• हिंदू धर्म के छह शास्त्र, जिन्हें षड्दर्शन (षट् दर्शन) कहा जाता है, भारतीय दर्शन की मुख्य दर्शनों की प्रणाली हैं। ये सभी दर्शनों का उद्देश्य मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति है। प्रत्येक दर्शन ने सत्य, आत्मा, ब्रह्माण्ड, मोक्ष और ईश्वर की अवधारणाओं को अपने-अपने दृष्टिकोण से समझाया है। नीचे इन छह दर्शनों का वर्णन हिंदी में किया गया है:


    1. न्याय दर्शन (Nyaya Darshan)

    • प्रवर्तक: महर्षि गौतम

    • मुख्य विषय: तर्कशास्त्र और ज्ञान का प्रमाण

    • विवरण: न्याय दर्शन यह बताता है कि सही ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तर्क, प्रमाण (ज्ञान प्राप्ति के साधन), हेत्वाभास (दोषपूर्ण तर्क) और अनुमान का विस्तार से वर्णन है। यह एक अत्यंत तार्किक प्रणाली है।


    2. वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika Darshan)

    • प्रवर्तक: महर्षि कणाद

    • मुख्य विषय: पदार्थों का वर्गीकरण और गुण

    • विवरण: यह दर्शन ब्रह्मांड को अणुओं (परमाणुओं) से बना हुआ मानता है। इसमें पदार्थ, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, और संबंध को प्रमुख रूप से समझाया गया है। यह न्याय दर्शन का पूरक माना जाता है।


    3. सांख्य दर्शन (Sankhya Darshan)

    • प्रवर्तक: महर्षि कपिल

    • मुख्य विषय: तत्वमीमांसा और सृष्टि की उत्पत्ति

    • विवरण: सांख्य दर्शन दो प्रमुख तत्वों पुरुष (आत्मा) और प्रकृति (सृष्टि की मूल प्रकृति) – के सिद्धांत पर आधारित है। यह एक नास्तिक दर्शन है क्योंकि यह ईश्वर की आवश्यकता को नहीं मानता।


    4. योग दर्शन (Yoga Darshan)

    • प्रवर्तक: महर्षि पतंजलि

    • मुख्य विषय: मन और आत्मा की एकता, साधना की प्रक्रिया

    • विवरण: यह दर्शन सांख्य दर्शन पर आधारित है लेकिन ईश्वर को मान्यता देता है। पतंजलि ने "अष्टांग योग" का सिद्धांत दिया, जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं।


    5. पूर्व मीमांसा (Purva Mimamsa)

    • प्रवर्तक: महर्षि जैमिनि

    • मुख्य विषय: वेदों के कर्मकांड और यज्ञ

    • विवरण: यह दर्शन वेदों के कर्म भाग को प्राथमिकता देता है। यह मानता है कि यज्ञ और वैदिक कर्मों के द्वारा धर्म की प्राप्ति और संसार में सुख संभव है। इसे कभी-कभी केवल "मीमांसा" भी कहा जाता है।


    6. वेदान्त दर्शन (Uttara Mimamsa / Vedanta Darshan)

  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे भारत के एक महान संत, समाज सुधारक और प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे। स्वामी विवेकानंद ने वेदांत और योग के गूढ़ रहस्यों को समझा और उन्हें पूरे विश्व में प्रचारित किया।

    प्रमुख योगदान:

    • 1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म महासभा में अपने ओजस्वी भाषण से भारत की संस्कृति और अध्यात्म का परचम लहराया।

    • रामकृष्ण परमहंस के शिष्य के रूप में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

    • उन्होंने भारतीय युवाओं को आत्मनिर्भर बनने और राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने की प्रेरणा दी।

    विचार एवं शिक्षाएं:

    स्वामी विवेकानंद ने कहा –

    1. "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

    2. "एक समय में एक काम करो और ऐसा करो कि अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो।"

    3. "खुद पर विश्वास करो और दुनिया तुम पर विश्वास करेगी।"

    स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की उम्र में हुआ, लेकिन उनके विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। उनका जीवन सच्ची राष्ट्रभक्ति, सेवा और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है।

  • नेताजी सुभाष के प्रेरणा पुरुष - स्वामी विवेकानंद

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे, और उनके व्यक्तित्व एवं विचारों को गढ़ने में स्वामी विवेकानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित होकर ही सुभाष चंद्र बोस ने अपने जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित किया।

    स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं को आत्मनिर्भर बनने, आत्मसम्मान बढ़ाने और राष्ट्र के उत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी। उनकी शिक्षाओं ने सुभाष चंद्र बोस को बचपन से ही प्रभावित किया। नेताजी ने स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को आत्मसात किया और उनके सिद्धांतों के आधार पर अपने राष्ट्रवादी विचार विकसित किए।

    स्वामी विवेकानंद का यह संदेश कि "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए" नेताजी के जीवन का मूलमंत्र बन गया। उन्होंने विवेकानंद की शिक्षा से आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और संघर्ष की भावना सीखी। यही कारण था कि जब नेताजी ने आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की, तो उन्होंने सैनिकों में यही जोश और उत्साह भरा।

    स्वामी विवेकानंद के अद्वैतवाद और राष्ट्रवाद के सिद्धांतों ने नेताजी को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का पाठ पढ़ाया। विवेकानंद के प्रभाव से नेताजी ने न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वे पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रचार-प्रसार भी करते रहे।

    इस प्रकार, स्वामी विवेकानंद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रेरणा पुरुष थे, जिन्होंने उनके जीवन और संघर्ष को दिशा दी। नेताजी के राष्ट्रप्रेम, साहस और अदम्य इच्छाशक्ति के पीछे विवेकानंद की शिक्षाओं की अमिट छाप थी

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    "स्वामी विवेकानंद साहित्य संचयन" (Swami Vivekananda Sahitya Sanchayana)

    "स्वामी विवेकानंद साहित्य संचयन" स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित और बोले गए विचारों का एक संकलन है, जिसमें उनके प्रमुख व्याख्यान, पत्र, लेख, और संवाद शामिल हैं। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति, धर्म, योग, समाज सुधार, शिक्षा, और राष्ट्रवाद पर उनके गहरे विचारों को प्रस्तुत करती है।

     पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ (मुख्य विषय)

    1. भारतीय आध्यात्मिकता और वेदांत

    • स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान वेदांत, उपनिषद और भगवद गीता पर केंद्रित हैं।
    • वे बताते हैं कि आध्यात्मिकता ही भारत की आत्मा है और यह विश्व को मार्गदर्शन दे सकती है।

    2. कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, और राजयोग

    • उन्होंने योग के चार मार्गों (कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, और राजयोग) की व्याख्या की है।
    • इन योगों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक और मानसिक रूप से समृद्ध हो सकता है।

    3. राष्ट्रवाद और भारत का पुनरुत्थान

    • वे भारतीय युवाओं से स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करने का आग्रह करते हैं।
    • वे भारत के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए शिक्षा और सेवा को अनिवार्य मानते हैं

    4. शिक्षा और समाज सुधार

    • वे ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत करते हैं, जो केवल डिग्री नहीं बल्कि चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता सिखाए।
    • वे जातिवाद, अंधविश्वास, और लैंगिक असमानता के खिलाफ हैं और समानता और स्वतंत्रता की बात करते हैं।

    5. पश्चिम और भारत की तुलना

    • वे पश्चिम की वैज्ञानिक उपलब्धियों की सराहना करते हैं, लेकिन भारत की आध्यात्मिक श्रेष्ठता को भी रेखांकित करते हैं।
    • वे मानते हैं कि विज्ञान और आध्यात्मिकता का संतुलन भारत को आगे ले जाएगा।
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    पुस्तक परिचय: "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" – सिस्टर निवेदिता (हिंदी)

    "स्वामी विवेकानंद जैसा उन्हें देखा" सिस्टर निवेदिता (मार्गरेट नोबल) द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व, विचारों और आदर्शों को उनके निकटतम शिष्य की दृष्टि से प्रस्तुत किया है।

    यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं, उनकी आध्यात्मिक गहराई और भारत के प्रति उनके प्रेम को उजागर करती है।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ (हिंदी):

    व्यक्तिगत संस्मरण – सिस्टर निवेदिता द्वारा स्वामी विवेकानंद के साथ बिताए गए अनुभवों का संकलन।
    विचार और शिक्षाएँ – उनके आध्यात्मिक ज्ञान, राष्ट्रभक्ति और भारत के पुनर्जागरण के विचारों का वर्णन।
    स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व – उनकी करुणा, अनुशासन, हास्य-प्रवृत्ति और नेतृत्व क्षमता पर प्रकाश।
    भारत और विश्व के लिए उनका संदेश – कैसे उन्होंने भारतीय संस्कृति और वेदांत को पश्चिम में फैलाया
    प्रेरणादायक पुस्तक – स्वामी विवेकानंद के विचारों से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्गदर्शन

  • Swami Vivekananda's teachings and messages, often referred to as "Vivekananda Vani," are a source of inspiration, wisdom, and spiritual awakening. His words emphasize the power of self-confidence, service to humanity, and the pursuit of knowledge. Some of his key teachings include:

    1. Strength and Courage Swami Vivekananda believed that strength is life, and weakness is death. He encouraged people to be fearless in their pursuit of truth and righteousness.

    2. Faith in Oneself – He always emphasized self-confidence and the belief that every individual has immense potential. "All power is within you; you can do anything and everything."

      स्वामी विवेकानंद की वाणी

      स्वामी विवेकानंद की वाणी प्रेरणा, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर है। उनकी शिक्षाएँ मानवता, सेवा, आत्मनिर्भरता और ज्ञान प्राप्ति पर केंद्रित थीं। उनके प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:

      1. शक्ति और साहस – स्वामी विवेकानंद कहते थे, "शक्ति ही जीवन है, निर्बलता मृत्यु के समान है।" उन्होंने हमेशा निडर होकर सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

      2. आत्मविश्वास – उनका मानना था कि हर व्यक्ति में अनंत शक्ति है। वे कहते थे, "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

      3. मानव सेवा ही ईश्वर सेवा – उन्होंने कहा, "जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं, वे ही वास्तव में जीवित हैं।" वे मानव सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते थे।

      4. सभी धर्मों की एकता – वे सभी धर्मों को समान मानते थे और कहा करते थे कि "सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।"

      5. शिक्षा और चरित्र निर्माण – वे शिक्षा को केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं मानते थे, बल्कि उसका उद्देश्य चरित्र निर्माण और आत्मविकास होना चाहिए।

      6. कर्मयोग – वे भगवद गीता के कर्मयोग सिद्धांत में विश्वास रखते थे और सिखाते थे कि "निष्काम कर्म ही सच्ची पूजा है।"

      7. विश्व बंधुत्व – उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में अपने ऐतिहासिक भाषण द्वारा पूरी दुनिया को "विश्व बंधुत्व" का संदेश दिया।

      स्वामी विवेकानंद की वाणी आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देती है और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करती है।

    3. Service to Humanity – He saw serving mankind as the highest form of worship, stating, "They alone live who live for others."

    4. Spirituality and Religion – He promoted the idea that all religions lead to the same truth and preached the harmony of religions.

    5. Education and Character Building – He stressed the importance of education not just for information but for character-building and self-development.

    6. Karma Yoga – He advocated selfless action without attachment to results, in alignment with Bhagavad Gita’s teachings.

    7. Universal Brotherhood – His famous speech at the Parliament of Religions in Chicago (1893) called for unity and brotherhood beyond religious and national boundaries.

    Swami Vivekananda’s words continue to inspire millions worldwide, guiding them toward a life of strength, wisdom, and service.

  • स्वामी विवेकानंद का जीवन (विवेकानंद की जीवनी)

    परिचय:

    स्वामी विवेकानंद भारत के महान संत, विचारक और योगी थे। उन्होंने अपने ज्ञान, विचारधारा और कर्म से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में आध्यात्मिकता और मानवता का संदेश फैलाया। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे और उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

    प्रारंभिक जीवन:

    स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, एक प्रसिद्ध वकील थे, और माता, भुवनेश्वरी देवी, धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। बचपन से ही नरेंद्र में गहरी जिज्ञासा और आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव था।

    आध्यात्मिक मार्ग:

    नरेंद्रनाथ की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई, जिन्होंने उन्हें सच्चे गुरु का मार्गदर्शन दिया। उन्होंने नरेंद्र को आत्मज्ञान और सेवा का महत्व समझाया। रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद, नरेंद्र ने संन्यास धारण कर लिया और विवेकानंद नाम से प्रसिद्ध हुए।

    विश्व धर्म महासभा (1893):

    1893 में, स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने प्रसिद्ध भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों" से की, जिसने पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन से परिचित कराया। उनका यह भाषण आज भी ऐतिहासिक माना जाता है।

    रामकृष्ण मिशन की स्थापना:

    भारत लौटने के बाद, स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना, शिक्षा का प्रचार करना और भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण करना था।

    मृत्यु:

    स्वामी विवेकानंद का जीवन बहुत प्रेरणादायक था, लेकिन उनका शरीर ज्यादा समय तक उनका साथ नहीं दे सका। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में उन्होंने महासमाधि ले ली।

    उपसंहार:

    स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि सेवा, ज्ञान और आत्मविश्वास के साथ हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उनका प्रसिद्ध उद्धरण "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए" आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।

  • स्वामी विवेकानंद – चित्रमय जीवनी

    "स्वामी विवेकानंद – चित्रमय जीवनी" एक रोचक और प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसमें स्वामी विवेकानंद के जीवन, आदर्शों और शिक्षाओं को चित्रों के माध्यम से सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है। यह विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए बनाई गई है ताकि वे स्वामी विवेकानंद के महान व्यक्तित्व और विचारों से प्रेरणा ले सकें

    पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ

    चित्रों के माध्यम से जीवन परिचय – स्वामी विवेकानंद के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को सुंदर चित्रों और सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
    सरल और रोचक भाषा – यह पुस्तक आसान हिंदी में लिखी गई है, जिससे बच्चे और युवा आसानी से समझ सकें
    प्रेरणादायक प्रसंग – पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं, जैसे:

    • बालक नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) का बचपन और जिज्ञासु स्वभाव।
    • श्री रामकृष्ण परमहंस से उनकी भेंट और आध्यात्मिक मार्गदर्शन।
    • भारत भ्रमण और समाज सेवा का संकल्प।
    • 1893 में शिकागो धर्म महासभा में ऐतिहासिक भाषण
    • युवाओं के लिए उनके संदेश और भारत के प्रति उनका प्रेम।
      आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा – पुस्तक स्वामी विवेकानंद के विचारों को सरल तरीके से प्रस्तुत करती है, जैसे आत्मविश्वास, देशभक्ति, परिश्रम और मानव सेवा
  • स्वामी विवेकानंद - संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश

    संक्षिप्त जीवनी:

    स्वामी विवेकानंद भारत के महान संत, विचारक और युवा प्रेरणास्त्रोत थे। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे बचपन से ही अत्यंत तेजस्वी, जिज्ञासु और सत्य की खोज में रुचि रखने वाले बालक थे।

    उनकी शिक्षा दीक्षा कोलकाता में ही हुई और वे एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका जीवन उस समय बदल गया जब वे अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण जी से उन्हें अध्यात्म और ईश्वर की सच्ची अनुभूति मिली।

    रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा की और समाज की वास्तविक स्थिति को समझा। 1893 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो धर्म संसद में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया। उनके "अमेरिका के शिकागो भाषण" ने पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से परिचित कराया।

    मुख्य उपदेश और विचार:

    स्वामी विवेकानंद के उपदेश आज भी युवाओं और समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। उनके कुछ प्रमुख विचार और शिक्षाएँ -

    1. उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।

    2. शक्ति ही जीवन है, कमजोरी ही मृत्यु है।

    3. हम वही बनते हैं, जो हम सोचते हैं।

    4. सच्चा धर्म वही है, जो मानव सेवा सिखाए।

    5. हर आत्मा दिव्य है। अपने अंदर की शक्ति को पहचानो।

    6. देश की प्रगति के लिए युवाओं को जागरूक होना चाहिए।

    7. ज्ञान प्राप्ति के लिए आत्मविश्वास और सतत प्रयास आवश्यक हैं।

    निष्कर्ष:

    स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन त्याग, सेवा, आत्मविश्वास और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा है। उनका संदेश आज भी युवाओं को आगे बढ़ने की शक्ति और दिशा देता है। उनके विचार न केवल भारत के लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए अमूल्य धरोहर हैं

  • "स्त्रियों के लिये कर्तव्य शिक्षा" एक अत्यंत उपयोगी और शिक्षाप्रद पुस्तक है, जिसमें नारी जीवन के विभिन्न पक्षों पर धर्म, संस्कृति, मर्यादा और कर्तव्य के आलोक में मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। यह पुस्तक विशेष रूप से भारतीय सनातन संस्कृति और गृहस्थ धर्म की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए स्त्रियों के आदर्श जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है।


    📖 मुख्य विषयवस्तु:

    1. नारी का स्थान और महत्व

      • भारतीय संस्कृति में नारी को 'गृहलक्ष्मी', 'धर्मपत्नी', 'संस्कारदायिनी' और 'संस्कृति की रक्षक' के रूप में सम्मान प्राप्त है।

      • नारी परिवार की रीढ़ होती है, जो संस्कारों की नींव डालती है।

    2. पत्नी का धर्म और कर्तव्य

      • पति के प्रति श्रद्धा, सेवा, सहयोग और उसकी उन्नति में भागी बनने की प्रेरणा।

      • विवाह पश्चात स्त्री का जीवन किस प्रकार धर्ममय और त्यागमय होना चाहिए – इसका विवेचन।

    3. मातृत्व का आदर्श

      • मातृत्व की गरिमा और बच्चों को धार्मिक व नैतिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी पर प्रकाश।

    4. नारी और संयम

      • इन्द्रियों पर नियंत्रण, चरित्र की शुद्धता, शील और सदाचार का महत्व।

    5. सद्गुणों की साधना

      • विनय, सहनशीलता, दया, क्षमा, संतोष, सादगी आदि गुणों के विकास की आवश्यकता।

    6. स्त्रियों के लिए शिक्षा का उद्देश्य

      • नारी शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी या व्यवसाय नहीं, अपितु धर्म, सेवा, परिवार व्यवस्था और आत्मिक उन्नति होना चाहिए।

    7. आदर्श स्त्रियों के जीवन प्रसंग

      • सीता, सावित्री, अनसूया, गार्गी, मदालसा आदि महान स्त्रियों के प्रेरक जीवन प्रसंग।


    🌷 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • सरल हिंदी में लिखा गया है, जिससे हर आयु की स्त्रियाँ सहजता से समझ सकें।

    • प्राचीन शास्त्रीय दृष्टिकोण के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा को मिलाकर प्रस्तुत किया गया है।

    • पारिवारिक जीवन, वैवाहिक संबंध, मातृत्व और सामाजिक व्यवहार को संतुलित करने की दिशा में उत्कृष्ट मार्गदर्शन।

    • स्त्रियों के आत्मविकास, धार्मिक जीवन और संयमयुक्त व्यवहार को बढ़ावा देने वाली अमूल्य पुस्तक।


    🙏 उपयोगिता:

    यह पुस्तक उन स्त्रियों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो अपने जीवन को धर्ममय, मर्यादित, संस्कारित और समाजोपयोगी बनाना चाहती हैं। साथ ही यह युवा कन्याओं, गृहिणियों और माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

  • सूक्तियां,  सुभाषित – विवरण

    1. सूक्तियां (Sukhiyan / सूक्तियाँ)

    सूक्तियां संक्षिप्त और सारगर्भित वाक्य होते हैं जो गहरे जीवन-दर्शन, नैतिकता या व्यवहारिक ज्ञान को व्यक्त करते हैं। ये समाज और व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

    उदाहरण:

    • "सत्यमेव जयते" (सत्य की ही विजय होती है)
    • "अहिंसा परमो धर्मः" (अहिंसा सर्वोच्च धर्म है)

    2. अव्ययम् (Avaim / अव्यय)

    अव्यय वे शब्द होते हैं जो रूप नहीं बदलते, अर्थात वे विभक्तियों, लिंग या वचन के आधार पर परिवर्तन नहीं करते। संस्कृत में अव्यय शब्दों का विशेष महत्त्व है, जो वाक्यों को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

    उदाहरण:

    • यथा (जैसे)
    • (और)
    • एव (ही)
    • अपि (भी)

    3. सुभाषित (Subhashit / सुभाषितम्)

    सुभाषित संस्कृत में कहे गए सुंदर और शिक्षाप्रद वचन होते हैं जो नैतिकता, ज्ञान, और सद्गुणों की प्रेरणा देते हैं। ये श्लोक के रूप में होते हैं और विभिन्न ग्रंथों, नीतिशास्त्रों एवं महाकाव्यों में मिलते हैं।

    उदाहरण:
    📖 विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
    (विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है।)

    📖 असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
    (असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।)

    निष्कर्ष

    सूक्तियां संक्षिप्त ज्ञानवर्धक कथन होते हैं, अव्यय वे शब्द होते हैं जो अपरिवर्तनीय होते हैं, और सुभाषित वे शिक्षाप्रद वचन होते हैं जो जीवन को सही दिशा दिखाते हैं। ये सभी हमारे जीवन में सकारात्मकता और नैतिकता की वृद्धि करते हैं। 🌿📜

  • "सुखी बनो" एक आध्यात्मिक, नैतिक और आत्मविकास से परिपूर्ण प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसे गीता प्रेस के संस्थापक पुरुषों में से एक, पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने लिखा है। इस पुस्तक में व्यक्ति को "सच्चे सुख" के रहस्य से परिचित कराया गया है—जो बाह्य साधनों से नहीं, बल्कि अंतःकरण की निर्मलता, सद्भावना, ईश्वरप्रेम, और धर्ममय जीवन से प्राप्त होता है।

    यह पुस्तक जीवन की उन सूक्ष्म बातों को सरल भाषा में उद्घाटित करती है जिन्हें हम प्रतिदिन अनुभव तो करते हैं, लेकिन अक्सर उपेक्षित कर देते हैं।


    🔑 पुस्तक की मूल भावना:

    सुखी बनो” एक आशीर्वाद की तरह है—केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा से निकला एक सन्देश। इस पुस्तक में बताया गया है कि:

    • सुख संपत्ति, भोग, पद या बाहरी वैभव में नहीं है।

    • वास्तविक सुख है मन की शांति, संतोष, सकारात्मक दृष्टिकोण और ईश्वर में विश्वास

    • यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक सामान्य व्यक्ति भी, अपनी सोच और जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव कर के सदैव सुखी और शांतिमय जीवन जी सकता है।


    📖 मुख्य विषय-वस्तु और विचारधाराएँ:

    1. मन की दशा और दृष्टिकोण का प्रभाव

    • सुख या दुःख हमारी मानसिक स्थिति से उत्पन्न होते हैं।

    • मन यदि नियंत्रित और संतुलित हो, तो जीवन के कठिन दौर भी सहज हो जाते हैं।

    2. संतोष: सुख का मूल आधार

    • जो मिला है, उसमें प्रसन्न रहना—यह सबसे बड़ी पूँजी है।

    • लोभ, ईर्ष्या और असंतोष जीवन का विष है।

    3. कर्तव्यपालन और निष्काम कर्म

    • अपने कर्तव्यों को परमात्मा के अर्पण भाव से करना।

    • फल की चिंता न करते हुए सेवा भाव से कर्म करना सुख की कुंजी है।

    4. ईश्वरभक्ति और आत्म-संपर्क

    • जीवन में सच्चा सुख केवल ईश्वर की शरण में ही संभव है।

    • भक्ति, जप, ध्यान, सत्संग और धार्मिक अध्ययन से अंतःकरण शांत और निर्मल बनता है।

    5. मोह, माया और वासनाओं से मुक्ति

    • सुख की राह में मोह और विषय-वासनाएँ सबसे बड़ा बंधन हैं।

    • इनसे मुक्त होकर ही आत्मा के स्तर पर सुख का अनुभव किया जा सकता है।

    6. सच्चे सुखी कौन हैं?

    • जो दूसरों की सेवा करके हर्षित होते हैं।

    • जो लेने में नहीं, देने में विश्वास रखते हैं।

    • जो विपत्ति में भी धैर्य और आस्था रखते हैं।


    🌷 भाषा एवं शैली:

    • भाषा अत्यंत सरल, प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी है।

    • उदाहरणों और उपदेशों को सहज बोधगम्य शैली में प्रस्तुत किया गया है।

    • ऐसा लगता है जैसे कोई सज्जन और अनुभवी बुज़ुर्ग मन से आशीर्वाद दे रहा हो


    🎯 पुस्तक क्यों पढ़ें?

    • यदि आप मन की अशांति, असंतोष, या जीवन में निरर्थकता महसूस कर रहे हैं—यह पुस्तक आपको नवचेतना, आशा, और सकारात्मक दृष्टिकोण दे सकती है।

    • यह किसी धर्म, वर्ग या आयु के बंधन में नहीं है—हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो जीवन को सार्थक और सुखद बनाना चाहता है।

    • छात्र, गृहस्थ, साधक, सेवानिवृत्त, कर्मी, व्यवसायी, साधु — सभी इसके पाठ से लाभान्वित हो सकते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    "सुखी बनो" कोई साधारण पुस्तक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवन की चाबी है। यह पुस्तक हमें भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है और बताती है कि सच्चा सुख ना कहीं बाहर है, ना भविष्य में—बल्कि हमारे अपने हृदय में है। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ सच्ची मुस्कान और आत्मिक शांति की ओर एक कदम है।

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    सिस्टर निवेदिता  / Sister Nivedita

    Original price was: ₹160.00.Current price is: ₹130.00.

    सिस्टर निवेदिता 

    "सिस्टर निवेदिता" पुस्तक स्वामी विवेकानंद की प्रमुख शिष्या, सिस्टर निवेदिता के जीवन, योगदान और शिक्षाओं को दर्शाती है। मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से सिस्टर निवेदिता बनने तक की उनकी यात्रा में, वे भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय जागरण में समर्पित रहीं।

    पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ:

    प्रारंभिक जीवन और स्वामी विवेकानंद से भेंट – कैसे स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाया।
    भारतीय समाज में योगदानमहिलाओं की शिक्षा, समाज सेवा और राष्ट्रीय चेतना के लिए उनका संघर्ष।
    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका – उन्होंने भारतीयों में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।
    साहित्यिक और शैक्षिक योगदान – उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे
    भारत के प्रति प्रेम और समर्पण – उन्होंने भारत को अपनी मातृभूमि माना और अपना जीवन भारतवासियों की सेवा में अर्पित कर दिया।

    यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?

    इतिहास और आध्यात्मिकता के जिज्ञासुओं के लिए – जो भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण को समझना चाहते हैं।
    स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों के लिए – क्योंकि सिस्टर निवेदिता उनकी शिष्या थीं और उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
    राष्ट्रभक्तों और समाज सुधारकों के लिए – जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में रुचि रखते हैं।

  • श्री भगवान की असीम, अहैतुकी कृपा से ही जीव को मानव शरीर मिलता है। इसका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति ही है। परन्तु मनुष्य इस शरीर को प्राप्त करने के बाद अपने मूल उद्देश्य को भूलकर शरीर के साथ दृढ़ता से तादात्म्य कर लेता है और इसके सुख को ही परम सुख मानने लगता है। शरीर के सुखों में मान-बड़ाई का सुख सबसे सूक्ष्म होता है। इसकी प्राप्ति के लिए वह झूठ, कपट, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचार भी करने लग जाता है। शरीर के नाम में प्रियता होने से उसमें दूसरों से अपनी प्रशंसा, स्तुति की चाहना रहती है। वह यह चाहता है कि जीवन पर्यन्त मेरे को मान-बढ़ाई मिले और मरने के बाद मेरे नाम की कीर्ति हो। वह यह भूल जाता है कि केवल लौकिक व्यवहार के लिए शरीर का रखा हुआ नाम शरीर के नष्ट होने के बाद कोई अस्तित्व नहीं रखता। इस दृष्टि से शरीर की पूजा, मान-आदर एवं नाम को बनाए रखने का भाव किसी महत्व का नहीं है। परन्तु मनुष्य अपने प्रियजनों के साथ तो ऐसा व्यवहार करते ही हैं, जो सच्चे हृदय से जीवनभर भगवद्भक्ति में रहते हैं। अधिक क्या कहा जाए, उन साधकों का शरीर निष्प्राण होने पर भी उसकी स्मृति बनाये रखने के लिए वे उस शरीर को चित्र में आबद्ध करते हैं एवं उसको बहुत ही साज-सज्जा के साथ अन्तिम संस्कार-स्थल तक ले जाते हैं। विनाशी नाम को अविनाशी बनाने के प्रयास में वे उस संस्कार-स्थल पर छतरी, चबूतरा या मकान (स्मारक) आदि बना देते हैं। इसके सिवाय उनके शरीर से सम्बंधित एकपक्षीय घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर उनको जीवनी, संस्मरण आदि के रूप में लिखते और प्रकाशित कराते हैं। कहने को तो वे अपने-आपको उन साधकों का श्रद्धालु कहते हैं, पर काम वही करते हैं, जिसका वे साधक निषेध करते हैं। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। कपड़ेकी मजबूत जिल्द एवं सुन्दर रंगीन, लेमिनेटेड आवरणसहित। यह ग्रन्थ गीताप्रेस से प्रकाशित स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत लगभग 50 पुस्तकों का ग्रन्थाकार संकलन है। इस में परमात्मप्राप्ति के अनेक सुगम उपायों का सरल भाषा में अत्यन्त मार्मिक विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ प्रत्येक देश, वेष, भाषा एवं सम्प्रदाय के साधकों के लिये साधन की उपयोगी एवं मार्गदर्शक सामग्री से युक्त है।
  • "साधन-सुधा-निधि" पुस्तक उन दिव्य प्रवचनों और लेखों का संकलन है जो स्वामी रामसुखदास जी महाराज द्वारा दिए गए, किंतु पूर्व में प्रकाशित ग्रंथ "साधन-सुधा-सिंधु" में सम्मिलित नहीं हो पाए थे। यह पुस्तक वास्तव में साधकों के लिए एक अमूल्य निधि है, जिसमें आत्मिक साधना, व्यावहारिक धर्म, और भगवद्भक्ति की अमृत वर्षा है।


    🌼 मुख्य विषयवस्तु:

    • जीवन को साधना में कैसे बदलें — दिनचर्या से लेकर विचारों तक।

    • ईश्वर की ओर बढ़ने के मार्ग — शरणागति, नम्रता, श्रद्धा और भक्ति का महत्त्व।

    • मानव जीवन की सार्थकता — सत्संग, सेवा, त्याग और ध्यान के माध्यम से।

    • दैनंदिन संघर्षों में आत्मिक संतुलन — क्रोध, लोभ, मोह से मुक्त होने के उपाय।

    • शास्त्रों की सरल व्याख्या — गीता, उपनिषद और संतवाणी के आधार पर।


    🌷 पुस्तक की विशेषताएँ:

    • गूढ़ विषयों की अत्यंत सरल भाषा में व्याख्या

    • हर पृष्ठ साधकों के लिए एक दीपक के समान

    • प्रवचन शैली में आत्मीयता और प्रेरणा

    • पूर्ववर्ती ग्रंथ 'साधन-सुधा-सिंधु' के पूरक रूप में यह पुस्तक।


    🙏 यह पुस्तक किसके लिए उपयुक्त है:

    • जो आध्यात्मिक जीवन को व्यावहारिक जीवन में लाना चाहते हैं।

    • जो शुद्ध साधना के मार्ग पर चलना चाहते हैं।

    • गीता और रामसुखदास जी के भक्त व अनुयायी।

    • ईश्वर-प्राप्ति की सच्ची आकांक्षा रखने वाले साधक।


    "साधन-सुधा-निधि" वास्तव में एक ऐसी आध्यात्मिक संपत्ति है जो जीवन को परम उद्देश्य की ओर ले जाने वाली अमूल्य कुंजी प्रदान करती है। यह पुस्तक गीता प्रेस की उन अनुपम कृतियों में से है, जो हर साधक के पास होनी चाहिए।

  • "साधकों के पत्र" महान आध्यात्मिक साधक, विचारक और गीताप्रेस के संस्थापक-प्रेरक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखित वह अनुपम संकलन है, जिसमें उन्होंने विभिन्न साधकों, जिज्ञासुओं, भक्तों और जीवन की दिशा खोजने वाले लोगों को अपने पत्रों के माध्यम से आध्यात्मिक, नैतिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है।

    इन पत्रों में न तो उपदेश है, न कोई अहं — यह एक सच्चे आत्मज्ञानी की आत्मीयता, करुणा और अनुभव का सहज प्रवाह है।


    ✉️ पुस्तक की विशेषताएँ:

    1. वास्तविक जीवन के प्रश्नों के उत्तर:
      ये पत्र हनुमान प्रसाद जी को विभिन्न साधकों ने लिखे थे — जैसे:

      • "मैं घर में रहते हुए ईश्वर-भजन कैसे करूँ?"

      • "मन बहुत चंचल है, साधना में कैसे लगाऊँ?"

      • "गृहस्थ धर्म निभाते हुए मोक्ष की दिशा कैसे अपनाऊँ?"

      • "क्या भक्ति और ज्ञान एक साथ चल सकते हैं?"
        इन जैसे सैकड़ों प्रश्नों के उत्तर अत्यंत सरल, गहराई से और अनुभवपूर्ण रूप में इन पत्रों में दिए गए हैं।

    2. गंभीर विषयों की सरल व्याख्या:
      आत्मा, परमात्मा, माया, भक्ति, साधना, सेवा, व्रत, संकल्प, मानसिक स्थिति, वैराग्य, परिवार में रहते हुए साधना — इन विषयों पर लेखक ने अत्यंत सहज भाषा में अत्यधिक प्रभावशाली विचार प्रस्तुत किए हैं।

    3. सामान्य जीवन को आध्यात्मिक बनाना:
      यह पुस्तक दिखाती है कि केवल जंगलों या मठों में रहकर नहीं, बल्कि परिवार, व्यापार और समाज में रहते हुए भी हम पूर्ण साधना और ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

    4. लेखन शैली:
      लेखक की शैली अत्यंत आत्मीय, करुणामय और व्यावहारिक है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई बड़े-बुजुर्ग स्नेहपूर्वक आपका मार्गदर्शन कर रहे हों।


     

    श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (भाईजी) केवल एक लेखक नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के सबसे बड़े धर्मप्रचारकों में से एक थे। उन्होंने कल्याण पत्रिका के माध्यम से लाखों लोगों को आध्यात्मिकता की राह दिखाई। उनका जीवन स्वयं भक्ति, सेवा, साधना और त्याग का प्रतिमान था।


    🌿 पुस्तक का उद्देश्य:

    • साधकों की शंकाओं का समाधान करना

    • जीवन को ईश्वर-केन्द्रित बनाना

    • गृहस्थों के लिए भी साधना का मार्ग प्रशस्त करना

    • आत्मिक शांति व उन्नति के लिए यथार्थ मार्ग बताना


    🪔 पाठकों के लिए विशेष सन्देश:

    "साधकों के पत्र" एक ऐसी पुस्तक है जिसे आप एक बार नहीं, बार-बार पढ़ेंगे — हर बार नई प्रेरणा, नई दृष्टि और नई शांति मिलेगी। यह साधना-पथ पर चलने वालों के लिए एक अमूल्य पाथेय है।

  • सहज साधना  स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रेरणादायक ग्रंथ है, जो साधकों को आत्म-साक्षात्कार और भगवत्प्राप्ति के सरल, सहज और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। इस पुस्तक में स्वामी जी ने बताया है कि कैसे साधक बिना जटिल विधियों के, अपने दैनिक जीवन में ही साधना को आत्मसात कर सकते हैं।

    स्वामी जी के अनुसार, संसार के भोगों और कर्मों में आसक्ति ही दुःख का मूल कारण है। जब मनुष्य इनसे विरक्त होकर समत्व की स्थिति में स्थित होता है, तभी वह योगारूढ़ कहलाता है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए स्वामी जी ने तीन प्रमुख मार्ग बताए हैं

    • कर्मयोग: सभी क्रियाओं को निःस्वार्थ भाव से, केवल दूसरों के हित के लिए करना।

    • ज्ञानयोग: यह समझना कि सभी क्रियाएँ प्रकृति के गुणों के अनुसार होती हैं, और आत्मा अक्रिय है।

    • भक्तियोग: सभी क्रियाओं को भगवान की प्रसन्नता के लिए समर्पित करना                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    इन मार्गों का अनुसरण करके साधक संयोग की रुचि को समाप्त कर सकता है, जिससे उसे नित्ययोग की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि संसार का वियोग स्वाभाविक और अनिवार्य है, जबकि परमात्मा का योग सदा प्राप्त है। इसलिए, साधक को केवल संयोग की इच्छा का त्याग करना है, जिससे वह सहज रूप से परमात्मा में स्थित हो सकता है

  • 🌸 परिचय: हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

    हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (1892–1971) भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म के एक महान प्रचारक थे। वे गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के संस्थापक संपादक थे। उनके द्वारा रचित और संकलित सरस प्रसंग आज भी पाठकों के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करते हैं।


    📖 'सरस प्रसंग' का अर्थ

    ‘सरस’ का अर्थ है रसपूर्ण, हृदय को छूने वाले।
    ‘प्रसंग’ का अर्थ है घटना या किस्सा
    इस प्रकार ‘सरस प्रसंग’ उन प्रेरणादायक, भावपूर्ण और आध्यात्मिक घटनाओं को कहते हैं जो किसी संत, महापुरुष, या भक्त के जीवन से जुड़ी होती हैं और जिन्हें पढ़कर पाठक को श्रद्धा, भक्ति, विनम्रता और सदाचार की प्रेरणा मिलती है।


    🪔 हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंगों की विशेषताएं

    • सरल, सहज और हृदयस्पर्शी भाषा

    • छोटे-छोटे प्रसंगों में गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षा

    • संतों, भक्तों और भगवान की चरित्र-कथाओं का संकलन

    • प्रत्येक प्रसंग में नैतिकता और भक्ति का संदेश

    • आम जनमानस को भक्ति और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाली शैली।


    🌼 एक सरस प्रसंग (हनुमान प्रसाद जी की शैली में)

    प्रसंग: "सच्ची भक्ति"

    एक बार एक भक्त ने संत से पूछा —
    "महाराज! भगवान तो सबके हैं, फिर कुछ लोगों को ही उनकी कृपा क्यों मिलती है?"

    संत मुस्कराए और बोले —
    "बेटा! सूर्य तो सबके लिए चमकता है, पर जो अपनी आँखें खोलकर उसकी ओर देखता है, वही प्रकाश पाता है।
    उसी प्रकार, जो सच्चे मन से, विश्वासपूर्वक और विनम्रता से भक्ति करता है, भगवान की कृपा उसी पर प्रकट होती है।"

    संदेश: भगवान सबके हैं, पर उनका अनुभव वही करता है जो सच्चे मन से उन्हें पुकारता है।


    📚 कहाँ मिलेंगे हनुमान प्रसाद जी के सरस प्रसंग?

    • गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित:

      • ‘कल्याण’ पत्रिका (वर्ष–संख्या जैसे: भक्तिसंकल्पांक, संत अंक, नाममहिमा अंक आदि)

      • भक्त चरित्र, महापुरुषों की जीवनगाथाएं, संतों के प्रेरक प्रसंग

      • सत्संग सुधा, रामकथा, कृष्णलीला आदि

  • सरल दुर्गा सप्तशती  

    दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्मग्रंथ मार्कण्डेय पुराण का एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली भाग है, जिसमें देवी दुर्गा की महिमा, उनके युद्ध, और उनके द्वारा असुरों का संहार करने की कथा वर्णित है। यह ग्रंथ 700 श्लोकों (इसलिए इसे "सप्तशती" कहा जाता है) का संग्रह है और इसे चंडी पाठ भी कहा जाता है।


    🌸 सरल दुर्गा सप्तशती क्या है?

    सरल दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती का ही एक सरल और आसान भाषा में रूपांतरित संस्करण है, जिसे आम लोग बिना किसी पंडित या विशेष विद्वान के सहायता के पढ़ और समझ सकें। इसमें कठिन संस्कृत श्लोकों की जगह सरल संस्कृत या हिंदी में अर्थ सहित पाठ होता है।


    🌟 मुख्य उद्देश्य


    📖 मुख्य कथाएँ

    सरल दुर्गा सप्तशती में तीन मुख्य देवी स्वरूपों की कथाएँ होती हैं:

    1. महाकालीमधु-कैटभ नामक असुरों का वध

    2. महालक्ष्मीमहिषासुर जैसे बलशाली राक्षस का संहार

    3. महालक्ष्मी (चंडी रूप में)शुंभ-निशुंभ, धूम्रलोचन आदि का विनाश


    🙏 सरल दुर्गा सप्तशती का महत्त्व

    • मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है

    • भय, शोक, रोग, शत्रु आदि से मुक्ति दिलाती है

    • साधक को आत्मविश्वास और आंतरिक ऊर्जा देती है

    • देवी की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावशाली माध्यम

  • समाज सृंखला ग्रंथ वैष्णव भक्तिधारा की गहनतम परंपरा, मर्यादा और भावनात्मक अनुशासन का परिचायक है। यह पुस्तक श्री हरिदासी संप्रदाय के महान संत श्री कुंजबिहारी श्री हरिदास जी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण रचना है, जो न केवल धार्मिक अनुशासन का उपदेश देती है, बल्कि समाज और साधकों को एक सूत्र में बाँधने वाले सिद्धांतों की व्याख्या भी करती है।

    यह ग्रंथ समाज (भक्त समुदाय) के भीतर अनुशासन, परस्पर सम्मान, सेवा-भावना, और अध्यात्मिक उत्तरदायित्वों की श्रृंखलाबद्ध व्याख्या करता है। यह हर उस व्यक्ति के लिए एक मार्गदर्शक है जो हरिदासी परंपरा, वैष्णव भक्ति और संतमत को जीवन में अपनाना चाहता है।


    📖 ग्रंथ की प्रमुख विशेषताएँ:

    🔹 गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व:

    इस ग्रंथ में बताया गया है कि गुरु ही जीवात्मा को परमात्मा से मिलाने का माध्यम होता है। शिष्य को पूर्ण समर्पण भाव, सेवा और श्रद्धा से गुरु के चरणों में जीवन अर्पित करना चाहिए।

    🔹 समाज का स्वरूप और मर्यादा:

    "समाज" का अर्थ केवल एकत्रित भक्तों का समूह नहीं, बल्कि एक ऐसा दिव्य वातावरण है जहाँ नियम, मर्यादा, सेवा, और प्रेमपूर्वक व्यवहार की प्रधानता होती है। हरिदासी समाज में किस प्रकार से अनुशासन बना रहे, उसका सुंदर वर्णन इसमें मिलता है।

    🔹 आचार-विचार एवं सेवा प्रणाली:

    भक्तों के दैनिक जीवन में किस प्रकार का आचरण होना चाहिए – जैसे वाणी की मधुरता, परनिंदा से बचाव, गुरुसेवा, भगवत्-स्मरण और परस्पर प्रेमभाव – इन सभी बातों को विस्तार से बताया गया है।

    🔹 सामूहिक साधना एवं भजन परंपरा:

    भक्तों को एकत्र होकर भगवन्नाम कीर्तन, सत्संग एवं भजन का आयोजन करना चाहिए। यह सामूहिक साधना आत्मशुद्धि का श्रेष्ठ माध्यम है और समाज को एकता में बाँधने का कार्य करती है।

    यह पुस्तक हरिदासी संप्रदाय की गूढ़ शिक्षाओं को आम भाषा में प्रस्तुत करती है। श्री हित हरिवंश महाप्रभु और श्री हरिदास जी के उपदेशों की छाया में यह ग्रंथ प्रेम, सेवा, और त्याग के मार्ग को दिखाता है।


    🌸 ग्रंथ का महत्त्व:

    समाज सृंखला केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। यह समाज में एकात्मता, साधकों में शुचिता, और गुरु-भक्त संबंधों में पवित्रता को स्थिर करती है। यह उन सभी साधकों के लिए अनमोल रचना है, जो भक्ति के मार्ग में दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहते हैं।

    यह ग्रंथ न केवल वैष्णव समाज के लिए उपयोगी है, बल्कि समस्त आध्यात्मिक साधकों को भी एक आदर्श जीवन की दिशा दिखाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी रचना के समय थीं।

    The book "Samaj Shrinchika" is a symbol of the deepest tradition, dignity and emotional discipline of Vaishnav Bhaktidhara. This book is an important work written by the great saint of Shri Haridasi sect, Shri Kunjbihari Shri Haridas Ji, which not only preaches religious discipline, but also explains the principles that bind the society and the seekers together. This book explains discipline, mutual respect, service-spirit, and spiritual responsibilities within the society (devotee community) in a series. It is a guide for every person who wants to adopt the Haridasi tradition, Vaishnav Bhakti and Santmat in life. 📖 Key features of the book: 🔹 Importance of Guru-disciple tradition: It is told in this book that the Guru is the medium to unite the soul with the Supreme Soul. The disciple should dedicate his life at the feet of the Guru with complete dedication, service and devotion. 🔹 Nature and dignity of society: "Samaj" does not mean only a group of devotees gathered together, but a divine environment where rules, dignity, service, and loving behavior are paramount. A beautiful description of how discipline should be maintained in the Haridasi society is found in this. 🔹 Conduct and service system: What kind of conduct should be there in the daily life of devotees - such as sweetness of speech, avoiding backbiting, Guru Seva, remembrance of God and mutual love - all these things have been explained in detail. 🔹 Group worship and bhajan tradition: Devotees should gather together and organize Bhagwannaam Kirtan, Satsang and Bhajan. This group worship is the best medium of self-purification and works to bind the society in unity. 🔹 Propagation of Haridasi principles: This book presents the esoteric teachings of the Haridasi sect in common language. In the shadow of the teachings of Shri Hit Harivansh Mahaprabhu and Shri Haridas Ji, this Granth shows the path of love, service, and sacrifice. 🌸 Importance of the Granth: "Samaj Shrine" is not just a religious book, but a way of life. It establishes unity in society, purity in seekers, and sanctity in the Guru-devotee relationship. It is a precious work for all those seekers who want to move forward firmly on the path of devotion. This Granth is not only useful for the Vaishnav society, but also shows the direction of an ideal life to all spiritual seekers. Its teachings are as relevant today as they were at the time of its creation.
  • "समता अमृत और विषमता विष" – यह पुस्तक श्री जयदयाल गोयन्दका जी द्वारा रचित एक गहन वैदिक और सांस्कृतिक चिंतन है, जो समाज में व्याप्त विषमता (असमानता) की जड़ों को उजागर करता है और समता (समानता) के वैदिक, धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों की महिमा को प्रस्तुत करता है।

    यह पुस्तक दर्शाती है कि समता ही मानवता का अमृत है, जबकि विषमता संहारक विष के समान है, जो समाज, राष्ट्र और आत्मा – तीनों का पतन करता है।


    🕉️ मुख्य विषय-वस्तु / Key Themes:

    1. समता का वैदिक सिद्धांत:
      सभी जीवों में आत्मा समान है, भेद केवल शरीर, गुण और कर्म के आधार पर है। यह अध्यात्मिक समता का आधार है।

    2. विषमता का खंडन:
      जाति, वर्ण, पद, संपत्ति या जन्म के आधार पर उत्पन्न भेदभाव सामाजिक विकृति हैं, जिनका समर्थन न वेद करते हैं, न संत।

    3. धार्मिक ग्रंथों का सटीक विवेचन:
      गोयन्दका जी वेद, उपनिषद, गीता और अन्य शास्त्रों के प्रमाण देकर यह सिद्ध करते हैं कि धर्म कभी विषमता को नहीं मान्यता देता।

    4. सामाजिक समरसता का संदेश:
      पुस्तक समरस समाज की ओर प्रेरित करती है – जहाँ न ऊँच-नीच हो, न अहंकार हो, न अपमान।

    5. धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार:
      पाखंड, रूढ़िवाद और धर्म के नाम पर विषमता फैलाने वालों की कटु आलोचना की गई है, पर संतुलित और शास्त्रीय भाषा में।


    📚 पुस्तक की विशेषताएं / Highlights:

    • सरल, तर्कपूर्ण और ओजस्वी भाषा।

    • शास्त्र सम्मत तात्त्विक विवेचन।

    • धार्मिक दृष्टिकोण से सामाजिक समता का समर्थन।

    • आधुनिक समस्याओं पर सनातन समाधान।


    🎯 पाठकों के लिए उपयुक्त:

    • सामाजिक समरसता में रुचि रखने वाले

    • भारतीय दर्शन और धर्म के विद्यार्थी

    • वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से सामाजिक सुधार चाहने वाले

    • जाति-वर्ण पर तर्कपूर्ण और शास्त्रीय दृष्टिकोण समझना चाहने वाले


    📌 पुस्तक का उद्देश्य:

    धर्म और अध्यात्म के नाम पर समाज में फैलाई गई विषमता की आलोचना करते हुए, "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना से ओतप्रोत एक समतामूलक समाज की स्थापना का संदेश देना।

  • सफलता के सोपान

    सफलता कोई एक रात में मिलने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि यह निरंतर प्रयास, धैर्य और समर्पण का परिणाम होती है। "सफलता के सोपान" का अर्थ है—वह सीढ़ियाँ या चरण, जिनका अनुसरण करके कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

    सफलता के   सोपान:

    1. सपना देखना (लक्ष्य निर्धारण) – बिना लक्ष्य के सफलता संभव नहीं है। सफलता प्राप्त करने के लिए पहले एक स्पष्ट उद्देश्य तय करना जरूरी है।

  • हाँ संपूर्ण गीता सार का वर्णन हिंदी में प्रस्तुत है:


    संपूर्ण गीता सार (Sampoorn Gita Saar)

    1. जो हुआ, वह अच्छा हुआ।

    2. जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है।

    3. जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।

    तुम पछताते क्यों हो?
    जिस चीज को तुम खो चुके हो, वह तुम्हारी थी ही नहीं।
    और जो तुम्हारा है, वह तुमसे कभी जाएगा नहीं।


    जीवन के 5 मूल संदेश

    1. चिंता मत करो — व्यर्थ है।

    चिंता करने से कुछ नहीं बदलता। जो होना है, वह होकर रहेगा।

    2. मोह त्यागो — सब माया है।

    यह शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है।

    3. कर्म करो — फल की इच्छा मत रखो।

    तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है, फल पर नहीं।

    4. आत्मा अजर-अमर है।

    न इसे कोई जला सकता है, न काट सकता है, न मार सकता है।

    5. सब भगवान की इच्छा से है।

    तुम केवल एक माध्यम हो। अहंकार मत करो।


    श्रीकृष्ण का अंतिम सन्देश अर्जुन से:

    "मुझे पूर्णतः समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हारे सारे पापों से तुम्हें मुक्त कर दूँगा। शोक मत करो।"


  •  "संध्या, संध्या-गायत्री का महत्व और ब्रह्मचर्य" का वर्णन 


    🌅 संध्या क्या है?

    संध्या का शाब्दिक अर्थ है — संधिकाल अर्थात दिन और रात के मिलन का समय।
    प्रत्येक दिन में तीन संधिकाल होते हैं:

    1. प्रातः संध्या (सूर्योदय से पूर्व)

    2. मध्याह्न संध्या (दोपहर का समय)

    3. सायं संध्या (सूर्यास्त का समय)

    🔆 ये काल अत्यंत पवित्र माने गए हैं, क्योंकि इन समयों में प्रकृति शांत और दिव्यता से युक्त होती है। यही समय ईश्वर-स्मरण, जप और ध्यान के लिए श्रेष्ठ माना गया है।


    🪔 संध्या-गायत्री का महत्व

    गायत्री मंत्र वेदों का सार है —

    "ॐ भूर्भुवः स्वः ।
    तत्सवितुर्वरेण्यं ।
    भर्गो देवस्य धीमहि ।
    धियो यो नः प्रचोदयात् ॥"

    🧘‍♂️ यह मंत्र सविता (सूर्य देवता) की उपासना है। इसका जप संध्या के समय करने से —

    • मन शुद्ध होता है

    • बुद्धि में सतोगुण की वृद्धि होती है

    • आत्मबल और विवेक जाग्रत होता है

    • पापों का क्षय होता है

    • ब्रह्मविद्या की प्राप्ति का मार्ग खुलता है

    🎇 गायत्री मंत्र को 'ब्रह्मविद्या' और 'मंत्रों की जननी' कहा गया है।
    भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है:

    "गायत्री च्छन्दसामहम्।" (श्रीमद्भगवद्गीता 10.35)


    🌟 ब्रह्मचर्य का महत्व

    ‘ब्रह्मचर्य’ का अर्थ केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि इन्द्रिय-निग्रह, विचार-शुद्धि और ईश्वर में स्थित रहने का अभ्यास है।

    🔹 ब्रह्मचर्य पालन से लाभ:

    • शरीर बलवान होता है

    • मन स्थिर और बुद्धि तेज होती है

    • स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है

    • साधना में प्रगति होती है

    • आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है

    🧘‍♂️ महर्षि पतंजलि ने कहा है —

    "ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः॥"
    (अष्टांगयोग, योगसूत्र 2.38)
    "जब ब्रह्मचर्य पूर्ण रूप से स्थिर हो जाता है, तब अपूर्व तेजस्विता की प्राप्ति होती है।"


    👉 संध्या आत्मा का स्नान है।
    👉 गायत्री मंत्र आत्मा का भोजन है।
    👉 ब्रह्मचर्य आत्मा की रक्षा है।

    जो व्यक्ति इन तीनों को जीवन में अपनाता है, वह आध्यात्मिक मार्ग पर अभ्युदय (सर्वांगीण उन्नति) और निःश्रेयस (मोक्ष) दोनों को प्राप्त करता है।

  • यह पुस्तक स्वामी रामसुखदास द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक बाध्यकारी पेपरबैक है। पुस्तक प्रकाशक गीता प्रेस-गोरखपुर है। प्रथम संस्करण पुस्तक। इस पुस्तक के पृष्ठों की संख्या 192 है। यह पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखी गई है। यह एक धार्मिक ग्रंथ है।
    इस पुस्तक में स्वामी श्री रामसुखदास जी के प्रवचनों का एक अनुपम संग्रह है।
  • "संत वाणी" (श्री डोंगरेजी महाराज द्वारा)

    "संत वाणी" परम पूज्य श्री रमेशभाई डोंगरेजी महाराज द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है। यह पुस्तक विभिन्न संत महात्माओं की शिक्षाओं, उपदेशों और भक्ति मार्ग के गूढ़ रहस्यों का संकलन है। इसमें भक्ति, धर्म, ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के विषय में अमूल्य विचार प्रस्तुत किए गए हैं, जो जीवन को सही दिशा देने में सहायक हैं।

    "Sant Vani" by Shri Dongreji Maharaj

    "Sant Vani" is a revered spiritual book written by Shri Rameshbhai Dongreji Maharaj, a highly respected saint and scholar of Hindu philosophy. The book is a compilation of the divine teachings, wisdom, and discourses of various Sant Mahatmas (saints) from different spiritual traditions of India. It serves as a guide for devotees, offering deep insights into Bhakti (devotion), Dharma (righteousness), and Jnana (spiritual wisdom).

  • संत-दर्शन’ पुस्तक भारतीय संत परंपरा का एक अमूल्य संग्रह है, जिसमें विभिन्न युगों के महान संतों, साधकों और भक्तों के जीवन, शिक्षाओं और उनके योगदान का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में उन संतों के चित्र और उनके जीवन की झलकियाँ दी गई हैं जिन्होंने भारतवर्ष की आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया और समाज में नैतिकता, प्रेम, करुणा तथा भक्ति का संदेश फैलाया।

    हनुमानप्रसाद पोद्दार जी के संपादन में प्रस्तुत यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक साधकों के लिए उपयोगी है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को समझने के लिए एक उत्कृष्ट स्रोत भी है। इसमें कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, मीराबाई, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक संतों के जीवन दर्शन को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

    इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह पाठकों को विभिन्न संत परंपराओं – भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, योग मार्ग – आदि के संतों की विविधता और उनकी आध्यात्मिक साधनाओं से परिचित कराती है। यह पुस्तक संतों के विचारों और उपदेशों के माध्यम से मनुष्य को आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है।

    मुख्य विशेषताएँ:

    1. संतों की विविधता:
      यह ग्रंथ भारत की महान संत परंपरा की विविधता को दर्शाता है। इसमें शैव, वैष्णव, शाक्त, सिख, जैन, बौद्ध तथा निर्गुण भक्ति के अनेक संतों का वर्णन किया गया है। कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, रविदास, दादूदयाल, नामदेव, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, समर्थ रामदास, ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि संतों के जीवन प्रसंग और संदेश इसमें समाहित हैं।

    2. आध्यात्मिक दिशा और प्रेरणा:
      यह पुस्तक आत्मा की खोज, ईश्वर प्रेम, सेवा, तपस्या, त्याग, वैराग्य, भक्ति और मुक्ति जैसे गूढ़ विषयों को सहज रूप से प्रस्तुत करती है। यह पाठकों को न केवल आध्यात्मिक दृष्टि देती है, बल्कि एक शुद्ध और पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है।

    3. चित्र और दृश्यात्मक सौंदर्य:
      पुस्तक के मुखपृष्ठ पर संतों की एक लहर सी दिखाई देती है जो प्रकाश की ओर अग्रसर हो रही है — यह दृश्य न केवल कलात्मक है बल्कि यह दर्शाता है कि संत समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले दीपक हैं।

    4. सामाजिक जागृति:
      संतों ने केवल आत्मकल्याण का मार्ग नहीं दिखाया, बल्कि समाज सुधार, छुआछूत मिटाने, जातिवाद का विरोध, प्रेम और भाईचारे की भावना को जगाने का कार्य भी किया। इस पुस्तक में उन संतों का विशेष वर्णन है जिन्होंने सामाजिक चेतना फैलाने का कार्य किया।

    5. सरल भाषा, गहरी बात:
      यह पुस्तक संस्कृतनिष्ठ नहीं है, बल्कि इसमें भक्तिभाव से ओतप्रोत सरल और भावपूर्ण हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे यह जनसामान्य के लिए भी सहज रूप से ग्राह्य हो जाती है।


    संतों का उद्देश्य और योगदान

    • संतों ने मानव को आत्मा और परमात्मा के संबंध का बोध कराया।

    • जीवन की क्षणभंगुरता का स्मरण कराते हुए सच्चे सुख की खोज भीतर करने को कहा।

    • अहंकार, मोह, माया और क्रोध से मुक्त होकर सेवा, त्याग और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

    • भक्ति मार्ग के साथ-साथ कर्म और ज्ञान के समन्वय पर भी बल दिया।


    उद्देश्य और उपयोगिता:

    ‘संत-दर्शन’ का मुख्य उद्देश्य है –

    • संतों के माध्यम से पाठकों के भीतर आत्मिक चेतना जगाना।

    • पाठकों को सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना।

    • समाज को आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से उन्नत बनाना।

    • भारत की गौरवशाली संत परंपरा को जन-जन तक पहुँचाना।

    यह पुस्तक धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत मूल्यवान है। इसे हर आयु वर्ग के पाठकों को पढ़ना चाहिए — विशेषकर युवाओं को, ताकि वे जीवन की दिशा को सही रूप से समझ सकें।


    निष्कर्ष:

    ‘संत-दर्शन’ केवल संतों के जीवन का परिचय नहीं है, यह एक जीवन-दर्शन है। इसमें छिपी शिक्षाएँ और प्रेरणाएँ आज के भटके हुए मानव के लिए एक प्रकाशस्तंभ के समान हैं। हनुमानप्रसाद पोद्दार जी द्वारा संकलित यह ग्रंथ भारतीय अध्यात्म का सार प्रस्तुत करता है, और यह हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो सच्चे ज्ञान, भक्ति और शांति की खोज में है।

  • सचित्र महाभारत  

    1. चित्रमय प्रस्तुति – यह पारंपरिक पाठ्य संस्करण से अलग होती है क्योंकि इसमें महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों को चित्रों के साथ दिखाया जाता है।

    2. प्रमुख घटनाओं का चित्रण – इसमें कुरुक्षेत्र युद्ध, भगवद गीता, द्रौपदी चीरहरण, अभिमन्यु का पराक्रम, भीष्म की प्रतिज्ञा आदि को सुंदर चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

    3. महाभारत के पात्रों का जीवंत चित्रणश्रीकृष्ण, अर्जुन, कर्ण, भीष्म, दुर्योधन आदि महापुरुषों के चरित्र और उनकी महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्रों के साथ दिखाया जाता है।

    4. शास्त्रीय एवं आधुनिक चित्रण शैली – कुछ संस्करणों में पारंपरिक भारतीय लघुचित्र (Miniature Paintings) शैली का उपयोग किया गया है, जबकि कुछ में आधुनिक डिजिटल चित्रण या कॉमिक शैली को अपनाया गया है।

    5. सभी आयु वर्ग के लिए उपयुक्त – चित्रों की सहायता से यह संस्करण बच्चों, युवाओं और आम पाठकों के लिए अधिक रोचक और समझने में आसान बन जाता है।

    6. प्रकाशित संस्करणगीताप्रेस गोरखपुर, अमर चित्र कथा, और कई अन्य प्रकाशकों ने सचित्र महाभारत के अपने-अपने संस्करण प्रकाशित किए हैं।

    निष्कर्ष

    सचित्र महाभारत महाकाव्य को देखने और समझने का एक अनूठा और आकर्षक तरीका प्रदान करता है। यदि आप महाभारत को पढ़ने के साथ-साथ चित्रों के माध्यम से भी अनुभव करना चाहते हैं, तो यह संस्करण एक उत्तम विकल्प हो सकता है।

    क्या आप किसी विशेष प्रकाशक या संस्करण की जानकारी चाहते हैं

  • षट्चक्र-निरुपणम एक महत्वपूर्ण योग-ग्रंथ है, जो तंत्र और कुंडलिनी योग पर आधारित है। यह ग्रंथ विशेष रूप से चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) का विवरण प्रदान करता है और यह समझाने का प्रयास करता है कि मानव शरीर में विभिन्न चक्र कैसे कार्य करते हैं और उन्हें जागृत करने के क्या लाभ हैं।

    मुख्य विषयवस्तु

    यह ग्रंथ सप्तचक्रों (सात चक्रों) की व्याख्या करता है, जो शरीर में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं। ये चक्र हैं:

    1. मूलाधार चक्र – रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में स्थित होता है और स्थायित्व व जड़ता का प्रतीक है।
    2. स्वाधिष्ठान चक्र – नाभि के नीचे स्थित होता है और रचनात्मकता तथा इच्छाशक्ति से जुड़ा होता है।
    3. मणिपुर चक्र – नाभि क्षेत्र में स्थित होता है और शक्ति, आत्मविश्वास तथा इच्छाशक्ति को नियंत्रित करता है।
    4. अनाहत चक्र – हृदय क्षेत्र में स्थित होता है और प्रेम, करुणा तथा भावनाओं का केंद्र माना जाता है।
    5. विशुद्धि चक्र – गले में स्थित होता है और संचार, सत्य और अभिव्यक्ति से संबंधित होता है।
    6. आज्ञा चक्र – भौहों के बीच स्थित होता है और अंतर्ज्ञान तथा आध्यात्मिक दृष्टि का केंद्र होता है।
    7. सहस्रार चक्र – सिर के ऊपर स्थित होता है और परम चेतना एवं आत्मज्ञान से जुड़ा होता है।
  • "श्रीरामचंद्र की वाणी" का अर्थ है भगवान श्रीराम द्वारा कही गई बातें, उपदेश या संवाद, जो उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न प्रसंगों में दिए। श्रीरामचंद्र जी की वाणी मर्यादा, धर्म, संयम, और आदर्श जीवन के लिए प्रेरणा देती है। उनके वचनों में सत्य, कर्तव्य और करुणा की गहराई होती है।

    नीचे श्रीरामचंद्र की वाणी का एक संक्षिप्त वर्णन (description) हिंदी में दिया गया है:


    "श्रीरामचंद्र की वाणी" का वर्णन (Description in Hindi):

    श्रीरामचंद्र की वाणी शीतल, मधुर, मर्यादित और धर्मप्रधान होती थी। वे सदैव सत्य बोलने वाले, सबको सम्मान देने वाले और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले पुरुषोत्तम थे। उनकी वाणी में ऐसा सामर्थ्य था कि शत्रु भी उनका आदर करते थे।

    जब उन्होंने वनवास स्वीकार किया, तब उन्होंने बिना किसी क्रोध या दुख के अपने माता-पिता और प्रजाजनों को सांत्वना दी — यह उनके धैर्य और त्याग की वाणी का प्रमाण था। उन्होंने कहा:

    "पिता की आज्ञा धर्म है, उसे निभाना मेरा कर्तव्य है।"

    वह अपनी वाणी से शबरी को सम्मान देते हैं, हनुमान को गले लगाते हैं और विभीषण को आश्रय देते हैं। वे कहते हैं:

    "जो शरण में आये, उसका त्याग नहीं करना चाहिए, चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो।"

    उनकी वाणी में कोई छल-कपट नहीं था, और वे हर परिस्थिति में न्याय और करुणा का पालन करते थे। उनके मुख से निकला हर शब्द मानव धर्म के लिए आदर्श है।

  • "श्रीरामकृष्ण वचनामृत – प्रसंग: चतुर्थ भाग" एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो श्रीरामकृष्ण परमहंस के उपदेशों, शिक्षाओं और उनके भक्तों के साथ हुए संवादों का संग्रह है। यह ग्रंथ महेंद्रनाथ गुप्त (म. / "मास्टर महाशय") द्वारा लिखित है, जिन्होंने इन प्रसंगों को प्रत्यक्ष रूप से सुना और लिपिबद्ध किया। इसे बांग्ला में “कठामृत” कहा जाता है, और हिंदी में इसका अनुवाद "वचनामृत" के रूप में किया गया है।


    🔹 वचनामृत – प्रसंग चतुर्थ भाग (संक्षिप्त विवरण हिंदी में):

    चतुर्थ भाग में श्रीरामकृष्ण के जीवन के बाद के चरणों के उपदेश शामिल हैं, जब उनका शरीर रोगग्रस्त था, किंतु आत्मा और उपदेशों की शक्ति पहले से भी अधिक प्रखर हो चुकी थी।

    इस भाग में:

    • ईश्वर के नाम की महिमा,

    • भक्ति और ज्ञान के अंतर,

    • गृहस्थ और सन्यासी के धर्म,

    • आत्मज्ञान की व्याख्या,

    • भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण,

    • शुद्ध प्रेम और निष्काम सेवा,
      जैसे विषयों पर अत्यंत सरल, लेकिन गहराई से भरे संवाद मिलते हैं।


    🌿 मुख्य विशेषताएँ:

    1. भाषा शैली: यह भाग भी श्रीरामकृष्ण की सरल, लोकबोली जैसी भाषा में है – जो सीधे हृदय को स्पर्श करती है।

    2. संवाद शैली: इसमें विभिन्न भक्तों (जैसे नरेंद्रनाथ – जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद बने), विद्वानों और सामान्य जनों से हुए संवाद हैं।

    3. प्रेरक प्रसंग: कई ऐसे प्रसंग हैं जो श्रीरामकृष्ण की दिव्यता और उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

    4. आध्यात्मिक गहराई: यह भाग सांसारिक मोह से मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति की व्यावहारिक विधियों, और गुरु-भक्ति की पराकाष्ठा को स्पष्ट करता है।


  •  – "श्रीरामकृष्ण")

    • "श्री" — यह एक सम्मानसूचक शब्द है, जो दिव्यता, पवित्रता और आदर को दर्शाता है।

    • "रामकृष्ण" — यह नाम दो महान भगवानों का संगम है:

      • "राम" — मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, जो धर्म, त्याग और आदर्श जीवन का प्रतीक हैं।

      • "कृष्ण" — भगवान कृष्ण, जो प्रेम, करुणा और दिव्य लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

    👉 इस प्रकार, "रामकृष्ण" नाम स्वयं में ही भक्ति और ज्ञान का समन्वय है। यह नाम उच्च आध्यात्मिक ऊर्जा से युक्त है, और इसका जप करने मात्र से मन शांत और पवित्र होता है।


    2. रूप (रूप – श्रीरामकृष्ण का दिव्य स्वरूप)

    • भौतिक रूप: श्रीरामकृष्ण परमहंस का शरीर दुबला-पतला, शांत और तेजस्वी था। वे सामान्यतः एक सादा धोती पहनते थे और उनका चेहरा करुणा एवं दिव्यता से ओतप्रोत रहता था।

    • आध्यात्मिक रूप:

      • उनका रूप भक्तों के लिए ईश्वर का मूर्त स्वरूप था।

      • वे सभी धार्मिक पंथों का अनुभव कर चुके थे – भक्ति, ज्ञान, योग, तंत्र आदि।

      • उनका मुखारविंद सदैव आनंदमय, मधुर और आत्मिक शांति से भरा हुआ था।

    👉 उनका रूप देखकर ही भक्तों के हृदय में शुद्धता, श्रद्धा और भक्ति का संचार होता था।


    3. "नाम तथा रूप" की भक्ति परंपरा में महत्ता

    नाम और रूप भक्ति परंपरा में यह दोनों ही ईश्वर के साक्षात स्वरूप माने जाते हैं।

    • नाम जपश्रीरामकृष्ण के नाम का जप करने से मन में भक्ति, शांति और दिव्यता का अनुभव होता है।

    • रूप ध्यान — उनके दिव्य स्वरूप का ध्यान करने से साधक को आत्मिक उन्नति मिलती है।

    "श्रीरामकृष्ण — नाम तथा रूप" का अर्थ है —
    👉 उनका नाम जपना और स्वरूप का ध्यान करना, दोनों ही आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाते हैं।

    The phrase "Sri Ramakrishna Naam tatha Roop" refers to the Name (Naam) and Form (Roop) of Sri Ramakrishna Paramahamsa, a 19th-century Indian saint and mystic who played a key role in the modern revival of Hinduism and was the spiritual guru of Swami Vivekananda.

    Let’s break it down by description:


    1. Naam (Name) – “Sri Ramakrishna”

    • "Sri": A respectful honorific in Sanskrit, denoting reverence and divinity.

    • "Ramakrishna": His given name; symbolically rich:

      • "Rama": A name of God, especially Lord Vishnu’s avatar in the Ramayana.

      • "Krishna": Another major avatar of Vishnu, known for divine play (leela) and love.

    • The name itself fuses two central deities of Hinduism, indicating a synthesis of divine qualities—righteousness, compassion, wisdom, and bliss.


    2. Roop (Form) – The Divine Appearance of Sri Ramakrishna

    • Physical form: Sri Ramakrishna was a slender, humble, ascetic man, often seen clad in a simple cloth, radiating a peaceful and divine aura.

    • Spiritual Form: To devotees, his form is not just physical—it is symbolic of:

      • Divine purity and renunciation

      • Motherly compassion (he often saw the Divine Mother in all beings)

      • Embodiment of multiple spiritual paths—Bhakti, Jnana, Karma, Tantra, and others


    Philosophical Meaning of “Naam tatha Roop” in Bhakti Traditions

    In devotional (Bhakti) traditions, Naam (Name) and Roop (Form) are considered not separate from the Divine. Chanting the holy name (Naam) and meditating on the divine form (Roop) are powerful practices to realize God.

    So, when someone says Sri Ramakrishna Naam tatha Roop,” they mean:

    • Chanting His name is a spiritual act.

    • Visualizing or meditating on His form brings spiritual transformation.

    • Both are considered divine in themselves—not just representations, but embodiments of the Divine

  • श्रीरामकृष्ण परमहंस – संक्षिप्त जीवनी

    श्रीरामकृष्ण परमहंस (1836–1886) एक महान भारतीय संत और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म बंगाल के कामारपुकुर नामक गाँव में हुआ था। बचपन से ही वे ईश्वर के प्रति अत्यंत भावुक और भक्ति से भरे हुए थे। किशोरावस्था में वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बने, जहाँ उन्होंने मां काली के साक्षात् अनुभव किए।

    श्रीरामकृष्ण ने विभिन्न धार्मिक मार्गों — हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्म — का अभ्यास किया और यह अनुभव किया कि सभी रास्ते एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। उनका जीवन सरलता, निष्काम भक्ति और जीवमात्र में ईश्वर-दर्शन का आदर्श उदाहरण था। उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उनके संदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया।

    श्रीरामकृष्ण के मुख्य उपदेश

    1. ईश्वर सर्वत्र है: हर प्राणी में ईश्वर का वास है। प्रेम और सेवा के माध्यम से ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।

    2. सभी धर्म सत्य हैं: विभिन्न धर्म केवल सत्य तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं। किसी भी धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए।

    3. ईश्वर की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य है: सांसारिक सुख क्षणिक है, लेकिन ईश्वर-साक्षात्कार स्थायी शांति देता है।

    4. भक्ति, ज्ञान और कर्म – सभी साधन श्रेष्ठ हैं: अलग-अलग प्रकृति के लोग भिन्न-भिन्न मार्गों द्वारा ईश्वर तक पहुँच सकते हैं।

    5. निर्दोष सरलता और निष्कपटता: आध्यात्मिक जीवन में छल, कपट और अहंकार त्यागना चाहिए।

    6. सच्चा गुरु आवश्यक है: ईश्वर की प्राप्ति के लिए सच्चे गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है

  •  
    "श्रीमद्भगवद्गीता मूलम्" (Shrimad Bhagavad Gita Moolam) का अर्थ होता है — "श्रीमद्भगवद्गीता का मूल रूप"
    यह ग्रंथ महाभारत के भीष्म पर्व का एक हिस्सा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में उपदेश दिया था।

    संक्षिप्त विवरण हिंदी में:

    श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म का अत्यंत पवित्र और प्रेरणादायक ग्रंथ है। इसमें 700 श्लोक हैं, जो जीवन, कर्म, धर्म, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष के गहन रहस्यों को उजागर करते हैं।
    अर्जुन जब कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में मोहग्रस्त होकर शस्त्र छोड़ बैठते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें जीवन का असली उद्देश्य, आत्मा की अमरता, और निष्काम कर्म का उपदेश देते हैं।

    मुख्य विषय:

    • कर्मयोग (कर्म करते हुए फल की इच्छा न करना)

    • ज्ञानयोग (आत्मा व परमात्मा का ज्ञान)

    • भक्ति योग (ईश्वर में पूर्ण समर्पण)

    • अध्यात्म और प्रकृति का भेद

    • आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म का सिद्धांत

    • धर्म के प्रति कर्तव्य

    "मूलम्" शब्द का अर्थ है "मूल श्लोक" — यानी संस्कृत के शुद्ध श्लोक बिना किसी टीका (व्याख्या) या भाष्य (टिप्पणी) के।
    "श्रीमद्भगवद्गीता मूलम्" ग्रंथ में केवल भगवद्गीता के संस्कृत श्लोक दिए होते हैं, जिनमें भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी मूल रूप में संकलित है।