Description
परब्रह्म उन व्यक्तियों से अत्यन्त प्रसन्न होते हैं जो स्वयं को ब्राह्मणों व वैष्णवों की सेवा में संलग्न कर लेते हैं । यही शिक्षा आदि पुराण, भगवत गीता , लघु भागवतामृत व चैतन्य महाप्रभु के वचनों , जिनका उल्लेख चैतन्य चरणामृत में हुआ है, में मिलती है । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा था : ” मेरे प्रत्यक्ष भक्त वास्तव में मेरे भक्त नहीं हैं, मेरे सेवकों के भक्त ही वास्तव में मेरे भक्त हैं ।” ईसा मसीह ने भी कुछ इसी प्रकार की शिक्षा दी थी : ” जो स्वयं को झुकायेगा, प्रभु उसे ऊंचा उठाएंगे; पर जो स्वयं को ऊंचा समझ कर अभिमान करेगा, प्रभु उसे नीचे गिराएंगे ।”
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Weight | 0.3 g |
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