Description
Sant Shree Eknath Maharaj was one of the greatest saints, poets, and social reformers of the Bhakti movement in Maharashtra. He belonged to the Varkari Sampradaya and carried forward the legacy of Sant Dnyaneshwar, Sant Namdev, and later Sant Tukaram. He is remembered for his deep devotion, literary works, and his efforts to remove social evils like untouchability and caste discrimination.
Early Life
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Birth: 1533 CE (Shaka 1455)
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Birthplace: Paithan, Maharashtra
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Guru: Janardan Swami
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Family: He was born in a scholarly Brahmin family. From childhood, he displayed qualities of compassion, devotion, and spiritual wisdom.
Spiritual Journey
Shree Eknath Maharaj dedicated his life to spreading devotion to Lord Vitthal (a form of Krishna/Vishnu). He believed that true worship lies in love, humility, and service. Through his teachings, he connected ordinary people to the divine path and made spirituality simple and practical.
श्री एकनाथ महाराज संत परंपरा के महान संत, कवि तथा समाज सुधारक थे। वे वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संतों में गिने जाते हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के प्रख्यात पैठण नगर में सन् 1533 ई. (शक संवत् 1455) में हुआ था।
जीवन परिचय
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जन्मस्थान: पैठण (महाराष्ट्र)
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गुरु: जनार्दन स्वामी
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परिवार: वे एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। बचपन से ही उनमें भक्ति, करुणा और ज्ञान की गहरी प्रवृत्ति थी।
संत जीवन
श्री एकनाथ महाराज ने संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव और संत तुकाराम की भक्ति परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने ईश्वर की भक्ति को जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि भगवान का सच्चा मार्ग प्रेम, दया और सेवा में निहित है।
साहित्यिक योगदान
एकनाथ महाराज महान संत ही नहीं, बल्कि अद्वितीय कवि और लेखक भी थे।
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उन्होंने ‘एकनाथी भागवत’ की रचना की, जिसमें 11वें स्कंध का मराठी भावानुवाद है।
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उन्होंने ‘भावार्थ रामायण’ की रचना कर श्रीराम कथा को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाया।
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उनकी ‘रुक्मिणी स्वयंवर’, ‘भावार्थ गीता’, और अनेक अभंग आज भी प्रसिद्ध हैं।
समाज सुधार
श्री एकनाथ महाराज ने अपने समय की सामाजिक कुरीतियों और भेदभाव का विरोध किया।
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उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद के विरुद्ध आवाज उठाई।
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वे सभी को समान दृष्टि से देखते थे।
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उन्होंने यह सिद्ध किया कि ईश्वर की भक्ति में जात-पात का कोई स्थान नहीं है।
उपदेश और संदेश
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भक्ति मार्ग में अहंकार का स्थान नहीं होना चाहिए।
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ईश्वर प्रेम, करुणा और परोपकार से ही प्राप्त होते हैं।
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हर प्राणी में ईश्वर का अंश है, इसलिए सभी से समान भाव रखना चाहिए।
समाधि स्थान
श्री एकनाथ महाराज ने 1599 ई. (शक संवत् 1521) में पैठण के गोदावरी तट पर ही समाधि ली। आज भी वहाँ उनकी समाधि स्थल पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
Additional information
Weight | 0.3 g |
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