी भाषा:
      यह पुस्तक सरल हिंदी भाषा में लिखी गई है, ताकि साधारण पाठक भी इसे आसानी से समझ सकें।

    यह ग्रंथ उन सभी के लिए एक मूल्यवान स्रोत है, जो आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में बढ़ना चाहते हैं और श्री रामकृष्ण परमहंस के संदेशों को अपने जीवन में अपनाना चाहते हैं।

  • षट्चक्र-निरुपणम एक महत्वपूर्ण योग-ग्रंथ है, जो तंत्र और कुंडलिनी योग पर आधारित है। यह ग्रंथ विशेष रूप से चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) का विवरण प्रदान करता है और यह समझाने का प्रयास करता है कि मानव शरीर में विभिन्न चक्र कैसे कार्य करते हैं और उन्हें जागृत करने के क्या लाभ हैं।

    मुख्य विषयवस्तु

    यह ग्रंथ सप्तचक्रों (सात चक्रों) की व्याख्या करता है, जो शरीर में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं। ये चक्र हैं:

    1. मूलाधार चक्र – रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में स्थित होता है और स्थायित्व व जड़ता का प्रतीक है।
    2. स्वाधिष्ठान चक्र – नाभि के नीचे स्थित होता है और रचनात्मकता तथा इच्छाशक्ति से जुड़ा होता है।
    3. मणिपुर चक्र – नाभि क्षेत्र में स्थित होता है और शक्ति, आत्मविश्वास तथा इच्छाशक्ति को नियंत्रित करता है।
    4. अनाहत चक्र – हृदय क्षेत्र में स्थित होता है और प्रेम, करुणा तथा भावनाओं का केंद्र माना जाता है।
    5. विशुद्धि चक्र – गले में स्थित होता है और संचार, सत्य और अभिव्यक्ति से संबंधित होता है।
    6. आज्ञा चक्र – भौहों के बीच स्थित होता है और अंतर्ज्ञान तथा आध्यात्मिक दृष्टि का केंद्र होता है।
    7. सहस्रार चक्र – सिर के ऊपर स्थित होता है और परम चेतना एवं आत्मज्ञान से जुड़ा होता है।
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    नीति-शतकम् में व्यावहारिक ज्ञान,  धर्म, नैतिकता, और लोकनीति से संबंधित गूढ़ बातें सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत की गई हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला गया है:

    1. विद्या और ज्ञान का महत्व – यह बताता है कि ज्ञान और शिक्षा व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धन है।
    2. सज्जनों और दुर्जनों का स्वभाव – सज्जन (नेक) व्यक्ति और दुर्जन (दुष्ट) व्यक्ति के आचरण में अंतर बताया गया है।
    3. धन और संपत्ति का प्रभाव – धन की शक्ति और उसके सदुपयोग व दुरुपयोग पर चर्चा की गई है।
    4. मित्रता और शत्रुता – सच्चे मित्र और कपटी मित्र की पहचान के उपाय बताए गए हैं।
    5. सद्गुणों और चरित्र निर्माण – व्यक्ति को अपने चरित्र और गुणों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वही उसकी असली पहचान हैं।
  • उत्तरमेघ:
    इस भाग में यक्ष अपनी प्रिया को संबोधित करते हुए अपने प्रेम, वेदना और पुनर्मिलन की आशा को व्यक्त करता है। वह बताता है कि वह किस प्रकार दिन-रात उसकी याद में तड़प रहा है और वह किस प्रकार विरह में व्याकुल होगी।

    वह यह भी कहता है कि जब उसकी पत्नी मेघ द्वारा भेजे गए संदेश को सुनेगी, तो वह आश्वस्त होगी कि यक्ष अब भी उसी प्रेम से भरा हुआ है। अंततः, काव्य प्रेम और पुनर्मिलन की आशा के साथ समाप्त होता है।

    विशेषताएँ:

     
    1. प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम चित्रण – कालिदास ने प्रकृति के प्रत्येक रूप को सुंदर और सजीव बना दिया है।
    2. श्रृंगार रस की प्रधानता – यक्ष और उसकी प्रिया के प्रेम और विरह में अद्भुत कोमलता और गहनता है।
    3. कल्पना एवं अलंकारों का प्रयोग – रूपक, उपमा, अनुप्रास आदि अलंकारों से यह काव्य समृद्ध है।
    4. भौगोलिक विवरण – भारत के विभिन्न स्थानों का उल्लेख करते हुए मार्ग का विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    यह ग्रंथ तीन खंडों में विभाजित है:

    1. आदि लीला – इसमें चैतन्य महाप्रभु के जन्म, बाल्यकाल, शिक्षा और संन्यास ग्रहण तक की घटनाओं का वर्णन है।
    2. मध्य लीला – इसमें उनके हरिनाम संकीर्तन, भक्तों से मिलन और भक्ति प्रचार की लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
    3. अंत्य लीला – इसमें श्री चैतन्य महाप्रभु की गहरी भक्ति, उन्मत्त अवस्था, भगवान के विरह में उनके प्रेमपूर्ण अनुभवों का उल्लेख है।

    भाषा एवं शैली:
    ब्रज भाषा में यह ग्रंथ अत्यंत मधुर और सरल शैली में लिखा गया है, जिससे यह श्रीकृष्ण और चैतन्य महाप्रभु के प्रेमरस में सराबोर भक्तों को सहज ही हृदयस्पर्शी प्रतीत होता है।

    महत्व:

    • यह ग्रंथ भक्तियोग और गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सिद्धांतों को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
    • इसमें प्रेम, करुणा, भक्ति और संकीर्तन महिमा का गहन विवरण मिलता है।
    • श्री चैतन्य महाप्रभु के जीवन से प्रेरणा लेकर भक्तजन भक्ति मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
  • स्वामी विवेकानंद (1863-1902) एक महान संत, विचारक और समाज सुधारक थे। उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे भारतीय संस्कृति, वेदांत और योग के प्रचारक थे और उन्होंने पूरे विश्व में भारत की आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया। 1893 में, स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो विश्व धर्म महासभा में भाग लिया और अपने प्रसिद्ध भाषण "अमेरिका के भाइयो और बहनो" से सभी को प्रभावित किया। उनके विचारों ने भारत की आध्यात्मिकता को पूरे विश्व में पहचान दिलाई।
  • विवेक वाणी - स्वामी विवेकानंद

    स्वामी विवेकानंदभारतीय संस्कृति, अध्यात्म और युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। उनकी वाणी में गहराई, तर्क और आत्मा को झकझोर देने वाली शक्ति थी। "विवेक वाणी" स्वामी विवेकानंद के विचारों, उपदेशों और शिक्षाओं का संकलन है, जो हमें जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करती है।

    मुख्य विचार:

    1. आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता – "उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत।"
    2. धर्म और अध्यात्म – वेदांत और योग के सिद्धांतों पर आधारित उनके विचार जीवन को दिशा देते हैं।
    3. शिक्षा और युवा शक्ति – शिक्षा का उद्देश्य आत्मनिर्भरता और चरित्र निर्माण होना चाहिए।
    4. समानता और समाज सेवा – सभी मनुष्यों में ईश्वर का अंश है, इसलिए सेवा ही सच्चा धर्म है।
    5. शक्ति और पुरुषार्थ – निर्बलता पाप है, आत्मशक्ति का जागरण ही सफलता का मार्ग है।

    स्वामी विवेकानंदकी वाणी आज भी हमें प्रेरित करती है और हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का साहस देती है।

  • वेदांत - स्वामी विवेकानंद  

    वेदांत हिंदू दर्शन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो वेदों और उपनिषदों के ज्ञान पर आधारित है। स्वामी विवेकानंद ने वेदांत को व्यापक रूप से प्रचारित किया और इसे एक व्यावहारिक जीवन दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया। उनके विचारों में वेदांत केवल आध्यात्मिक ज्ञान तक सीमित नहीं था, बल्कि यह मनुष्य के आत्म-विकास और समाज की उन्नति का भी मार्ग दिखाता है।

    स्वामी विवेकानंद का वेदांत पर दृष्टिकोण

    1. अद्वैतवाद (अद्वैत वेदांत) – उन्होंने अद्वैतवाद को अपनाया, जो कहता है कि ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा (व्यक्ति) एक ही हैं।
    2. व्यावहारिक वेदांत – उन्होंने वेदांत को केवल ध्यान और तपस्या तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे कर्मयोग, समाज सेवा और मानवता की भलाई से जोड़ा।
    3. धर्म और विज्ञान का संगम – स्वामी विवेकानंद ने वेदांत को आधुनिक विज्ञान के साथ संगत बताया और कहा कि यह तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रमाणित हो सकता है।
    4. सार्वभौमिकता – वेदांत किसी एक धर्म, जाति या संप्रदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता के कल्याण के लिए है।
    5. शक्ति और आत्मनिर्भरता – उन्होंने वेदांत के माध्यम से आत्म-शक्ति, आत्म-निर्भरता और निडरता का संदेश दिया।

    वेदांत का समाज पर प्रभाव

    स्वामी विवेकानंद ने वेदांत के सिद्धांतों को जीवन में अपनाने पर जोर दिया और भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरित किया कि वे अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और समाज की उन्नति के लिए कार्य करें। उनका संदेश था कि सच्चा वेदांती वही है जो समाज की सेवा करता है और अपने जीवन को परोपकार के लिए समर्पित करता है।

    स्वामी विवेकानंद के वेदांत के विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और आत्म-विकास व समाज सुधार के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

  • उत्तर-रामचरितम्

    परिचय:
    उत्तर-रामचरितम्संस्कृत साहित्य का एक प्रमुख नाटक है, जिसकी रचना प्रसिद्ध कवि भवभूति ने की थी। यह नाटक रामकथा पर आधारित है और इसमें विशेष रूप से श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद के जीवन की घटनाओं को दर्शाया गया है।

    कथावस्तु:
    इस नाटक में कुल सात अंकों में विभाजित कथा प्रस्तुत की गई है। इसमें मुख्य रूप से श्रीराम और सीता के वियोग और पुनर्मिलन का मार्मिक चित्रण किया गया है। इसमें राम के राज्यकाल में सीता का वनवास, लव-कुश की कथा और अंततः राम-सीता के पुनर्मिलन को अत्यंत भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    1. करुण रस की प्रधानता – यह नाटक अपनी मार्मिकता और संवेदनशीलता के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
    2. उच्च कोटि की काव्यशैली – भवभूति की भाषा अत्यंत सरस और प्रभावशाली है।
    3. चरित्र चित्रण – राम, सीता, लव-कुश और वाल्मीकि जैसे पात्रों का गहन मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है।
    4. न्याय और धर्म का संघर्ष – राम के चरित्र में एक राजा और पति के कर्तव्यों के बीच द्वंद्व को दर्शाया गया है।
    5. प्रेरणादायक संदेश – यह नाटक हमें प्रेम, त्याग और कर्तव्य के महत्त्व का बोध कराता है।

    निष्कर्ष:
    उत्तर-रामचरितम् केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और धर्म के आदर्शों का उत्कृष्ट संगम है। यह भवभूति की प्रतिभा का एक अमर उदाहरण है और आज भी इसे संस्कृत साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।