Description
स्वाति नक्षत्र को केन्द्र मे रखकर स्वामी रामसुखदासजी ने जो प्रववचन दियेे उन्ही का संकलन इस पुस्तक में किया गया हैं। जिस ज्ञान से पीड़ा के आरंभ और अंत का ज्ञान होता है,वह ज्ञान निरंतर,अखंड रहता है। पीड़ा शरीर में रहती है,स्वयं में नहीं। पीड़ा आती-जाती है, हम रहते हैं। अत: हम पीड़ा से अलग हैं- ऐसा विवेक होने से पीड़ा का असर कम हो जायगा।
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