स्कन्दपुराण/ Skand Puran

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स्कन्दपुराण सबसे बड़ा पुराण है। भगवान स्कन्द के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम ‘स्कन्दपुराण‘ है। अत्यन्त रोचक शैली में प्रस्तुत की गयी हैं। विचित्र कथाओं के माध्यम से भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहास की ललित प्रस्तुति इस पुराण की अपनी विशेषता है।

इस पुराण के माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है-

दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन्।
यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकय॥
एक पुत्री दस पुत्रों के समान है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है वही फल केवल एक कन्या के पालन-पोषण से प्राप्त हो जाता है।

यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपों में उपलब्ध है खण्डात्मक स्कन्द पुराण में ये सात खण्ड हैं।

माहेश्वर

पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, यह परम पवित्र तथा विशाल कथाओं से परिपूर्ण है, इसमें सैकडों उत्तम चरित्र है। माहेश्वर खण्ड के भीतर केदार माहात्मय में पुराण आरम्भ हुआ है, उसमें पहले दक्ष यज्ञ की कथा है, इसके बाद शिवलिंग पूजन का फ़ल बताया गया है, इसके बाद समुद्र मन्थन की कथा और देवराज इन्द्र के चरित्र का वर्णन है, फ़िर पार्वती का उपाख्यान और उनके विवाह का प्रसंग है,

वैष्णव

दूसरा वैष्णवखण्ड है, इसमें पहले भूमि और वाराह भगवान के संवाद का वर्णन है, फ़िर कमला की पवित्र कथा और श्रीनिवास की स्थिति का वर्णन है, तदनन्तर कुम्हार की कथा तथा सुवर्णमुखरी नदी के माहात्मय का वर्णन है, फ़िर अनेक उपाख्यानों से युक्त भरद्वाज की अद्भुत कथा है, इसके बाद मतंग और अंजन के पापनाशक संवाद का वर्णन है,

ब्राह्म

इसमे सेतुमाहात्म्य प्रारम्भ करके वहां के स्नान और दर्शन का फल बताया गया है, फिर गालव की तपस्या तथा राक्षस की कथा है, तत्पश्चात देवीपत्तन में चक्रतीर्थ आदि की महिमा, वेतालतीर्थ का माहात्म्य और पापनाश आदि का वर्णन है, मंगल आदि तीर्थ का माहात्म्य ब्रह्मकुण्ड आदि का वर्णन हनुमत्कुण्ड की महिमा तथा अगस्त्यातीर्थ के फल का कथन है, उमामहेश्वर व्रत की महिमा, रुद्राक्ष का माहात्म्य, रुद्राध्याय के पुण्य तथा ब्रह्मखण्ड के श्रवण आदि की महिमा का वर्णन है।

काशी

काशीखण्ड में विंध्यपर्वत और नारदजी का संवाद का वर्णन है, सत्यलोक का प्रभाव, अगस्त्य के आश्रम में देवताओं का आगमन, पतिव्रताचरित्र, तथा तीर्थ यात्रा की प्रसंशा है, इसके बाद सप्तपुरी का वर्णन सयंमिनी का निरूपण शिवशर्मा को सूर्य इन्द्र और अग्नि लोक की प्राप्ति का उल्लेख है। क्षेत्र के तीर्थों का समुदाय, मुक्तिमण्डप की कथा विश्वनाथजी का वैभव, तदनन्तर काशी की यात्रा और परिक्रमा का वर्णन काशीखण्ड के अन्दर है।

अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड)

इसमे महाकालवन का आख्यान, ब्रह्माजी के मस्तक का छेदन, प्रायश्चित विधि अग्नि की उत्पत्ति देवताओं का आगमन देवदीक्षा नाना प्रकार के पातकों का नाश करने वाला शिवस्तोत्र कपालमोचन की कथा, महाकालवन की स्थिति, ककलेश्वर का महापापनाशक तीर्थ अप्सराकुण्ड, पुण्यदायक रुद्रसरोवर, कुटुम्बेश विध्याधरेश्वर तथा मर्कटेश्वर तीर्थ का वर्णन है,

नागर

नागर खण्ड में भी तीर्थों का वर्णन है

प्रभास

प्रभासखण्ड में विभिन्न नामॊं से शिवजी के स्थानों का विवेचन है।

संहितात्मक स्कन्दपुराण में छः संहिताएँ हैं।

सनत्कुमार

शंकर

ब्राह्म

सौर

वैष्णव

सूत

स्कन्द पुराण कथित रूप में एक शतकोटि पुराण है, जिसमें शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। उसके सारभूत अर्थ का व्यासजी ने स्कन्दपुराण में वर्णन किया है।

Description

स्कन्दपुराण सबसे बड़ा पुराण है। भगवान स्कन्द के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम ‘स्कन्दपुराण‘ है। अत्यन्त रोचक शैली में प्रस्तुत की गयी हैं। विचित्र कथाओं के माध्यम से भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहास की ललित प्रस्तुति इस पुराण की अपनी विशेषता है।

इस पुराण के माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है-

दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन्।
यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकय॥
एक पुत्री दस पुत्रों के समान है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है वही फल केवल एक कन्या के पालन-पोषण से प्राप्त हो जाता है।

यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपों में उपलब्ध है खण्डात्मक स्कन्द पुराण में ये सात खण्ड हैं।

माहेश्वर

पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, यह परम पवित्र तथा विशाल कथाओं से परिपूर्ण है, इसमें सैकडों उत्तम चरित्र है। माहेश्वर खण्ड के भीतर केदार माहात्मय में पुराण आरम्भ हुआ है, उसमें पहले दक्ष यज्ञ की कथा है, इसके बाद शिवलिंग पूजन का फ़ल बताया गया है, इसके बाद समुद्र मन्थन की कथा और देवराज इन्द्र के चरित्र का वर्णन है, फ़िर पार्वती का उपाख्यान और उनके विवाह का प्रसंग है,

वैष्णव

दूसरा वैष्णवखण्ड है, इसमें पहले भूमि और वाराह भगवान के संवाद का वर्णन है, फ़िर कमला की पवित्र कथा और श्रीनिवास की स्थिति का वर्णन है, तदनन्तर कुम्हार की कथा तथा सुवर्णमुखरी नदी के माहात्मय का वर्णन है, फ़िर अनेक उपाख्यानों से युक्त भरद्वाज की अद्भुत कथा है, इसके बाद मतंग और अंजन के पापनाशक संवाद का वर्णन है,

ब्राह्म

इसमे सेतुमाहात्म्य प्रारम्भ करके वहां के स्नान और दर्शन का फल बताया गया है, फिर गालव की तपस्या तथा राक्षस की कथा है, तत्पश्चात देवीपत्तन में चक्रतीर्थ आदि की महिमा, वेतालतीर्थ का माहात्म्य और पापनाश आदि का वर्णन है, मंगल आदि तीर्थ का माहात्म्य ब्रह्मकुण्ड आदि का वर्णन हनुमत्कुण्ड की महिमा तथा अगस्त्यातीर्थ के फल का कथन है, उमामहेश्वर व्रत की महिमा, रुद्राक्ष का माहात्म्य, रुद्राध्याय के पुण्य तथा ब्रह्मखण्ड के श्रवण आदि की महिमा का वर्णन है।

काशी

काशीखण्ड में विंध्यपर्वत और नारदजी का संवाद का वर्णन है, सत्यलोक का प्रभाव, अगस्त्य के आश्रम में देवताओं का आगमन, पतिव्रताचरित्र, तथा तीर्थ यात्रा की प्रसंशा है, इसके बाद सप्तपुरी का वर्णन सयंमिनी का निरूपण शिवशर्मा को सूर्य इन्द्र और अग्नि लोक की प्राप्ति का उल्लेख है। क्षेत्र के तीर्थों का समुदाय, मुक्तिमण्डप की कथा विश्वनाथजी का वैभव, तदनन्तर काशी की यात्रा और परिक्रमा का वर्णन काशीखण्ड के अन्दर है।

अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड)

इसमे महाकालवन का आख्यान, ब्रह्माजी के मस्तक का छेदन, प्रायश्चित विधि अग्नि की उत्पत्ति देवताओं का आगमन देवदीक्षा नाना प्रकार के पातकों का नाश करने वाला शिवस्तोत्र कपालमोचन की कथा, महाकालवन की स्थिति, ककलेश्वर का महापापनाशक तीर्थ अप्सराकुण्ड, पुण्यदायक रुद्रसरोवर, कुटुम्बेश विध्याधरेश्वर तथा मर्कटेश्वर तीर्थ का वर्णन है,

नागर

नागर खण्ड में भी तीर्थों का वर्णन है

प्रभास

प्रभासखण्ड में विभिन्न नामॊं से शिवजी के स्थानों का विवेचन है।

संहितात्मक स्कन्दपुराण में छः संहिताएँ हैं।

सनत्कुमार

शंकर

ब्राह्म

सौर

वैष्णव

सूत

स्कन्द पुराण कथित रूप में एक शतकोटि पुराण है, जिसमें शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। उसके सारभूत अर्थ का व्यासजी ने स्कन्दपुराण में वर्णन किया है।

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