साधन – कल्पतरु/ Sadhan Kalpataru

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जयदयाल गोयन्दका का जन्म राजस्थान के चुरु में ज्येष्ठ कृष्ण 6, सम्वत् 1942 (सन् 1885) को श्री खूबचन्द्र अग्रवाल के परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में ही इन्हें गीता तथा रामचरितमानस ने प्रभावित किया। वे अपने परिवार के साथ व्यापार के उद्देश्य से बंगाल चले गए। बंगाल में दुर्भिक्ष पड़ा तो, उन्होंने पीड़ितों की सेवा का आदर्श उपस्थित किया।

जयदयाल गोयन्दका द्वारा रचित विविध पुस्तको साधन – कल्पतरु मे संम्मिलित किया गया हैं।

-स्त्री शिक्षा

प्रत्येक स्त्री को उचित है कि वह अपने नैहर और ससुराल में सबके साथ बहुत ही उत्तम व्यवहार करे। व्यवहार करते-करते सवका व्यवहार शीघ्र ही बहुत उच्च कोटि का हो सकता है।

-मनुष्य जीवन की सफलता

मनुष्य की सफलता, प्रसन्नता तथा समृद्धि उसकी तीनों वास्तविकतायें भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के संतुलित ज्ञान एवं उनके विकास पर निर्भर होती हैं। जीवन बहुत बड़ी चीज है। केवल परीक्षा में प्राप्त किये गये अंकों का सफल जीवन से अधिक संबंध नहीं होता है।

-आत्मोध्दार के साधन

मनुष्य के अंदर एक आत्मा होती है जो परमात्मा का अंश है। यह रूह या आत्मा खुदा/परमात्मा से आती है। मनुष्य का जब देहान्त होता है तो यह आत्मा परमात्मा के पास वापिस लौट जाती है। धरती का पिता तथा दिव्य लोक का पिता परमात्मा दोनों ही हमारी भलाई चाहते हैं। शरीर का पिता भी मार्गदर्शन देता है तथा आत्मा का पिता परमात्मा भी मार्गदर्शन देता है।

-परम साधन

बालक को बाल्यावस्था से ही यह ज्ञान होना चाहिए कि माता-पिता की क्या आज्ञायें हैं? एक आज्ञाकारी बालक अपने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन पूरे मन से करता है।

बालक को यह भी जानना जरूरी है कि उसके बड़े पिता परमात्मा की उसके लिए क्या शिक्षायें तथा आज्ञायें हैं? एक प्रभु भक्त बालक परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर जीवन में उनका पालन पूरी निष्ठा से करता है।
-परम शान्ति का मार्ग

जीवन के सत्य को उद्घाटित कर आध्यात्मिक प्रेम और शांति का मार्ग प्रशस्त करती एक विशिष्ट पुस्तक।. एक आध्यात्मिक गुरु या नेता वही होता है, जिसका एक रूपांतरणपरक मान हो। आप उन लोगों को पहचान सकते हैं, क्योंकि वे केवल अपने अस्तित्व द्वारा आपके जीवन में बदलाव ला पाए हैं। दादी जानकी आत्म-ज्ञानी हैं।

आदि एसी तेरह पुस्तको के संग्रह से साधन – कल्पतरु की रचना की गई हैं।

Description

जयदयाल गोयन्दका का जन्म राजस्थान के चुरु में ज्येष्ठ कृष्ण 6, सम्वत् 1942 (सन् 1885) को श्री खूबचन्द्र अग्रवाल के परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में ही इन्हें गीता तथा रामचरितमानस ने प्रभावित किया। वे अपने परिवार के साथ व्यापार के उद्देश्य से बंगाल चले गए। बंगाल में दुर्भिक्ष पड़ा तो, उन्होंने पीड़ितों की सेवा का आदर्श उपस्थित किया।

जयदयाल गोयन्दका द्वारा रचित विविध पुस्तको साधन – कल्पतरु मे संम्मिलित किया गया हैं।

-स्त्री शिक्षा

प्रत्येक स्त्री को उचित है कि वह अपने नैहर और ससुराल में सबके साथ बहुत ही उत्तम व्यवहार करे। व्यवहार करते-करते सवका व्यवहार शीघ्र ही बहुत उच्च कोटि का हो सकता है।

-मनुष्य जीवन की सफलता

मनुष्य की सफलता, प्रसन्नता तथा समृद्धि उसकी तीनों वास्तविकतायें भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के संतुलित ज्ञान एवं उनके विकास पर निर्भर होती हैं। जीवन बहुत बड़ी चीज है। केवल परीक्षा में प्राप्त किये गये अंकों का सफल जीवन से अधिक संबंध नहीं होता है।

-आत्मोध्दार के साधन

मनुष्य के अंदर एक आत्मा होती है जो परमात्मा का अंश है। यह रूह या आत्मा खुदा/परमात्मा से आती है। मनुष्य का जब देहान्त होता है तो यह आत्मा परमात्मा के पास वापिस लौट जाती है। धरती का पिता तथा दिव्य लोक का पिता परमात्मा दोनों ही हमारी भलाई चाहते हैं। शरीर का पिता भी मार्गदर्शन देता है तथा आत्मा का पिता परमात्मा भी मार्गदर्शन देता है।

-परम साधन

बालक को बाल्यावस्था से ही यह ज्ञान होना चाहिए कि माता-पिता की क्या आज्ञायें हैं? एक आज्ञाकारी बालक अपने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन पूरे मन से करता है।

बालक को यह भी जानना जरूरी है कि उसके बड़े पिता परमात्मा की उसके लिए क्या शिक्षायें तथा आज्ञायें हैं? एक प्रभु भक्त बालक परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर जीवन में उनका पालन पूरी निष्ठा से करता है।
-परम शान्ति का मार्ग

जीवन के सत्य को उद्घाटित कर आध्यात्मिक प्रेम और शांति का मार्ग प्रशस्त करती एक विशिष्ट पुस्तक।. एक आध्यात्मिक गुरु या नेता वही होता है, जिसका एक रूपांतरणपरक मान हो। आप उन लोगों को पहचान सकते हैं, क्योंकि वे केवल अपने अस्तित्व द्वारा आपके जीवन में बदलाव ला पाए हैं। दादी जानकी आत्म-ज्ञानी हैं।

आदि एसी तेरह पुस्तको के संग्रह से साधन – कल्पतरु की रचना की गई हैं।

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