सामवेद / Samaveda

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Description

सामवेद -श्रद्धा एवं सेवा का सरवर गायन भाषा टीका

सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मन्त्र गाये जा सकते हैं और जो संगीतमय हों। यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मन्त्र गाये जाते हैं। इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है। इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं।पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे इसकी एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है. सामवेद की इन तेरह शाखाओं में से तीन आचार्यों की शाखाएँ – (1) राणायनीय (2) कौमुथीरयी व (3) जैमिनीय मिलती हैं. सामवेद कला अध्य्यन करने वाले पंडित को पंचविश या उद्गाता कहते है.

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