Description
गो. श्रीहितहरिवंशचन्द्र महाप्रभुपाद प्रणीत
श्रीमद् राधासुधानिधि/ Shreemad Radha Sudhanidhi (रससुधानिधि)
[ हार्द प्रकाश टीका सहित ] टीकाकार- किशोरीशरण अलि
“श्रीमद् रससुधनिधि ” 270 श्लोको मे रचित एक स्तव ग्रऩ्थ हैं इसमे प्रमोपासना प्रवॆतक श्रीहिताचार्य चरण ने अपने परम इष्ट और परमभिष्ट रस मूर्ति श्री राधा की दिशा महान पद-रेणु नाम-धाम-रूप व स्वरूप की परात्परता और महत्ता आदि की अभिव्यक्ति के साथ साथ उनकी सम्पूणॆ रसोत्सव -सेवा-प्राप्ति की सुमधुर अभिलाषा व्यक्त की हैं। उदाहरणतः कृपा दृष्टि प्राप्ति अभिलाषा, अति सख्य प्राप्ति अभिलासा दर्शनभिलासा पद सेवा प्राप्ति अभिलासा मंगला से सयन पर्यंत तक की संपूर्ण सेवा प्राप्ति की अभिलाषा निज स्वामीनी संग परस्पर संभाषण की अभिलासा आदि । पूज्य महाराजश्री द्रारा प्रणीत इस हादॆ प्रकाश नामनी टीका के अन्तरालोडन से यह सुस्पष्ट हो जाता है। कि ये विविध अभिलाषायें ईष्ट से अत्यन्त दूर और परोक्षकाल की न होकर ईष्ट से अत्यन्त निकट और अपरोक्ष काल की ही है। ये केवल अभिलाषा मात्र ही नही प्रत्युत उस लीला का पूरक और अंगभूत कायॆ भी बनी हुई हैं। इस अभिलाषा अभिव्यक्ति व्याज मे ही आचायॆ चरण ने अपनी स्वामिनी का आनखशिख वणॆन करते हुए अपने रस भजन की विधा भी व्यक्त की हैं। विशेषता यह है की उन्होने इस अभिलाषा ग्रन्थ मे ही पूवॆ प्रचलित उपासनाऔ किंवा अन्य पूवॆ पक्षो का दिग्दशॆन कराते हुए अपनी नितांत अभिनव और स्वतंत्रा रसोपासना के प्रत्येक अंगोपांगों पर भी प्रकाश डाला हैं।
Additional information
Weight | 0.5 kg |
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