Description
मानव और पशु में भोग के विषय में तो समानता दिखाई देती है लेकिन ज्ञान के विषय में वह पशु से बेहतर है. जो मनुष्य सिर्फ भोग का जीवन जी रहा है वह इस अंतर को समझ नहीं पाया है. जो विवेक की शक्ति को समझ गया है वो सत्य की खोज में है और सत्य उसे अवश्य मिलेगा
सत्य इस संसार में बड़ी शक्ति है. सत्य के बारे में व्यवहारिक बात यह है कि सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं. भारत में कई सत्यवादी विभूतियाँ हुईं जिनकी दुहाई आज भी दी जाती हैं जैसे राजा हरिश्चन्द्र, सत्यवीर तेजाजी महाराज आदि. इन्होने अपने जीवन में यह संकल्प कर लिया था कि भले ही जो कुछ हो जाए वे सत्य की राह को नहीं छोड़ेंगे।
सत्य का शाब्दिक अर्थ होता है सते हितम् यानि सभी का कल्याण। इस कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही व्यक्ति सत्य बोल सकता है. एक सत्यवादी व्यक्ति की पहचान यह है कि वह वर्तमान, भत अथवा भविष्य के विषय में विचार किये बिना अपनी बात पर दृढ़ रहता है. मानव स्वभाव में सत्य के प्रति आगाध श्रद्धा एवं झूठ के प्रति घृणा वो के भाव आते हैं।
सत्य के मापक की खोज स्वयं अनुभव में करनी चाहिए। अनुभव में “आंतरिक अविरोध” सत्य की कसौटी है।
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