संतवाणी अङ्क – कल्याण/ Sant Vani Anka- Kalyan

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भगवत्कृपा से कल्याण का प्रकाशन ईस्वी सन 1926 से लगातार हो रहा है। इस पत्रिका के आद्य संपादक नित्यलीलालीन भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार थे। कल्याण के प्रथम अंक में प्रकाशित संपादकीय वक्तव्य पठन सामग्री में उधृत है।

आध्यात्मिक जगत में कल्याण के विशेषांकों का संग्रहणीय साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित स्थान है। प्रतिवर्ष जनवरी माह में साधकों के लिये उपयोगी किसी आध्यात्मिक विषय पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित होता है। शेष ग्यारह महीनों में प्रतिमाह पत्रिका प्रकाशित होती है।
बीते दिनो श्रीमद्शिवपुराण कथा का आयोजन किया गया। समापन के बाद हवन यज्ञ पर आहुतियां दी गई। गुरुवार से संतवाणी कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। दूसरे और आखिरी दिन शुक्रवार को श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए नेपाल राजगुरू पंडित अर्जुन प्रसाद वास्तोला ने ज्ञान शब्द की व्याख्या की। बताया कि उनके द्वारा माताओं को सिर ढकने के लिए अलग वस्त्रत की शिक्षा दी गई है। एक ही धोती को पहनना और सिर ढकना मना है। शारदा पीठाधीश्वर त्रिलोकीस्वरूप महाराज ने घर में रखने वाले पात्रों के बारे में बताया। उन्होंने जैविक खाद का प्रयोग करने की बात कही। शिक्षा के क्षेत्र में ऋषि परंपरा का ज्ञान बताया और प्रथमा तक संस्कृत विद्यालय में पढ़ने की बात बताई। इसके बाद अनुरुद्ध आचार्य ने संसारों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि जब बच्चा रोता था तो पशुओं की क्रूरता का भय दिखाकर चुप कराया जाता था। लकिन आज मां बाबा का नाम लेकर चुप कराया जाता है। उन्होंने सोलह संस्कारों पर प्रकाश डाला। इसके बाद अज्ञात दर्शन जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आनंद के जरिए ही परमात्मा को पाया जा सकता है। इस दौरान ब्राह्मण अंतर्राष्ट्रीय संगठन के जिलाध्यक्ष जगतराम त्रिपाठी, जयराम शुक्ल, सूर्यप्रकाश मिश्र आदि लोग व्यवस्थाओं में डटे रहे।

Description

भगवत्कृपा से कल्याण का प्रकाशन ईस्वी सन 1926 से लगातार हो रहा है। इस पत्रिका के आद्य संपादक नित्यलीलालीन भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार थे। कल्याण के प्रथम अंक में प्रकाशित संपादकीय वक्तव्य पठन सामग्री में उधृत है।

आध्यात्मिक जगत में कल्याण के विशेषांकों का संग्रहणीय साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित स्थान है। प्रतिवर्ष जनवरी माह में साधकों के लिये उपयोगी किसी आध्यात्मिक विषय पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित होता है। शेष ग्यारह महीनों में प्रतिमाह पत्रिका प्रकाशित होती है।
बीते दिनो श्रीमद्शिवपुराण कथा का आयोजन किया गया। समापन के बाद हवन यज्ञ पर आहुतियां दी गई। गुरुवार से संतवाणी कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। दूसरे और आखिरी दिन शुक्रवार को श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए नेपाल राजगुरू पंडित अर्जुन प्रसाद वास्तोला ने ज्ञान शब्द की व्याख्या की। बताया कि उनके द्वारा माताओं को सिर ढकने के लिए अलग वस्त्रत की शिक्षा दी गई है। एक ही धोती को पहनना और सिर ढकना मना है। शारदा पीठाधीश्वर त्रिलोकीस्वरूप महाराज ने घर में रखने वाले पात्रों के बारे में बताया। उन्होंने जैविक खाद का प्रयोग करने की बात कही। शिक्षा के क्षेत्र में ऋषि परंपरा का ज्ञान बताया और प्रथमा तक संस्कृत विद्यालय में पढ़ने की बात बताई। इसके बाद अनुरुद्ध आचार्य ने संसारों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि जब बच्चा रोता था तो पशुओं की क्रूरता का भय दिखाकर चुप कराया जाता था। लकिन आज मां बाबा का नाम लेकर चुप कराया जाता है। उन्होंने सोलह संस्कारों पर प्रकाश डाला। इसके बाद अज्ञात दर्शन जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आनंद के जरिए ही परमात्मा को पाया जा सकता है। इस दौरान ब्राह्मण अंतर्राष्ट्रीय संगठन के जिलाध्यक्ष जगतराम त्रिपाठी, जयराम शुक्ल, सूर्यप्रकाश मिश्र आदि लोग व्यवस्थाओं में डटे रहे।

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