सर्व देव प्रतिष्ठा /Sarvadev Pratistha

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Description

 

सर्व – देव प्रतिष्ठा

पुस्तक की सामग्री सूची के अनुसार, पाठकों की सुविधा के लिए सामग्री को सरल भाषा में विधिवत व्यक्त किया गया है। नीचे विषयों का उल्लेख किया गया है।

मंगलाचरण, मंडपार्थ भुशुद्धि, मंडप निर्माण, पताका रंग, उत्सव के रंग, हेमाद्रि संकल्प, स्नानांग तर्पण, वेदी के पास भद्रसूक्त, गणेश स्मरण, संकल्प, वरुणवाहन पूजा, दीपपूजा, गणपति पूजा, कलशस्थापन, पुण्याहवाचन, षड्विनायक पूजा, मातृका पूजा, आयुष्यमनमंत्र जाप, नंदीश्रद्धा, जलयात्रा, क्षेत्रपाल, नवकलश स्थापना, भैरव पूजा, मंडल प्रवेश, भद्रसूक्तपाठ, गणेश गौरी पूजा, कल्पदि, वृणवाहन, द्वादसविनायक पूजा, षोडशमातृका पूजा, सप्तमातृका पूजा, योगिनी स्थापना पूजा, यमन स्थापना पूजा, षोडश आधारी स्तंभ पूजा, मस्तक पूजा, पूजा के पिट रूप, बेल्ट पूजा, कुशकंडिका, नवग्रह स्थापन पूजन, आदिदेवतादि पूजन, प्रत्यधिदेव पूजन, दिकपाल स्थापना, रुद्रकला, हवनारम्भ, अग्निपूजा, नवाहूतय, अध्‍यदेवाहवन, वास्‍तुहोम, आरती, क्षेत्रपाल बलि, प्रकरण के बारे में विस्‍तार से बताया गया है और स्‍पष्‍ट रूप से कहा गया है, यह सर्वदेव प्रतिष्‍ठा पुस्‍तक का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है।

सर्वदेव प्रतिष्‍ठा पुस्‍तक के लाभ:

इस पुस्‍तक को पढ़ने से आपको देव प्रतिष्‍ठा के बारे में पूरी जानकारी मिलती है।

पुस्‍तक को पढ़ने से आपको हवन, पूजा पाठ के बारे में पता चलेगा।

सर्वदेव प्रतिष्‍ठा पुस्‍तक का विवरण:

मंदिरों में मूर्ति की पूजा शुरू करने से पहले उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उसके पीछे सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि पूर्ण दर्शन समाहित है। हमारी सांस्‍कृतिक मान्‍यता इस परंपरा से जुड़ी है कि पूजा मूर्ति की नहीं, दैवीय शक्ति की, महाचेतना की की जाती है। वृहद दृष्टि से मूर्ति को माध्‍यम बनाते हुए उस दैवीय चेतना को भी प्रमुखता देनी चाहिए। अस्तु, प्राण-प्रतिष्ठा प्रक्रिया-जिस प्रतिमा को हम अपनी पूजा का माध्यम बना रहे हैं, उसका दाह संस्कार करके उसमें दैवी शक्ति का अंश स्थापित करने का उपक्रम किया जाता है।- सर्वदेव प्रतिष्ठा पुस्तक।

यह भी एक विज्ञान है। पृथ्वी में सर्वत्र जल है, उसे बोरिंग पंप द्वारा एकत्रित किया जा सकता है। कम्प्रेसर पंप द्वारा वायु को किसी पात्र में संघनित किया जा सकता है। लेंस द्वारा सर्वत्र फैले प्रकाश को संघनित करके किसी स्थान विशेष पर एकत्रित करना संभव है। ईश्वर भी जल, वायु और प्रकाश की तरह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। उसे संघनित करके किसी विशिष्ट माध्यम में स्थापित करना भी एक विशिष्ट प्रक्रिया है। उसके लिए कर्मकाण्डियों ने श्रद्धापूर्वक अनुष्ठान की व्यवस्था बनाई है। मन्दिर और प्रतिमा को उस महाशक्ति के अवतरण के योग्य बनाने के लिए पूर्ण-प्रतिष्ठा का प्रयोग किया जाता है।- सर्वदेव प्रतिष्ठा पुस्तक।

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Weight 0.2 kg

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