Description
इनकी कथा विष्णु पुराण और भागवत पुराण में आती है। वे प्रथम सम्राट उत्तानपाद (स्वयंभू मनु के पुत्र) के पुत्र थे और मनु ने उत्तानपाद को विष्णु भगवान और शिव भगवान के साथ भगवान ब्राम्ह और चित्रगुप्त की कृपा से हुए इस कारण उत्तानापद को चित्रवंशी कायस्थ सम्राट बनाया और। ध्रुव ने बचपन में ही घरबार छोड़कर तपस्या करने की ठानी।
भक्तराज ध्रुव, जिन्हें ध्रुव तारे के रूप में भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक प्रसिद्ध भक्त और उदाहरणात्मक पात्र हैं। उनकी कथा श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है और यह कथा भक्ति, संकल्प, और ईश्वर के प्रति निष्ठा की अद्वितीय मिसाल है।
ध्रुव की कथा
- परिचय और परिवार:
- ध्रुव राजा उत्तानपाद के पुत्र थे। उनकी माता का नाम सुनीति था और सौतेली माता का नाम सुरुचि था। राजा उत्तानपाद की सुरुचि से अत्यधिक प्रेम था, जिससे सुनीति और ध्रुव को अक्सर उपेक्षा सहनी पड़ती थी।
- ध्रुव का अपमान:
- एक दिन ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठना चाहते थे, लेकिन उनकी सौतेली माता सुरुचि ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया और कहा कि राजा की गोद में बैठने का अधिकार केवल उसके पुत्र उत्तम को है। इस अपमान से ध्रुव बहुत आहत हुए और अपनी माता सुनीति के पास गए।
- माता का मार्गदर्शन:
- सुनीति ने ध्रुव को समझाया कि यदि वह वास्तविक सम्मान और स्थान पाना चाहते हैं, तो उन्हें भगवान विष्णु की उपासना करनी चाहिए। उन्होंने ध्रुव को भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होने के लिए प्रेरित किया।
- ध्रुव की तपस्या:
- ध्रुव मात्र पाँच वर्ष की आयु में ही वन की ओर चल पड़े और कठिन तपस्या प्रारंभ की। उन्होंने घोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। ध्रुव ने भगवान से न तो साम्राज्य मांगा और न ही ऐश्वर्य, बल्कि भगवान विष्णु की भक्ति और उनके सानिध्य की कामना की।
- भगवान विष्णु का आशीर्वाद:
- भगवान विष्णु ने ध्रुव की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अमरत्व और अटल ध्रुव तारे के रूप में प्रतिष्ठित किया। ध्रुव को भगवान विष्णु के द्वारा दी गई यह स्थायी और उच्चतम स्थिति उन्हें उनके अद्वितीय भक्ति के कारण प्राप्त हुई।
ध्रुव तारा
ध्रुव तारे को आज भी आकाश में स्थिर और अटल रूप में देखा जा सकता है। यह तारा उत्तर दिशा में स्थित होता है और इसे ध्रुव तारा या पोलारिस कहा जाता है। यह तारा नाविकों और यात्रियों के लिए मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है।
ध्रुव की कथा का महत्व
ध्रुव की कथा हमें सिखाती है कि:
- भक्ति और निष्ठा: किसी भी उम्र में, सच्ची भक्ति और ईश्वर के प्रति निष्ठा हमें उच्चतम स्थान तक पहुंचा सकती है।
- धैर्य और तप: जीवन में कठिनाइयों का सामना धैर्य और तपस्या से किया जा सकता है।
- सच्चा सम्मान: वास्तविक सम्मान और पहचान भौतिक संपत्तियों से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संकल्प और भक्ति से प्राप्त होती है।
ध्रुव की कथा भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और यह जीवन में कठिनाइयों का सामना करने, सच्ची भक्ति और समर्पण का महत्व समझने में सहायक होती है।
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Reviews
There are no reviews yet.