Description
मानव को यथाशक्ति और आवश्यकता अनुसार कार्य करना ही उसका कर्तव्य परायण होना कहलाता है मानव जीवन कर्तव्यों का भंडार है। उसके कर्तव्य उसकी अवस्था अनुसार छोटे और बड़े होते हैं। इसको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास आत्मिक शांति और यश मिलता है। कर्तव्य परायण व्यक्ति का अंत: करण हमेशा स्वस्थ और सरल होता है।
प्रत्येक मनुष्य को वेदों का स्वाध्याय कर ईश्वर के स्वरूप को जानना और ईश्वर के वेद वर्णित गुणों से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना जिसे हम सन्ध्या व ध्यान भी कह सकते हैं, इसे प्रतिदिन प्रातः व सायं करना प्रथम व मुख्य कर्तव्य है।
इस पुस्तककी उपादेयताके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा रचित पुस्तक है ।
Additional information
Weight | 0.2 kg |
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