Description
सहस्रनाम का (शाब्दिक अर्थ – हजार नाम) संस्कृत साहित्य में एक प्रकार का स्तोत्र रचना होती है जिसमें किसी देवता के एक सहस्र (हजार) नामों का उल्लेख होता है, जैसे विष्णुसहस्रनाम, ललितासहस्रनाम आदि।
संस्कृत साहित्य में किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गये काव्य को स्तोत्र कहा जाता है (स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्)। संस्कृत साहित्य में यह स्तोत्रकाव्य के अन्तर्गत आता है।
महाकवि कालिदास के अनुसार ‘स्तोत्रं कस्य न तुष्टये’ अर्थात् विश्व में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। इसलिये विभिन्न देवताऔ को प्रसन्न करने हेतु वेदों, पुराणो तथा काव्यों में सर्वत्र सूक्त तथा स्तोत्र भरे पड़े हैं। अनेक भक्तों द्वारा अपने इष्टदेव की आराधना हेतु स्तोत्र रचे गये हैं।
कुछ प्रमुख स्तोत्र
श्रीगणपतिसहस्त्रनामस्तोत्रम्
श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रम्
श्रीशिवसहस्त्रनामस्तोत्रम्
श्रीदुर्गासहस्त्रनामस्तोत्रम्
श्रीसूर्यसहस्त्रनामस्तोत्रम्
श्रीरामसहस्त्रनामस्तोत्रम्
…………………. आदि विभिन्न स्तोत्रों का संग्रह है
यह ग्रन्थ (संग्रह) काफी प्राचीन है तथा इसके मूल संकलनकर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। यह विभिन्न प्रकाशनों से प्रकाशित होता है जिनमें गीताप्रस गोरखपुर भी शामिल है।
Additional information
| Weight | 1 g |
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