श्री श्री ब्रहद भगवतमृतम्/ Shree Shree Brihad Bhagwatamritam

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अर्जुन भगवान कृष्ण के शिष्य के रूप में स्थिति को स्वीकार करते हैं और उन्हें पूरा करते हुए भगवान से अनुरोध करते हैं कि वे उन्हें अपने विलाप और दुःख को दूर करने का निर्देश दें। इस अध्याय को अक्सर एमटायर भगवद-गीता के सारांश के रूप में समझा जाता है। यहां कई विषयों की व्याख्या की गई है जैसे: कर्म योग, ज्ञान योग, सांख्य योग, बुद्धि योग और आत्मा जो आत्मा है। सभी जीवों में विद्यमान आत्मा की अमर प्रकृति को प्रधानता दी गई है और इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। इस प्रकार इस अध्याय का शीर्षक है: आत्माओं की अमरता की शाश्वत वास्तविकता।

सनातन गोस्वामी कर्णाट श्रेणीय पंचद्रविड़ भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदी ब्राह्मण थे। इनके पूर्वज कर्णाट राजवंश के थे और सर्वज्ञ के पुत्र रूपेश्वर बंगाल में आकर गंगातटस्थ बारीसाल में बस गए। इनके पौत्र मुकुंददेव बंगाल के नवाब के दरबार में राजकर्मचारी नियत हुए तथा गौड़ के पास रामकेलि ग्राम में रहने लगे। इनके पुत्र कुमारदेव तीन पुत्रों अमरदेव, संतोषदेव तथा वल्लभ को छोड़कर युवावस्था ही में परलोक सिधार गए जिससे मुकुंददेव ने तीनों पौत्रों का पालन कर उन्हें उचित शिक्षा दिलाई। इन्हीं तीनों को श्री चैतन्य महाप्रभु ने क्रमश: सनातन, रूप तथा अनुपम नाम दिया।

Description

अर्जुन भगवान कृष्ण के शिष्य के रूप में स्थिति को स्वीकार करते हैं और उन्हें पूरा करते हुए भगवान से अनुरोध करते हैं कि वे उन्हें अपने विलाप और दुःख को दूर करने का निर्देश दें। इस अध्याय को अक्सर एमटायर भगवद-गीता के सारांश के रूप में समझा जाता है। यहां कई विषयों की व्याख्या की गई है जैसे: कर्म योग, ज्ञान योग, सांख्य योग, बुद्धि योग और आत्मा जो आत्मा है। सभी जीवों में विद्यमान आत्मा की अमर प्रकृति को प्रधानता दी गई है और इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। इस प्रकार इस अध्याय का शीर्षक है: आत्माओं की अमरता की शाश्वत वास्तविकता।

सनातन गोस्वामी कर्णाट श्रेणीय पंचद्रविड़ भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदी ब्राह्मण थे। इनके पूर्वज कर्णाट राजवंश के थे और सर्वज्ञ के पुत्र रूपेश्वर बंगाल में आकर गंगातटस्थ बारीसाल में बस गए। इनके पौत्र मुकुंददेव बंगाल के नवाब के दरबार में राजकर्मचारी नियत हुए तथा गौड़ के पास रामकेलि ग्राम में रहने लगे। इनके पुत्र कुमारदेव तीन पुत्रों अमरदेव, संतोषदेव तथा वल्लभ को छोड़कर युवावस्था ही में परलोक सिधार गए जिससे मुकुंददेव ने तीनों पौत्रों का पालन कर उन्हें उचित शिक्षा दिलाई। इन्हीं तीनों को श्री चैतन्य महाप्रभु ने क्रमश: सनातन, रूप तथा अनुपम नाम दिया।

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