साधन के दो प्रधान सूत्र/Sadhan ke do pradhan sootra

10.00

यह अनन्य भक्ति स्वयं से ही होती है , मन , बुद्धि इन्द्रियों आदि के द्वारा नहीं | तात्पर्य है कि केवल स्वयं की व्याकुलतापूर्वक उत्कंठा हो भगवान के दर्शन बिना एक क्षण भी चैन न पड़े | ऐसी जो भीतर में स्वयं की बेचैनी है वही भगवत् प्राप्ति में खास कारण है | इस बेचैनी में व्याकुलता में अनंत जन्मों के अनंत पाप भस्म हो जाते हैं

तात्पर्य है की भगवान् की प्राप्ति साधन करने से नहीं होती प्रत्युत साधन का अभिमान गलाने से होती है | साधन का अभिमान जल जाने से साधक पर भगवान् की शुद्ध कृपा असर करती है अर्थात उस कृपा के आने में कोई आड़ नहीं रहती और (उस कृपा से) भगवान् की प्राप्ति हो जाती है |

ऐसी अनन्य भक्ति से ही मैं तत्व से जाना जा सकता हूँ | अनन्य भक्ति से मैं देखा जा सकता हूँ और अनन्य भक्ति से ही मैं प्राप्त किया जा सकता हूँ |

Description

यह अनन्य भक्ति स्वयं से ही होती है , मन , बुद्धि इन्द्रियों आदि के द्वारा नहीं | तात्पर्य है कि केवल स्वयं की व्याकुलतापूर्वक उत्कंठा हो भगवान के दर्शन बिना एक क्षण भी चैन न पड़े | ऐसी जो भीतर में स्वयं की बेचैनी है वही भगवत् प्राप्ति में खास कारण है | इस बेचैनी में व्याकुलता में अनंत जन्मों के अनंत पाप भस्म हो जाते हैं

तात्पर्य है की भगवान् की प्राप्ति साधन करने से नहीं होती प्रत्युत साधन का अभिमान गलाने से होती है | साधन का अभिमान जल जाने से साधक पर भगवान् की शुद्ध कृपा असर करती है अर्थात उस कृपा के आने में कोई आड़ नहीं रहती और (उस कृपा से) भगवान् की प्राप्ति हो जाती है |

ऐसी अनन्य भक्ति से ही मैं तत्व से जाना जा सकता हूँ | अनन्य भक्ति से मैं देखा जा सकता हूँ और अनन्य भक्ति से ही मैं प्राप्त किया जा सकता हूँ |

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “साधन के दो प्रधान सूत्र/Sadhan ke do pradhan sootra”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related products